Sunday, 24 December 2017

हत्थाजोड़ी [Hatthajodi ]/दुहथिया के चमत्कार

:::::::हत्थाजोड़ी [दुहथिया ]::एक अद्भुत चमत्कारी जड़ ::::::::
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        यह एक प्रकार की जड़ी [पौधे की जड़ ]है ,परन्तु अपनी अद्भुत रूपाकृति और विचित्र संरचना के कारण किसी पक्षी के पैरों जैसा आभास देता है |यह जड़ अद्भुत चमत्कारों की कारक होती है यदि इसे शुभ मुहूर्त में लाकर विधिवत पूजन -प्राण प्रतिष्ठा करके सिद्ध कर लिया जाए |यह भौतिक जगत की अनेक कठिनाइयों और समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है |
        इस पौधे के पत्ते एक और हरे ,पीठ की और सफ़ेद होते हैं ,जिसमे रोमावली भी होती है ,सामान्यतया इसके फूल गुलाबी होते हैं ,किन्तु कभी कभी नीले फूल भी देखने को मिलते है ,यह झाड़ियों के मध्य उगता है और गीली जमीन इसके लिए उपयुक्त होती है |इसकी जड़ शकरकंद की तरह गोलाई लिए होती है जो श्याम वर्ण की हो जाती है |इसी जड़ की कोई शाखा निकलकर हत्थाजोड़ी का रूप धारण कर लेती है ,जिसकी बंद मुट्ठी के आकार में इसकी अंगुलियाँ कौतूहलकारी होती हैं |दो भुजाये होती हैं जिनमे हथेलियाँ और उनपर अंगुलियाँ होती है ,,ये अंगुलियाँ भीतर की और बंधी मुट्ठी के रूप में दृष्टिगोचर होती हैं |हत्थाजोड़ी विभिन्न तांत्रिक प्रयोगों के लिए विख्यात है |
         हत्थाजोड़ी आकार में भले छोटी हो या बड़ी ,लेकिन वह सुडौल ,सम्पूर्ण ,पुष्ट ,आभायुक्त ,आकर्षक और सुदृढ़ होनी चाहिए |छिन्न ,भग्न ,कटी ,टूटी ,छेद्युक्त ,विकृत नहीं होनी चाहिए |यह पानी में भीगने पर खराब हो जाती है अतः इसे पानी से बचाना चाहिए |चूंकि यह सर्वत्र सुलभ नहीं होता ,अतः इसे निमंत्रित करके निकालकर लाना मुश्किल होता है अतः जब जहाँ सही मिल जाए इसे सुरक्षित रख लिया जाए और शुभ मुहूर्त में इसकी पूजा प्राण प्रतिष्ठा की जाए यही उपयुक्त होता है |
        इसके पूजन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समय रवि-पुष्य योग होता है |इस दिन प्रातः शुद्ध हो शुद्ध स्थान पर बैठकर पहले गीले कपडे से हत्थाजोड़ी को पोछ लें ,फिर किसी पात्र में इसे स्थापित करें ,विधिवत पूजन और प्राण प्रतिष्ठा करे ,सिन्दूर-कपूर-अक्षत-लौंग-इलायची -लाल फूल-लाल चन्दन चढ़ाएं ,आरती करें ,तत्पश्चात सिक्का चढ़ाएं और मंत्र जप करें |जप पूरा होने पर गुगुल-लोबान मिश्रित हवं सामग्री से हवन करें |इसके बाद हत्थाजोड़ी को पूजा स्थान में स्थापित करें |
        हत्थाजोड़ी में माता चामुंडा का वास माना जाता है |इस जड़ी का सर्वाधिक प्रभाव इसकी सम्मोहंनशीलता है | साधक [व्यक्ति] इसे लेकर कही भी जाये उसका विरोध नहीं होगा |सम्बंधित मनुष्य उसके अनुकूल आचरण और व्यवहार करेगा |इस जड़ी के इसी गुण [सम्मोहनशीलता ]के कारण ही बहुत से लोग इसका प्रयोग प्रेम सम्बन्धी मामलों में भी करते हैं ,,लेकिन ऐसे मामलों में इसका सदुपयोग ही करना चाहिए ,दुरुपयोग नहीं ,क्योकि दुरुपयोग का दंड भोगना ही होता है |पति-पत्नी के मामलों में यह अत्यंत उपयोगी भी है और सदुपयोग भी |सम्मोहन और वशीकरण के अतिरिक्त [आकर्षण ]के अतिरिक्त इसका प्रयोग धन वृद्धि ,सुरक्षा ,सौभाग्य वृद्धि ,व्यापार बाधा हटाने आदि में भी किया जाता है और बेहद प्रभावी भी है हर जगह |इसके अतिरिक्त इसके औषधीय प्रयोग भी अनेक हैं |यह कब्ज दूर करने में सहायक  होता है [खाया नहीं जाता ],मूत्रावरोध दूर करता है ,पीलिया दूर करने में सहायक होता है ,प्रसव सुविधाजनक बनता है ,मासिक धर्म से सम्बंधित विकार दूर करता है ,गर्भ निवारक उपाय भी इससे संभव हैं |किन्तु यह तभी प्रभावी होती है जबकि इसे विधिविधान से सिद्ध किया गया हो |यद्यपि यह एक सस्ती किन्तु दुर्लभ वस्तु है पर इसकी सम्पूर्ण विधि पूर्वक प्राण-प्रतिष्ठा इसे अमूल्य बना देती है |

         दुहथिया की साधना से साधक चामुंडा देवी का कृपापात्र हो जाता है |धारक या साधक यात्रा ,विवाद ,प्रतियोगिता ,साक्षात्कार ,द्युतक्रीडा ,और युद्धादी में यह साधक की रक्षा करके उसे विजय प्रदान करती है |भूत-प्रेत आदि वायव्य बाधाओं का उसे कोई भय नहीं रहता ,धन-संपत्ति देने में भी यह बहुत चमत्कारी सिद्ध होती है |इस पर विभिन्न प्रकार के वशीकरण-आकर्षण-सम्मोहन के प्रयोग किये जाते हैं ,विदेश यात्रा की रुकावटें दूर करने की क्रियाएं होती हैं ,घर की सुरक्षा की क्रियाएं होती हैं ,धन-संपत्ति-आकस्मिक लाभ सम्बन्धी क्रियाएं होती हैं ,व्यापार वृद्धि प्रयोग होते हैं ,मुकदमे में विजय ,विरोधियों की पराजय की क्रियाएं होती है ,,इसे जेब में रखा जाये तो सम्मान-सम्मोहंशीलता-प्रभाव बढ़ता है ,सामने के व्यक्ति का वाकस्तम्भन होता है ,आकस्मिक आय के स्रोत बनते हैं |........[हमारे केंद्र से निर्मित चमत्कारी दिव्य गुटिका /डिब्बी का हत्था जोड़ी एक आवश्यक अवयव है ,अतः दिव्य गुटिका रखने वालों को अलग से हत्था जोड़ी रखने की आवश्यकता नहीं होती ]................................................................हर-हर महादेव 

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