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बेल एक औषधीय वृक्ष है जिसका वैज्ञानिक नाम एगले मार्मेलोस है |इसके फलों के गूदे का उपयोग पेट के विकार में किया जाता है। फलों का उपयोग पेचिश, दस्त, हेपेटाइटिस बी, टी वी के उपचार में किया जाता है। पत्तियों का प्रयोग पेप्टिक अल्सर, श्वसन विकार में किया जाता है। जडों का प्रयोग सर्पविष, घाव भरने तथा कान सबंधी रोगों के इलाज में किया जाता है। बेल सबसे पौष्टिक फल होता है इसलिए इसका प्रयोग कैंडी, शरबत, टाफी के निर्माण में किया जाता है। इसके फल और जड़ आयुर्वेदिक औषधि होते हैं |पत्तों का
प्रयोग अनेक औषधीय प्रयोगों में होता है |इसके पत्तो को शिव पर चढ़ाया जाता है |हवन
में उपयोग किया जाता है |धार्मिक रूप से यह अत्यंत पवित्र वृक्ष है जो शिव परिवार
तथा दस महाविद्या से भी जोड़ा जाता है | इसकी पत्तियों में एल्कोइड्स, अम्बेलीफेरोन, स्किमिनीन,
स्कमिनझाने कोमारिन्स, ल्यूपोल β- सिटोस्टेरोल, γ – सिटोस्टेरोल पाया जाता है।
बेल मूल रूप से भारत में ही पाया जाने वाला वृक्ष है और साथ ही दक्षिण पूर्वी एशिया के बहुत से देशों में पाया जाता है। म्यांमार, पाकिस्चान और बांग्लादेश में भी पाया जाता है। संपूर्ण भारत में उसकी खेती की जाती है परन्तु मुख्य रूप से मंदिर के बगीचों में उगाया जाता है क्योंकि इसे एक पवित्र वृक्ष माना जाता है। भारत में बेल उत्तर भारत के राज्य उत्तरदेश के जंगली और अर्ध जंगली क्षेत्र में, उडीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और म. प्र. में पाया जाता है। बेल वृक्ष हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है। इस वृक्ष का इतिहास वैदिक काल में भी मिलता है। यर्जुवेद में बेल के फल का उल्लेख मिलता है। बेल वृक्ष का पैराणिक महत्व है तथा इसे मंदिरो के आसपास देखा जा सकता है। पत्तियों का उपयोग पारंपरिक रूप से भगवान शिव को चढ़ाने के लिये किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव बेल के वृक्ष के नीचे निवास करते है। बेल से शरबत, जेम, टाफी, बेल चूर्ण आदि का निर्माण
किया जाता है |
विशिष्ट लाभ
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१. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते ।
२. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है ।
३. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों
को
सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है ।
४. चार पांच छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्रक पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है ।
५. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है। और बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
६. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है।
७. बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते है।
८. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
९. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।
10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी उसके सारे पाप मुक्त हो जाते है ।
11. बिल्ववृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती है।
१२. बिल्व की जड़ का जल अपने सिर पर लगाने से उसे सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य पा जाता है।
१३. गंध, फूल, धतूरे से जो बिल्ववृक्ष की जड़ की पूजा करता है, उसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं।
१४. बिल्ववृक्ष के बिल्वपत्रों से पूजा करने पर सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।
१५. बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता है, वह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता। क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है। यानी इसमें देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।
१६. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।
बिल्ववृक्ष पूजा के लाभ
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- बिल्ववृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती है।
- बिल्व की जड़ का जल अपने सिर पर लगाने से उसे सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य पा जाता है।
- गंध, फूल, धतूरे से जो बिल्ववृक्ष की जड़ की पूजा करता है, उसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं।
- बिल्ववृक्ष के बिल्वपत्रों से पूजा करने पर सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।
- बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता है, वह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता। क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है। यानी इसमें देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।........................................................हर-हर महादेव
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