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...................हर आस्थावान ,धार्मिक व्यक्ति लगभग पूजा -आराधना करता है ,कुछ लोग मात्र अगरबत्ती जलाकर अपनी आस्था व्यक्त कर लेते है और कुछ पूरी पूजा -आराधना भी करते है ,इनमे कुछ लोग कई-कई घंटो पूजा करते हुए भी पाए जाते है ,किन्तु सभी आराधको में से बहुतायत संख्या में लोगो को उपयुक्त परिणाम या लाभ प्राप्त होते दिखाई नहीं देता ,जबकि अधिकतर अपने घरों में तंत्र से सम्बंधित देवी-देवताओं यथा गणपति ,शिव ,दुर्गा ,काली ,श्री विद्या [श्री यन्त्र ]की भी पूजा करते है ,जिनके परिणाम अवश्य मिलने चाहिए ,|,ऐसा क्यों होता है ,,विचार करने पर अक्सर देखा जाता है की लोग निरुद्देश्य ,बिना उचित संकल्प के पूजा कर रहे है ,जबकि शक्ति साधना का मूल संकल्प है | ,जब आप निष्काम पूजा कर रहे हो अर्थात मोक्ष के लिए पूजा कर रहे हो तब तो बात अलग है किन्तु किसी उद्देश्य से पूजा करने पर उस उद्देश्य को संकल्प से व्यक्त करना चाहिए ,|ऐसा लाखों में कोई एक होगा जो
वास्तव में निष्काम पूजा करता है ,,कहीं न कहीं आपके मन में कोई न कोई भावना तो
होती है की अमुक चीज मिले ,भले वह मोक्ष की कामना ही हो |अतः कहीं न कहीं कामना
होने पर उसे व्यक्त करना आवश्यक हो जाता है |
,ध्यान देने योग्य है शक्तियों [दुर्गा-काली-महाविद्या-भैरव-गणपति अथवा विष्णु ,लक्ष्मी ,सरस्वती ,सूर्य ]आदि उर्जा केंद्र है |इनकी कल्पना साकार रूप में और विशेष गुण के साथ की गई है ,तब जब
आप इनकी आराधना करते हैं तो आपके मन में इनके गुण भी होते हैं तो यह मोक्ष की
साधना कैसे हो गई |मिक्ष तो निराकार -निर्गुण परमब्रह्म या शिव में मिलन होता है |आप
तो आराधना साधना एक गुण विशेष की ऊर्जा की कर रहे हैं तो आप निराकार में कैसे
जायेंगे |गुण विशेष की शक्ति साधना में कोई न कोई उद्देश्य तो होता ही है ,अतः उसे
व्यक्त भी करना चाहिए नहीं तो आपकी आराधना व्यर्थ जा सकती है |
अपने विशिष्ट गुणों के साथ ,इन ऊर्जा ,शक्ति या देवी -देवताओं की अपनी कोई दृष्टि नहीं होती ,|भले आप सोचें की वह तो सब देख ही रहा है |वह
तो सबमे है , जैसा साधक संकल्प कर उन्हें करने को कहता है वैसा वे करते है ,|,संकल्प का मतलब है अपनी मानसिक विचारो को एक निश्चित
दिशा में केन्द्रित करना ,| जिसके
आधार पर आकर्षित होने वाली ऊर्जा [देवता ]उस दिशा में क्रिया कर सके, | अतः संकल्प
अवश्य करना चाहिए पूजा के पूर्व |संकल्प से आप अपना वह
उद्देश्य पूर्ण मानसिक बल से व्यक्त करते हैं जो कहीं न कहीं आपके अन्दर होता जरुर
है |अतः उसे व्यक्त करना आवश्यक है ,इन शक्तियों की ऊर्जा को एक निश्चित दिशा देने
के लिए |ध्यान दीजिये की आप साकार की और गुण विशेष की शक्ति की पूजा कर रहे अर्थात
आप मोक्ष नहीं मुक्ति की साधना कर रहे और जिसकी साधना कर रहे वाही आपका अंतिम
लक्ष्य होगा भी और आप वहां तक उस लोक तक या उस ऊर्जा केनरा तक ही जायेंगे |यह
मुक्ति हुई न की मोक्ष |किसी गुण विशेष को पाना और उसमे मिलना मुक्ति है न की
मोक्ष |अतः उस गुण की शक्ति से अपना मंतव्य भी व्यक्त होना चाहिए ,तभी वह उस दिशा
में कार्य करेगा |
,,लोग अधिक पूजा पर भी शुन्य परिणाम या नकारात्मक परिणाम पाते हुए देखे जाते है ,इसका मूल कारण अक्सर गलतिया होती है |,अधिक करने से गलतियों की सम्भावना भी अधिक होती है और शक्तिया गलतिय को क्षमा नहीं करती ,| ऐसा शक्तियों का स्वरूप् बिगडने और उनके अनियंत्रित दिशा पकड़ने के कारण भी हो सकता है |,किसी एक शब्द की
त्रुटी किसी मंत्र में अर्थ का अनर्थ कर देती है | ,कभी किसी बीज मंत्र का अशुद्ध
उच्चारण उसके नाद में ही परिवर्तन कर देता है जिससे सम्बंधित चक्र और उर्जा पर कोई
असर ही नहीं पड़ता अथवा कभी नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हो जाता है |,,कभी-कभी श्रद्धावश ऐसी सामग्री भी अर्पित
की जाती है जो उस शक्ति विशेष के उर्जा संरचना और तरंगों के विपरीत
तरंगों वाली होती है |,इससे भी परिणाम
में कमी आती है,अथवा ऊर्जा
प्रतिकर्षित होने लगती है |आप भले कहें की वह तो माता है ,वह तो पिता है ,पर आप सोचिये माता
को गाली देकर ,उसका नाम बिगाड़कर बुलायेंगे तो क्या वह खुश होगी |मन्त्र की गलती
ऐसा कर सकती है |जिसकी स्वरुप की कल्पना और मंत्र विन्यास साभार और नाश के लिए बना
है उसकी आराधना साधना से तो वैसी ही ऊर्जा उत्पन्न करेगी ,तब वह जब उग्र रूप में
होगी तो आपकी गलती पर आपको भी दंड देगी |या अनियंत्रित हो जायेगी और विनाश उलटी
दिशा में हो सकता है |इसलिए जितना किया जाए उतना बिलकुल सही हो ,गलती कहीं न हो यह
ध्यान देना आवश्यक है |दुर्गा-काली-गणेश-रूद्र-महाविद्या tantra की
शक्तियाँ हैं ,यहं गलती पर दंड का भी प्रावधान है उग्र शक्तियों में |
,,अक्सर ऐसा भी होता है की पूजा काफी देर तक की किन्तु मन कही और था ,इससे कोई परिणाम ही नहीं मिलने वाला | ,पूजा की जा रही है घर में सुख शान्ति
के लिए और मन में क्रोध -क्षुब्धता
है और दिशा ईष्ट पर न होकर किसी व्यक्ति या घर पर है | ,इससे शान्ति की जगह अशांति
हो जायेगी क्योकि आवाहित ऊर्जा उस व्यक्ति की और क्रिया कर सकती है अथवा क्रोध
रहने पर शांति से सम्बंधित ऊर्जा आकर्षित ही नहीं होगी ,अर्थात असफलता ,| ध्यान
दीजिये की जब आप किसी की आराधना करते हैं तो इसका मतलब है आप उस शक्ति या देवी-देवता को बुला रहे होते हैं अपने पास |आपका मन कहीं और हुआ तो या तो वह
आएगी ही नहीं और आएगी तो वह भी वाही देखेगी जो आप सोचेंगे ,क्योकि वह तो आपके मन
से बंधी होती है | आप पूजा करते हुए गुस्से में हैं तो जिस दिशा में गुस्सा होगा
उधर वह ऊर्जा घूम जायेगी और सम्बंधित व्यक्ति का नुक्सान कर सकती है |इसीलिए कहा
गया है की कभी साधना या उपासना करते समय किसी को श्राप आदि न दें |अपने घर -परिवार
को अपशब्द न कहें ,उनपर क्रोध न करें ,क्योकि आपके साथ कोई और शक्ति जुडी हो सकती
है जो आपके शब्दों और मानसिक दिशा के साथ सम्बंधित व्यक्ति पर क्रिया कर सकती है |इसलिए
साधना पूजा के समय बिलकुल शांत और एकाग्र रहें नहीं तो लाभ क्या नुक्सान भी संभव
है ,यां कोई लाभ ही नहीं होगा और आपका समय केवल बर्बाद होगा |
कभी कभी पूजा का परिणाम उपयुक्त दिशा -माला-सामग्री -आसन आदि से भी प्रभावित होता है ,|आप साधना उग्र शक्ति की करें
और सामान शक्ति वाला ,ठंडा प्रकृति का चढ़ाएं तो व्यतिक्रम उत्पन्न होगा |विपरीत
गुण वाले माला -सामान से उर्जा अव्यवस्थित होगी और र्कात्र होने में दिक्कत होगी
क्योकि दो विपरीत गुण टकरायेंगे |अतः जब भी कुछ करे उचित और सही तरीके से करे ,,इन छोटी-छोटी बातो पर यदि थोडा ध्यान दे दिया जाए तो पूजा निष्फल होने से बच जाए और उसका परिणाम प्राप्त हो ....................................................................हर-हर महादेव्
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