Wednesday 20 March 2019

शिवलिंग में उर्ध्वमुखी लिंग स्थापना का रहस्य

शिवलिंग में लिंग उपर क्यों निकला होता है ? अंदर क्यों नहीं होता ?


शिवलिंग में लिंग उपर क्यों निकला होता है ? अंदर क्यों नहीं होता ?
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शिवलिंग हिन्दुओं में सर्वाधिक पूजित धार्मिक प्रतीक चिन्ह हैं और जैसा कि हमने अपने पिछले विडिओ में बताया और साबित किया है की इसकी पूजा विश्व के हर धर्म में ,विश्व में हर जगह किसी न किसी रूप में होती जरुर है अतः यह विश्व में सर्वाधिक पूजित किया जाने वाला भी प्रतीक है |हर कोई इसे पूजता जरुर है पर 99 पतिशत लोग इसके न वास्तविक अर्थ को जानते हैं न और न ही इसके रहस्य को समझ पाते हैं |यहाँ तक की जो पुजारी हैं ,धार्मिक व्यक्ति हैं ,विद्वान् और समझदार हैं वह भी इसके वास्तविक रहस्य को नहीं समझ पाते |अधिकतर लोग इसे योनी -लिंग अथवा शिव -पार्वती का प्रतीक समझते हैं और शिव -पार्वती मानकर ही इसकी पूजा करते हैं तो ऐसे लोग यह कैसे समझ सकते हैं की शिवलिंग की पूर्ण आकृति में से लिंग -योनी से बाहर क्यों निकल रहा है ,इसे तो नियमतः योनी के अंदर जाते हुए होना चाहिए |आखिर लिंग मुख बाहर उल्टा उपर की ओर क्यों जा रहा है ,इसका रहस्य क्या है ,यह क्या कह रहा है ? क्या बताता है ? हम आपको इसका वास्तविक अर्थ बताते हैं और इसे जानकर आप भी हतप्रभ रह जायेंगे |आप सोचेंगे इतनी गूढ़ बात आपने पहले क्यों नहीं सोची |कुछ लोग इस विषय को तो जानते हैं पर वह इस उपर जाते लिंग का रहस्य नहीं समझ पाते जबकि थोडा सोचने पर उन्हें समझ आ जाता |शिवलिंग पर लिपटा सर्प भी बहुत गहरा रहस्य समेटे है और यह आपकी अब तक की धारणा से बिलकुल अलग होगा जब हम आपको अपने अगले लेख या विडिओ में इसका रहस्य बताएँगे ,ऐसा हमारा मानना है |हम आपको पूरे शिवलिंग का भी वास्तविक अर्थ अपने इस विडिओ में बताएँगे जिसे जानकर आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे कि वास्तव में आप किसे पूज रहे हैं |शिव को ,पार्वती को या कुछ और या शिव -पार्वती वास्तव में हैं क्या ?
   हम अपने आज के विषय शिवलिंग में लिंग का मुख उपर क्यों होता है इस विषय पर पहले प्रकाश डालते हैं जो पूरी तरह हमारे अपने सोच और अनुभव पर आधारित है तथा इसका किसी शास्त्र आदि से कोई लेना देना नहीं है यद्यपि कुछ जानकारियाँ और विवरण कुछ पुस्तकों में हो सकते हैं क्योंकि अनेक हमसे बड़े बड़े विद्वान् और सिद्ध हुए हैं जिन्होंने यह रहस्य उद्घाटित जरुर किया होगा |हम़ारा मानना है की शिवलिंग वास्तव में शिव और पार्वती का लिंग और योनी नहीं है |यह उनके सम्पूर्ण अस्तित्व का मात्र प्रतीक हो सकता है जिसमे यह धन अर्थात पुरुष और ऋण अर्थात नारी द्वारा श्रृष्टि की उत्पत्ति का संकेत दे सकता है ,किन्तु वास्तव में यह श्रृष्टि का ही संकेत नहीं देता ,यह शिवलिंग यह भी बताता है की यह समस्त श्रृष्टि धन और ऋण के संयोग से बनी है |तो क्या मात्र यह बताने वाले प्रतीक को ही विश्व में हर धर्म पूज रहा है |नहीं शिवलिंग मात्र यह नहीं बताता की धन और ऋण से समस्त संसार बना है |इसका असली रहस्य तो इस लिंग के उपर की ओर मुख किये होने में ही है |इसे हर धर्म इसलिए पूज रहा है की यह कोई धार्मिक प्रतीक न होकर समस्त ब्रह्माण्ड  की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है जो हर धर्म की परिभाषा और क्षेत्र से अलग है |पहले हम आपको शिवलिंग का वास्तविक अर्थ समझा देते हैं तब यह बताएँगे की इसमें लिंग मुख उपर क्यों होता है जिससे आपको समझने में आसानी होगी |
समस्त संसार में शिवलिंग पाए जाते हैं ,विभिन्न धर्मों तक में इनकी किसी न किसी रूप में प्रतीकाकृति मिलती हैं |हिन्दू धर्म में यह परम पवित्र शिव के प्रतीक माने जाते हैं और इनकी पूजा की जाती है |यह शिवलिंग है क्या ,कभी इस पर सामान्यतया विचार सामान्य लोग नहीं करते जा इसके बारे में बहुत नहीं जानते |इसलिए जो जैसी परिभाषा इसकी गढ़ कर सुना देता है सामान्य रूप से मान लिया जाता है और कल्पना कर ली जाती है |कुछ महाबुद्धिमान प्राणियों ने परमपवित्र शिवलिंग को जननांग समझ कर पता नही क्या-क्या और कपोल कल्पितअवधारणाएं फैला रखी हैं परन्तु...वास्तव मेंशिवलिंगवातावरण सहित घूमती धरती तथा  सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकिब्रह्माण्ड गतिमान है ) का प्रतिनिधित्व करता है |इसका अक्ष /धुरी (axis) ही लिंग है।
दरअसल.इसमें ये गलतफहमी.. भाषा के रूपांतरण औरमलेच्छों द्वारा हमारे पुरातनधर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने  तथाअंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ  होसकता है. |जैसा कि.... हम सभी जानते है किएक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में.अलग-अलग अर्थ निकलते हैं....! उदाहरण के लिए.- यदि हम हिंदी के एक शब्द ""सूत्र'''को ही ले लें तो सूत्र मतलबडोरी/धागा.गणितीय सूत्र ,.कोई भाष्य अथवा लेखन भी होसकता है जैसे किनारदीय सूत्र ,.ब्रह्म सूत्र इत्यादि | उसी प्रकार ""अर्थ"" शब्द काभावार्थसम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंगभी |
ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय  चिह्न,निशानीगुणव्यवहार या प्रतीक है।
ध्यान देने योग्य बात है कि""लिंग"" एक संस्कृत का शब्द है जिसके निम्न अर्थ है :
 आकाशे  विधन्ते -वै०।         सू  
अर्थात..... रूपरसगंध और स्पर्श ........ये लक्षण आकाश में नही है ..... किन्तु शब्द हीआकाश का गुण है 
निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकशस्य लिंगम् -वै०।         सू   
अर्थात..... जिसमे प्रवेश करना व् निकलना होता है ....वह आकाश का लिंग है ....... अर्थातये आकाश के गुण है 
अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि  -वै०।         सू ०६
अर्थात..... जिसमे अपरपर, (युगपतएक वर, (चिरमविलम्बक्षिप्रम शीघ्र इत्यादिप्रयोग होते हैइसे काल कहते हैऔर ये .... काल के लिंग है 
इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम  -वै०।         सू   
अर्थात....... जिसमे पूर्वपश्चिमउत्तरदक्षिणऊपर व् नीचे का व्यवहार होता है ....उसीको दिशा कहते है....... मतलब कि....ये सभी दिशा के लिंग है 
इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिंगमिति -न्याय०         सू ०१ 
अर्थात..... जिसमे (इच्छाराग, (द्वेषवैर, (प्रयत्नपुरुषार्थसुखदुःख, (ज्ञानजाननाआदि गुण होवो जीवात्मा है...... औरये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है 
इसीलिए......... शून्यआकाशअनन्तब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होनेके कारन.......... इसे लिंग कहा गया है...
स्कन्दपुराण में स्पष्ट कहा है कि....... आकाश स्वयं लिंग है...... एवं , धरती उसका पीठया आधार है .....और , ब्रह्माण्ड का हर चीज ....... अनन्त शून्य से पैदा होकर.....अंततः.... उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है .|यही  कारण है कि इसे कई अन्यनामो से भी संबोधित किया गया है जैसे कि प्रकाश स्तंभ/लिंगअग्नि स्तंभ/लिंगउर्जास्तंभ/लिंगब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)  इत्यादि |
यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि. इस ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ | इसमें से हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है जबकि आत्मा एक ऊर्जा है |ठीक इसी प्रकारशिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं | क्योंकि ब्रह्मांडमें उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है |इसीलिए शास्त्रों में शक्ति की विवेचना में कहा जाता है की जब शक्ति [कालीशिव से निकल जाती है तो शिव भी शव हो जाते हैं ,अर्थात शिव तभी तक शिव हैं जब तक उनके साथ शक्ति हैं |वैसे ही  पदार्थ में तभी तक जीवन है जबतक उसमे आत्मा है |
अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की दृष्टि से बोलने की जगह ... शुद्ध वैज्ञानिक भाषामें बोला जाए तोहम कह सकते हैं कि शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि हमारे ब्रह्मांड कीआकृति है.,उसकी ऊर्जा संरचना की प्रतिकृति है ,और अगर इसे धार्मिक अथवाआध्यात्म की भाषा में बोला जाए तो शिवलिंग ,भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती)का आदि-अनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है. | अर्थातशिवलिंग हमें बताता है कि...... इस संसार में  केवल पुरुष का  और  ही केवल प्रकृति(स्त्रीका वर्चस्व है बल्किदोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों ही समान हैं |एक दुसरे की परिकल्पना अथवा पूर्णता एक दुसरे के बिना संभव नहीं है |
हमें ज्ञात है की ब्रहमांड की प्रत्येक संरचना पदार्थ है जो परमाणुओं से मिलकर बनता है |परमाणु सर्वत्र विद्यमान हैं |जल-आकाश-वायु सर्वत्र |परमाणु की संरचना में नाभिक में प्रोटान और न्यूट्रान होते हैं और इस नाभिक के चारो और इलेक्ट्रान चक्कर लगता रहता है |न्यूट्रान तो उदासीन होता है किन्तु फिर भी नाभिक धनात्मक होता है क्योकि प्रोटान धनात्मक आवेश वाला कण होता है जो पूरे नाभिक को धनात्मक बनाए रखता है ,इस धनात्मक के आकर्षण में बंधकर ऋणात्मक आवेश का कण इलेक्ट्रान उसके चारो और चक्कर लगता रहता है और परमाणु का निर्माण होता है |इलेक्ट्रान का चक्कर लगभग गोलाकार होता है जिसकी तुलना हम शिवलिंग के योनी या अर्ध्य से कर सकते हैं |धनात्मक नाभिक की तुलना लिंग से कर सकते हैं जो स्थिर रहता है |इसमें स्थित न्यूट्रान परम तत्त्व का प्रतीक है जो उदासीन रहता है |इस विज्ञान को हमारा वैदिक ज्ञान जानता था और उसने शिवलिंग की परिकल्पना की |समस्त ब्रह्माण्ड परमाणुओं से बना है ,परमाणु हर कण कण में विद्यमान है |अर्थात ईश्वरीय ऊर्जा हर कण कण में है ,तभी तो हम कहते हैं कण कण में भगवान |इस परमाणु से ही शरीर की कोशिकाएं बनती हैं और शरीर बनता है ,,इससे ही वनस्पतियों की कोशिकाएं और शारीर बनता है |यहा तक की धातु-पत्थर-मिटटी भी इसी से बनते हैं |अर्थात शिवलिंग इस परमाणु का प्रतिनिधित्व करता है |धनात्मक-ऋणात्मक ऊर्जा के साथ निर्विकार शिव का प्रतिनिधित्व करता है |
अगर पुरुष-स्त्री के परिप्रेक्ष्य में देखें तभी यह शिवलिंग स्थूल रूप से लिंग -योनी का प्रतिनिधित्व करता दीखता है ,परन्तु यह वास्तव में ब्रह्मांडीय ऊर्जा धारा-संरचना का प्रतिनिधित्व करता है | लिंग -योनी में परिभाषित करने का शायद कारण इसके पुरुष और स्त्री अथवा पुरुष और प्रकृति का धनात्मक और ऋणात्मक ऊर्जा रूप है |इस ऊर्जा धरा या संरचना की अनेक परिभाषाएं और विवरण हैं ,पर यह मूल रूप से उर्जा को ,शक्ति को, उसकी क्रियाविधि को व्यक्त करता है |
     यह तो हुआ मोटे तौर पर वास्तविक शिवलिंग की व्याख्या जिसके आधार पर शिवलिंग किसी भी एक धर्म से न जुड़ा होकर हर धर्म का मूल है और इसीलिए हर धर्म में हर जगह विश्व में पूजित है |अब इसके सबसे बड़े रहस्य पर आते हैं की शिवलिंग में लिंग उपर को क्यों होता है |तो हम आपको बताते हैं की शिवलिंग हजारों हजार रहस्य समेटे है इस ब्रह्माण्ड का |इनमे से एक रहस्य यह है की उपर की ओर उन्मुख लिंग यह कहता है की जब आप योनी -लिंग की परिभाषा से उपर उठ जाते हैं तो आप परमेश्वर की ओर उन्मुख हो जाते हैं अर्थात जब आप योनी -लिंग द्वारा श्रृष्टि न कर ऊर्जा संरक्षित करते हैं तो आप परमेश्वर की ओर उन्मुख होने लगते हैं |यह उपर को उठा या उपर की ओर निकला लिंग यह बताता है की जो श्रृष्टि की शक्ति आपके जननांगो में है उससे ही आप ईश्वर को भी पा सकते हैं |जब आप अपनी जनन ऊर्जा को रोकते हैं तो यह उर्ध्वमुखी होने लगती है |शिवलिंग का लिंग उर्ध्वमुखी है ,अधोमुखी नहीं |जब आप साथी के साथ रति करते हैं तो आपका लिंग अधोमुखी होता है और आपकी ऊर्जा अधोमुखी हो पतित हो जाती है ,किन्तु यहाँ तो लिंग उर्ध्वमुखी है ,फिर यह सामान्य योनी लिंग कहाँ हुआ |यह कैसा सम्भोग है ? यह तो उर्ध्वारेत सम्भोग का प्रकटीकरण है |उर्ध्व सम्भोग ही शिव है अन्यथा सबकुछ शव होने लगता है |अधोमुखी लिंग से सम्भोग शव बनाता है और उर्ध्वमुखी सम्भोग शिवत्व प्राप्त कराता है |यह उर्ध्वमुखी लिंग यह कहता है की आप अपने साथी के साथ रति संलग्न होकर भी अपनी ऊर्जा यदि संरक्षित करते हैं तो आपकी उर्जा उर्ध्वमुखी हो जाती है और यह आपको परमेश्वर से मिला सकती है कुंडलिनी जागरण कराकर |यह शिवलिंग का उर्ध्वमुखी लिंग ,कुंडलिनी का वह सूत्र है जो हर प्राणी में है |
         स्त्री हो या पुरुष कुंडलिनी शक्ति सबमे है |दोनों के शरीर में केवल जनन अंगों और पोषण अंगों का अंतर मात्र है अन्य सभी अंग समान है और दोनों में समान रूप से कुंडलिनी शक्ति है |शिवलिंग का लिंग एक प्रतीक है उर्ध्वमुखी हो सकने वाली ऊर्जा का जबकि आप पुरुष या स्त्री के साथ रति संलग्न भी होकर उर्ध्वमुखी कर सकते हैं ,जबकि आप संतति उत्पन्न करते हुए भी उर्ध्वमुखी कर सकते हैं और परमपिता को कुंडलिनी जगाकर पा सकते हैं |शिवलिंग में उर्ध्वरेत सम्भोग का प्रकटीकरण है और इस मुद्रा की सिद्धि व्यक्ति के अर्धनारीश्वर बन जाने पर होती है |अर्ध नारीश्वर सिद्ध होने पर व्यक्ति नारी नटेश्वर हो जाता है |आप ध्यान से देखें तो पायेंगे की मूलाधार में केंद्र में एक शिवलिंग होता है जो स्त्री पुरुष दोनों में समान रूप से होता है और प्रत्येक स्त्री में या पुरुष में ,पुरुष या स्त्री के गुण भी होते हैं |जब स्त्री या पुरुष एक निश्चित सीमा के बाद अर्धनारीश्वर की सी स्थिति प्राप्त करने लगता है तो उसके लिए दूसरा पुरुष या स्त्री बेमानी हो जाती है |वह स्वयं में आधा पुरुष और आधा नारी होने लगता है और उसकी यात्रा उपर की ओर होने लगती है अकेले ही |यह शिवलिंग ऐसे अनेक रहस्य समेटे है इसीलिए यह शिवलिंग सभी धर्मों में समान रूप से पूजित है | यह उर्ध्वमुखी लिंग ऊर्जा संरक्षण द्वारा परमेश्वर प्राप्ति का संकेत करता है और बताता है की जनन अंगों के उपयोग द्वारा भी कुंडलिनी शक्ति को जगाया जा सकता है जैसा की कुंडलिनी तंत्र या भैरवी साधना में होता है ,जनन अंगों का उपयोग रोककर भी कुंडलिनी शक्ति को जगाया जा सकता है जैसा की योग या कुंडलिनी योग में होता है |यह शिवलिंग का लिंग विरक्ति का भी वैराग्य का भी संकेत करता है की स्त्री से विरक्त होने से ऊर्जा उर्ध्वमुखी हो सकती है |जो इसका जो अर्थ निकाले ,पर यह ऊर्जा उर्ध्वमुखी करने और होने का ही संकेत करता है जिससे परमेश्वर अर्थात परमशक्ति को पाया जा सकता है |.....................................................हर हर महादेव

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...