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सामान्यतया लोग ईष्ट देवता अर्थात मुख्य
आराध्य देवता का चयन अपनी पसंद से अनुसार अथवा लोगों की देखा -देखि कर लेते हैं |वह
उसको मान रहा है उसको इतना लाभ हो रहा ,वह इतनी उन्नति कर गया उसे पूज कर यह देखा -देखि
लोग उस देवता को पूजने लगते हैं |कोई उस व्यक्ति का भाग्य अथवा उसकी जरुरत के
अनुकूल उस देवता के होने की कल्पना नहीं करता |बस एक अन्धानुकरण की उस देवता ने
उसे ऐसा किया तो हमें भी करेगा |कैसे ?,जब हर व्यक्ति की सोच शारीरिक ,मानसिक संरचना ,उर्जा परिपथ और उसकी कार्य प्रणाली भिन्न होती है ,सभी में एक दूसरे की अपेक्षा कुछ न
कुछ अंतर अवश्य होता है तो ऐसे में किसी एक के ईष्ट ही दूसरे के भी ईष्ट कैसे हो सकते है |यह कैसे जरुरी हो सकता है |,,हर व्यक्ति की
जरुरत अलग है ,जीवन संघर्ष अलग
है ,जिम्मेदारियां अलग हैं तो उसकी ऊर्जा या शक्ति की आवश्यकता भी तो अलग ही होगी |इस
तरह ईष्ट या आराध्य भी अलग ही तो होंगे |इस प्रकार इष्ट का चुनाव व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं करना चाहिए यदि आप अपनी भौतिक
आवश्यकताओं की पूर्ती का भी उद्देश्य रखते हैं अपनी आराधना में तो ,या गुरु का मार्गदर्शन लेना चाहिए,यदि आप भौतिक कामना नहीं
रखते और मोक्ष या मुक्ति चाहते हैं तो |
,सामान्यतया किसी ईष्ट के प्रति नैसर्गिक झुकाव भी कुछ हद तक संकेत देते हैं जो पूर्वकृत कर्मो और जन्मों से जुड़े हो सकते है ,इन झुकाओं का मतलब है इनकी कृपा आप पर नैसर्गिक रूप से है और ये आप पर
प्रसन्न हैं और आपको अपनी और आकर्षित कर रहे हैं , ,किन्तु जरुरी नहीं की यह आपकी
आज की सभी भौतिक जरूरतों के भी अनुकूल हों |इनकी जैसी प्रकृति और गुण होंगे वह
ऊर्जा यह अधिक देंगे |यद्यपि सबकुछ यह दे सकते हैं किन्तु वही तो अधिक देंगे जो
गुण उनमे अधिक होगा |इस लिए भौतिक आवश्यकताओं के लिए अलग से भी ईष्ट का चयन किया
जाना चाहिए जिनकी आराधना सामयिक रूप से की जा सके और आज की जरूरतें पूरी की जा सके
|आज जब सुखी होंगे तभी तो मुक्ति के लिए भी प्रयास कर सकेंगे |अर्थात ,अब आपको
अपनी भौतिक आवश्यकताओं और सुचारू जीवन हेतु ,सामान्य कष्टों से मुक्ति हेतु ईष्ट
का चुनाव करना है जो आज की उर्जा जरूरतों को भी संतुलित कर सके और मुक्ति में भी
सहायक हो |,ईष्ट को जानने के कई माध्यम हैं |, ईष्ट का चुनाव ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति
से ,,गुरु के निर्देश द्वारा या तंत्र के माध्यम
से स्वयं किया जा सकता है |
.
[१] .सामान्यतया
कुंडली से ईष्ट का चुनाव करते समय लग्न -पंचम आदि भाव ,इनपर दृष्टि डालने वाले ग्रहों का तुलनात्मक अध्ययन कर
ईष्ट का चुनाव किया जाता है ,.जब ग्रहों
के अनुसार
ईष्ट का चुनाव करे तो दुर्बल ग्रहों के देवता की पूजा करनी चाहिए [किन्तु वह कुंडली में शुभ हो ],,स्वामी ग्रह यदि दुर्बल है तो उसकी ही शक्ति चाहिए आपको ,,जो बढा हुआ है उसकी वस्तुओ का दान देना और दान न लेना उपयुक्त होता है |.एक तमाशा सामान्य देखा जाता है ,सामान्य मान्यता है की शनि ग्रह का शुभ फल तब प्राप्त होता है जब लोहा दान दिया जाए ,दूसरी मान्यता है की लोहे की अंगूठी
पहनी जाए ,,दोनों एक साथ करवाते
बहुत से ज्योतिषी विद्वान मिल जायेगे ,,सोचिये एक तरफ दान दे रहे है दूसरी तरफ पहन रहे है ,क्या अर्थ है इसका ,,वास्तव
में शनि दुर्बल किन्तु आपके लिए घातक नहीं है तो लोहे की अंगूठी शुभ फल देगी ,ऐसे में दान नहीं करना चाहिए ,,यदि पहले से शनि घातक है और शक्ति बढा है तो लोहे की अंगूठी तो आपके लिए जानलेवा तक हो सकती है ,,ऐसे में व्यक्ति को तो लोहा दान देना चाहिए ,,अतः सदैव देखना चाहिए की जिस ग्रह को शक्ति की आवश्यकता है तो उसकी या उसके देवी -देवता की पूजा करे ,,आश्चर्य है की इतनी मूल बात लोग ध्यान नहीं देते और पूजा कर ऐसे शक्ति की भी ताकत बढाते है तो खुद उनके लिए घातक होता है ,इसीलिए तो ढेरो पूजा -आराधना के बाद भी कलह-झगड़े-पतन -अवरोध से मुक्ति नहीं मिलती ,जबकि सही ईष्ट जानकर दूसरा थोड़े से मानसिक पूजा से भी सफल हो जाता है |लग्न -पंचम ,नवम भाव सदैव शुभ होते हैं अतः इनके अनुसार ईष्ट का
चयन एक बेहतर विकल्प होता है |शुभ की शुभता बढाए ,अशुभ की अशुभता खुद कम हो जायेगी
तुलनात्मक रूप से |..
[२] .ईष्ट के चुनाव का दूसरा उपाय है ,योग्य गुरु से गुरु दीक्षा
लेना और देवी -देवता या मंत्र का चुनाव उनके निर्देश के अनुसार
करना |गुरु आपकी प्रकृति और आपमें बह रही ऊर्जा को भांप लेता है |वह
आपकी आवश्यकता समझ जाता है |वह आपके आभामंडल [औरा ]को पढ़ लेता है |आपको क्या जरुरत
है तात्कालिक रूप से यह भी जान जाता है और आपको किससे मुक्ति मिलेगी यह भी जान
जाता है |वह अक्सर ऐसे ईष्ट का चुनाव करता है जो आपकी आवश्यकता भी पूर्ण करे और
आपकी मुक्ति में भी सहायक हो |…
[३] .ईष्ट के चुनाव का तीसरा और सर्वोत्कृष्ट उपाय है तंत्र का माध्यम ,,इसमें आप अँधेरे
में बैठ जाए ,नाक की नोक पर भाव दृष्टि
एकाग्र करते हुए अंगूठे को भृकुटी के मध्य आज्ञाचक्र पर तीन मिनट तक आँखे बंद करके रखे ,,दिमाग -मन बिलकुल शांत रखे ,तीन मिनट बाद वहा मानस पटल पर अंदर अँधेरा है ,कोई प्रकाश नहीं है ,कोई बिंदु प्रकाश नहीं है ,तो शिव जी या उनके चन्द्रमा की पूजा करे ,,अँधेरे का मतलब आपमें काली और भैरव के गुण बढे है और आपको शिव या उनके चन्द्रमा की आवश्यकता है ,यदि अन्य रंग का प्रकाश
है ,तो उस प्रकाश के विपरीत
देवी-देवता का चुनाव करे ,,यह प्रकाश या रंग यह व्यक्त करता है की सम्बंधित रंग या प्रकाश के ग्रह या देवी-देवता का गुण आपमें पहले से बढ़ा है ,इसके विपरीत की आपको आवश्यकता है,जिससे संतुलन बन सके और आप सुखी हो सकें |
यह बात साधक ,संत
,सन्यासी ,तांत्रिक ,ज्योतिषी ,पंडित,अथवा विरक्त के लिए लागू नहीं होती क्योकि
उन्हें इन शक्तियों का उपयोग करना होता है विभिन्न उद्देश्यों हेतु |वह किसी भी
शक्ति की साधना अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं ,यद्यपि वह भी अपनी आवश्यकतानुसार ही
उनका चयन करते हैं किन्तु उनकी आवश्यकता नकारात्मकता को रोकने ,लोगों का भला करने
के साथ मुक्ति का होता है ,जिसके लिए वहां केवल गुरु के निर्देश का महत्त्व होता
है |वह किसी शक्ति को नियंत्रित कर सकते हैं |इनका स्वरुप परिवर्तित कर सकते हैं
अथवा उनकी आवश्यकता की दिशा भिन्न होती है जिससे उनके लिए अति अथवा अधिकता आवश्यक
भी होती है |सामान्य जन के लिए यह नहीं कहा जा सकता |उन्हें संतुलन की आवश्यकता
होती है जिससे जीवन संतुलित रहे |
.......................................................................................हर-हर महादेव
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