Sunday, 17 December 2017

नकारात्मक ऊर्जा [Negative Energy ] किसको कहते हैं ?

::::::::::::::क्या है नकारात्मक ऊर्जा :::::::::::::::
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नकारात्मक ऊर्जा पृथ्वी के सतह के आसपास सृष्टि अथवा जीवन की उत्पत्ति पर क्रिया-प्रतिक्रया के फलस्वरूप उत्पन्न ऊर्जा का रूप है जो जीवन को प्रभावित करती है |जो ऊर्जा जीवन को लाभ दे ,उन्नति दे ,विकास और खुशहाली दे वह उस जीवन के परिप्रेक्ष्य में सकारात्मक ऊर्जा कही जाती है और जो इन सबमे बाधक हो और कष्ट दे वह नकारात्मक ऊर्जा कही जाती है| जो ऊर्जा पृथ्वी पर उपस्थित जीवन वनस्पति को कष्ट दे ,स्वास्थय प्रभावित करे ,अवरोध दे ,सुचारू जीवन में बाधा उत्पन्न करे, जीवन नष्ट करने का प्रयत्न करे वह नकारात्मक ऊर्जा है |नकारात्मक ऊर्जा कहीं बाहर से नहीं आती यह पृथ्वी की सतह पर उपस्थित होती है और प्रभावित करती रहती है |इस नकारात्मक ऊर्जा को हम कई श्रेणियों में बाँट सकते हैं |कुछ सदा सर्वदा उपस्थित रहती हैं और सदैव बनी रहती है तथा कुछ समय के अनुसार उत्पन्न और नष्ट होती रहती हैं |
सकारात्मक ऊर्जा का गहरा सम्बन्ध प्रकाश और धनात्मक ऊर्जा से होता है जबकि नकारात्मक ऊर्जा का सम्बन्ध अँधेरे से होता है |जहाँ भी अत्यधिक अँधेरा रहता हो वहां नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होने की सम्भावना रहती है [कुछ उग्र नकारात्मक शक्तियां तीब्र गर्मी और प्रकाश जैसे लू आदि में भी अधिक प्रभावी होते है ]|यद्यपि यह पृथ्वी की आतंरिक ऊर्जा के उत्सर्जन पर भी निर्भर करता है जो सौरमंडल के परिप्रेक्ष्य में तो ऋणात्मक होती है किन्तु जीवन के परिप्रेक्ष्य में धनात्मक होती है |जहाँ अँधेरा तो हो पर पृथ्वी की आतंरिक ऊर्जा के उत्सर्जन का क्षेत्र हो वहां नकारात्मक उर्जायें कम हो जाती है |सभी शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग आदि पृथ्वी की आतंरिक ऊर्जा के वही उत्सर्जान क्षेत्र हैं ,इनकी स्थिति जानकार ही इन्हें साधना -आराधना स्थल के रूप में परिकल्पित और विक्सित किया गया की यहाँ से धनात्मकता की वृद्धि होती है और शक्ति प्राप्ति शीघ्र संभव होती है ,कम से कम नकारात्मक उर्जाओं का प्रभाव पड़ता है |
पृथ्वी के वातावरण में विभिन्न तरह की नकारात्मक उर्जायें रहती हैं ,जिन्हें हम विभिन्न नामों से जानते हैं |भूत-प्रेत-चुड़ैल आदि सबसे निचले स्तर की किन्तु सर्वाधिक क्रियाशील नकारात्मक शक्तियां हैं जो जीवन के ही अचानक नष्ट हो जाने से बनी हुई ऊर्जा परिपथ के नष्ट हो पाने से बनते हैं |चुकी यह भी कभी जीवित हुआ करते थे अतः यह सबसे अधिक जीवन को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं | इनका गहरा सम्बन्ध व्यक्तियों से होने से यह उन्हें ही अधिक प्रभावित करते हैं और अपनी अतृप्त इच्छाओं की पूर्ती अथवा अपनी कष्ट प्रद योनी से मुक्ति हेतु प्रभावित करते रहते हैं ,चूंकि इनमे छटपटाहट अधिक होती है अतः क्रियाशील अधिक होते हैं |भूत-प्रेत से अधिक शक्तिशाली इसी योनी के अंतर्गत आने वाली कुछ अन्य शक्तियां ब्रह्म -बीर -शहीद- होते हैं ,जिनपर सामान्य सकारात्मक शक्तियों का कम प्रभाव पड़ता है और यह बहुत शक्तिशाली होते हैं ,क्योकि या तो यह अपना जीवन रहते बहुत शक्तिशाली शरीर तथा आत्मबल के रहे होते हैं अथवा बहुत धार्मिक और अलौकिक शक्तियां रखने वाले हुआ करते हैं ,ऐसे में इन पर सामान्य क्रियाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और यह प्रभावित करने की कोसिस करते वाले की हानि कर सकते हैं | इनमे से ब्रह्म, शहीद आदि मंदिर आदि तक में प्रवेश कर जाते हैं ,यद्यपि बचने का प्रयास करते हैं ,इनके उपर पिशाच-पिशाचिनी-जिन्न जैसी उग्र शक्तियां आती हैं जिनका क्षरण हजारों हजार वर्षों तक नहीं होता और जो अपनी शक्ति बढाने तथा तामसिकता की पूर्ती के लिए जीवन को निशाना बनाते हैं |इनमे जिन्न अच्छे भी हो सकते हैं ,जबकि पिशाच तामसिक और कष्ट कारक ही होते हैं |ये बेवजह भी किसी के जीवन में हस्तक्षेप कर सकते हैं और इन्हें तंत्र साधक भी अपने वशीभूत करके अथवा नियंत्रण में लेकर तामसिक क्रियाएं संपन्न करते हैं |यह धनात्मक शक्ति से दूर रहते हैं किन्तु ऋणात्मक शक्ति में तामसिक शक्तियों के साथ यह हो सकते हैं |
उपरोक्त शक्तियों से ऊपर पृथ्वी की सतह की नकारात्मकता से उत्पन्न नैसर्गिक नकारात्मक शक्तियां आती हैं |इनमे डाकिनी- शाकिनी- बेताल- भैरव- भैरवियाँ आते हैं |यह सभी निचली सभी शक्तियों पर नियंत्रण कर सकते हैं ,और इन सब पर प्रकृति की परम शक्ति काली का नियंत्रण होता है ,अर्थात यह काली की शक्ति के अंतर्गत आते हैं |यह शक्तियां बेवजह कहीं भी हस्तक्षेप नहीं करती और इनके साक्षात्कार या वशीभूत या नियंत्रण के लिए गंभीर प्रयास करना पड़ता है ,इनमे बेताल-भैरव पुरुषात्मक और अग्नि तत्व प्रधान होते हैं |इनमे से कोई भी शक्ति मंदिर आदि में भी प्रवेश कर सकती है और किसी सामान्य तंत्र साधक द्वारा नियंत्रित नहीं की जा सकती ,बेताल की शक्ति रूद्र के उच्च स्तर के साधक के साथ भी परस्पर शक्ति संतुलन पर निर्भर करती है |इनमे से कोई भी शक्ति यदि वश में हो जाए तो भौतिक रूप से कुछ भी पाया जा सकता है |यहाँ तक की काल ज्ञान भी |इन सभी शक्तियों का क्षरण नहीं होता और यह नैसर्गिक नकारात्मक शक्तियां है ,फिर भी यह स्वयं में रहती हैं और ऋणात्मक शक्तियों यथा महाविद्याये-नव दुर्गाओं की सहायक होती हैं |इन्हें नकारात्मक में मूलतः इसलिए रखा जाता है की इनकी शक्ति रात्री अथवा अँधेरे में अधिक प्रबल होती है और यह सभी तामसिक शक्तियों के अंतर्गत आती हैं ,अन्यथा यह ऋणात्मक ही होती हैं |इसी प्रकार की समान्तर शक्तियां योगिनी-यक्षिणी-अप्सरा आदि भी होती हैं जो ऋणात्मक की सहायक शक्तियां हैं ,प्रकृति तामसिक होने पर भी इन्हें नकारात्मक में नहीं रखा जा सकता |
कभी कभी अपने पित्रादी ,कुलदेवता-देवी भी नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करते हैं ,अगर किसी प्रकार असंतुष्ट हुए तो |वर्मान परिवेश और वातावरण में इनका कोप अधिक देखने में आता है |यह खुद अगर नकारात्मक प्रभाव भी उत्पन्न करें तो ये निष्क्रिय रहकर नकारात्मक प्रभाव को प्रभावित करने का मौका दे देते हैं और बचाव नहीं करते या उन्हें नहीं रोकते |आज ऐसी समस्याएं ७०% मामलों में देखि जा रही हैं |
नकारात्मक शक्तियों में हम घर के वास्तुदोष से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा को भी रखते हैं ,जिनका सीधा प्रभाव घर में रहने वाले सभी सदस्यों पर पड़ता है |घर के निर्माण में वास्तु का ख़याल रखने पर ऊर्जा असंतुलन हो जाता है जो विभिन्न प्रकार से परेशानियां उत्पन्न करता है |मकान के सामने वेध होने से ,सीधे सामने रास्ते आने से भी नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है और प्रभावित करता है |मकान पर पेड़ आदि की छाया ,मंदिर आदि की छाया भी प्रभावित करती है |

व्यक्ति विशेष के लिए अथवा स्थान विशेष के लिए ग्रहों का प्रभाव भी नकारात्मक हो सकता है ,इनमे कुछ ग्रह अधिकतर नकारात्मक प्रभाव प्रदान करने वाले होते है जबकि कुछ ग्रह कम नकारात्मक प्रभाव देते है ,,फिर भी कोई भी ग्रह सभी के लिए तो शुभद होता है और ही नकारात्मक ,यह उनकी स्थिति और ग्रहणकर्ता की स्थिति पर निर्भर करता है |जिस प्रकार सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत शक्तिपीठों ,ज्योतिर्लिंगों के स्थान आदि होते हैं ,जहाँ पृथ्वी से सकारात्मक तरंगें उत्सर्जित होती रहती हैं ,उसी प्रकार कई स्थान ऐसे होते हैं जहाँ से नकारात्मक ऊर्जा या तरंगें उत्सर्जित होती रहती हैं |अधिकतर ऐसे स्थान वीरान हो जाया करते हैं |......................................................................हर-हर महादेव 

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