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.......................सामान्य श्रद्धालु व्यक्ति परम्परागत रूप से पूजा -आराधना करता रहता है ,जो भी देवी-देवता दिखा सर झुका दिया ,पूजा कर ली ,यहाँ तक तो ठीक है ,किन्तु जब बात एक ईष्ट चुनने की और लगातार आराधना-पूजा करने की आती है तब भी इसी लकीर को अपनाया जाता है ,जबकि आवश्यकता की दिशा भिन्न होती है ,कोई देवता मन से चुन लिया ,या सुना की यह तो सर्व शक्तिमान है सब कुछ दे सकता है ,पूजा -आराधना शुरू कर दी ,,यहाँ ध्यान देने योग्य है की कोई भी शक्ति ,कोई भी देवता अपनी प्रकृति और गुण के अनुसार ही परिणाम देता है ,क्योकि उसके स्वरुप की संकल्पना ,उसके मंत्रो का विन्यास ,उसकी पूजा पद्धति एक विशेष गुण और शक्ति पाने के लिए की गयी होती है ,यदि एक ही देवी-या देवता से सारे लाभ मिल जाते तो उनमे इतनी विविधता क्यों होती ,आप काली या दुर्गा से भावुकता -कोमलता की आशा करते है तो आपकी मनोकामना पूरी तरह पूर्ण होने में संदेह है ,,इनकी उत्पत्ति या संकल्पना एक निश्चित कारण से हुई है ,संहार या रक्षा के लिए [यद्यपि इनके उत्पत्ति के निहितार्थ और इनके संहार की प्रकृति भिन्न है जो लौकिक मिथकों से पूर्ण अलग है ],इनके मंत्रो और पूजा पद्धति का प्रकार उसी प्रकार की उर्जा उत्पन्न करने के अनुकूल होता है ,चढाये जाने वाले पदार्थ और हवनीय द्रव्य भी उसी प्रकृति के होते है ,और वैसी ही तरंगे निकलती है ,,ऐसे में आप इनसे कोमलता की उम्मीद करे तो इनके लिए कठिनाई होती है ,ठीक है यह जगत जननी है सब दे सकती है पर वह ज्यादा देगी जो उसके पास ज्यादा है ,,इसी तरह से सबकी अपनी प्रकृति और गुण होते है ,आपको अपने ईष्ट की प्रकृति और गुण जानने चाहिए और उनका चुनाव अपनी आवश्यकता और अपनी प्रकृति के अनुकूल करना चाहिए ,,आप क्रोधी प्रकृति के है और भैरव या दुर्गा की पूजा किये जा रहे है अर्थात अपने में उनके गुणों को बुला रहे है तो आपका क्रोध भी बढ़ जाएगा और वह विनाश का कारन हो सकता है ,आपको तो शिव या गणपति की आराधना करनी चाहिए ........................................................हर-हर महादेव
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