Sunday 17 December 2017

मंत्र ,उनकी शक्ति और प्रभाव

:::::::::::::::::::.मंत्रो की शक्ति और प्रभाव :::::::::::::::::
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   .. मन्त्र एक विशिष्ट उर्जा उत्पन्न करने वाला ध्वनि है जिसमे पराशक्ति का समावेश होता है |यह एक अक्षर भी हो सकता है और शब्द समूह भी |मन्त्र की शक्ति सामान्यतया उनके नादों और उत्पन्न ध्वनि तरंगों में होती है ,किन्तु कुछ मन्त्र जैसे शाबर मन्त्र भावनाओं और शब्दों के चयन आदि पर भी कार्य करते है |वैज्ञानिक अनुसंधनों से सिद्ध हो चूका है की मंत्रो का सम्बन्ध परामनोविज्ञान और ध्वनि उर्जा से है |जिस प्रकार सूक्ष्म शारीर तथा चेतन या अवचेतन मन की अपनी सत्ता है ,उसी प्रकार मंत्रो की अपनी शक्ति है |........
                .मंत्रो के रचयिता ऋषि थे ,,वे परमानसिक शक्तियों के ज्ञाता थे |उन्होंने प्रत्येक मन्त्र के अक्षरों का इस प्रकार चयन किया था की उसमे परामानसिक शक्ति का समावेश होता था |प्रत्येक अक्षर का कोई कोई स्वामी होता है |जब उस मन्त्र का जप होता है तो वे सभी देवता उस व्यक्ति की सहायता करते है जो उसका जप करता है या जिसने उसे सिद्ध कर लिया होता है |इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है ,जब कोई किसी मन्त्र विशेष का जप करता है अर्थात बार-बार उच्चारण करता है तो उस मन्त्र के नादों से ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो एक उर्जा समूह का निर्माण करती है ,यह उर्जा समूह ब्रह्माण्ड में उपस्थित अपने ही प्रकार की उर्जा को आकर्षित करती है और उससे मिल कर एक विशिष्ट शक्ति में परिवर्तित हो जाती है और जप करने वाले व्यक्ति से जुड जाती है और उसके मानसिक तरंगों के दिशा नुर्देशो के अनुसार कार्य करने लगती है ,यही उस मन्त्र की दैवीय या पराशक्ति होती है |मंत्रो की शक्ति का प्रभाव जब किसी पर डाला जाता है तो वहा रासायनिक परिवर्तन होता है जिससे क्रमशः मानसिक अथवा भौतिक परिवर्तन भी हो सकता है जिससे क्रिया कलाप उस दिशा में परिवर्तित होने लगते है जिस दिशा में मन्त्र की शक्ति निर्दिष्ट होती है या कार्य कर रही होती है |मंत्रो का प्रभाव जब व्यक्ति या वनस्पति पर होता है तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति और वनस्पति की प्रकृति अर्थात उससे उत्पन्न होने वाले तरंगों में परिवर्तन होने लगता है फलतः मन्त्र की प्रकृति के अनुसार अच्छे -बुरे परिणाम दृष्टिगोचर होने लगते है ..........
                          .मंत्रो को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है ईश्वरोपासना सम्बन्धी मन्त्र ,,विघ्न्बाधाओ से मुक्ति दिलाने वाले मन्त्र और किसी विशेष उद्देश्य की सिद्धि करने वाले मन्त्र |मंत्रो के लिए श्रद्धा एक आवश्यक शर्त मानी जाती है ,श्रद्धा होने पर मन्त्र फलित नहीं होते क्योकि तब व्यक्ति की भावनाए केंद्रित नहीं होती ,जिससे मंत्रो से उत्पन्न उर्जा को उचित दिशा नहीं मिल पाती और वे अनियंत्रित रूप से क्रिया करने लगती है जिससे व्यक्ति को लाभ नहीं मिल पाटा ,अपितु कभी -कभी हानि का भी सामना करना पड़ जाता है क्योकि उत्पान उर्जा खुद पर ही क्रिया कर जाती है या गलत दिशा में मुड़ जाती है ...इसीलिए कहा जाता है की मन्त्र जब के समय श्रद्धा और भावना का उचित समावेश भी होना चाहिए|
            मन्त्र में छन्द, ॠषि, देवता, बीज, कीलक और शक्ति ये मुख्य रूप से छह बातें मानी जाती हैं| वैदिक मन्त्रों में छन्द, ॠषि, और देवता इन तीन बातों का ही उपयोग होता हैं| अवशिष्ट के सहित षड़ंगों का उपयोग तांत्रिक मन्त्रों में होता हैं| शावर मन्त्रों के विषय में –‘अनमिल आखर अर्थ जापू’ और शावर-मन्त्र जाल जिन सिरजा’ आदि पद्यों से स्मरण किया जाता हैं| पौराणिक मन्त्र भाव प्रधान होते हैं, ‘ नमों भगवते वासुदेवाय’ आदि| इन मन्त्रों में क्रिया की गौणता होती हैं| इष्ट रूप की भावना मन से सतत जारी रहने से ही सिद्धि होती हैं| क्रिया की मुख्यत: तांत्रिक मन्त्रों में ही अपेक्षा हैं और वैदिक मंत्रो में दोनों की|
         मन्त्र के उच्चारण की रीति छन्द से, मन्त्र तत्व के आविष्कर्ता का परिचय ॠषि से, समस्त इष्ट फल के प्रदान करने बाले देवता का परिज्ञान मन्त्र एवं ग्यान-ध्यान की रीति से करना होता हैं| मन्त्र का मूल तत्व संक्षिप्त रूप बीज में होता हैं| विरोधी शक्ति जो तत्व का विनाश तथा साधक को साधना से हटाती हैं, उसके लिए कीलक का उपयोग होता है |
             मन्त्र में चैतन्य-शक्ति का संचार शक्ति से होता हैं| मन्त्र साधक को इन रहष्यो का ध्यान रखकर, मन्त्र साधना में सलग्न होना चाहिये| इसके अतिरिक्त विशिष्ट भावों की अभिव्यक्ति के लिए अर्न्मात्रृकान्यास, बहिर्मात्रृकान्यास, षोढ़ान्यास, प्रपंचन्यास, भुवनन्यास, देवन्यास, शक्तिन्यास, श्रीकंठन्यास, आदि कहे गये हैं| अन्तर्याग बहिर्याग द्वारा देवता का पूजन, तर्पण, होम, पुनश्चरण, संस्कार आदि के द्वारा मन्त्र शीघ्र सिद्ध होता हैं| इन उपायों से मन्त्र चैतन्य होकर, देवता का साक्षात्कार करा देता हैं| बिना मन्त्र चैतन्य हुये देवता का स्वरूप ज्ञात नहीं होता| परब्रह्म परमात्मा ही देवता के रूप में अपनी ग्यान शक्ति द्वारा व्यक्त होता हैं|.....................................................हर-हर महादेव  

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