Sunday 17 December 2017

न्यास का साधना में महत्त्व

साधना में न्यास ,और उनका महत्व
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तंत्र साधना कायिक -वाचिक और मानसिक क्रियाओं में समन्वित प्रयास से संपन्न होती है |इनमे कायिक कर्म में विभिन्न कर्म सम्मिलित हैं |स्थूल शरीर की पूरी तैयारी होने पर ही सूक्ष्म शरीर तत्त्व ज्ञान की भूमिका प्राप्त करता है और इसी से वाणी और मन भी साधनोपयोगी क्रियाओं की वास्तविकता के निकट पहुँच पाते हैं |इस दृष्टि से आसन-प्राणायाम ,ध्यान ,अर्चन के क्रमों में न्यास का भी बड़ा महत्व है |किसी भी कर्म के लिए जो विनियोग किया जाता है ,उसमे जो मंत्र ,स्तोत्र ,कवच ,आदि प्रयुक्त होते हैं ,उन सभी में न्यास आवश्यक माने गए हैं ,|वैदिक साधना पद्धति का भी यह अभिन्न अंग है |
  " देवो भूत्वा देवं यजेत "-देव बनकर देवता की पूजा करें -इस आदेश का पालन भी न्यासों पर ही आधारित है |यहाँ देव बनने का तात्पर्य है की अपने शरीर में देवताओं को विराजमान करना और ऋषि ,छंद ,देवता ,बीज ,शक्ति ,कीलक और विनियोग के न्यासों द्वारा मंत्रमय देह बनाना |करन्यास ,अंगन्यास ,शरीरावयव न्यास ,आयुध न्यास तथा मात्रिका -मंत्राक्षर आदि के न्यास साधना के अनिवार्य अंग हैं जो निश्चित स्थानों पर निश्चित देव-ऋषियों की स्थापना की भावना को पूर्ण करते हैं |ये न्यास सभी साधनों में सभी सम्प्रदायों में सामान रूप से स्वीकृत हैं |
    न्यास का अर्थ है ,शरीर में देवताओं और उनके अंग देवताओं-शक्तियों की स्थापना करना |साधना क्रम में न्यास विधान को "न्यास विद्या "कहा गया है |महाकाल संहिता में कहा गया है की -इस प्रकार की सिद्धिदा विद्या दूसरी कोई नहीं है ,इसलिए इसका दूसरा नाम सिद्ध विद्या भी है |तांत्रिकों का यह सिद्धांत है की भूत शुद्धि द्वारा शरीर को शुद्ध किया जाता है और न्यासों के द्वारा मंत्रमय देवता को आत्मा में संक्रांत कर तन्मयता बुद्धि प्राप्त की जाती है |
        सामान्यतया सभी न्यास विधि में सूचित स्थानों पर तत्वमुद्रा [अनामिका और अंगूठे के अग्रभागों के सम्मिलित रूप ]से स्पर्श करने का विधान है |किन्तु यह क्रम ,विधि, विशिष्टता के साथ भिन्न भी हो सकते हैं और मुद्राओं की स्थिति बदल भी सकती है |न्यासों की यह विशेषता है की कहीं ये व्यष्टि रूप में होते हैं कहीं समष्टि रूप में |
  जिस प्रकार हम किसी मंत्र का पुरश्चरण करते हैं ,विशेष अनुष्ठान करते हैं और किसी विशेष कामना से उसका प्रयोग करते हैं, उसी प्रकार केवल न्यासों से भी ये विधियाँ की जा सकती हैं |इस दृष्टि से नित्यानुष्ठान और काम्यानुष्ठान भी न्यासों द्वारा होते हैं |ऐहिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के लाभ केवल न्यास साधना से भी प्राप्त किये जा सकते है |

   न्यास द्वारा साधक जब अपने शरीर में देवत्व का आधान कर लेता है ,तो उसमे ईष्टदेव का परिवार सहित निवास होने से उसके लिए प्रायः व्यर्थ की चर्चा करना ,किसी को शाप देना अथवा आशीर्वाद देना एवं किसी को नमस्कार करना वर्जित है |ऐसे बहुत से उदाहरण है की न्यास सिद्ध महापुरुषों द्वारा प्रणाम न करने पर उनसे रुष्ट होकर हठ पूर्वक प्रणाम करवाने से प्रणाम की अपेक्षा रखने वाले का अनिष्ट हुआ है |................................................................हर-हर महादेव 

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