Friday, 8 December 2017

अंग देवता कौन होते हैं ?,क्यों आवश्यक है इनकी पूजा ?

अंग देवताओं की उपेक्षा कदापि न करें
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रोज पूजा -उपासना पर भी कष्टों का एक कारण यह भी
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हर मुख्य देवता के कुछ अंग देवता होते हैं जो उस देवता के साथ हमेशा होते हैं और यह मुख्या देवता के आह्वान पर उसके पहले उस स्थान पर पहुचते हैं |इनमे साधना अथवा गहन उपासना काल में प्रधान देवता के साथ भैरव ,योगिनी ,क्षेत्रपाल ,हनुमान आदि होते हैं और इनका आगमन अवश्य रहता है ,चाहे आप इनका आह्वान करें अथवा न करें ,यह हर हाल में आते ही हैं |अतः प्रधान देवता के साथ इनका भी जप अथवा स्मरण और बलि कर्म आदि विधान होना चाहिए | इन देवताओं से बहुत से लाभ तो कुछ हानियाँ भी होती हैं ,जबकि आपको इसका पता नहीं होता |आप सोचते रहते हैं की हमने अमुक देवता को बुलाया है और उस बारे में ही आपको पता होता है |इनके बारे में आप जानते ही नहीं जिससे कभी कभी कई समस्याएं हो जाती हैं |
यदि आप अपनी उपासना -आराधना -साधना का उपयुक्त परिणाम और लाभ चाहते हैं तो आप जिस समय रोज साधना अथवा उपासना अथवा आराधना करते हैं उसे निश्चित रखें अर्थात आपकी पूजा -साधना का समय निश्चित हो |इसमें आधे घंटे भी उच्चावय न हो |आप जब किसी देवता की पूजा करते हैं तो आप उसे बुलाते हैं और पूजन सामग्री ,मंत्र जप आदि समर्पित करते हैं |आपके आह्वान से मुख्य देवता आयें या न आयें अंग देवता अवश्य आयेंगे |रोज की पूजा के समय यह अंग देवता निश्चित समय पर आ जाते हैं |आप यह समझ सकते हैं की यह आपके पूजा का परिक्षण क्रम होता है ,जब रोज के समय अंग देवता आ जाते हैं और आप कुछ समय आगे अर्थात देर से पूजा करते हैं तो यह नाराज हो जाते हैं |ऐसा ही पहले पूजा करने पर होता है ,रोज के समय से पहले पूजा करनी शुरू की अंग देवता आये बाद में ,मुख्य देवता तो बहुत बाद में कभी आएगा |यह अंग देवता आपकी पूजा के समय आपकी अनुपस्थित पर नाराज हो जाते हैं ,भले आप पहले पूजा कर चुके हों |जब यह नाराज होकर चले जायेंगे तो अथवा क्रोधित होंगे तो आपके दैनिक कर्म ,व्यापार आदि में भी अशांति पैदा कर सकते हैं |
अब इसको हम थोड़े वैज्ञानिक रूप से समझाने का प्रयत्न करते हैं |हर देवता ,देवी एक शक्ति रूप ऊर्जा है जिसका कोई निश्चित आकर नहीं हैं ,आकार की कल्पना उसके गुणों के आधार पर है |मूल शक्ति तो निर्विकार ,निर्लिप्त और निराकार है ,किन्तु उसका क्रियाशील रूप अलग -अलग गुणों से युक्त है जिसके आधार पर स्वरुप की परिकल्पना है |जब भी आप किसी भी देवता को मुख्य अथवा ईष्ट मानकर उसकी उपासना ,पूजा शुरू करते हैं ,चाहे मूल शक्ति की अथवा बिलकुल सबसे छोटी शक्ति की तो उसकी सहायक शक्तियां अवश्य होती हैं यह शक्तियां अंग देवता कहलाती हैं |जैसे मूल महाविद्याओं ,शिव ,विष्णु आदि के अंग देवता भैरव ,हनुमान ,मात्रिका ,योगिनी ,क्षेत्रपाल होते हैं |पिशाच आदि को देवता मानकर पूजा करने पर इसके सहायक शक्तियां भूत-प्रेत होंगे |यह सहायक शक्तियां या अंग देवता पृथ्वी के वातावरण से सम्बन्ध रखने वाली शक्तियां है और यही मूल रूप से पृथ्वी से जुडी होकर मूल देवता और आपके बीच सम्बन्ध बनाते हैं |जब भी किसी मूल शक्ति का आह्वान होता है अथवा पूजा की जाती है तो पृथ्वी से जुडी यह शक्तियां पहले पहुचती हैं और आधार बनाती हैं |यह हर हाल में आती ही हैं चाहे आप बुलाएं या न बुलाएं क्योकि इनके द्वारा ही मूल शक्ति आती है |
जब आप रोज निश्चित समय पर पूजा करते हैं तो यह आती हैं और आपके तथा मूल शक्ति के बीच तारतम्य बनाने का प्रयत्न करती हैं अर्थात आपकी आतंरिक ऊर्जा से सम्बन्ध जोडकर आपकी ईष्ट उस मूल शक्ति के लिए आधार बनाती हैं |कभी कभी या कह सकते हैं की अक्सर आपकी पूजा में वह तासीर नहीं होती की मूल देवता आप तक आकर्षित हो किन्तु फिर भी आपको लाभ मिलने लगता है |यह इन अंग देवताओं की कृपा होती है की आपको त्वरित लाभ प्रदान करने लगते हैं |इसीलिए वैदिक पूजा हो अथवा तांत्रिक पूजा ,मात्रिका ,योगिनी ,भैरव ,हनुमान ,क्षेत्रपाल ,ग्राम देवता ,स्थान देवता आदि को जरुर शामिल किया जाता है यहाँ तक की ग्रहों और वास्तु देवता को भी स्थान दिया जाता है |यह सब सहायक शक्तियां होती हैं |आपकी पूजा का समय अनिश्चित होने पर न अंग देवता रुष्ट होते हैं और आपको पूजा से लाभ नहीं मिलता कभी कभी नुक्सान भी होता है |इसका कारण यह है की आपने शक्ति बुला ली किन्तु उसे व्यवस्थित नहीं रख पाए जिससे वह अनियंत्रित होकर नुकसान करती है |यदि आपको खुद में इन्हें समाहित करना नहीं आया तो भी कभी कभी नुक्सान होता है इनके अनियंत्रण से |
रोज निश्चित समय पर पूजा के बाद कभी कभी समय ऊपर नीचे करने पर अंग देवता उसी समय आते हैं जिस समय आप रोज पूजा करते हैं अर्थात पृथ्वी के सतह से सम्बंधित ऊर्जा उस निश्चित समय उपस्थित होती है |उस समय आपके पूजा प्रदान न करने पर अर्थात उसके साथ तारतम्य न बनाते पर वह रुष्ट हो जाती है ,इसका अर्थ है की वह अनियंत्रित हो जाती है और आपके लिए अव्यवस्थाएं उत्पन्न करती है ,जिसके आपको मानसिक ,शारीरिक समस्या उत्पन्न होती है ,क्योकि सभी शक्तियां आपसे ही आकर जुडती हैं |आप भले सोचें की आकर देवता दर्शन देते हैं उनका शरीर से क्या लेना देना लेकिन जब आपका शरीर उनसे जुड़ता है और उनकी ऊर्जा से संतृप्त होता है तभी आपको उनका दर्शन होता है |इस प्रकार पहले यह अंग देवता आपके शरीर से जुड़ते हैं जो अनियमित पूजा पर अनियंत्रित हो आपके शरीर ,बुद्धि ,मन में विक्षोभ उत्पन्न करने के साथ ही आपके आसपास का वातावरण प्रभावित करते हैं जिससे आपकी हानि संभावित होती है |यदि हानि नहीं भी होती तो यह मत समझिये की आपको सफलता मिएगी ही ,क्योकि इनके अनियंत्रण से मूल शक्ति का तारतम्य भी आपसे टूट जाता है और उसकी प्राप्ति और मुश्किल हो जाती है |अक्सर पूजा का फल न मिलने अथवा पूजा के बाद भी कष्टों में वृद्धि का यह कारण हो सकता है |जबकि मूढ़ और अज्ञानी कहते हैं की देवी -देवता परीक्षा ले रहा |देवी -देवता हमेशा परीक्षा नहीं लेते |विरले होते हैं जिनकी परीक्षा देवी देवता लेते हैं |अतः पूजा समय निश्चित रखा जाना चाहिए |
कभी -कभी आपकी अनुपस्थिति में आपके पूजन स्थान पर ऐसा लगेगा जैसे कोई अंग देवता अथवा गुरु परम्परा की कोई आत्मा आपके यहाँ पूजा करके चली गई है |पात्र ,पूजा साधन ,वस्तुएं इधर -उधर रखी मिलेंगी |कई तरह की गंध महसूस हो सकती है |कभी अपरोक्ष में परिवार को घंटे की ध्वनि सुनाई दे सकती है |यह सहायक शक्तियों अथवा आपके पितरों अथवा आपके गुरु परंपरा के आत्मा अथवा कुल देवता अथवा आस पास की शक्ति का कार्य होता है जो एकाध बार आपकी सहायत का प्रयास करती है और आपके तारतम्य को बिगड़ने से रोकने के प्रयत्न में समय पर पूजा दे देती है |किन्तु कई बार ऐसा होने पर यह रुष्ट भी अधिक होती है और नुक्सान भी अधिक होता है क्योकि आपकी पूजा में इतनी शक्ति तो हो ही गयी होती है की यह आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा गए |इस समय आपको अति सावधान हो जाना चाहिए और फिर कोई भी गलती न हो यह ध्यान देना चाहिए |

लोगों की भ्रान्ति होती है की कोई देवता कुछ खाता ,पहनता अथवा सूंघता थोड़े ही है जो विभिन्न पूजा सामग्री चढ़ाई जाती है |यह एक भ्रान्ति है ,हर वस्तु से तरंग निकलती है और हर वस्तु में एक निश्चित ऊर्जा होती है इसीलिए हर देवता की अलग -अलग पूजन सामग्री और पुष्प आदि होते हैं |इन्हें चढाने से वहां एक निश्चित प्रकार की ऊर्जा इकट्ठी होती है जो सहायक अंग देवताओं और मूल देवता से जुडती है |इसीलिए कभी कभी कोई आत्मा अथवा शक्ति पूजा कर जाती है |उदाहरण देने को पहाड़ के योगी अथवा संत का लोग देते हैं की वह बिना पूजा के भी साधना करते हैं किन्तु यह नहीं सोचते की वह पहले कभी क्या करते थे |एक बार शक्ति जुड़ जाए तो कुछ आवश्यक नहीं किन्तु पहले उसे जोड़ने के लिए बहुत से यत्न करने पफ्ते हैं |पूजन सामग्री उसकी एक कड़ी हैं |ऐसे ही हवन दूसरी कड़ी है |इसलिए समय पर पूजा और निश्चित सामग्री अवश्य चढ़ानी चाहिए |आपको पूजा में इन अंग देवताओं की उपेक्षा कदापि नहीं करनी चाहिए |कम से कम इनका नाम तो जरुर उच्चारण कर पूजन स्वीकार करने का आग्रह करना ही चाहिए |उपेक्षित अंग देवता दैनिक कार्य ,व्यापार में भ्रान्ति उत्पन्न करते हैं |स्मरण शक्ति क्षीण होती है |कई बार वस्तुएं ,पत्र आदि ,पुस्तकें आदि जो मुख्य हैं ,आपके रखे स्थान की अपेक्षा अन्यत्र रखी हुई मिलेंगी | .....................................................................हर-हर महादेव 

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