रविवार, 24 दिसंबर 2017

देवी पूजा में विल्व पत्र का महत्व

::::::::::::देवी पूजा में विल्व पत्र की महत्ता ::::::::::::::
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पूजन में पूजन सामग्री का बहुत महत्व है |देवी या देवता के अनुकूल पूजन सामग्री का उपयोग पूजा में होता है और उन्हें अर्पित किया जाता है |जैसी पूजा-साधना हो उस प्रकार की सामग्री उपयोग की जाती है | पूजा और पूजा सामग्री सात्विक ,राजसिक और तामसिक तीनो ही प्रकार ही होती है ,परन्तु पाद्य ,अर्ध्य ,आचमन ,गंध ,पुष्प ,धुप ,दीप आदि की व्यवस्था तो सभी पद्धतियों में करनी ही पड़ती है |पुष्प के क्रम में उसके साथ पत्र पूजा का भी महत्व शास्त्रों में बतलाया गया है |देवी की पूजा सामग्री में रक्त चन्दन ,रक्त पुष्प के साथ विल्व पत्र आवश्यक रूप में होना चाहिए |श्री मद देवी भागवत पुराण का ऐसा कथन है
सामान्यतया हम विल्व पत्र का अर्पण शिव को करते हैं और बहुतायत में लोग यही जानते हैं की शिव को ही विल्व पत्र चढ़ता है ,किन्तु यह भारी भ्रम है |विल्व पत्र का बहुत ही अधिक महत्त्व शक्ति साधना अर्थात देवी साधना में है और लगभग सभी देवियों को विल्व पत्र अर्पित किया जाता है ,सभी देवियों को विल्व पत्र अर्पित किया जाना चाहिए |महाविद्या साधना में तो यह आवश्यक तत्व होता है | सामग्री के निर्धारण क्रम में विल्व पत्र की महत्ता शास्त्रों में बतलाई गयी है |धन प्राप्ति ,देवी की कृपा एवं पृथ्वी पर राज्य सुख प्राप्त करने के लिए शक्ति आराधना में विल्व पत्र ,भगवती को अवश्य अर्पित करना चाहिए |विल्व पत्र की मान्यता कमल विशेशतः रक्त कमल से लाख गुना अधिक बतलाई गयी है |भगवती को यह कमल की अपेक्षा लाख गुना अधिक प्रिय है क्योकि यह तो भगवती का ही प्रतिरूप है अर्थात भगवती की दूसरी [साक्षात जीवंत ] मूर्ती के रूप में यह है |
भगवती ने प्रसन्नता पूर्वक विल्व वृक्ष को अपना नाम दिया है और श्री वृक्ष कहकर इसका नाम करण किया है |जहाँ विल्व के अनेक वृक्ष होते हैं वहां लक्ष्मी अपने पति [नारायण-विष्णु ] के साथ स्थिर रूप में निवास करती हैं |
उसी प्रकार उमा-पार्वती भी अपने पति शिव के साथ और ब्रह्मा के साथ उनकी पत्नी सरस्वती भी वहां निवास करती हैं |अर्थात जहाँ बेल के वृक्षों का वन अथवा एक वृक्ष हो वहां भगवती उमा [महाकाली] .रमा [महालक्ष्मी ] ,और भारती [सरस्वती] अपने -अपने पतियों क्रमशः भगवान् शिव ,विष्णु और ब्रह्मा के साथ स्थित रहती हैं |अतएव विल्व वृक्ष को जहाँ कही भी देखा जाए ,देखते ही उसे प्रणाम व् यदि संभव हो तो उसकी प्रदक्षिणा करनी चाहिए |विल्व वृक्ष की उपेक्षा करके जाने वाले अथवा देवी की पूजा में विल्व पत्र अर्पण करने वाले पर लक्ष्मी की कृपा नहीं होती |
ब्रह्मा -विष्णु-शिव आदि देव अपनी पत्नियों सहित तथा समस्त तीर्थ और वेद मन्त्र ये सभी विल्व वृक्ष के मूल में सर्वदा निवास करते हैं |इस वृक्ष के मूल में [वृक्ष के जड़ के पास ] बैठकर मन्त्रों का जप -अनुष्ठान करने वाले को शीघ्र ही जिस प्रकार की मन्त्र सिद्धि होती है ,वैसी सिद्धि अन्य किसी स्थल पर जप करने से नहीं होती |इतना ही नहीं भगवती को बेल की लकड़ी का घिसा चन्दन [या इसकी सुगंध ],विल्व काष्ठ से निर्मित मणि [दाने ] की माला ,तथा इसी लकड़ी से निर्मित चौकी [पीठ] ये सब वस्तुएं बड़ी प्रिय लगती हैं | इन वस्तुओं को अर्पण करने से उन्हें संतोष प्राप्त होता है |

विल्व पत्र कभी भी बासी नहीं माना जाता है |विल्व पत्रों के उपलब्ध होने पर पुराने चढ़े हुए विल्व पत्रों को शुद्ध जल से धोकर पुनः चढाने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है |यदि विल्व पत्र कई दिनों के बासी हो गये हों और ताजे विल्व पत्र मिल रहे हों तो पुराने विल्व पत्रों के चूर्ण को भी भगवती को अर्पित किया जा सकता है |यह व्यवस्था एकमात्र विल पत्र के लिए ही है |इसी से विल्व पत्र की महत्ता समझी जा सकती है |भगवती की विल्व रहित पूजा करने पर वह की हुई पूजा निष्फल होती है |अतः छिद्र रहित ,कोमल सुन्दर -सुन्दर तीन पत्तों वाले विल्व पत्रों से भगवती की पूजा करनी चाहिए |......................................................................हर-हर महादेव

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