Sunday 24 December 2017

गूंजा /घुंघुची के तंत्र प्रयोग

गुंजा से कलहकारी [विद्वेषण ]प्रयोग 
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रक्त गुंजा के दाने रविवार या मंगलवार के दिन यह कामना करते हुए की "हे वनस्पति देव आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर परिवार में कलह [विद्वेष] उत्पन्न कर दो "|किसी घर में फेंक दिए जाएँ ,तो उस परिवार में कलह उत्पन्न हो जाता है |यह गुंजा रविपुष्य में पूजित होने चाहिए |यह तांत्रिक प्रयोग प्रायः किसी सबल ,दुष्ट ,उत्पाती और परपीड़क परिवार के पतन हेतु किया जाता है |सात्विक विचारों वाले साधक इसे नहीं करते |
गुंजा मूल और पुत्रदाता प्रयोग 
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शुभ नक्षत्र -योग में ,गुंजा मूल को ताबीज में भरकर कमर में धारण करने वाली स्त्री यदि स्वस्थ है तो पति संपर्क करने पर पुत्र लाभ प्राप्त करती है |यहाँ यह आवश्यक है की गुंजा मूल विधिवत तंत्रोक्त विधि से रविपुष्य योग में प्राप्त की गयी हो और धारण करते समय भी विशिष्ट मुहूर्त हो |
गुंजा मूल और शत्रुदमन प्रयोग 
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गुंजा मूल को किसी स्त्री के मासिक स्राव [रजस्वला स्थिति ]के रक्त में घिसकर अंजन की भांति आँखों में लगाकर शत्रु के सामने जाने पर वह देखते ही भयभीत हो जाएगा |इस तंत्र का यह प्रभाव है की प्रयोक्ता की आँखों में एक प्रकार की अदम्य भयावहता और ज्वलन्तता आ जाती है |उसे देखकर शत्रु और उसके साथी सब भयभीत हो जाते हैं |अंजन का प्रयोक्ता व्यक्ति उन्हें बहुत ही विकराल और प्रचंड शक्ति संपन्न प्रतीत होता है |फलतः वे सब स्वयं को असहाय -निर्बल मानकर पलायन कर जाते हैं |
गुंजा मूल और अलौकिक शक्ति दर्शन 
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देवी- देवता और भूत प्रेतादि अलौकिक ,पारभौतिक शक्तियां हैं |जड़ विज्ञान इसके अस्तित्व का उपहास करता है ,परन्तु धर्म-संस्कृति-अध्यात्म और मनोविज्ञान के ज्ञाता इस तथ्य को स्वीकार करते हैं की संसार में कुछ गुप्त ,अलौकिक ,रहस्यमयी शक्तियां अवश्य हैं ,जो यदाकदा बुद्धिवादियों को द्र्गभ्रमित करती है |अस्तु प्राचीन तंत्र ग्रंथों में उल्लेख है की यदि रविपुष्य योग में अथवा मंगलवार के दिन गुंजा मूल को शुद्ध मधु में घिसकर ,वह लेप आँखों में अंजन की भांति लगायें तो गुप्त शक्तियों के दर्शन होते हैं |ये शक्तियां सात्विक कम और तामसिक अधिक होती हैं |अतः दुर्बल ह्रदय और भीरु प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए यह प्रयोग वर्जित है |
गुंजा के सुरक्षाकारी प्रयोग 
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सिंघनी [बाघिन ] के दूध में गुंजा की जड़ को चन्दन की भांति रगड़कर पर्याप्त मात्र में लेप तैयार करे |फिर एकांत में नग्न होकर सारे शरीर में वह लेप लगा ले ,सूख जाने पर कपडे पहन ले और विरोधी के सामने जाए | वह चाहे मौखिक वाद- विवाद हो या मार पीट की स्थिति हो या सशस्त्र सेना में युद्ध का अवसर हो अथवा दस्युदल के बीच घिर जाने की स्थिति हो ,हर हालत में साधक की सुरक्षा होती है |इस तंत्र के प्रभाव से शत्रु अथवा उसका कोई अस्त्र-शस्त्र साधक का अनिष्ट नहीं कर पाता |इस प्रकार के प्रयोग आज के जमाने में कम उपयोगी हैं जबकि बाघिन ही नहीं मिलती |पर कभी राजे-महाराजाओं के ज़माने में इनकी उपयोगिता उनके आमने-सामने की स्थिति में थी |फिर भी शास्त्र में दिया हुआ प्रयोग है अतः ज्ञानार्जन की दृष्टि से दिया जा रहा है |
आतंककारी प्रयोग गुंजा से
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यदि कोई साधक काले तिल के तेल में गुंजा मूल को घिसकर वह लेप सारे शरीर में मल ले तो उसके प्रभाव से वह साधक बहुत ही सबल ,अजेय और भयानक प्रतीत होगा | फलस्वरूप शत्रुदल भयभीत होता है |
गुंजा से मारण प्रयोग 
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गुंजा और गोरोचन को एक साथ घिसकर [पीसकर ]उस लेप से मृत्यु यन्त्र की रचना करे |मृत्यु यन्त्र में शत्रु का नाम लिख दें |बाद में उसे कहीं धरती में गाड़ दें |इस क्रिया से शत्रु के मृत्य की संभावना बनने लगती है |लोकहित तथा मानवता की दृष्टि से मृत्यु यन्त्र का विवरण देना उचित नहीं है ,इसका दुरुपयोग हो सकता है ,अतः उसकी रूपरेखा नहीं दी जा रही है |आज के छुद्र ,स्वार्थी और अपराध के युग में ऐसे प्रयोग शेर के हाथ में तलवार देने के सामान होते है अतः यन्त्र गोपनीय रखे जाते हैं |चूँकि शास्त्रों में आवश्यकता पर ऐसे प्रयोग की जानकारी है अतः केवल जानकारी के उद्देश्य से पोस्ट लिखा जा रहा है |.
 काली गुंजा और दीपावली प्रयोग:
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 काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है दिवाली के दिन अपने गल्‍ले के नीचे काली गुंजा जंगली बेल के दाने डालने से व्‍यवसाय में हो रही हानि रूक जाती है। दिवाली की रात घर के मुख्‍य दरवाज़े पर सरसों के तेल का दीपक जला कर उसमें काली गुंजा के 2-4 दाने डाल दें। ऐसा करने पर घर सुरक्षित और समृद्ध रहता है।
काली गुंजा और होली के प्रयोग
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 होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।
काली गुंजा और दरिद्रता मुक्ति प्रयोग
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ध्यानमंत्र :
तप्त-स्वर्णनिभांशशांक-मुकुटा रत्नप्रभा-भासुरीं
नानावस्त्र-विभूषितां त्रिनयनां गौरी-रमाभ्यं युताम्
दर्वी-हाटक-भाजनं दधतीं रम्योच्चपीनस्तनीम्
नित्यं तां शिवमाकलय्य मुदितां ध्याये अन्नपूर्णश्वरीम् ॥
मन्त्र :
ह्रीम् श्रीम् क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि मामाभिमतमन्नं देहि-देहि अन्नपूर्णों स्वाहा
विधि :
जब रविवार या गुरुवार को पुष्प नक्षत्र हो या नवरात्र में अष्टमी के दिन या दीपावली की रात्रि या अन्य किसी शुभ दिन से इस मंत्र की एक माला रुद्राक्ष माला से नित्य जाप करें । जाप से पूर्व भगवान श्रीगणेश जी का ध्यान करें तथा भगवान शिव का ध्यान कर नीचे दिये ध्यान मंत्र से माता अन्नपूर्णा का ध्यान करें ।
इस मंत्र का जाप दुकान में गल्ले में सात काली गुंजा के दाने रखकर शुद्ध आसन, (कम्बल आसन, या साफ जाजीम आदि ) पर बैठकर किया जाए तो व्यापार में आश्चर्यजनक लाभ महसूस होने गेगा
काली गुंजा और कष्टों से छुटकारा
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यदि संपूर्ण दवाओं एवं डाक्टर के इलाज के बावजूद भी यदि घुटनों और पैरों का दर्द दूर नहीं हो रहा हो तो रवि पुष्य नक्षत्र, शनिवार या शनि आमवस्या के दिन यह उपाय करें। प्रात:काल नित्यक्रम से निवृत हो स्नानोपरांत लोहे की कटोरी में श्रद्धानुसार सरसों का तेल भरें। 7 चुटकी काले तिल, 7 लोहे की कील और 7 लाल और 7 काली गुंजा उसमें डाल दें। तेल में अपना मुंह देखने के बाद अपने ऊपर से 7 बार उल्टा उसारकर पीपल के पेड़ के नीचे इस तेल का दीपक जला दें 21 परिक्रमा करें और वहीं बैठकर 108 बार
ऊँ शं विधिरुपाय नम:।।
इस मंत्र का जाप करें। ऐसा 11 शनिवार करें। कष्टों से छुटकारा मिलेगा।
पीली गुंजा और सुख -समृद्धि
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1• पीले रंग की गुंजा के बीज ,हल्दी की गांठे, सात कौडियों की पूजा अर्चना करके श्री लक्ष्मीनारायण भगवान के मंत्रों से अभिमंत्रित करके पूजा स्थान में रखने से दाम्पत्य सुख एवं परिवार,मे एकता तथा आर्थिक व्यावसायिक सिद्धि मिलती है
2• इसकी माला या ब्रेसलेट धारण करने से व्यक्ति का चित्त शांत रहता है, तनाव से मुक्ति मिलती है।
3• पीत गुंजा की माला गुरु गृह को अनुकूल करती है।
4• अनिद्रा से पीड़ित लोगों को इसकी माला धारण करने से लाभ मिलता है।
5• बड़ी उम्र के जो लोग स्वप्न में डरते हैं या जिन्हें अक्सर ये लगता है की कोई उनका गला दबा रहा है उन्हें इसकी माला या ब्रेसलेट पहनना चाहिए।..........................................हर हर महादेव
 .............................................हर-हर महादेव 

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