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महाशंख
के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी
लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी
महाशंख के कारण करते हैं |लेखक लोग शंख को ही तांत्रिक सामग्री मानकर ग्रन्थ पूर्ण
कर देते हैं |में आपसे यह स्पष्ट करना चाहता हूँ की शंख और महाशंख दोनों अलग हैं
|यह क्या है और इसके tantra प्रयोग
क्या हैं यह हम स्पष्ट करते हैं |शंख को बजाना शुभ होता है |शंख के द्वारा अर्ध्य
दिया जाता है |शंख द्वारा देव स्नान कराया जाता है ,कुछ सेवन किया जाता है ,|इसके
आलावा शंख के tantra में कोई प्रयोग
नहीं होते |दक्षिणावर्ती शंख भी पूजन में ही प्रयुक्त होता है जिसका प्रयोग
लक्ष्मी उपासना में किया जाता है ,इसके अतिरिक्त बहुत प्रयोग tantra में शंख के नहीं हैं ,जबकि महत्त्व बहुत
दिया जाता है ,इसका कारण यही महाशंख है जिसके बारे में हम आगे बताने जा रहे हैं
|वास्तव में शंख और महाशंख में बहुत भेद होता है |
व्यक्ति के
प्राणांत हो जाने पर उसी शव से यह महाशंख प्राप्त होता है ,जबकि शंख तो समुद्र में
जीव का खोल है |इसे हमेशा याद रखना चाहिए |स्त्री और शूद्र से चांडाल की उत्पत्ति
होती है तथा "तज्जायश्चेव चांडाल सर्व मंत्र विवर्जितः " इसी कारण यह
लोग मन्त्रों से हीन होते हैं |"मंत्रहीनेतुस्थ्यादिसर्ववर्ण विभुषिताम"
जो लोग मन्त्रों से हीन होते हैं उन्ही की अस्थियों में सभी वर्ण रहते हैं |
जो साधक
महाशंख की माला से जप करता है वह निःसंदेह अणिमा आदि सिद्धियों को प्राप्त करता है
|यह माला बनानी तथा प्राप्त करनी तो सरल है क्योकि इसमें धन का कोई व्यय नहीं होता
किन्तु खतरनाक अवश्य है |धन के विषय में जितनी सरल है उतनी ही स्वर्ग से भी दुर्लभ
है ,क्योकि स्वर्ग तो आपको प्राप्त हो जाएगा परन्तु इस माला की प्राप्ति किसी
व्यावसायिक व्यक्ति से नहीं होती |यहाँ तक की आज के तथाकथित बड़े बड़े तांत्रिक और
स्वयंभू साधक तक इसके बारे में जानते तक नहीं ,पानी और देखनी तो दूर की बात है
|इसे प्राप्त करने के लिए श्मशान में घूमना पड़ता है अथवा यह माला भाग्यवश ही
गुरुकृपा से प्राप्त होती है |व्यक्ति इसे बना सकता है अगर खुद भी प्रयास करे तो
|इस माला के द्वारा सही मन्त्रों का जप करना चाहिए |मंत्र के सभी दोषों को यह माला
समाप्त कर देती है |मंत्र किसी भाँती के दोष से युक्त हो सकता है परन्तु यह माला
कभी भी दोषी नहीं होती है |इसी कारण
महाशंख सर्वत्र तेषु योजितम अर्थात महाशंख ही सब प्रकार के मन्त्रों से लाभ
प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ है |
पूर्वजन्म के
शुभ तथा सफल कर्मो के प्रयास से यदि कभी किसी को महाशंख की माला प्राप्त हो जाती
है तो वह व्यक्ति तो क्या उसका समस्त परिवार ही समस्त साधनाओं का लाभ प्राप्त कर
लेता है |
क्या है
महाशंख
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महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके
अलावा सभी लोग तंत्र में शंख का प्रयोग इसी महाशंख के कारण करते हैं |लेखक लोग शंख
को ही तांत्रिक सामग्री मानकर ग्रन्थ पूर्ण कर लेते हैं |इसका कारण यह है की लेखक
अच्छे साधक ही मुश्किल से होते हैं उस पर वे उच्च स्तर के शाक्त साधक हों बेहद
मुश्किल है |खुद साधना और मूल तंत्र का अनुभव न होने से यहाँ वहां से सुनी हुई
बातों और पुराने शास्त्रों को तोड़ मरोड़कर कुछ अपनी कल्पनाएँ घुसेड़कर एक किताब लिख
देते हैं और कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं |वास्तविक तंत्र एक तो वैसे भी
गोपनीय होता है जो इन लेखकों को पता ही नहीं चलता उस पर खुद साधना ज्ञान न होना
कोढ़ में खाज हो जाता है और सतही षट्कर्म की किताब सामने होती है |आज तंत्र की
दुर्दशा का यह बहुत बड़ा कारण है और मूल तंत्र के लोप का भी |
सामान्य शंख
को बजाना शुभ होता है |शंख के द्वारा अर्ध्य दिया जाता है |शंख द्वारा कुछ सेवन
किया जाता है |शंख द्वारा देव स्नान भी कराते हैं |इसके अलावा तंत्र में शंख के
कोई काम नहीं होते जबकि शंख का महत्त्व बहुत अधिक है |तो आखिर वह कौन सा शंख है जो
इतना महत्त्व पूर्ण है |तंत्र में दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग लक्ष्मी प्राप्ति
हेतु जरुर किया जाता है ,किन्तु यह पूजन होता है |वास्तव में शंख और महाशंख में
बहुत बड़ा अंतर होता है |
व्यक्ति के
प्राणांत हो जाने पर उसी शव से यह महाशंख प्राप्त होता है जबकि शंख की प्राप्ति
सबको मालूम है |चांडाल लोग मन्त्रों से हीन होते हैं और जो लोग मन्त्रों से हीन
होते हैं उन्ही की अस्थियों में सभी वर्ण होते हैं |हिंदी की शब्दमाला को ही वर्ण
या वर्णमाला कहते हैं |इन्ही वर्णों पर अं की मात्रा लगाने से यह वर्ण बीज वर्ण बन
जाते हैं |अ से लेकर क्ष तक के सभी वर्ण अस्थियों के मध्य सदा विद्यमान रहते हैं
|प्रस्तुत चित्र के अनुसार दर्शाए गएँ अंगों पर चिन्ह के स्थानों की अस्थि लेकर
माला बनाने पर वह महाशंख की माला कहलाती है |
इस माला के
द्वारा जप करने पर समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं |इन स्थानों की अस्थियाँ लेकर
स्थानानुसार ही माला में पिरोया जाता है ||इस माला को सर्प की भाँती बनाया जाता है
अर्थात आगे से मोती होती होती पीछे जाकर पतली हो जाए |स्पष्टतः यह समझ लें की माला
का मूल मोटा और फिर क्रमशः पतला होता चला जाता है |माला को बनाते समय पहले मोती
अस्थि डाली जाती है ,फिर उससे पतली ,फिर और उससे पतली अस्थि पिरोते जाते हैं |जहाँ
जहाँ चित्र में चिन्ह लगे हैं वहां वहां की अस्थि ली जाती है |सर से पैर तक की
अस्थियाँ क्रम से पिरोई जाती हैं |जब माला बन जाती है तो प्रणव की गाँठ लगाईं जाती
है |इसके उपर एक लम्बी अस्थि डालकर पुनः ब्रह्मगाँठ लगाईं जाती है |इसे बनाकर
प्राण प्रतिष्ठा की जाती है |प्राण प्रतिष्ठा का विधान अत्यंत गोपनीय होता है |
इस माला को
गोपनीय रखा जाता है और इस पर जप की शुरुआत मोटी तरफ से करके समापन पतली तरफ किया
जाता है |पुनः मोती तरफ से शुरुआत होती है |इस भाँती जप करने से निश्चित सिद्धि
प्राप्त होती है |
महाशंख
की माला बनाने के लिए स्त्री ,ब्राह्मण तथा मन्त्र दीक्षित व्यक्ति के शव की
अस्थियाँ नहीं ली जाती |शव साधना में भी स्त्री का शरीर उपयोग नहीं किया जाना
चाहिए |महाशंख की माला हेतु बिना दीक्षित ,जो ब्राह्मण न हो उसके शव की अस्थियाँ
उपयुक्त होती हैं इसीलिए शूद्र अथवा चांडाल की अस्थियाँ अधिक उपयुक्त होती हैं
|.................................................................हर-हर महादेव
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