============================================[[
भाग -2 ]]
ईष्ट देव दो
प्रकार के होते हैं ,एक तो वह जिनको आधार मानकर हम अपनी मुक्ति की कामना रखते हैं
,दुसरे वह जो हमें हमारे जीवन के कष्टों से मुक्ति दिलाते हुए मुक्ति दिला सकें
|यहाँ हम भौतिक कष्टों से मुक्ति ,सुखद जीवन की कामना के साथ मुक्ति भी दे सके ऐसे
ईष्ट पर विचार कर रहे हैं |इसके लिए जन्मकुंडली से मुख्य उपास्य देवता /देवी
अर्थात ईष्ट देव का विचार करते समय जन्म कुंडली के लग्न ,पंचम व् नवंम स्थान से
विचार करें ,उनमे कौन सा ग्रह स्थित है ,कौन से ग्रहों की उनपर दृष्टि है |इनके
स्वामी की क्या स्थिति है |इन सभी योगकारक पक्षों के आधार पर निर्णय करें |जो ग्रह
बली हो उसके आधार पर उपासना करें |अथवा जो शुभ हो किन्तु कमजोर हो उसकी उपासना
करें |कुछ ज्योतिषी यहाँ द्वादश भाव अथवा नवांश का द्वादश भी देखने की सलाह देते
हैं किन्तु हमारा मत है की ऐसा केवल मुक्ति को दृष्टिगत रखते हुए किया जाना चाहिए
|जब आवश्यकता भौतिक परिस्थितियों से पार पाते हुए मुक्ति की भी हो तो लग्न ,पंचम
,नवम ही महत्वपूर्ण होते हैं |नवम ,पंचम और लग्न में से जो सबसे अधिक शुभ अवस्था
में हो भले वह कमजोर हो उसके ही स्वामी के अनुसार ईष्ट का चयन करें ,अथवा लग्न
,पंचम ,नवम की अपेक्षा यदि कोई इनमे बैठा ग्रह अधिक शुभ हो तो उसके अनुसार ईष्ट
चयन करें |यहाँ पूर्ण विश्लेषण तो संभव नहीं और यह कुंडली के गंभीर विश्लेषण के
बाद ही बताया जा सकता है की वास्तव में किसी के ईष्ट कौन होंगे ,पर किस ग्रह के
अनुसार ,अथवा किन ग्रहों की युतियों के अनुसार किस देवता की अराधना अधिक शुभद और
कलयाण कारक होगी यह जरुर यहाँ लिखा जा सकता है ,अतः यहाँ हम ग्रहों के अथवा उनकी
युतियों के आधार पर ईष्ट देवता का सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं ,जिससे इनके चयन में
आपको सहायता मिले |हमने अपने पिछले अंक में सूर्य ग्रह की स्थिति अनुसार मुख्य
उपाय देवता के निर्णय हेतु कुछ सुझाव प्रस्तुत किये |अब इस अंक में चन्द्रमा और
उसके साथ अन्य ग्रहों की स्थिति हो तो किन देवी /देवताओं का चयन किया जा सकता है
,इसे देखने का प्रयत्न करते हैं |
सूर्य -शनि
-राहू -- सूर्य -शनि और राहू की युति हो जाने पर अनेक प्रकार के बदलाव और समस्याएं
जीवन में उत्पन्न हो सकती हैं ,न चाहते हुए भी अनेक कठिनाइयाँ आती हैं अतः
पाशुपताश्त्र ,[तंत्र -मंत्र ,अभिचार ,मारण आदि षट्कर्म से व्यक्ति के पीड़ित होने
की सम्भावना रहती है ] रक्षा के लिए काली ,तारा ,प्रत्यांगिरा ,जातवेद दुर्गा की
उपासना करनी चाहिए और इसी तरह के उग्र देवी -देवता का चयन अपने ईष्ट के रूप में
करना चाहिए | |
सूर्य -गुरु
-राहू -- बगलामुखी ,बागला चामुंडा ,उच्चिष्ठ गणपति ,वीरभद्र ,|केवल बगलामुखी
उपासना से सिद्धि तो मिलेगी परन्तु या तो सिद्धि दूसरों के लिए नष्ट होगी या देवी
नाराज होकर वापस ले लेगी ,इसलिए साथ में चामुंडा ,काली ,उच्चिष्ठ गणपति अथवा
वीरभद्र की भी उपासना करें |शिव साथ में होने आवश्यक हैं |
चन्द्रमा -
लक्ष्मी ,श्री विद्या षोडशी ,यक्षिणी ,वशीकरण आदि प्रयोग |शिव , कामेश्वर उपासना
शुभ |
चन्द्र -मंगल
-- हनुमान ,उच्चिष्ठ चाण्डालिनी ,मातंगी ,शवरी ,नरसिंह ,वन दुर्गा ,भैरवी ,उपासना
करें |
चन्द्र -बुध
-- बागला ,कर्ण पिशाची ,उच्चिष्ठ गणपति ,नरसिंह ,सरस्वती ,वैष्णवी ,वाराही
,हयग्रीव ,दुर्गा उअपासना शुभ रहे |
चन्द्र -गुरु
-- बगलामुखी ,भुवनेश्वरी ,लक्ष्मी ,पित्र ,कुबेर ,ब्राह्मी ,शिव ,कृष्ण ,राम
,दत्तात्रेय ,अजपाजप ,सोऽहं साधना करे |
चन्द्र -शुक्र
-- कृष्ण ,लक्ष्मी ,त्रिपुरसुन्दरी ,भुवनेश्वरी ,शाकम्भरी ,यक्षिणी ,वामन
दत्तात्रेय ,तांत्रिक उपासनाएं |
चन्द्र -शनि
-- दुर्गा ,तंत्र -मन्त्र सिद्धि ,यक्षिणी ,पिशाची ,भैरव ,काली ,तारा उपासना
चन्द्र -राहू
-- भैरवी ,काली ,छिन्नमस्ता ,धूमावती ,वाराही ,उग्रचंडा ,गणेश ,विघ्नेश ,हयग्रीव
,शिव ,मृत्युंजय उपासना |
चन्द्र
-केतु -- हनुमान ,स्वामी कार्तिकेय ,छिन्नमस्ता ,भैरव ,उच्चिष्ठ गणेश ,वासुदेव
,विष्णु ,उपासना ,गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ
|............................................................हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment