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सामान्य जनमानस की यह उक्ति है की गंगाजल अमृत है |क्यों और कैसे |क्यों गंगा जल खराब नहीं होता |अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है।ऐसा इसलिए है की इसमें चमत्कारी गुण छिपे होते हैं जिन्हें अभी तक भी
वैज्ञानिक नहीं खोज पाए पूरी तरह से |जितने लोग ,जितने शोध उतने तरह की बातें |यह
चमत्कार है ,दैवीय कृपा है या औषधीय गुण ,लेकिन गंगाजल काम अमृत की तरह ही करता है
|विभिन्न रोगों को ठीक करने की इसमें अद्भुत क्षमता है |दीर्घायु देने की इसमें
अद्भुत क्षमता है |गंगा को पवित्र माना जाता है ,इनके किस्से कहानियां पुरानों में
मिलती हैं |अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं |इनके अमृत तत्व को वैज्ञानिक प्रमाणित
करते हैं ,धर्म और पौराणिक कथाएं तो अपनी जगह हैं |अतः आज के समय में यह साक्षात्
अमृत तुल्य है |
कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे। इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।
करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक
परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया।
दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है। डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है। गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता जिसे हम अभी नहीं समझ पाए हैं।
डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।
वैज्ञानिक
कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं।
मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?
दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है। डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है।
गंगा माता इसलिए है कि गंगाजल अमृत है, इसलिए उसमें मुर्दे, या शव की राख और अस्थियां विसर्जित नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मोक्ष कर्मो के आधार पर मिलता है। भगवान इतना अन्यायकारी नहीं हो सकता कि किसी लालच या कर्मकांड से कोई गुनाह माफ कर देगा। जैसी करनी वैसी भरनी!
गंगा तव दर्शनार्थ मुक्ति:। अर्थात गंगा के दर्शन मात्र से मुक्ति मिल जाती है।....................................................हर-हर महादेव
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