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तंत्र शब्द दो धातुओं
"तन "व् "त्रे "से मिलकर बना है |"तन "धातु का अर्थ विस्तार करना ,फैलाना ,तानना ,उत्पन्न करना ,रूप देना ,ग्रंथादिक लिखना ,रचना करना आदि है |"त्रे "का अर्थ रक्षण करना है |तंत्र का धातु मूलक अर्थ होगा "जिस किसी वस्तु ,विचार या शक्ति का विस्तार किया गया है [या हुआ है ]उसकी रक्षा करना |विस्तार होने या करने मात्र से वस्तृत की रक्षा नहीं होती ,उसके लिए साधना की आवश्यकता है |साधना के क्षेत्र में तंत्र के साथ मंत्र ,यन्त्र ,और योग भी अनिवार्य हो जाते हैं |इसी उद्देश्य को साधारण
भाषा में कह सकते हैं की तंत्र का अर्थ शरीर रक्षा [तन+त्रे ],मंत्र का अर्थ मन की रक्षा [मन-त्रे ] और यन्त्र का अर्थ है साधन ,उपकरण |इस तरह शरीर व् मन [ इन्द्रियां ,मन ,अहंकार ,बुद्धि एवं पञ्च भूतात्मक शरीर ]की रक्षा करने के करण, साधन या उपकरण |आक्रमण होने पर अपनी सुरक्षा अपने अवयवों से करते हैं ,लेकिन हाथ में डंडा या पिस्तौल आ जाने पर हाथों की शक्ति बढ़ जाती है |इसी तरह ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति भी बढ़ जाती है |
संस्कृत-हिंदी कोष के अनुसार तंत्र शब्द के अनेक अर्थ हैं : करघा ,धागा ,कर्मकांड ,पद्धति ,परतंत्र ,स्वतंत्र ,तंत्र संहिता
,ग्रन्थ आदि |अमरकोश के अनुसार सिद्धांत ,उत्तम ,औषध ,जुलाहा ,एक प्रकार
का शास्त्र ,सामग्री ,वेद की एक शाखा आदि |पर तंत्र शब्द का जो अर्थ आज हम लेते हैं वह उस समय में नहीं था जो आज है |अथर्ववेद व् तैतिरीय ब्राह्मण में भी करघे के अर्थ में इस शब्द का उपयोग हुआ है |पाणिनि ,तंत्रक शब्द का अर्थ उस वस्त्र से करते हैं जो अभी अभी करघे से उतारा गया है |महाभाष्य में पतंजलि
ने सर्व तंत्र एवं द्वितंत्र शब्दों का उपयोग किया है |विदित होता है की उनका आशय सभी सिद्धांत या एक सिद्धांत के अध्ययन
से है |कौटिल्य ने अर्थशास्त्र एक अधिकरण
का नाम तंत्र युक्ति दिया है |शंकराचार्य ब्रह्म सूत्र के भाष्य में सांख्य दर्शन को सांख्य तंत्र और पूर्व मीमांशा को प्रथम तंत्र कहते हैं |विष्णु धर्मोत्तर में पुराण को भी तंत्र कहा है |अतः मोटे तौर पर कहा जा सकता है की ६-७ सदी तक तंत्र शब्द का अर्थ उपाय ,साधन, या कोई सिद्धांत का ग्रन्थ था |७ वि सदी से प्रारम्भ होने वाली साधना के एक विशेष प्रकार जिसमे मंत्र ,यन्त्र, न्यास ,चक्र ,मंडल ,मुद्राएँ आदि आदि के साधन से अभीष्ट की प्राप्ति हो को तंत्र कहा जाने लगा |
इस तरह तंत्र की व्यापकता में प्रत्यक्ष रूप से मंत्र ,यन्त्र और योग तो आते ही हैं ,लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से औषधि विज्ञानं ,शिल्प ,संगीत ,कला ,सभ्यता व् संस्कृति भी समां जाते हैं ,क्योकि सभी ज्ञान ,विज्ञानं और कला का उद्देश्य मानवीय क्षमताओं का उस सीमा तक विस्तार करना है जबकि वह "सोअहम "या "अहम् ब्रह्माष्मी "की अनुभूति प्राप्त न कर ले |तांत्रिक साधना के परम उद्देश्य अपने अपने धर्म व् सम्प्रदाय के अनुसार निश्चित है ,लेकिन सभी में एक तत्व समान है जो इहलोक या संसार में रहते हुए भोग की प्राप्ति और उसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को नष्ट करने के लिए मंत्र ,यन्त्र ,मंडल ,न्यास ,मुद्रा ,हवन आदि अनेक प्रकार के कर्मकांडों से सिद्धि की प्राप्ति करना है |सम्पूर्ण तांत्रिक साहित्य जिसमे बौद्ध ,जैन ,शाक्त ,शैव ,वैष्णव ,गाणपत्य ,सौर्य और अन्य धर्म जो भारतीय मूल के नहीं है यथा इस्लाम ,मसीह सभी में सांसारिक जीवन की बाधाओं को दूर करने और वांछित सफलता प्राप्त करने के लिए तांत्रि मार्गों का निर्देश किया गया है |इसे हम जीवन मुक्ति की साधना कह सकते हैं |......................................................हर-हर महादेव
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