Sunday, 17 December 2017

तंत्र में पांच " म " अर्थात पंच मकार

:::::::::::::::::::पञ्च मकार अर्थात तंत्र में पांच "म ":::::::::::::::::::::
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पञ्च मकार यानि तंत्र क्रिया के पाँच स्तम्भ। मॉस, मतस्य, मुद्रा, मदिरा और मैथुन तांत्रिक क्रिया इनके बिना श्रृष्टि में जीवन का सञ्चालन असंभव है। पञ्च मकार में मदिरा रुपी नशे को किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए होने वाली लगन को कहते हैं। इश्वर की भक्ति को प्राप्त करने का नशा ही तांत्रिक को कठिन से कठिन साधना पूरा करने के लिए प्रेरित करता है। जीव को आगे बढ़ने के लिए स्वयं में मदिरा गुण को लाना अति आवश्यक है। तंत्र क्रिया सदेव ही प्रकृति के नियमों के अनुरूप चलती है। यह पूरा संसार ही एक तांत्रिक क्रिया है। तांत्रिक क्रिया पञ्च मकार से मिल कर ही पूरी होती है। पञ्च मकार यानि तंत्र क्रिया के पाँच स्तम्भ। मॉस, मतस्य, मुद्रा, मदिरा और मैथुन तांत्रिक क्रिया के पञ्च मकार हैं। मॉस: इस श्रृष्टि में प्राणी का जनम ही मॉस के लोथडे के रूप में हुआ है। हर प्राणी किसी किसी प्रकार मॉस का उपयोग अपने दैनिक क्रिया में करता है। चाहे वह भोजन में मॉस का लेना हो या फ़िर किसी को छूना, देखना या महसूस करना सभी में मॉस की प्राथमिकता है। जीवन की शुरुवात ही पञ्च मकार के प्रथम से होती है। मतस्य का मतलब चंचलता या गति से होता है। पञ्च मकार के मॉस गुण के प्राणी में आने के बाद मतस्य गुण का होना एक मॉस को गति प्रदान करता है। मतस्य गुण ही व्यक्ति को नए कार्यो के प्रति प्रगतिशील बनता है। मुद्रा: तंत्र में मुद्रा के दो रूप हैं।१> मुद्रा यानी किसी प्रकार की क्रिया जो व्यक्त की जा सके। जैसे योनी मुद्रा, लिंग मुद्रा, ज्ञान मुद्रा।२> मुद्रा का मतलब खाद्य पदार्थ से भी है। जैसे चावल के पिण्ड पञ्च मकार के मॉस, मतस्य गुण धारण करने के बाद जीव में सही मुद्रा (क्रिया) के ज्ञान का होना अति आवश्यक है। और सही क्रिया को करने के लिए सही मुद्रा ( खाद्द्य पदार्थ ) की भी आवश्यकता है। पञ्च मकार के यह चारों गुन जब साथ मिलते हैं तो वह जीव मॉस (शरीर ), मतस्य (गति),मुद्रा (क्रिया,आहार )और मदिरा (नशा) के आने के बाद अपने जीवन में कोई भी लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। मैथुन:मैथुन का अर्थ है मथना इस संसार में पाई जाने वाली हर वस्तु को यदि सही प्रकार से मथा जाए तो एक नई वस्तु का जनम होता है। जिसका उदहारण हमारे शाश्त्रो में समुन्द्र मंथन से दिया गया है। गृहस्त जीवन में भी जब एक पुरूष अपनी स्त्री के साथ मैथुन का उदेश्य आनद के साथ जीव श्रीजन होता है साधक शरीर (ब्र्ह्म/ शिव ) तथा अपनी आत्मा ( शक्ति / शिवा) का मंथन करता है। तथा उस मंथन को सही ढंग से करने के उपरांत ही इश्वर को पाने के नए नए रास्तो की निर्माण करता है |.....................................................................................हर-हर महादेव 

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