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यह बहुत
चमत्कारी वनौषधि है और भाग्यशाली लोगों को ही प्राप्त होती है |इसकी उत्पत्ति
गिरनार ,हिमालय तथा आबू आदि पर्वतीय क्षेत्रों में होती है |इसके पत्ते कनेर के
पत्तों की भाँती चिकने तथा पृथ्वी की ओर झुके रहते हैं |इन पत्तों के ऊपर काले
तिलों की भांति छींटे से पड़े होते हैं |यह एक बड़ी महत्वपूर्ण वनस्पति है और इसी के
विषय में सभी शास्त्र मौन हैं |इसे प्रत्येक भाषा में तेलियाक्न्द ही कहा जाता है
क्योकि इसके पत्ते पर जैसे तेल चुपड़ा गया हो ,इस भाँती चिकनापन तथा चमक होती है
|इसके तने के पास पृथ्वी लगभग एक मीटर के व्यास तक इस भाँती की होती है जैसे कई
लीटर तेल गिरा दिया गया हो |यह पौधा बड़ा चमत्कारिक ,प्राप्त करने में खतरनाक तथा
देखने में दुर्लभ है |
Tantra
में गोपनीयता अत्यंत आवश्यक होती है शायद इसी कारण इसके विषय
में सभी मौन हैं |तंत्रादी में इस पौद्धे की जड़ का प्रयोग किया जाता है |जब यह
पौधा आपको मिले तो स्वयं उखाड़ने के बदले एक बकरी ,खरगोश या लोमड़ी का प्रयोग करें
|मेरी समझ से बकरी ही उचित होगी |यदि बरसात के दिन हों तो इसके तने में पतली तथा
मजबूत रस्सी बांधकर बकरी के गले में बांधकर उसे हांक दें |बकरी भागेगी तो यह पौधा
भी साथ ही खिंच जाएगा |चूंकि इसकी जमीन मुलायम होती है अतः यह जड़ समेत निकल जाता
है |इस वृक्ष की जड़ में एक सर्प होता है जो की जड़ के निकलते ही जड़ की तरफ भागता है
और क्रोधित होकर जिसे भी पाता है ,उसे लगातार काटता ही रहता है |यही कारण है की यह
वनस्पति प्राप्त करना खतरनाक है |दुर्लभ इसलिए है की यह बड़े भाग्य से ही दर्शित
होती है |दक्षिण भारत तथा मध्य भारत की पर्वत श्रृंखला के दुर्गम क्षेत्रों में भी
तेलियाकंद की उत्पत्ति होती है |इस पौधे से काले रंग का कुछ तरल पदार्थ बहता है
जिसमे की बहुत चिकनाई होती है |यदि भाग्यवश यह आपको मिल जाए या दिख जाए तो सावधानी
से प्राप्त करें |
तेलियाकंद
के अनेकानेक औषधीय प्रयोग प्राप्त होते हैं [जिन्हें हम अपने अगले पोस्टों में
देने का प्रयत्न करेंगे ] किन्तु चूंकि यह दुर्लभ और खतरनाक पौधा है इस कारण
शास्त्रों में इसके न तो विवरण मिलते हैं न ही इसके tantra
प्रयोगों के बारे में लिखा है |इसका प्रयोग परम्परागत गुरु
प्रदत्त tantra प्रयोगों में ही
होता आया है और इसे प्रकाशित करने की मनाही होती है ,जिससे इसे प्राप्त करने के
चक्कर में किसी की जान पर न बन आये |दुसरे इसके प्रयोग भी खतरनाक होते हैं जो
सामान्य रूप से नहीं बताये जाते |अतः हम भी इसे प्रकाशित नहीं कर सकते |पोस्ट का
उद्देश्य दुर्लभ tantra वनस्पतियों
की जानकारी देना मात्र है |इतना अवश्य कहेंगे की तेलियाक्न्द को स्वर्ण के ताबीज
में भरकर कंठ में धारण करने से भूत पिशाचादी का भय नहीं होता |धन की कमी कभी नहीं
होती |देह निरोग रहती है |मन प्रसन्न रहता है
|..........................................................................हर-हर महादेव
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