Sunday 25 March 2018

योग और तन्त्र में हस्त मुद्रा का महत्त्व और लाभ


योग और तन्त्र में हस्त मुद्रा का महत्त्व और लाभ :
=======================
 मुद्रा संपूर्ण योग का सार स्वरूप है।इसका प्रयोग tantraसाधनाओं में भी एक आवश्यक अंग के रूप में होता है |पञ्च मकार का यह एक म अर्थात मुद्रा है |पूजन में भी मुद्राएँ और उनका ईष्ट के सामने प्रदर्शन होता है |इनका अपना आध्यात्मिक महत्व है और इनका शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है | इसके माध्यम से कुंडलिनी या ऊर्जा के स्रोत को जाग्रत किया जा सकता है। इससे अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। सामान्यतअलग-अलग मुद्राओं से अलग-अलग रोगों में लाभ मिलता है। मन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। शरीर में कहीं भी यदि ऊर्जा में अवरोध उत्पन्न हो रहा है तो मुद्राओं से वह दूर हो जाता है और शरीर हल्का हो जाता है। जिस हाथ से ये मुद्राएँ बनाते हैंशरीर के उल्टे हिस्से में उनका प्रभाव तुरंत ही नजर आना शुरू हो जाता है।
मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग के इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10मुद्राओं का उल्लेख मिलता हैलेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50से 60 हस्त मुद्राएँ हैं।
हमारा शरीर पाँच तत्व और पंच कोश से नीर्मित हैजो ब्रह्मांड में है वही शरीर में है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखने की शक्ति स्वयं शरीर में ही है। इसी रहस्य को जानते हुए भारतीय योग और आयुर्वेद में ऋषियों ने यमनियमआसनप्राणायामबंध और मुद्रा के लाभ को लोगों को बताया। इन्हीं में से एक हस्त मुद्रा का बहुत कम लोग ही महत्व जानते होंगे।
यह शरीर पाँच तत्वोंपृथ्वीजलअग्निवायु और आकाश से मिलकर बना है। शरीर में ही पाँच कोश है जैसे अन्नमय कोशप्राणमय कोशमनोमय कोशविज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश। शरीर में इन तत्व के संतुलन या कोशों के स्वस्थ रहने से ही शरीरमन और आत्मा स्वस्थ ‍रहती है। इनके असंतुलन या अस्वस्थ होने से शरीर और मन में रोगों की उत्पत्ति होती है। इन्हें पुनसंतुलित और स्वस्थ बनाने के लिए हस्त मुद्राओं का सहारा लिया जा सकता है।
अँगुली में पंच तत्व :
-------------------- हाथों की 10 अँगुलियों से विशेष प्रकार की आकृतियाँ बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है। हाथों की सारी अँगुलियों में पाँचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अँगूठे में अग्नि तत्वतर्जनी अँगुली में वायु तत्वमध्यमा अँगुली में आकाश तत्वअनामिका अँगुली में पृथ्वी तत्व और कनिष्का अँगुली में जल तत्व।
अँगुलियों के पाँचों वर्ग से अलग-अलग विद्युत धारा बहती है। इसलिए मुद्रा विज्ञान में जब अँगुलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श करते हैंतब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुनजाग देती है और हमारा शरीर निरोग होने लगता है। ये अद्भुत मुद्राएँ करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती है|
अवधि और सावधानी :
================
दिन में अधिकतम अवधी 20-30 मिनट तक एक मुद्रा को किया जाए। इन मुद्राओं को अगर एक बार करने में परेशानी आए तो 2-3 बार में भी कर सकते हैं। मुद्रा करते समय जो अँगुलियाँ प्रयोग में नहीं आ रही है उन्हें सीधा करके और हथेली को थोड़ा कसा हुआ रखते हैं। हाथों में कोई गंभीर चोटअत्यधिक दर्द या रोग हो तो योग चि‍कित्सक की सलाह ली जानी चाहिए |
हस्त मुद्रा के लाभ :
मुद्रा संपूर्ण योग का सार स्वरूप है। इसके माध्यम से कुंडलिनी या ऊर्जा के स्रोत को जाग्रत किया जा सकता है। इससे अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। सामान्यत:अलग-अलग मुद्राओं से अलग-अलग रोगों में लाभ मिलता है। मन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। शरीर में कहीं भी यदि ऊर्जा में अवरोध उत्पन्न हो रहा है तो मुद्राओं से वह दूर हो जाता है और शरीर हल्का हो जाता है। जिस हाथ से ये मुद्राएँ बनाते हैंशरीर के उल्टे हिस्से में उनका प्रभाव तुरंत ही नजर आना शुरू हो जाता है।…………………………………………………...हर-हर महादेव 


तंत्र शास्त्र में मुद्राओं का महत्व


तंत्र शास्त्र में मुद्राओं का महत्व
======================
      तंत्र-शास्त्र भारतवर्ष की बहुत प्राचीनसाधना -प्रणाली है  इसकी विशेषता यह बतलाईगई है कि इसमें आरम्भ ही से कठिन साधनाओंऔर कठोर तपस्याओं का विधान नहीं हैवरन्वह मनुष्य के भोग की तरह झुके हुए मन को उसीमार्ग पर चलाते हुए धीरे-धीरे त्याग की ओरप्रवृत्त करता है  इस दृष्टि से तंत्र को ऐसा साधनमाना गया कि जिसका आश्रय लेकर साधारणश्रेणी के व्यक्ति भी आध्यात्मिक मार्ग में अग्रसरहो सकते हैं  यह सत्य है कि बीच के काल में तंत्रका रूप बहुत विकृत हो गया और इसका उपयोगअधिकांश मे मारणमोहनउच्चाटनवशीकरणआदि जैसे जघन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कियाजाने लगापर तंत्र का शुद्ध रूप ऐसा नहीं है ।उसका मुख्य उद्देश्य एक-एक सीढ़ी पर चढ़करआत्मोन्नति के शिखर पर पहुँचना ही है  तंत्र-शास्त्र में जो पंच-प्रकार की साधना बतलाई गईहैउसमें मुद्रा साधन बड़े महत्व का और श्रेष्ठ है ।मुद्रा में आसनप्राणायामध्यान आदि योग की सभी क्रियाओं का समावेश होता है  मुद्रा की साधनाद्वारा मनुष्य शारीरिक और मानसिक शक्तियों की वृद्धि करके अपने आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्तिकर सकता है  मुद्राएँ अनेक हैं  घेरण्ड संहिता में उनकी संख्या २५ बतलाई गई हैपर शिव-संहिता मेंउनमें से मुख्य मुद्राओं को छांट कर इसकी ही गणना कराई है |
तंत्र मार्ग में कुण्डलिनी शक्ति की बड़ी महिमा बतलाई गई है  इसके जागृत होने से षटचक्र भेद होजाते हैं और प्राणवायु सहज ही में सुषुम्ना से बहने लगती है इससे चित्त स्थिर हो जाता है और मोक्षमार्ग खुल जाता है  इस शक्ति को जागृत करने में मुद्राओं से विशेष सहायता मिलती है   II मुदामकुर्वन्ति देवानं मनासी द्रव्यन्ति  , तस्मान मुद्रा समाख्याता दार्शितव्य कुलेश्वरि II (कुलार्नव तंत्र) ... मुद्रा देवताओ के मन को प्रसन्न करती है जिसके परिणाम वो भक्तो के प्रति करुनामय होते हैइसीलिए इष्ट मुद्रा का प्रदर्शन करना चाहिए | II.यथा बालस्य अभिनयम दृष्ट्वा दृश्यन्ति मातर ,तथा भक्त कृता मुद्रा दृष्ट्वा द्रश्यन्ति देवता II (मेरु तंत्र ) जेसे बालक की लीला / चेष्टा देख माता -पिता आनंदित होते है ऐसे भक्तो की मुद्रा देख देवता प्रसन्न होते है |आत्मा बोध के रक्षण और उसकीपुष्टि के लिए तथा आत्मा और मन की तुष्टि के लिए... मुद्रा का ज्ञान और अनुभति आवश्यक है|पूजा -पाठ , ध्यान , मत्र - तंत्र - यन्त्र साधना .. सब में मुद्रा के प्रयोग की अनिवार्यता शाश्त्रो में लिखीहै |  मंत्र एक परिमाण ( one dimension) , यन्त्र दो परिमाण( two dimension) , मुद्रा तिन परिमाण( three dimension) होने पर परस्पर सब का घनिष्ट सम्बन्ध है . मुद्रा के उपयोग में जरुरी सावधानीऔर नियमचोकसी वर्तना जरुरी है अन्यथा विपरीत परिणाम  सकता है |
पंचमकार में से एक मुख्या अंग मुद्रा है |पंचमकार के पांच अंग ,मांस -मदिरा -मीन -मैथुन और मुद्रा में से मांस [अथवा अन्न ]शरीर का पोषक है ,मीन [अथवा तामसिक पदार्थ ]उत्प्रेरक या उत्तेजक है ,मदिरा ,उन्मत्तता -निडरता -एकाग्रता का कारक है ,मैथुन शारीरिक ऊर्जा का उपयोग और मुद्रा शक्ति का आकर्षण है |पंचमकार के बाकी चारो तत्व शारीरिक ऊर्जा से सम्बंधित हैं जबकि मुद्रा प्रकृति की ऊर्जा का आकर्षण करता है |इसीलिए कहा जाता है की मुद्रा के प्रदर्शन से देवता द्रवित होते हैं |इस कथन के गूढ़ और वैज्ञानिक निहितार्थ हैं |जब मुद्रा प्रदर्शित की जाती है तो उससे विशेष नसों ,अंगों पर दबाव-तनाव अथवा शिथिलता होती है ,फलस्वरूप चक्र विशेष पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है ,शारीर के तत्वों का संतुलन बदलता है जिससे विशेष चक्र अर्थात सम्बंधित देवता के चक्र से अधिक तरंगों का उत्पादन शुरू होता है और वह चक्र अधिक क्रियाशील होता है |चक्र की अधिक क्रियाशीलता और तरंग उत्पादन से प्रकृति में उपस्थित उसी प्रकार की तरंगें और शक्तियां आकर्षित होकर व्यक्ति से जुडती हैं |इसी को कहते है विशेष देवता का विशेष मुद्रा से द्रवित होना और आकर्षित होना | इसलिए मुद्रा प्रदर्शन अवश्य करना चाहिए पूजा -उपासना-साधना के समय
हिन्दू धर्मं , जैन (श्वेताम्बर ) , बौध्ध धर्मं सब में मुद्रा का उपयोग धार्मिक विधि से लेकर ध्यान तककिया हुआ है .अंगुष्ट  ... अग्नि तत्व , तर्जनी ... वायु तत्व , मध्यमा  ... आकाश तत्व , अनामिका ....पृथ्वी तत्व , कनिष्टिका  ... जल तत्व का … प्रतिनिधि है.| मुद्रा द्वारा पञ्च प्राण / पञ्च महाभूत केसाथ सम्बन्ध होता है | अंगुष्ट और  अंगुली के संयोजन से विविध मुद्रा बनती है बिना मुद्रा केकिसीभी प्रकार की साधना सफल नहीं होती ऐसा घेरंड संहिता कहती हैमुद्राएँ दो तरह की होती है ,शारीरिक मुद्रा और अँगुलियों की मुद्रा |शारीरिक मुद्रा को आसन भी कहते हैं ,इनका प्रयोग योग का आवश्यक अंग है |योग में इसके साथ अँगुलियों की मुद्रा का भी प्रयोग किया जाता है और शरीर को साधा जाता है |तंत्र में भी दोनों का प्रयोग होता है ,पर अधिकतर अंगुली मुद्रा ही सामान्यतया प्रयोग में ली जाती है |मुद्राओं के प्रयोग से रोग निवारण भी होता है ,और पंच तत्वों को संतुलित भी किया जाता है |...............................................................हर-हर महादेव 

मुद्रा चिकित्सा रहस्य एवं प्रयोग


मुद्रा चिकित्सा रहस्य एवं प्रयोग
===================
सम्पूर्ण प्रकृति और हमारा शरीर पांचतत्वों से बना हैमानव शरीर लघुब्रह्माण्ड स्वरूप हैसम्पूर्ण ब्रह्माण्ड काप्रतीक यह मानव-शरीर भी ब्रह्माण्ड केसमान ही पांच तत्वों (अग्निवायु,आकाशपृथ्वीजलके योग से बनाहैमुद्रा विज्ञान का आधारभूत सिद्धांतयह है कि शरीर में इन पंच तत्वों मेंअसंतुलन से रोगोत्पत्ति होती है तथापंच तत्वों में समता  सन्तुलन होने सेहम स्वस्थ रहते हैंस्वस्थ शब्द को यहां शारीरिकमानसिक और आध्यात्मिक संदर्भों में स्वयंमें अपनी प्रकृति में स्थित रहने से लेना चाहिए|
 मानवशरीर प्रकृति की सर्वोत्तम रचना है और हाथ सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग हैहाथों में सेएक विशेष प्रकार की प्राण-ऊर्जा या शक्ति विद्युत तरंगें/जीवनी शक्ति (र्ईीरनिरंतर निकलतीरहती हैविभिन्न प्रकार की रहस्यमयी चिकित्साओं में हाथों के संस्पर्श मात्र से नीरोगी बनाने केपीछे यही ऊर्जा छिपी है|
 भारतीय मनीषियों के अनुसारमानव-हस्त की पांचों उंगलियां अलग-अलग पंच तत्वों काप्रतिनिधित्व करती हैं और प्रत्येक उंगली का संबंध एक तत्व विशेष से हैआधुनिक विज्ञान भीमानता है कि प्रत्येक उंगली के सिरे से अलग-अलग प्रकार की ऊर्जा तरंगें (इलेक्ट्रो मैगनेटिकवेव्सनिकलती रहती हैप्राचीन भारतीय ऋषियों की अद्भुत खोज मुद्रा-विज्ञान के अनुसार पंचतत्वों की प्रतीक उंगलियों को परस्पर मिलानेदबानेमरोड़ने या विशेष प्रकार की आकृति बनानेसे विभिन्न प्रकार के तत्वों में परिवर्तनअभिव्यक्तिविघटन एवं प्रत्यावर्तन होने लगता है|दूसरे शब्दों मेंउंगलियों की सहायता से (बनाई जानेवाली विभिन्न मुद्राओं द्वाराइन पंच तत्वोंको इच्छानुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता हैकौन-सी उंगली किस तत्व का प्रतिनिधित्व करतीहै,|
 अंगूठाअग्नि
तर्जनी (अंगूठे के पास वाली उंगली) = वायु 
मध्यमा (सबसे बड़ी अंगुली) = आकाश
अनामिका (चौथी उंगली) = पृथ्वी
कनिष्ठिका (सबसे छोटी उंगली) = जल ...................................................हर-हर महादेव 


मानव शरीर के लिए मुद्राएं क्यों ?


मानव शरीर के लिए मुद्राएं क्यों ?
==============
मुद्रा का अर्थ है स्थितिसाधना में इसका तात्पर्य हाथओं औरउंगलियों की विशेष स्थिति से होता हैयोग  तंत्र ग्रंथों के अनुसारमुद्राओं से साधक की आंतरिक स्थिति का ज्ञान होता हैआंतरिकस्थिति की सहज अभिव्यक्ति हुआ करती हैं ये मुद्राएंसाधक जबमुद्राओं द्वारा अर्चनउपासना या ध्यान आदि क्रियाएं करता हैतोवह बाहर से भीतर की यात्रा करने का प्रयास सिद्ध करता हैप्रयोगों से सिद्ध हो चुका है जिसप्रकार सूक्ष्म स्थितियों का प्रभाव स्थूल क्रियाओं पर पड़ता हैउसी प्रकार सायास स्थूल क्रियाओंसे सूक्ष्म भी प्रभावित होता हैमानव के शरीर में हाथों का बड़ा महत्व होता हैमानव केमस्तिष्क पर उसका भाग्यहाथों में उसके कर्म और शरीर के भीतरी चलन की रेखाएं उसके पैरोंमें होती हैंमानव शरीर की मुद्राएं हाथों द्वारा ही संपन्न कर पाता हैप्रत्येक मुद्रा में शरीर कोउचित समय (तीन से पांच मिनटतक रखा जाता हैजिसका प्रभाव उस मुद्रा से भीतरी अंग कीक्रियाशैली बढ़ जाएगीमानव शरीर की उंगलियों हथेली और कलाई में अनेक प्रकार के स्थान हैंजिनका सीधा संपर्क शरीर के भीतरी अंग से हैंउचित अंग के लिए उचित मुद्रा का विज्ञानशास्त्रों में बताया गया हैमानव पूर्व वैदिक काल में मुद्राओं द्वारा ही संपर्क साधता थाइसकापूर्ण ज्ञान मुद्रा शास्त्र से मानव को प्राप्त होता है| ………………………………………………..हर हर महादेव 

क्या हैं योग अथवा तन्त्र मुद्राएँ


क्या हैं योग अथवा तन्त्र मुद्राएँ ,
======================
तंत्र के पञ्च मकार का एक "" मुद्रा
----------------------------------------------
योग अनुसार आसन और प्राणायाम की स्थिति को मुद्रा कहा जाता है। बंधक्रिया और मुद्रा में आसन और प्राणायाम दोनों का ही कार्य होता है। योग में मुद्राओं को आसन और प्राणायाम से भी बढ़कर माना जाता है। आसन से शरीर की हडि्डयाँ लचीली और मजबूत होती है जबकि मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है। मुद्राओं का संबंध शरीर के खुद काम करने वाले अंगों और स्नायुओं से है।
मुद्राओं की संख्या को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ 'घेरण्ड संहिताहै। हठयोग पर आधारित इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता हैलेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएँ हैं।
महामुद्रामहाबंधमहावेधखेचरीउड्डीयान बंधमूलबंधजालंधर बंधविपरीत करणी,बज्रोली और शक्ति चालन। उक्त 10 मुद्राओं को सही तरीके से अभ्यास करने से बुढ़ापा जल्दी नहीं आ सकता।
इसके अलावा अलग-अलग ग्रंथों के अनुसार अलग-अलग मुद्राएँ और बंध होते हैं। योगमुद्रा को कुछ योगाचार्यों ने 'मुद्राके और कुछ ने 'आसनोंके समूह में रखा है। दो मुद्राओं को विशेष रूप से कुंडलिनी जागरण में उपयोगी माना गया हैसांभवी मुद्राखेचरी मुद्रा।
मुद्राओं के प्रकार
मुख्‍यत: 6 आसन मुद्राएँ मानी गई हैं- 1.व्रक्त मुद्रा, 2.अश्विनी मुद्रा, 3.महामुद्रा, 4.योग मुद्रा, 5.विपरीत करणी मुद्रा, 6.शोभवनी मुद्रा। जगतगुरु रामानंद स्वामी पंच मुद्राओं को भी राजयोग का साधन मानते हैंये है- 1.चाचरी, 2.खेचरी, 3.भोचरी, 4.अगोचरी, 5.उन्न्युनी मुद्रा।
इसी प्रकार मुख्‍यतदस हस्त मुद्राएँ मानी गई हैंउक्त के अलावा हस्त मुद्राओं में प्रमुख दस मुद्राओं का महत्व है जो निम्न है: -(1)ज्ञान मुद्रा, (2)पृथवि मुद्रा, (3)वरुण मुद्रा, (4)वायु मुद्रा, (5)शून्य मुद्रा, (6)सूर्य मुद्रा, (7)प्राण मुद्रा, (8)लिंग मुद्रा, (9)अपान मुद्रा, (10)अपान वायु मुद्रा।
इनके अतिरिक्त पूजन और tantra साधना में विशेष प्रकार की मुद्राओं का उपयोग होता है ,जैसे आवाहन ,स्थिरीकरण ,सम्मुखिकरण आदि आदि |इनका tantra में अत्यधिक महत्त्व है |साधना के दौरान विशिष्ट मुद्राएँ बनाने पर सम्बंधित शक्ति की ऊर्जा बढती है ,उससे सम्बंधित चक्र क्रियाशील होता है और साधना में सफलता बढती है और जल्दी पूर्ण होती है |
 हाथों की 10 अँगुलियों से विशेष प्रकार की आकृतियाँ बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है। हाथों की सारी अँगुलियों में पाँचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अँगूठे में अग्नि तत्वतर्जनी अँगुली में वायु तत्वमध्यमा अँगुली में आकाश तत्वअनामिका अँगुली में पृथ्वी तत्व और कनिष्का अँगुली में जल तत्व। अँगुलियों के पाँचों वर्ग से अलग-अलग विद्युत धारा बहती है। इसलिए मुद्रा विज्ञान में जब अँगुलियों का योगानुसार आपसी स्पर्श करते हैंतब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुनजाग देती है और हमारा शरीर निरोग होने लगता है। ये अद्भुत मुद्राएँ करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं।
मुद्राओं के लाभ : कुंडलिनी या ऊर्जा स्रोत को जाग्रत करने के लिए मुद्राओं का अभ्यास सहायक सिद्ध होता है। कुछ मुद्राओं के अभ्यास से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त ‍की जा सकती है। इससे योगानुसार अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। यह संपूर्ण योग का सार स्वरूप है।...............................................................................हर-हर महादेव 

ईश्वर का संकेत है अंतरात्मा की आवाज


ईश्वर का संकेत है अंतरात्मा की आवाज
========================
दैनिक जीवन में अक्सर देखते हैं कि दरवाजे की घंटी बजते हीमन में ख्याल आता है कि इस समय दरवाजे पर अमुक व्यक्ति हीहोगा और दरवादा खोलने पर जिसका ख्याल आया था वहीव्यक्ति होता है। इस प्रकार कभी-कभी अपने किसी मित्र सेमिलने के लिए उसके घर पर जा रहे होते हैं कि अचानक दिमाग मेंविचार कौंधता है कि इस समय दोस्त के यहां जाना व्यर्थ होगा।वह नहीं मिलेगा। परंतु नहीं मानते और चल पड़ते हैं तथा वाकईमें दोस्त नहीं मिलता हैं।
ऐसा भी होता है कि किसी रिश्तेदार या अभिन्न मित्र का ख्यालबार-बार आता है और यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि ऐसा क्यों हो रहा हैंतभी उस दोस्त या रिश्तेदार के साथकोई हादसा होने की खबर मिलती है। क्या यह सब संयोग है ? नहींयह संयोग नहीं है। आम भाषा में इसे अंतरात्मा कीआवाज कहा जाता है। अनुभवियों का मानना है कि यह आवाज सभी के लिए कार्य करती है। सवाल सिर्फ इसको समझनेऔर पहचानने का है तथा इसपर अटूट विश्वास करने पर ही और अभ्यास से इसे समझा तथा पहचाना जा सकता है।
वास्तव में यह सबकुछ अवचेतन मन की कार्यप्रणाली पर आधारित सुझाव होते हैं जिस पर जाग्रत अथवा चेतन मन क्रिया करता है |अवचेतन मन कोई क्रिया नहीं करता बस एक विचार उत्पन्न कर देता है ,मानना न मानना चेतन मन का काम है |इसी अवचेतन मन को हम ईश्वर या अंतरात्मा की आवाज कहते हैं |यह युगों युगों ,सदियों और कई जन्मो तक की सूचनाएं रख सकता है और यह पूर्व की स्सोच्नाओं और अनुभवों के विश्लेषण के बाद एक विचार देता है की यह होना चाहिए |आप माने या न माने पर यह विचार एकदम सटीक उतरता है |इसीलिए इसे ईश्वर की आवाज कहा जाता है |साधक और सिद्ध इसकी आवाज पर बहुत ध्यान देते हैं |एक झटके में इसने जो संकेत दे दिए वह बिलकुल सही होते हैं |साधना से वह इसे ही जाग्रत करते हैं |इसकी शक्ति को बढाते हैं |ध्यान साधना में भी सी की शक्ति को जगाया जाता है |वास्तव में ध्यान में जब विचारशून्यता आती है तो अवचेतन की क्रिया पूर्ण प्रभावी हो जाती है और उस पर से चेतन का प्रभाव हट जाता है और वह वास्तविकता के दर्शन कराती है |इसी की क्रिया अनवरत चलती है समाधि की अवस्था में और यही सभी अनुभवों का संकलन करती है |यही जन्मों के अनुभव याद रखती है और यही पारलौकिक अनुभव भी देखती सुनती और उस पर प्रतिक्रया करती है |इसका ही सीधा संभंध सूक्ष्म शरीर से होता है |बार बार दोहराई गई गलत सूचना यहाँ स्थायी हो जाती है और जब आप कोई सुझाव चाहते हैं तो आपकी बार बार बताई गई गलत बात यह आपको बता देता है |यह इसकी दोहरी कार्यप्रणाली बी है |इसीलिए कहा जाता है की अवचेतन की बात को बार बार ठुकराना नहीं चाहिए और इसे अनदेखा नहीं करना चाहिए |
यह आंतरिक शक्ति या अवचेतन मन की शक्ति अच्छाई और बुराई का भी ज्ञान कराती है। उदाहरण के लिए रास्ते मेंएक सौ का नोट पड़ा मिलता हैतो उसे तुरंत रख लेते हैंपरंतु आंतरिक शक्ति बताती है कि यह ठीक नहीं है। परंतुउसपर ध्यान नहीं देते हैं। बात वहीं विश्वास की है। यदि इसपर विश्वास करेंगेतो अंतरात्मा की आवाज भी उतनी हीविकसित होगी और उसका अनुसरण कर बहुत लाभ ले सकते हैं। ध्यान रहेअंतरात्मा की आवाज ईश्वरप्रदत्त संकेत हैजिसमें आत्मा माध्यम है।  इसको पूर्णतया जागृत करने के लिए विश्वास के अतिरिक्तमस्तिष्क में जब भी किसी भीप्रकार का विचार आयेतो गंभीरता से यह जानने का प्रयत्न करें कि यह विचर अचानक जागृत करने में आसानी होगी।जैसे अमुक कार्य करने जा रहे हैंतो ख्याल आता है कि इसे अभी  करें। चार दिन बाद कीजिए और देखेंगे की वह कार्यसफलतापूर्वक संपन्न हो जाता है|
यदि ईश्वर में विश्वास रखते हैं ,यानी आस्तिक हैतो यह तय है कि अंतरात्मा की आवाज शीघ्र जागृत हो जाएगी| ज्यों-ज्यों विश्वास बढ़ेगात्यों -त्यों अंतरात्मा की आवाज जागृत होगी | आज विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक इसे छठी इंद्रिय,और सुपर चेतना के नाम से भी पुकारते हैं।..............................................................हर-हर महादेव 


महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...