=================================================
जिन अर्थों में तंत्र शब्द आज प्रयुक्त होता है ,और जन साधारण में बहुधा समझा भी जाता है ,जैसे
यन्त्र ,मंत्र ,तंत्र ,जादू-टोना ,मारण ,वशीकरण ,उच्चाटन ,विद्वेषण ,सिद्धि प्राप्ति आदि जो की मध्ययुगीन तांत्रिक साधना की विशेषता है ,तंत्र शब्द के वेदों से लेकर शंकर तक उपयोग और व्यवहार में कहीं भी
अभिव्यक्त नहीं होती |लेकिन यह मानना की मध्ययुग के पूर्व इन साधनाओं और सिद्धियों से भारतीय मनुष्य अपरिचित था ,उपयुक्त नहीं है |ऋग्वेद ,अथर्ववेद ,व् ब्राह्मण ग्रंथों में इसके उदाहरण यात्रा-तत्र बिखरे हुए हैं |यह सही है की तंत्र नाम से कोई स्वतंत्र साधना ६-७ वि सदी से पूर्व देखने में नहीं आती ,अर्थात तंत्र नाम से स्वतंत्र साधना का प्रारम्भ ६-७ वि सदी से शुरू होती है ,यद्यपि इनके अलग रूप पूर्व से मौजूद थे |
धर्मं
और साधना
के इतिहास में यह बात उल्लेखनीय है की जिस काल में बौद्धों में तांत्रिक साधना बज्रयान ,मंत्रयाँन ,सहजयान आदि प्रारम्भ हुई थी ,उसी काल में वैदिक
या अवैदिक सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों में भी प्रारम्भ हो गयी थी |इसका एक मोटा सा कारण यह प्रतीत होता है की लगभग सभी धर्म एवं सम्प्रदाय लौकिक तत्वों
की अपेक्षा अलौकिक तत्वों
जैसे नरक-स्वर्ग, मोक्ष ,निर्वाण ,आत्मा-परमात्मा ,शून्य की और अधिक प्रवृत्त हो गए थे |सभी धर्मो में उनके संवाहक
और विद्वान् अपने मतवाद के समर्थन के लिए संस्कृत में शास्त्रार्थ और तर्कवाद की और मुड़ गए थे |जन-साधारण को कुछ मंदिरों ,उनमे बैठे प्रतीकों या प्रतिमाओं और लोभी कर्मकांडी पुरोहितों के भरोसे छोड़ दिया था |छोटे -छोटे राज्यों के राजा अपनी संपत्ति और सट्टा के लोभ में जन साधारण की आर्थिक व् सामाजिक दुरवस्था से बेखबर थे |ऐसी स्थिति
में साधना के क्षेत्र में क्रान्ति आना स्वाभाविक था |यदि बज्रयान की तांत्रिक दृष्टि बुद्ध धर्म की महायान
शाखा की शुन्यवादी साधना के खिलाफ लौकिक दृष्टि
की क्रान्ति थी तो शैव ,शाक्त और वैष्णव
धर्मो की पारंपरिक ब्रह्मवादी दृष्टि
के विपरीत
एक लौकिक प्रतिक्रिया |
तंत्रों के सम्बन्ध में एक आम धारणा बनी हुई है की इसका सम्बन्ध केवल शैव या शाक्त
सम्प्रदायों से है |लेकिन यह उचित नहीं है ,क्योकि प्रत्येक धर्म और सम्प्रदाय की अपनी तांत्रिक दृष्टि होती है |भारतीय धर्मो की ,वैदिक हो या अवैदिक
की बात छोडिये ,मसीह ,इस्लाम व् पारसी धर्म के भी अपने मंत्र ,तंत्र ,गुरु व् ईष्टदेव-देवियाँ होते हैं जो अनुयाइयों को उनके जीवन में संकट के प्रत्येक अवसर पर साथ देते हैं |वेदों में तो देववाद नहीं था ,प्राकृतिक शक्तियां थी ,उनमे भी तांत्रिक ढंग की प्रक्रियाएं हैं जिनमे मनोवांछित फल प्राप्ति की कामना रहती थी |अथर्ववेद में ढेर सारे मंत्र हैं जिनसे यथेछित
फल प्राप्त किये जा सकते हैं |जब सामाजिक परिवेश छठी -सातवी सदी के आसपास अधिक दूषित होने लगा ,राजाओं की आपसी कटुता और विलासिता के साथ ही धर्म गुरुओं
के अपने विलास में लिप्त हो जाने से सामान्य लोगों का सहारा समाप्त दिखने लगा ,सामान्य कर्मकांड और पद्धति से लाभ नहीं नजर आया अथवा उन्हें उचित मार्गदर्शन नहीं मिल रहा था ,तब सामान्य जन में तीब्र अलौकिक शक्तियों की और रुझान बढने से तांत्रिक क्रियाओं की और वे अधिक आकृष्ट हुए और इस क्षेत्र क्रान्ति आ गयी |लोग प्रतेक लौकिक समस्या
का हल अलौकिक शक्तियों में खोजने लगे |......................................................................हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment