Thursday 27 February 2020

बिना सलाह तांत्रिक उपाय न करें

बिना सोचे -समझे तांत्रिक उपाय खुद न करें
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           तंत्र में सभी प्रकार की जीवन से जुडी समस्याओं का समाधान है ,किन्तु अधिकतर विद्वान् अपनी पुस्तकों में एवं फेसबुक जैसे माध्यमो पर सम्पूर्ण प्रक्रिया नहीं देते हैं ,हम भी ऐसा ही करते हैं ,जबकि इनके पीछे के सिद्धांत -कार्यप्रणाली -वस्तुएं-स्थान-समय आदि अलग-अलग दे दी जाती हैं ,ऐसा करने के अपने कारण होते हैं ,सिद्धांत -कार्यप्रणाली देने का कारण होता है की लोग इसे समझ सकें ,जान सकें ,वैज्ञानिकता को देख सकें ,भ्रांतियां दूर हों जबकि सम्पूर्ण प्रक्रिया ,मंत्र आदि न देने का मूल कारण होता है की इनका दुरुपयोग न होने पाए अथवा इनसे हानि न होने पाए ,
            तंत्र दोधारी तलवार होता है जो चूक होने पर खुद का भी नुक्सान कर सकता है ,इसीतरह हर प्रक्रिया के सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों होते हैं ,जैसे वशीकरण से किसी बिगड़े को वश में कर अपने अनुकूल कर पारिवारिक शांति भी लाइ जा सकती है और किसी दुसरे को वश में कर गलत कार्य भी किया जा सकता है ,,इसीतरह उच्चाटन से किसी को किसी से दूर कर घर में शांति भी लाइ जा सकती है ,गलत होने से रोका भी जा सकता है ,ग्रह बाधा -रोग-वायव्य बाधा दूर भी किया जा सकता है और किसी का घर भी तोड़ा जा सकता है ,कहीं से हटाया भी जा सकता है ,,विद्वेषण से दुश्मनों में फूट भी डाली जा सकती है और किन्ही एक ही परिवार में दुश्मनी भी करवाई जा सकती है ,,इस प्रकार तंत्र के दुरुपयोग भी हो सकते है, इस लिए भी जब तक साधक या जानकार संपर्क करने वाले व्यक्ति को जान समझ नहीं लेता सही प्रक्रिया ,मंत्र आदि नहीं बताता ,न खुद करता है ,यद्यपि यहाँ अपवाद भी कुछ तांत्रिक होते हैं जो कुछ पैसों के लालच में किसी का बिना सोचे समझे अहित भी कर देते हैं ,,,कभी कभी ऐसी भी स्थितियां आती हैं की कोई आकर झूठ बोलता है की किसी के द्वारा उसे परेशानी है और जानकार उसे सही मान प्रक्रिया बता देता है और वह व्यक्ति उसका दुरुपयोग कर देता है ,,,पर सामान्यतया जानकार सोच समझकर ही निर्णय करता है और बिना जाने पूर्ण प्रक्रिया से अवगत नहीं कराता किसी को ,,
           किसी को कोई समस्या अगर हो तो उसे कहीं से देखकर कोई उपाय करने की बजाय किसी योग्य जानकार से संपर्क करना चाहिए और व्यक्तिगत रूप से अपनी समस्या व्यक्त कर उपाय पूछना चाहिए या करवाना चाहिए ,क्योकि अक्सर यहाँ वहां लिखे उपाय अधूरे हो सकते हैं ,मंत्र गलत हो सकते हैं ,सामग्री अशुद्ध हो सकती है ,प्रक्रिया ऊपर नीचे हो सकती है ,अधूरी अथवा अशुद्ध लिखी किसी पुस्तक का अंश लिखा हो सकता है ,जिससे लाभ की बजाय हानि भी हो सकती है ,,, यही हाल साधना का हो सकता है ,आई हुई ऊर्जा न सँभलने के कारण अनियंत्रित हो नुकसान भी पंहुचा सकती है ,फेसबुक जैसे माध्यमों पर तंत्र-ज्योतिष-गुप्त विद्याओं-अध्यात्म-योग आदि के पोस्टों की बाढ़ आई हुई है जिनमे से अधिकतर पुस्तकों से लेकर लिखी गयी होती हैं ,इनमे कितने अनुभूत है नहीं कहा जा सकता ,कितनी प्रक्रिया ,मंत्र आदि सही हैं नहीं कहा जा सकता है ,अतः हर स्तर पर सावधानी आवश्यक होती है ,,,
                सामान्यतया समझदार और योग्य साधक जिसने खुद क्रियाएं की हों वह सम्पूर्ण प्रक्रिया नहीं देता वह उनके सिद्धांत -कार्यप्रणाली -वैज्ञानिकता आदि व्यक्त कर देता है पर मूल क्रिया व्यक्त नहीं करता ,क्योकि वह उनके महत्व को समझता है ,अतः जब भी समस्या हो तो खूब सोच समझकर ,विचार विमर्श करके ,जानकार व्यक्ति के परामर्श से ही कोई क्रिया करनी अथवा करवानी चाहिए ,,तंत्र में सभी समस्याओं के समाधान हैं ,इसकी शक्ति अद्वितीय -अलौकिक है क्योकि इसकी शक्तिया ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्तियां हैं ,पर यह हर कदम पर सावधानी भी मांगता है ,अधिक लाभदायक का उल्टा अधिक नुकसानदायक भी होता है ,,,यह ऊर्जा उत्पन्न कर उसे नियंत्रित कर लाभ हेतु उपयोग करने का मार्ग है ,नियंत्रित करना नहीं आया और उर्जा उत्पन्न कर लिया तो क्षति भी संभव है ,नियंत्रित करके दिशा दे दी तो निर्माण भी संभव है ,हर क्रिया की प्रतिक्रया भी होती है अतः क्रिया के पहले प्रतिक्रया पर भी ध्यान होना चाहिए ,,,किसी द्वारा कोई क्रिया करवाई या खुद की जाए तो यह भी हमेशा ध्यान होना चाहिए की यदि यह क्रिया वापस लौट आई तो क्या हम उसे संभाल पायेंगे ,,कभी ऐसा भी होता है की कोई क्रिया आपने की या करवाई किसी तांत्रिक से वह क्रिया वहां से वापस लौटा दी गयी जहाँ के लिए क्रिया की गयी थी ,उस समय वापस आई क्रिया की शक्ति दोगुनी होती है ,ऐसे में अगर क्रिया करने वाले तांत्रिक के पास शक्ति है तो वह तो नुक्सान नहीं उठाएगा ,किन्तु आपका नुक्सान हो सकता है ,अतः जब भी कुछ करें बनाने के लिए, शांति -संमृद्धि के लिए करें ,किसी को परेशां करने के लिए नहीं ,और खुद कुछ करने की अपेक्षा योग्य जानकार की मदद ले ,यदि आप तंत्र को ठीक से नहीं जानते हैं तो ......................................................हर-हर महादेव 


आपमें अलौकिक शक्ति है

अलौकिक शक्ति और क्षमता हर मनुष्य में है
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वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि मनुष्य का शरीर जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी तथा आकाश इन पांच तत्वों से निर्मित होता है। और इसमे कोई संदेह नही कि जो चीज जिस तत्व से बनी हो उसमे उस तत्व के सारे गुण समाहित होते हैं। इस लिए पंचतत्वों से निर्मित मनुष्यों के शरीर में जल की शीतलता, वायु का तीब्र वेग, अग्नि का तेज, पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण, ओर आकाश की विशालता समाहित होता है। इस तरह मनुष्य अनंत शक्तियों का स्वामी है तथा इस स्थुल शरीर के अंदर अलौकिक शक्तियाँ छुपी हुई है। परंतु हमारे अज्ञानता के कारण हमारे अंदर की शक्तियाँ सुप्तावस्था में पड़ी हुई है। जिसे कोई भी व्यक्ति कुछ प्रयासों के द्वारा अपने अन्दर सोई हुई शक्तियों को जगाकर अनंत शक्तियों का स्वामी बन सकता है।
 मनुष्य के अन्दर की सोई हुई इसी शक्ति को ही कुण्डलिनी कहा गया है। कुण्डलिनी मनुष्य के शरीर की अलौकिक संरचना है, जिसके अंदर ब्रह्मंड की समस्त शक्तियाँ समाहित है। अगर सही शब्दों मे कहा जाय तो मनुष्य के अंदर ही सारा ब्रह्मंड समाया हुआ है। आज से हजारों साल पहले गुरू शिष्य परंपरा के अनुसार गुरू अपने शिष्यों की कुण्डलिनी शक्ति को योगाभ्यास तथा शक्तिपात के माध्यम से जागृत किया करते थे। जीसके बाद शिष्य अलौकिक शक्तियों का स्वामी बन कर समाज कल्याण जथा जनहित में इन शक्तियों का सद्उपयोग किया करते थे। कुण्डलिनी जागरण के पश्चात मनुष्य के अन्दर अनेको अलौकिक एवं चमत्कारिक शक्तियों का प्रार्दुभाव होनेे लगता है और मनुष्य मनुष्यत्व से देवत्व की ओर अग्रसर होने लगता है। कुण्डलिनी जागरण के बाद अनेकों चमत्कारिक घटनायें घटने लगती हैं। किसी भी व्यक्ति को देखते हि उसका भुत, भविष्य, वर्तमान साधक के सामने स्पस्ट रूप से दिखाई देने लगता है। साथ ही सामने वाले व्यक्ति की मन की बातें भी स्पष्ट हो जाती हैं। कुण्डलिनी जागृत साधक हजारों कि.मी. दुर घट रही घटनााओं को भी स्पष्ट रूप से देख सकता है और दुर बैठे हुए व्यक्ति की मन की बातें भी पढ़ सकता है। प्राचिन ग्रंथों मे ऐसे अनेकों उल्लेख मिलते है। यह सब कुण्डलिनी जागरण की शक्ति से ही संभव है। कुण्डलिनी जागरण के पश्चात कठिन से कठिन तथा असंभव से असंभव कार्य को भी संभव किया जा सकता है।
 कुण्डलिनी क्या है मनुष्य के अन्दर छिपी हुई अलौकिक शक्ति को कुण्डलिनी कहा गया है। कुण्डलिनी वह दिव्य शक्ति है जिससे जगत मे जीव की श्रृष्टि होती है। कुण्डलिनी सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर मेरूदण्ड के सबसे निचले भाग में मुलाधार चक्र में सुषुप्त अवस्था में पड़ी हुई है। मुलाधार में सुषुप्त पड़ी हुई कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर सुषुम्ना में प्रवेश करती है तब यह शक्ति अपने स्पर्श से स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, तथा आज्ञा चक्र को जाग्रत करते हुए मस्तिष्क में स्थीत सहस्त्रार चक्र मंे पहंुच कर पुर्णंता प्रदान करती है इसी क्रिया को पुर्ण कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है। जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है मुलाधार चक्र में स्पंदन होने लगती है उस समय ऐसा प्रतित होता है जैसे विद्युत की तरंगे रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ घुमते हुए उपर की ओर बढ़ रहा है। साधकांे के लिए यह एक अनोखा अनुभव होता है। जब मुलाधार से कुण्डलिनी जाग्रत होती है तब साधक को अनेको प्रकार के अलौकिक अनुभव स्वतः होने लगते हैं। जैसे अनेकों प्रकार के दृष्य दिखाई देना अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देना, शरीर मे विद्युत के झटके आना, एक ही स्थान पर फुदकना, इत्यादि अनेकों प्रकार की हरकतें शरीर मंे होने लगती है। कई बार साधक को गुरू अथवा इष्ट के दर्शन भी होते हैं।
 कुण्डलिनी शक्ति को जगाने के लिए प्रचिनतम् ग्रंथों मे अनेकों प्रकार की पद्धतियों का उल्लेख मिलता है। जिसमें हटयोग ध्यानयोग, राजयोग, मत्रंयोग तथा शक्तिपात आदि के द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने के अनेकांे प्रयोग मिलते हैं।tantra में इसके जागरण की अनेक भिन्न और विशिष्ट विधियाँ मिलती हैं जो वर्षों की साधना को महीनो में सफल कर सकती हैं पर जितनी शीघ्रता होती है खतरे भी उतने ही अधिक होते हैं और पतन का भी भय होता है |  मात्र भस्रीका प्राणायाम के द्वारा भी साधक कुछ महिनों के अभ्यास के बाद कुण्डलिनी जागरण की क्रिया में पुर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। जब मनुष्य की कुण्डलीनी जाग्रत होती है तब वह उपर की ओर उठने लगती है तथा सभी चक्रों का भेदन करते हुए सहस्त्रार चक्र तक पंहुचने के लिए बेताब होने लगती है। तब मनुष्य का मन संसारिक काम वासना से विरक्त होने लगता है और परम आनंद की अनुभुति होने लगती है। और मनुष्य के अंदर छुपे हुए रहस्य उजागर होने लगते हैं। मनुष्यों के भीतर छुपे हुए असिम और अलौकिक शक्तियों को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। आज कल पश्चिमी वैज्ञानिकों के द्वारा शरीर में छुपे हुए रहस्यों को जानने के लिए अनेकों शोध किये जा रहे हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस तरह पृथ्वी के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों मे अपार आश्चर्य जनक शक्तियों का भंडार है ठीक उसी प्रकार मनुष्य के मुलाधार तथा सहस्त्रार चक्रों मे आश्चर्यजनक शक्तियों का भंडार है।........................................................................हर-हर महादेव

Power of subconcious mind[अवचेतन मन की शक्ति ]

अवचेतन मन की शक्ति [[ Power of subconcious mind ]]
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 यदि आप अपने जीवन में कुछ चाहते हैं और आपने मन में इसकी साकार कल्पना नहीं की है तो वह चीज आपको नहीं मिल सकती। सकारात्मक विचारों के बार-बार दोहराने से यह कल्पना सहज ही दिखाई देने लगती है। यदि आपको कोई चीज चाहिए तो इसके लिए क्या करना होगा? सबसे पहले तो अपने मन में इसका सृजन करना होगा, तभी वह वास्तविक जीवन में प्रकट हो सकती है। विचारों का यह नियम कभी असफल नहीं होता।
विचारों के इस नियम के साथ यदि अवचेतन मन की शक्ति को जोड़ दिया जाए तो यह नियम आपके जीवन में चमत्कार कर सकता है। अवचेतन मन की कुछ शक्तियां हैं। रात को अगर आप यह सोचकर सोएं कि सुबह छह बजे उठना है तो अवचेतन मन की अलार्म घड़ी आपको जगा देती है। आपकी आंख छह बजे के करीब खुल जाती है। कई बार तो ठीक छह बजे ही आप जाग जाते हैं। आपने कभी सोचा कि ऐसा क्यों होता है? कभी नहीं ना। यह आपके अवचेतन मन का काम है। आप उसे जो आदेश देते हैं, वह उसे पूरा कर देता है, हालांकि आपको खुद यह पता नहीं रहता कि आपने उसे आदेश दे दिया है।
पिछली सदी में एक बड़ा रहस्य उद्घाटित हुआ है, वह यह है कि हमारा अवचेतन मन मजाक को नहीं समझ पाता। यह हर बात को सच मान लेता है। मान लीजिए, आपसे कोई काम गड़बड़ हो या और आपने खुद से कहा, मैं इतना मूर्ख कैसे हो सकता हूं? आप यह बात नहीं जानते, लेकिन आपने अपने अवचेतन मन को यह बताकर अनर्थ कर दिया है। इसके बाद होगा यह कि अवचेतन मन आपके जीवन की सारी घटनाओं की छानबीन करके, आपके सामने तस्वीरें पेश करके यह साबित कर देगा कि आप सचमुच मूर्ख हैं। इसके बाद अवचेतन मन आपके माध्यम से ऐसे काम ज्यादा करवाएगा, जिनसे आप मूर्ख साबित हों। यही अवचेतन मन की शक्ति है, यही विचार और कल्पना की शक्ति है।
इस्तेमाल कैसे करें-
----------------------- कल्पना शक्ति का सही उपयोग मानसिक चित्रों के रूप में किया जा सकता है। मान लें, आप कोई चीज चाहते हैं, जैसे मकान या अच्छी सी नौकरी। इस तरह अंतिम परिणाम तय हो गया। इस तक पहुंचने का एक तरीका तो यह मानसिक चित्र देखना है कि आप मंच पर खड़े होकर घोषणा कर रहे हैं कि मैंने ये-ये रचनात्मक कल्पना की थी, जो साकार हो गई। दूसरा तरीका यह मानसिक चित्र देखना कि आप वाकई उसी घर में रह रहे हैं और अपने दोस्त को बता रहे हैं कि यह पूरा घर मेरे नाम है। इस पर कोई लोन नहीं है। मैंने इसे खुद अपने नाम पर खरीदा है। जब आप यह करेंगे तो कुछ समय उपरांत आप हैरान रह जाएंगे कि आपको अपनी मनचाही चीज कितनी आसानी से मिल गई। आपको अपना मनचाहा घर या अच्छी नौकरी कल्पना के उपयोग से मिली है। वैसे आपका अंतिम परिणाम चाहे जो हो, कल्पना उसे साकार करने में आपकी मदद कर सकती है। यदि आपको डॉक्टर बनना है तो मानसिक चित्र देखें कि आपका क्लीनिक है, जिसकी दीवार पर आपका सर्टिफिकेट लगा है। और हां, तारीख का ध्यान रखें। अगर मानसिक चित्र में साल यानी सन का ध्यान नहीं रखा तो उस चित्र के साकार होने में देर लग सकती है। चित्र देखते समय अगर सारी बातें ध्यान में न रखी जाएं तो गड़़बड़ की आशंका रहती है। मान लें, किसी को अमीर बनना है और वह यह मानसिक चित्र देखने लगता है कि वह नोट गिन रहा है। वह इस चित्र को लगातार देखता है। आगे चलकर होता यह है कि वह बैंक में कैशियर बन जाता है। इस स्थिति में मानसिक चित्रों की शक्ति ने काम तो किया, लेकिन उसे अपना मनचाहा परिणाम नहीं मिला। दोष कल्पना का नहीं था, दोष तो उसके मानसिक चित्र का था। उसका मानसिक चित्र स्पष्ट नहीं था। वह जो चाहता था, उसका मतलब उसने अवचेतन मन को स्पष्टता से नहीं बताया। उसने यह नहीं बताया कि मैं अमीर बनना चाहता हूं और जो नोट मैं गिन रहा हूं, वह मेरा पैसा होना चाहिए। तो महत्वपूर्ण बात यह है कि आप पूरी स्पष्टता से अवचेतन मन को बताएं कि आप क्या चाहते हैं।
इसी तरह का एक और उदाहरण देखें। एक इंसान ने मानसिक चित्र में देखा कि वह मरीजों का इलाज कर रहा है, उनका ब्लड प्रेशर ले रहा है, मरहम-पट्टी कर रहा है, सुई लगा रहा है। उसने बार-बार जब इस मानसिक चित्र को देखा तो कल्पना साकार हो गई, वह कंपाउंडर बन गया। इस तरह उसका यह मानसिक चित्र साकार हो गया। वह बनना तो चाहता था डॉक्टर, लेकिन कंपाउंडर बन गया। एक बार फिर, गलत मानसिक चित्र देखने की वजह से उसे अनचाहे परिणाम मिले। उसने अपने अंतिम परिणाम को पूरी स्पष्टता से नहीं बताया, इसीलिए अनर्थ हो गया। इसी तरह एक इंसान ने यह चित्र देखा कि वह डॉक्टर बन रहा है। चित्र सही था, लेकिन उसमें समय अवधि का उल्लेख नहीं था। परिणाम यह हुआ कि उसे डॉक्टर बनने में कई साल लग गए। अवचेतन मन को सही अवधि बताना बहुत महत्वपूर्ण है। आप अमुक परिणाम कब तक चाहते हैं, इसकी अवधि निर्धारित करना भी जरूरी है।
मानसिक चित्र देखते समय आपको उस भावना को भी महसूस करना होगा, जो अंतिम परिणाम पाने पर आपको मिलेगी। अगर आप अपने सपनों का मकान खरीद लें या आपको मनचाही नौकरी मिल जाए तो आप कितने खुश होंगे? बस उसी खुशी को कल्पना-चित्र में महसूस करें। जिस खुशी को आप पाना चाहते हैं, जब आप उस खुशी को महसूस करते हैं तो आप चुंबक बन जाते हैं और उस अंतिम परिणाम को ज्यादा तेजी से अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह बात बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। वे कल्पना तो करते हैं, चित्र तो देखते हैं, लेकिन आनंद की भावना को महसूस नहीं करते। वे यह भूल जाते हैं कि भावना ही तो वह ट्रिगर है, जिससे अंतिम परिणाम साकार होना शुरू होता है।
मानसिक चित्रों की शक्ति का उपयोग दूसरों के लिए भी किया जा सकता है। वस्तुत: करना ही चाहिए। अपने लिए कल्पना करते समय मन में बहुत से नकारात्मक विचार आते हैं। डर लगता है कि होगा कि नहीं होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि आप अपनी समस्याओं से बहुत जुड़े होते हैं। लेकिन जब आप यही काम दूसरों के लिए करते हैं, तो इसे आप अलगाव से करते हैं। तब आपके मन में ज्यादा नकारात्मक विचार नहीं आते। यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है। इसलिए दूसरों के लिए कल्पना करें और उसमें वे चीजें देखें, जो आपको चाहिए। यदि आप नौकरी चाहते हैं, तो कल्पना करें कि आपके बेरोजगार दोस्त 
को नौकरी मिल गई है। ऐसा करने पर आप निमित्त बन जाएंगे। हां, यह बात जरूर ध्यान रखें कि आपको अंतिम परिणाम ही तय करना है, तरीका तय नहीं करना है। आपको सिर्फ लक्ष्य तय करना है, उस लक्ष्य तक कैसे पहुंचें, यह तय नहीं करना है। यह तय मत करो कि मुझे इसी कंपनी में नौकरी मिलनी चाहिए। ऐसे ही मिलनी चाहिए। फलां इंसान इस कार्य में मुझे मदद करेगा, तभी नौकरी मिलेगी। कुदरत आपकी इच्छा पूरी करने के लिए सबसे अच्छा, सरल, सुगम और सीधा रास्ता खोज लेगी। आपको तो इसे बस इतना भर बताना है कि आप अंतिम परिणाम क्या चाहते हैं। 
यदि आप अपने अवचेतन मन से कहते हैं कि मेरी मदद करो, मुझे एक अच्छी नौकरी की सख्त जरूरत है तो इतने भर से ही आपके अवचेतन मन तक संदेश पहुंच जाता है कि आपको क्या चाहिए। यह महत्वपूर्ण है। केवल मंजिल तय करें, रास्ता तय न करें। केवल लक्ष्य तय करें, तरीका तय न करें। वह सब अवचेतन मन पर छोड़ दें।.......................................................................हर-हर महादेव

असंभव को भूल जाओ -सफल हो जाओगे

असंभव कुछ भी नहीं ::सफलता के सूत्र 
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कहा जाता है की दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं ,अगर मजबूत आत्मबल हो तो |यह भाषा अक्सर कर्म में विश्वास करने वाले कर्मयोगी करते है ,जबकि भाग्यवादी अक्सर भाग्य पर भरोसा करते हैं |भाग्य होता है और बेहद महत्वपूर्ण भी होता है ,किन्तु वह भी कर्म से प्रभावित होता है |राज कुल में जन्मा व्यक्ति भाग्य से ऐसे कुल में जन्मता है किन्तु फिर भी अपने कर्म से पतन को प्राप्त हो जाता है ,जबकि भिखारी के यहाँ पैदा होने वाला थोड़े से अवसर पाते ही अपने कर्म के बल पर बेहद शक्तिशाली और वैभव संपन्न हो जाता है |कहने का तात्पर्य है की भाग्य जन्म और उसके कुछ समय तक तो बहुत प्रभावी हो सकता है किन्तु कर्म का समय शुरू होते ही वह कर्म से प्रभावित होने लगता है |
हमारा विषय धर्म और अध्यात्म ,साधना और शक्ति से सम्बंधित है अतः हम इस विषय पर ही केन्द्रित रहते हैं |अक्सर हम सुनते हैं की लोग कहते मिलते हैं की हमने इतने समय तक ,इतनी देर तक पूजा की ,साधना की ,इन-इन मंदिरों में गए ,यहाँ-यहाँ मत्था टेका पर कुछ नहीं हुआ |भगवान् ने नहीं सुना |भगवान् भी गरीबों-दुखियों की नहीं सुनता ,आदि आदि अनेक बातें सुनने को मिल जाती हैं |किन्तु यह सब सत्य नहीं हैं |भगवान् सबकी सुनता है ,पर उसे सुनाने के लिए अंतर्मन की आवाज चाहिए |मंदिरों -मस्जिदों में सर झुकाने मात्र से वह नहीं सुन लेगा |ऐसा तो अक्सर उसकी शक्ति के डर से उत्पन्न आस्था और अपने स्वार्थ की भावना से उत्पन्न कामना के कारण ही अधिकतर लोग करते है |कितने लोग होते हैं जो बिना भय के अथवा बिना स्वार्थ के सर झुकाते हैं |इसीतरह पूजा-आराधना के समय सम्बंधित शक्ति या देवता पर मन एकाग्र नहीं है तो उस तक आपकी आवाज नहीं पहुचती ,क्योकि वह आपके मन से सुनता है मुह से नहीं ,उस तक आपकी भावना पहुचती है आवाज नहीं |आवाज की अपनी शक्ति होती है पर बिना भावना के वह भी बिखर जाती है |भावना -श्रद्धा के साथ मन की एकाग्रता पर ही मन्त्रों की ऊर्जा भी ईष्ट तक पहुचती है ,केवल मंत्र अथवा वाणी की आवाज तो वातावरण में बिखर कर रह जाती है |
व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं की ,यदि कोई कहता है की पूजा-पाठ, साधना-अनुष्ठान करने पर भी कुछ नहीं हुआ ,तो निश्चित रूप से कमी खुद करने वाले के अन्दर है |यद्यपि हम बहुत बड़े साधक नहीं ,साधू नहीं ,तपस्वी या सन्यासी नहीं ,किन्तु अपने अनुभवों से पाया है की ईश्वर जरुर सुनता है |आप में वह शक्ति और आत्मबल चाहिए की आप उसे सूना सकें |हम सामान्य गृहस्थ होने के बाद भी कहने की स्थिति में हैं की ईश्वर में आपकी श्रद्धा, उसमे विश्वास, सही तकनीक का ज्ञान ,पूर्ण समर्पण और खुद का आत्मबल है तो उसकी ऊर्जा अवश्य आकर्षित होती है और वह आपकी सुनता भी है |दुसरे की तो बात ही क्या ,पर हमने खुद के यहाँ पाया है की बच्चों की भी पूर्ण श्रद्धा से की गयी कामना पूर्ण होती है |खुद के यहाँ स्थापित सामान्य सी भगवती के चित्र के सामने आज तक परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा व्यक्त की गयी कोई कामना[ अगर वह सम्बंधित शक्ति के अंतर्गत आती है | असफल नहीं हुई |ऐसा शायद उस स्थान पर साधना होने और स्थान के भगवती की ऊर्जा से संतृप्त होने के कारण होता है अथवा सम्बंधित सदस्य की अगाध श्रद्धा के कारण |पर पूरा होता है |कभी कभी तो तक्षण परिणाम मिलता है | यह जरुर पाया है की अगर शक्ति की प्रकृति से भिन्न आपकी कामना है तो वह पूर्ण होने में संदेह हो जाता है |काली से अगर आप रुपये-पैसे की कामना करते हैं तो संदेह हो जायेगा उसके पुरे होने में |अब तक खुद कभी नहीं पाया की जिस उद्देश्य से अनुष्ठान किया हो वह पूरा न हुआ हो |इसलिए आज यह कहने की स्थिति पाते हैं की ईश्वरीय ऊर्जा की प्राप्ति और मनोकामना पूर्ती असंभव नहीं |जरुरत आपके सही प्रयास की है |किसी को कहते सुना की इतनी देर ,इतने समय से पूजा किया किन्तु कुछ समझ में नहीं आया |तभी इस पोस्ट को लिखने की प्रेरणा मिली ,की ऐसा नहीं है भाई |कमी हममे हो सकती है |खुद की और तो देखें |
यहाँ एक समस्या होती है |आप पूजा दुर्गा-काली की कर रहे हैं और कामना धन -रुपये- प्रेम आदि की कर रहे हैं |ऐसे में आपकी कामना पूरी तरह पूर्ण हो पाएगी इसमें संदेह हो सकता है |यद्यपि यह शक्तियां जगत्जननी और सर्वोच्च शक्तियां हैं ,पर फिर भी इनकी एक निश्चित आकृति और गुण बनाये गए हैं |इन्ही गुणों के अनुसार मंत्र रचना और पूजा-पद्धति बनाई गयी है |इस प्रकार एक निश्चित प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है और उसी तरह की ऊर्जा का आकर्षण होता है |ऐसे में जब आप उग्र शक्ति से कोमलता अथवा रुपये आदि की कामना करते हैं तो उसे अपने प्रकृति के विरुद्ध कार्य करने में दिक्कत आती है और उसके लिए मुश्किल होती है की आपकी कामना की दिशा में वह कार्य करे ,यद्यपि वह उर्जा लगती जरुर है उस दिशा में पर प्रकृति भिन्न होने से अपेक्षित परिणाम मुश्किल होता है |ऐसे कार्यों के लिए उसी शक्ति का वह रूप जो ऐसे कार्यों के लिए ही बना है [लक्ष्मी-कमला-मातंगी] अधिक उपयुक्त होता है |किन्तु हम इसका ध्यान नहीं रखते |हनुमान जी से कन्या और प्रेम की कामना करते हैं जो उनकी प्रकृति से ही भिन्न है |अगर हम शक्ति [ईश्वर] की प्रकृति के अनुरूप अपनी कामना रखकर साधना-पूजा-अनुष्ठान करें और आस्था अट्टू रखकर लगे रहें तो सफलता जरुर मिलती है |
अगर आप चाह ही लें की ईश्वरीय ऊर्जा आनी ही चाहिए ,ईश्वर को अपनी भावना-कामना सुनानी है |ईश्वर या शक्ति को अपने तक बुलाना है ,उससे अपने लिए सहायता लेनी ही है ,तो यह असंभव नहीं है |सबकुछ संभव है |जरुरत खुद को उठाकर सम्बंधित लक्ष्य को अपने ही अवचेतन तक ले जाने की जरुरत है |जब आप गहन विश्वास से ,पूर्ण आत्मबल से ,पूर्ण आस्था से ,उपयुक्त तकनीक को जानकार लक्ष्य की दिशा में प्रयास करते हैं तो आपके प्रयास अर्थात अवचेतन ,चेतन मन से ,मानसिक शक्ति से ,श्रद्धा ,विश्वास -आस्था से उत्पन्न बल से ऐसी तरंगे निकलती हैं जो प्रकृति में सन्देश प्रसारित करती हैं और प्राकृतिक ऊर्जा ,प्रकृति की शक्तियां ,आप द्वारा उपासित शक्ति आपकी ओर आकर्षित होने लगती हैं |धीरे धीरे यह सब ऊर्जा या शक्ति सम्मिलित हो आपके लक्ष्यपूर्ति में सहयोग करने लगती हैं ,अनुकूल वातावरण बनाने लगती हैं ,आपकी मानसिक उर्जा से तालमेल बनाने वाली ऊर्जा से आपके आसपास का वातावरण और आपके शरीर का रासायनिक संचालन संतृप्त होने लगता है |इस प्रकार वातावरण भी सहायक होने लगता है और आपका व्यक्तित्व ,कार्यशैली भी परिवर्तित और अधिक लक्ष्य केन्द्रित होने लगता है जिससे आपका लक्ष्य आपको प्राप्त होता है |अगर संसार में कोई समस्या है तो उसका हल भी प्रकृति पहले से निर्मित रखती है |आपके प्रयास से वह हल आपको मिल जाता है ,अधूरे प्रयास से नही मिलता ,जानकारी के अभाव में नहीं मिलता ,,इसका यह मतलब नहीं की हल नही है |मतलब यह होता है की आपका प्रयास पूर्ण नहीं है |इसलिए ही कहा गया है ,व्यक्ति चाह ले तो असंभव कुछ भी नहीं |[[[व्यक्तिगत विचार - ]]]......................................................................हर-हर महादेव

समस्या का कारण अपने में हो सकता है

क्या आप जानते हैं अपनी समस्या का कारण
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एक व्यक्ति दुखी क्यों होता है जबकि दूसरा सुखी और खुश क्यों होता है |एक व्यक्ति सुखी और समृद्ध क्यों होता है ,जबकि दूसरा दुखी और गरीब क्यों होता है ?एक व्यक्ति भयभीत और तनावग्रस्त क्यों होता है ?जबकि दूसरा आस्थावान और आत्मविश्वासी क्यों होता है ?एक व्यक्ति के पास सुन्दर आलिशान बंगला क्यों होता है ?जबकि दूसरा झोपड़पट्टी में क्यों रहता है ?एक व्यक्ति बहुत सफल क्यों होता है जबकि दूसरा बुरी तरह असफल क्यों होता है ?एक वक्ता उत्कृष्ट और असाधारण रूप से लोकप्रिय क्यों होता है ,जबकि दूसरा औसत और अलोकप्रिय क्यों होता है ?एक व्यक्ति अपने काम या पेशे में जीनियस क्यों होता है ,जबकि दूसरा जिन्दगी भर मेहनत करने के बावजूद कुछ हासिल क्यों नहीं कर पाता ?एक व्यक्ति तथाकथित असाध्य बीमारी से ठीक क्यों हो जाता है ,जबकि दूसरा नहीं हो पाता ?इतने सारे अच्छे दयालु और धार्मिक लोग इतनी ज्यादा मानसिक और शारीरिक यातना क्यों झेलते हैं ?कई अनैतिक और अधर्मी लोग सफल, समृद्ध और स्वस्थ क्यों होते हैं ?एक व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय क्यों होता है ,जबकि दुसरे का दुखी और कुंठित क्यों होता है |क्या आपके चेतन और अवचेतन मन की कार्यशैली में इन सवालों का कोई जबाब मिल सकता है ?निश्चित रूप से मिल सकता है |
जब उपरोक्त सवालों का जबाब आप ढूंढते हैं तो सबसे पहले भाग्य पर ध्यान जाता है |ग्रह स्थितियों और भाग्य को इसका जिम्मेदार मानते हैं ,किन्तु यह मात्र पलायन वाद से अधिक कुछ भी नहीं है |दो लोग एक ही समय एक ही स्थान पर एक ही स्थितियों में जन्म लेते हैं किन्तु उनके जीवन स्तर में भारी अंतर होता है |यद्यपि इसके लिए भी ज्योतिषीय तर्क हैं ,किन्तु हर जगह केवल भाग्य और ग्रह स्थितियां ही जिम्मेदार नहीं होती |अगर ऐसा होता तो जो आपके भाग्य में लिखा हुआ ज्योतिषी बताते हैं वह पूरा खरा क्यों नहीं उतरता ,अच्छा तो सब कुछ वैसा होता नहीं अथवा उतना मिलता नहीं जितना बताया जाता है ,बुरा उससे अधिक आपको भुगतना होता है |ऐसा क्यों यदि सबकुछ भाग्य निर्धारित है तो फिर कर्म क्यों |कहने वाले कह सकते हैं की कर्म भी भाग्य से निर्धारित होता है तो फिर आराम से बैठा जाए जब भाग्य में कर्म होगा तो मिलेगा ,हाथ पाँव मारने की जरूरत क्या है |ज्योतिष के अनुसार एक व्यक्ति की अधिकतम आयु १२० वर्ष होती है ,तो कुछ लोग इससे अधिक कैसे जी जाते हैं |
हम मानते हैं की भाग्य की भूमिका तो होती है ,किन्तु हमेशा नहीं ,हर जगह नहीं ,हर स्थिति में नहीं |भाग्य भी कर्म ,आत्मबल ,हठ ,परिस्थितियों ,वातावरण ,से प्रभावित होता है |भाग्य भी ब्रह्मांडीय अथवा ईश्वरीय ऊर्जा से प्रभावित होता है |भाग्य भी नकारात्मक अथवा प्रक्षेपित ऊर्जा से प्रभावित होता है |भाग्य भी आपके चेतन -अचेतन-अथवा अवचेतन की सोच से प्रभावित होता है |
उपरोक्त जितने भी प्रश्न हैं उनमे भाग्य की भूमिका से अधिक आपकी शक्ति का योगदान अधिक होता है |आपमें ऐसी जादुई शक्ति है जो अंतर पैदा करती है ,भाग्य कुछ भी हो |कुछ उसका उपयोग कर भाग्य का पूरा पा जाते हैं ,उससे अधिक पा जाते हैं ,कुछ उसका उपयोग नहीं जानते अतः जो भाग्य में है वह भी नहीं ले पाते |यदि आप जीवन ,मष्तिष्क की मूलभूत और आधारभूत संरचना और कार्यप्रणाली को जान जाएँ ,इसकी तकनीकियों और उपयोग को समझ लें तो आप खुद में स्थित जादुई शक्ति पा सकते हैं और अन्यों से विशिष्ट जीवन पा सकते हैं |यदि इस चमत्कारी शक्ति को आप जान जाएँ तो आप अपनी दुविधा ,दुःख ,उदासी ,और असफलता के कुचक्र से बाहर निकल सकते हैं |यह शक्ति आपको अपनी सच्ची मंजिल तक पहुँचने का मार्गदर्शन देगी ,आपकी समस्याएं सुलझाएगी ,आपको भावनात्मक तथा शारीरिक बेड़ियों से मुक्त करेगी ,और आपको स्वतंत्रता ,ख़ुशी व् मानसिक शान्ति के राजसी मार्ग पर पहुंचा देगी |आपके अवचेतन मन की यह चमत्कारी शक्ति आपकी हर बीमारी ठीक कर सकती है |यह आपको दोबारा स्वस्थ ,उत्साही और शक्तिशाली बना सकती है |जब आप अपनी आतंरिक शक्तियों का उपयोग करना सीख लेंगे तो आप डर की कैद से मुक्त हो जायेंगे और ऐसे आनंददायी जीवन का स्वाद चखेंगे जिसकी आप कल्पना करते होंगे |
हमारे लिए अवचेतन मन की चमत्कारी शक्ति का सबसे बड़ा प्रमाण यह होगा ,की हमारी बीमारी ठीक हो जाए |तब हमें इस पर भरोसा हो जाएगा |इससे आपको उस उपचारक शक्ति पर विश्वास हो जाएगा जो हम सभी के अवचेतन मन की गहराई में मौजूद है |इसी तरह उपरोक्त सभी समस्याओं का हल आपके ही पास है |आप अपनी शक्ति को तो देखें |आप तो जीवन में उसका दस प्रतिशत भी उपयोग नहीं कर पाते |आप उसको जानकार उसका उपयोग समझ लें तो आपकी सभी समस्याएं आप खुद हल कर सकते हैं ,|उच्चता और सफलता पा सकते हैं |ध्यान दीजिये आपका अवचेतन आपको खतरे से आगाह करता है ,आपको स्वप्न से आभास देता है |आपको अनजाना भय या संकेत देता है ,जिससे आपको आभास हो जाता है की क्या होने वाला है |जब आपके न चाहते इतना होता है तो जब आप इसे विकसित और क्रियाशील कर लें और इसका लाभ उठाने लगें तो यह आपके जीवन को कहाँ पहुचा सकती है |हम अपने अगले पोस्टों में क्रमशः आपको ऐसी तकनीकियों और ज्ञान से अवगत करायेंगे जिससे आपको उपरोक्त सभी समस्याओं का समाधान मिल जाएगा और आप खुद अपने जीवन में परिवर्तन कर पायेंगे ||.........................................................................हर-हर महादेव

विश्वास से चमत्कार होता है

आस्था ,विश्वास चमत्कार करते हैं
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प्रकृति ने पृथ्वी के सभी जीवों के लिए एक निश्चित पैटर्न बनाए हैं जिनके अनुसार उनकी आतंरिक और वाह्य क्रियाएं स्वतः चलती हैं |जो जीव आतंरिक और वाह्य प्रक्रियाओं के बारे में नहीं जानते उनमे भी सबकुछ स्वतः नियंत्रित होता है ,मनुष्य तो अबहुत कुछ जानने लगा है |इन जीवन सिद्धांत के बारे में मनुष्य चेतन रूप से जानकार होने के कारण खुद को अनगिनत रूप से लाभ पहुचाने का प्रयत्न करता रहता है |यह इन्ही सिद्धांतों को जानकर इन्हें अपने धर्म में सम्मिलित रखता है |यह जानता है की खुद के भले के लिए किसका कहाँ क्या उपयोग किया जाए |दुनिया के सभी धर्म विश्वास रूप हैं और यह विश्वास कई तरीके से स्पष्ट किये जाते हैं |जीवन का नियम विश्वास है |विश्वास आपके मष्तिष्क का एक विचार है ,जिस कारण अवचेतन की शक्ति आदतन सोच के अनुसार जीवन के सभी क्षेत्रों में उतरती है |हर धर्म कहता है आप विश्वास रखो और वह होगा जिसमे आपको विश्वास है |इसका मतलब यह नहीं होता की धर्म किसी अनुष्ठान ,समारोह ,रूप ,संस्था या फार्मूले के बारे में बोल रहा है |वह तो स्वयं आपके विश्वास के बारे में बोलता है |आपका विश्वास आपके मष्तिष्क का विचार है |आपके मष्तिष्क का विश्वास परिणाम उत्पन्न करता है |आपके सभी अनुभव ,सभी कार्य तथा जीवन की सभी घटनाएँ व् परिस्थितियां आपके ही विचार की प्रतिक्रियाएं और प्रतिबिम्ब हैं |आप जैसा सोचते हैं जैसा विश्वास करते हैं जैसी धारणा रखते हैं आपका अवचेतन उसी अनुसार कार्य करता है और आपकी प्रतिक्रिया किसी विषय विशेष के लिए स्वयमेव वैसी आती है ,आपको तो पता भी नहीं होता और परिणाम आपके सामने आ जाता है |भले आप बाद में पछताएँ पर यह आपके अवचेतन में आपके विचारों के अनुसार भरा गया विश्वास है जो अवचेतन अपने आप बाहर निकालता है समय आने पर |
विश्वास की शक्ति से प्रार्थना चिकित्सा काम करती है |यह मष्तिष्क के चेतन और अवचेतन स्तरों का क्रमबद्ध ,सामंजस्यपूर्ण और बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य है ,जिसे किसी निश्चित उद्देश्य के लिए विशेष रूप से निर्देशित किया जाता है |प्रार्थना चिकित्सा के लिए आपको पता होना चाहिए की आप क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं |इसमें आप किसी निश्चित विचार ,मानसिक तस्वीर या योजना को चुनते हैं ,जिसे आप अनुभव करना चाहते हैं |आप इस विचार या मानसिक छवि को अपने अवचेतन तक पहुंचा देते हैं और काल्पनिक अवस्था की वास्तविकता को अनुभव करते हैं |आपकी आस्था ,विश्वास ,कल्पना और वास्तविकता का अनुभव जितना गहन होगा आपको परिणाम उतना शीघ्र मिलता है |इस प्रकार आपको अपनी प्रार्थना का जबाब मिल जाता है |
आपकी समस्या ,बीमारी चाहे जो भी हो आपके अवचेतन मन में रहने वाले भयाक्रांत नकारात्मक विचारों के कारण उत्पन्न होती है |अगर इन विचारों की सफाई कर दें तो आप ठीक हो जाते हैं |इस सफाई की प्रक्रिया में आप नया विचार चुनते है और खुद को याद दिलाते हैं की आपका अवचेतन हर बीमारी का उपचार करने में सक्षम है |आप खुद पर विश्वास करते हैं और अपने अवचेतन की असीमित शक्तियों पर विश्वास करते हैं |धार्मिक रूप से इसे आप अपने ईष्ट का नाम देते हैं |आप खुद या ईश्वर के नाम पर लगातार सोचते हैं की वह या यह हर तरह से सक्षम है ,तो आपका डर धीरे धीरे कम होने लगता है |बार बार दुहराने की प्रक्रिया में पुराने विश्वासों से ,नकारात्मक विचारों से इनका संघर्ष होता है और अंततः उन्हें यह परास्त कर देती है |इसके बाद यह नए विचार पुराने नकारात्मक विचारों का स्थान ले लेते हैं |आप उपचार के लिए ईश्वर को या अवचेतन को धन्यवाद देते हैं और विश्वास करते हैं की यह अवश्य होगा |धीरे धीरे नकारात्मक स्थितियों को शक्ति मिलनी बंद हो जाती है और विश्वास दृढ होता जाता है |इस तरह के मानसिक नजरिये से चेतन और अवचेतन मन का सामंजस्यपूर्ण मेल बनता है जो उपचारक शक्ति को सक्रीय कर देता है |वैज्ञानिक या चिकित्सकीय रूप से इसे प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि अथवा शारीरिक क्रियाओं की तीव्र सक्रियता कहते हैं ,पर यह सब मष्तिष्क और विचारों का परिणाम है जो किसी को सक्रिय किसी को निष्क्रिय कर देता है |उदाहरण हार्ट अटैक ,मानसिक अवसाद आदि जो भावना और शारीरिक क्रियाओं से जुड़े होते हैं |इसी तरह सभी रोग अथवा क्रियाएं कहीं न कहीं से विश्वास ,विचार और अवचेतन से ही नियंत्रित या उत्पन्न होती हैं |..........................................................हर हर महादेव

अपना इलाज आप खुद कर सकते हैं

आप अपना उपचार खुद कर सकते हैं
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उपचार का नाम आते ही डाक्टर का चेहरा सामान्यतया उभरता है यादों में ,पर क्या वास्तव में डाक्टर ही उपचार करता है |अगर ध्यान से देखें तो उपचार हमारा खुद का शरीर ही करता है ,हमारी प्रातिरोध्क क्षमता उपचार करती है और इनमे उत्प्रेरक का कार्य अथवा समस्या विशेष की सुरक्षा का कार्य दवाएं करती है ,डाक्टर तो माध्यम है उन उपचार के अवयवों को संयोजित करने का |अगर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाए तो उपचार मुश्किल हो जाता है |अर्थात उपचार हमारा खुद का शरीर करता है |शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को हम उपचारक के रूप में जानते हैं ,लेकिन यह कैसे उत्पन्न होती है ,कहाँ इसका मूल स्रोत होता है ,इसका जबाब विज्ञानं अलग ढंग से देता है |वह भौतिक प्रामानों के अनुसार जबाब देता है ,किन्तु वास्तव में भौतिक प्रमाण भी कहाँ से उत्पन्न होता है ,इसका जबाब विज्ञान भी नहीं दे पाता |वास्तव में उपचारक शक्ति मनुष्य के अवचेतन मन में निवास करती है और रोगी के बदले हुए मानसिक नजरिये से वह सक्रीय होती है |बदलते नजरिये के अनुसार यह बदलती भी है |बदलते नजरिये के साथ इसकी शक्ति भी बदलती है |देखते हैं हम इसके प्रमाण -
किसी भी मानसिक या धार्मिक -मनोवैज्ञानिक उपचारक ,मनोवैज्ञानिक ,मनोविश्लेषक या डाक्टर ने कभी किसी मरीज को ठीक नहीं किया है |एक पुरानी कहावत है ""डाक्टर घाव पर पट्टी बांधता है ,इश्वर उसे ठीक करता है "" |वास्तव में यह ईश्वर आपका अवचेतन और आतंरिक शक्ति होता है | मनोवैज्ञानिक या मनोविश्लेषक मरीज के मानसिक अवरोध हटाकर प्रभावी परिवर्तन लाता है ,ताकि उअपचारक सिद्धांत सक्रीय हो सके और रोगी दोबारा स्वस्थ हो सके |इसी तरह सर्जन शारीरिक अवरोध हटाता है ताकि उपचारक प्रवाह सामान्य ढंग से काम कर सके |कोई भी डाक्टर या सर्जन या मानसिक -विज्ञानं का प्रयोग करने वाला पूरी तरह से यह दावा नहीं कर सकता की उसने मरीज को ठीक कर दिया |डाक्टर भी फेल होने के भय से या हताश होने पर कहते हैं अब तो भगवान का ही सहारा है |सीधा सा मतलब विज्ञानं यह दावा नहीं कर सकता की वह सबको पूरी तरह से ठीक कर सकता है |उपचारक शक्ति एक ही है ,हालांकि इसे अलग अलग नामों से पुकारा जाता है - प्रकृति ,ईश्वर ,जीवन ,रचनात्मक ज्ञान आदि ,लेकिन वास्तव में ये सभी अवचेतन शक्ति की ओर इशारा करने के भिन्न -भिन्न तरीके हैं |
यदि हम खुद चाहें तो हम स्वयं में मौजूद उपचारक जीवन -सिद्धांत के प्रवाह के मानसिक ,भावनातमक और शारीरिक अवरोधों को कई तरीकों से हटा सकते हैं |आपके अवचेतन मन में रहने वाला यह उपचारक सिद्धांत आपको सभी मानसिक तथा शारीरिक रोगों से मुक्त कर सकता है और करेगा ,बशर्ते आप या कोई दूसरा व्यक्ति इसे सही दिशा दे |यह उपचारक सिद्धांत सभी लोगों में काम करता है ,भले ही उनका पंथ ,रंग या जाती कोई भी हो |इसका प्रयोग करने और इस उपचारक प्रक्रिया का लाभ लेने के लिए आपको किसी विशेष ,मंदिर ,पंथ या समुदाय का सदस्य बनने की जरुरत नहीं |आपका अवचेतन आपके हाथ के जले हुए या कटे हुए हिस्से को ठीक कर देगा ,भले ही आप नास्तिक या संशयवादी हों |
आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं इस सच्चाई को जानता और मानता है की जैसी आपकी आस्था होगी ,आपके अवचेतन मन की प्रतिक्रिया भी वैसी होगी |मानसिक विज्ञानं का प्रयोग करने वाले या धर्म विशेषज्ञ अपने धार्मिक ग्रन्थ के आदेश आ आलं करते हैं जो अधिकतर अवचेतन की शक्ति को ही कहीं न कहीं से लक्ष्य कर रहा होता है |जब यह किसी विषय पर खुद को केन्द्रित करते हैं तो नाम को तो यह अपने ईश्वर या शक्ति को याद करते हैं किन्तु प्रक्रिया सबमे लगभग सामान हो जाती है ,अंतर केवल नाम और धर्म का रह जाता है |ये एकांत में होकर मष्तिष्क को स्थिर कर लेते हैं |यह याद करते हैं अपने अपने ईष्ट को और उनकी शक्तियों को जो की लगभग सबमे कमोवेश समस्या विशेष के लिए समान हो जाती है ,अलग धर्म होने पर भी |ये अपने भीतर उस शक्ति को महसूस कर अपने मष्तिष्क का द्वार सभी बाहरी व्यवधानों तथा वस्तुओं के लिए बंद कर लेते हैं |फिर वे अपना आग्रह या इच्छा अपने ईष्ट को इस विश्वास के साथ बताते हैं की वह ईष्ट उन्हें सही जबाब देगा |वास्तव में नाम ईष्ट का होता है किन्तु यहाँ सम्पूर्ण प्रक्रिया अवचेतन पर चलती है |वह अपना आग्रह या इच्छा अपने अवचेतन मन को इस विश्वास के साथ बताते हैं की उनके मष्तिष्क का ज्ञान उन्हें सही जबाब देगा |
सबसे अद्भुत विशेषता अवचेतन की यह है की इच्छित परिणाम की कल्पना करें और इसकी वास्तविकता को महसूस करें ,जीवन का शास्वत सिद्धांत आपके चेतन चुनाव और आपके चेतन आग्रह पर  प्रतिक्रया करेगा ,क्योकि क्रिया की प्रतिक्रिया प्रकृति का नियम है |विश्वास रखें की आपको मिल गया है और आपको मिल जाएगा |प्रार्थना चिकित्सा का प्रयोग करते समय आधुनिक मानसिक चिकित्सक या वैज्ञानिक यही काम करता है |धर्म विशेषज्ञ यही काम करता है |आपका विश्वास उनपर होता है और यह आपको विश्वास दिलाते हैं की आप मान लो आपको मिल या ,ईश्वर चाहे तो सब मिल सकता है |आप मान लेते हो इश्वर के नाम पर या किसी अन्य माध्यम के नाम पर |बस आपके अवचेतन की क्रिया शुरू हो जाती है और यह उस दिशा में काम करने लगता है स्वयं ईश्वर की तरह |.................................................................हर -हर महादेव

अवचेतन पर निर्भर है आपका स्वास्थ्य

रोग ठीक कर सकता है ,और रोग दे भी सकता है आपका अवचेतन
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आपके मानसिक कार्यों का विभाजन करके एक कार्य चेतन मन को और दूसरा कार्य अवचेतन मन करता है |आपका अवचेतन मन सुझाव की शक्ति का हमेशा पालन करता है |आपके शरीर के सभी कार्यों ,स्थितियों और अनुभूतियों पर आपके अवचेतन मन का पूरा नियंत्रण होता है |आप अच्छी तरह जानते हैं की सम्मोहित व्यक्तियों में किसी भी बिमारी के लक्षण पैदा किये जा सकते हैं |जैसे सम्मोहित अवस्था में दिए गए सुझाव की प्रकृति के अनुसार व्यक्ति को बुखार हो सकता है ,उसका चेहरा लाल हो सकता है या उसे सर्दी हो सकती है |आप व्यक्ति को सुझाव दे सकते हैं की उसे लकवा मार गया है और वह चल नहीं सकता और ऐसा ही होगा |अगर कोई आपको बताता है की उसे घास से एलर्जी है तो आप उसे सम्मोहित करके उसके नाक के सामने कोई कागज़ या फूल या खाली गिलास रखकर उससे कह सकते हैं की यह घास है |उसमे एलर्जी के सामान्य लक्षण प्रकट हो जायेंगे |इससे हमें यह पता चलता है की शारीरिक लक्षण अवचेतन मन के कारण पैदा हुए हैं |इन लक्षणों का इलाज भी अवचेतन मन से ही होता है |ऐसा ही होता है मानसिक रूप से बीमार ,हीन भावना युक्त लोगों में और हमेशा नकारात्मक तथा बुरा सोचने वालों में |यदि लगातार बुरा ही बुरा सोचें तो सचमुच बुरा होने लगता है क्योकि यह अवचेतन में घर कर जाता है और अवचेतन उसी दिशा में कार्य करने लगता है |खुद को लगातार रोगी महसूस करने मात्र से आप कुछ दिनों में सचमुच बीमार हो जायेंगे और आपकी स्थिति सम्मोहन में दिए सुझाव सी हो जायेगी ,क्योकि आपके चेतन मन से बार बार खुद के बीमार होने की सूचना अवचेतन तक पहुंची और वहां एक स्थायी विचार बन गया |आपके बीमार होने पर ऐसी स्थिति में जल्दी कोई भी दावा काम भी नहीं करेगी ,क्योकि आप मानसिक रूप से भी बीमार हो चुके हैं |
कुछ चिकित्सा पद्धतियों में अवचेतन मन की शक्ति का उपयोग सीधे किया जाता है तो कुछ में अपरोक्ष रूप से पर सब में इसका उपयोग होता जरुर है |जहाँ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी फेल हो जाता है वहां यह अवचेतन की चिकित्सा प्रणाली कार्य करती है |जब कोई डाक्टर कहता है की अब तो भगवान ही सहारा है ,अर्थात जब डाक्टर भी अपने इलाज से शशंकित हो उठता है और चमत्कार हो जाता है तो उसका कारण यही अवचेतन मन होता है |सारे चमत्कार यही करता है |विभिन्न चिकित्सा पद्धतियाँ ,कर्मकांड ,अनुष्ठान के मूओल में अवचेतन का उपचारक सिद्धांत होता है |रोगी के अपने छिकित्सा और चिकित्सक पर विश्वास होने मात्र से उसकी समस्या ठीक होने लगती है भले डाक्टर उसे केवल विटामिन की गोली मात्र ही क्यों न दे रहा हो |शरीर की रक्षा प्रणाली अवचेतन मन के अनुसार ही क्कारी करती है |अगर विश्वास हो की में ठीक हो जाऊँगा तो रोग /समस्या बहुत जल्दी ठीक हो जाती है और अगर डरा हुआ मन हो और सैंड हो की पता नहीं में ठीक हो पाऊंगा या नहीं तो ठीक होने में देर लगती है |ऊँगली के घाव पर मात्र पट्टी बाँध देने से भी वह ठीक हो सकता है और बहुत से इलाज करने पर भी ठीक होना मुश्किल होआ है ,यह निर्भर करता है आपके अवचेतन मन की स्थिति पर |
विभिन्न धार्मिक समूहों में भिन्न -भिन्न प्रकार की उपचार की प्रक्रियाएं होती हैं ,पर आतंरिक और मूल क्रिया सबकी अवचेतन पर ही निर्भर होती है |कुछ समूह जल अभिमंत्रित करके पिलाकर तो कुछ छिडककर ,तो कुछ दोनों करके इलाज करते हैं |कुछ धुंएँ से कुछ मंत्र आदि बुदबुदाकर इलाज करते हैं |कुछ मंत्र से हवं करके इलाज करते हैं |कुछ अभिमंत्रित यंत्र ,वस्तुएं आदि के साथ इलाज करते हैं तो कुछ विशेष प्रार्थनाएं करवाकर इलाज करते हैं |कुछ शरीर पर हाथ फेरकर तो कुछ फूंक मारकर इलाज करते हैं |कुछ चुम्बकीय वस्तुएं ,धातु ,कांच ,रत्न आदि से इलाज करते हैं तो कुछ वनस्पतियों से |इन पद्धतियों में जो वस्तु उपयोग होती है उसमे स्थित ऊर्जा तो अलग है मूल शक्ति अवचेतन पर प्रभाव होता है |मात्र रोगी को विश्वास हो जाए की यह बेहतरीन चिकित्सा प्रणाली या चिकित्सक है ,उसकी चकित्सा अवचेतन द्वारा शुरू हो जाती है ,अन्य वस्तुएं तो मात्र चिकित्सा की गति को ही प्रभावित करती हैं |शरीर पर हाथ फेरते हुए रोगी को विश्वास में लेने से वह ठीक होने लगता है |सम्मोहनावस्था में उसे सुझाव देने से वह ठीक होने लगता है |सभी प्रकार की उपचार की प्रक्रिया एक निश्चित ,सकारात्मक मानसिक दृष्टिकोण से चलती है \निश्चित आतंरिक दृष्टिकोण या सोचने का तरीका  जिसे आस्था कहते हैं |उपचार विश्वासपूर्ण उम्मीद के कारण होता है ,जो अवचेतन मन को शशक्त सुझाव देती है |इसी से उपचार की शक्ति प्राप्त होती है |
आपकी आस्था की वस्तु सच्ची हो या झूठी आपको परिणाम समान ही मिलेंगे |अगर आप भगवान राम की प्रतिमा पर उतना ही विश्वास करें जितना आप सामने भगवान राम के होने पर उनमे करते तो आपको प्रतिमा से भी वही परिणाम मिलेंगे जो स्वयं भगवान राम से मिलते |कह सकते हैं की यह अंधविश्वास है ,पर यह चमत्कार करती है |अंधविश्वासों के चमत्कार आपके अवचेतन मन से ही होते हैं ,वह प्रतिमा या भगवान राम मात्र एक प्रतीक हैं ,असली चमत्कार तो आपका अवचेतन करता है |गुरु में विश्वास है की वह चमत्कार करेगा तो चमत्कार होगा ,गुरु के प्रति भावना माध्यम होगी फिर गुरु कैसा भी हो व्यक्तिगत रूप से |आप कुछ नहीं जानते और उसमे गहरी श्रद्धा और विश्वास रखते हैं तो आपको हमेशा सकारात्मक परिणाम ही मिलेंगे भले व्यक्तिगत रूप से वह गुरु कुछ भी करता हो |आपमें तो श्रद्धा और विश्वास सच्चा है अतः आपको परिणाम अच्छा ही मिलेगा |यही वह सूत्र है हर चमत्कार के पीछे का |आप किसी समस्या से पीड़ित हैं और मंदिर में पत्थर की मूर्ती के आगे सर पटक देते हैं |मन में विश्वास है की भगवान हर हाल में सुनेगा ,उसे सुनना ही होगा तो चमत्कार होगा |मतलब नहीं की उस मंदिर में पूजा होती है या नहीं अथवा वहां मूर्ती प्राण प्रतिष्ठित है या नहीं ,प्रतिष्ठा तो वहां आपका मन कर देगा |यह प्रबल विश्वास आपके अवचेतन तक पहुँचते ही अवचेतन अपना कार्य प्रारम्भ कर देगा और जन्मों जन्मों की सूचना आपके सामने लाने लगेगा तथा कहीं न कहीं से समस्या मुक्ति का सुझाव ढूंढ ही लेगा या ऐसा व्यक्ति सुझा देगा जो समस्या हल कर सके या ऐसी युक्ति निकाल देगा जिससे समस्या खत्म हो जाए |मूर्ती ,भगवान् माध्यम होंगे कार्य आपका अवचेतन करेगा |अगर उस मूर्ती ,गुरु या माध्यम के वास्तव में कुछ ऊर्जा है तो चमत्कार जल्दी होगा और बिना किसी रुकावट के होगा |
इन सबका अपना वैज्ञानिक सिद्धांत है |साड़ी क्रियाएं वैज्ञानिक नियमों ,प्रकृति कके नियमों पर होती हैं |आपका विश्वास ,आपकी श्रद्धा ,आपकी आस्था आपके अवचेतन तक पहुंचकर विशेष तरंगें उत्पन्न करती हैं |अगर आपकी आस्था की वस्तु डाक्टर ,गुरु ,मूर्ति में उरगा है तो वह इन तरंगों के माध्यम से जुड़ जाती है और आपको इस माध्यम से प्राप्त होने लगती है जिससे एक तो आपके अवचेतन के आस्था की शक्ति दुसरे माध्यम की ऊर्जा मिलकर सचमुच चमत्कार कर देती हैं |अगर माध्यम में ऊर्जा न भी हो तो आपका अवचेतन ही खुद चमत्कार करता है ,बस थोड़ी विलम्ब हो सकती है |आप आसानी से उन अद्भुत परिस्थितियों की कल्पना कर सकते हैं ,जो आत्मविश्वास और कल्पना से उत्पन्न हो सकती हैं |खासकर तब जब ये दोनों ही चीजें रोगी और उसे प्रभावित करने वाले के बीच प्रवाहित हों |निश्चित स्मृति चिन्हों के प्रभाव से होने वाले उपचार उनकी कल्पना और आत्मविश्वास के प्रभाव हैं |आप किसी यन्त्र अथवा ताबीज को पहने और आपको विश्वास हो की यह कार्य करेगा तो वह जरुर काम करता है |जब आप किसी संत की समाधि पर जाएँ और अपनी समस्या का इलाज मांगें तो वह भी पूर्ण होता है |नीम हकीम और दार्शनिक जानते हैं की यदि किसी संत की अस्थियों की जगह किसी सामान्य इंसान की अस्थियों को रख दिया जाए तब भी बीमारों को उतने ही लाभकारी परिणाम मिलेंगे बशर्ते की उन्हें यकीन हो की यह सच्चे स्मृति चिन्ह हैं |यही होता है इसमें |आपका विश्वास की वहां अमुक की अस्थियाँ हैं और वह वहां है आपमें गहरा विश्वास और आस्था जगा देता है की आपकी समस्या हल होगी |वहां कोई शक्ति है या नहीं महत्त्व बहुत नहीं ,आपका अवचेतन उस विश्वास के अनुरूप कार्य कर आपकी समस्या हल करने में मदद कर देता है और आपको लगता है की वहन से हमारा कार्य हुआ और आपकी आस्था और प्रबल हो जाती है जो आगे के कार्यों को सफल बनाने में सहायक हो जाती है |
आजकल एक प्रचलन चल रहा साईं बाबा के मुस्लिम होते हुए भी उन्हें चन्दन टीका लगाकर हिन्दू अपने देवी -देवताओं के साथ स्थान दे रहे |मंदिर में जगह दे रहे या मंदिर बना रहे |इन सबकी सोच यही है की साईं भगवान् थे और कृपा करेंगे या कर रहे |यहाँ साईं कृपा करें न करें क्योकि वह एक अलग धर्म से सम्बंधित भी थे और आज भी एक आत्मा ही होंगे जिसकी अपनी सीमाएं होती हैं ,पर जो लोग इस अंध आस्था के शिकार हैं उनके काम भी होंगे |यह साईं की वजह से हो जरुरी नहीं हाँ यह उनके अवचेतन की वजह से जरुर होंगे |उनमे जो गहरा विश्वास ,आस्था उत्पन्न हो गया वह अवचेतन तक पहुंचकर ऊर्जा उत्प्पन्न करता है और अवचेतन अपनी शक्ति से उस आस्था के अनुरूप कार्य करके समस्या हल करने में मदद करता है ,जबकि लोगों को लगता है की साईं ने यह कार्य कर दिया |अगर शुभाष चन्द्र बोस ,सचिन तेंदुलकर अथवा गांधी ,अथवा अम्बेडकर की मूर्तियों को पूजें और गहरी आस्था हो की मेरे कार्य यह करेंगे तो साईं की तरह ही आपके काम होंगे जरुर ,क्योकि प्रक्रिया समान होगी ,बस माध्यम बदल जाएगा |यही सूत्र कार्य करता है सभी मस्जिद ,कब्र ,समाधि ,स्मृति चिन्ह ,चौरी ,ब्रह्म पीठ आदि की पूजा से होने वाले लाभ पर |मूल काम आपका अवचेतन करता है ,नाम भले भिन्न भिन्न स्थानों अथवा शक्तियों का हो का हो |हाँ मूल देवताओं के मंदिरों और ऊर्जा की स्थिति थोड़ी भिन्न होती है क्योकि वहां वास्तव में प्रकृति की धनात्मक ऊर्जा होती है जो अवचेतन से जुडती है |.............................................................................हर-हर महादेव 

श्रद्धा /विश्वास चमत्कार करते हैं

धर्मस्थलों के चमत्कार अवचेतन मन पर निर्भर हैं
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दुनिया का हर धर्म अंतर्मन को ही सर्वाधिक महत्व देता है क्योकि सभी प्रवर्तक और ज्ञानी जानते हैं की सारा खेल इस अंतर्मन का ही है और सारे चमत्कार इसी के द्वारा होते हैं |भले ईश्वर सर्वत्र विद्यमान हो पर यदि अंतर्मन व्यक्ति का नहीं जुड़ा तो ईश्वर नहीं जुड़ पता |सभी ज्ञानी अंतर्मन की शक्ति को समझते हैं और जानते हैं की इसी के द्वारा सारे उपचार किये जा सकते हैं क्योकि यही शरीर का निर्माता भी है और नियंता भी |
दुनिया के हर भाग ,हर देश में वहां के सम्बंधित धर्म -सम्प्रदाय के अनुसार विभिन्न धर्मस्थल हैं जहाँ समस्याग्रस्त और रोग ग्रस्त लोगों का उपचार किया जाता है |कुछ प्रसिद्ध होते हैं तो कुछ को केवल आसपास के लोग ही जानते हैं पर इन सभी धर्मस्थलों का उपचार अवचेतन मन की शक्तियों पर ही निर्भर होता है |नाम भले हो की अमुक देवता या शक्ति से यह हो रहा पर होता यह अवचेतन से ही है क्योकि कोई भी शक्ति उपचारकर्ता से अथवा रोगी से उसके अवचेतन से ही जुडती है |प्रबल आस्था और यह विश्वास की अमुक देवता मेरी समस्या या रोग ठीक करेगा एक ऐसी शक्ति अवचेतन में भर देता है की अवचेतन समस्या या रोग को समाप्त करने के प्रति सक्रीय हो जाता है |
हम अक्सर देखते हैं की हमारे आसपास के मंदिरों -मस्जिदों-गिरजाघरों में अपार भीड़ होती है |ऐसे बहुत कम होते हैं जो चुपचाप जाएँ और दर्शन पूजन कर चले आयें बिना कुछ कहे आ मांगे |अधिकतर मूर्ती या प्रतीक को कुछ चढ़ावा चढ़ाकर ,अगरबत्ती ,धुप -दीप लगाकर हाथ जोडकर या बांधकर या उठाकर कुछ न कुछ प्रार्थना करते और मांगते हैं |इसकी एक निश्चित प्रक्रिया है जो कार्य करती है |यह प्रार्थना का चमत्कार होता है जो अवचेतन से जुड़ा होता है |मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा की एकत्रित या संघनित ऊर्जा सहायक जरुर होती है किन्तु केवल वाही कार्य नहीं करती |अगर वाही कार्य करती होती तो सभी की मांगी गयी मांगें पूरी होती ,किन्तु सबकी नहीं होती |जिसकी प्रार्थना आस्था और विश्वास के बिंदु तक पहुँच जाती है उसी के कार्य पूर्ण होते हैं |प्रबल आस्था और विश्वास की अमुक देवता हमारा कार्य करेगा ,अवचेतन में गहरे बैठ जाता है और अवचेतन की शक्ति सम्बंधित दिशा में कार्य करने लगती है |मूल केंद्र व्यक्ति का अवचेतन होता है और संबल मिलता है देवता और मंदिर का |
कल्पना और अंधे विश्वास की शक्ति इतनी प्रबल है की उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता |एक परिचित को टी.बी. हो गयी जिससे उनके फेफड़े बुरी तरह खराब हो गए |उनके बेटे ने इलाज के साथ साथ उनको रोग से निकालने का फैसला किया और उन्हें आत्मबल देने का फैसला किया |उसने पिता से कहा ,उसे अलौकिक शक्तियों वाला एक घूमने वाला सन्यासी मिला था जो एक प्रसिद्द धर्मस्थल से लौटा था |वह धर्मस्थल रोगों के उपचार के लिए भी प्रसिद्ध है |वह सन्यासी वहां से एक ॐ का लाकेट लाया था जिसे छूने से रोग ठीक हो जाते हैं |बेटे ने जब यह सूना तो वह सन्यासी से मिला और उसे अपने पिता के बारे में बताया तथा उसने ॐ का लाकेट अपने पिता के लिए उधार मागे |सन्यासी तैयार हो गया |बेटे ने स्वेच्छा से एक हजार रूपये का सामान सन्यासी को भेंट कर दिया |उसने पिता से कहा वह लाकेट लाया है |पिता ने जब यह सुना तो उन्होंने लाकेट लेकर माथे लगाया और मन ही मन प्रार्थना की |इसके बाद वह सो गए |सुबह तक उनके टी.बी. के लक्षण समाप्त हो चुके थे |कुछ ही दिन में वह पूर्ण स्वस्थ हो गए और क्लिनिकल रिपोर्टों में उनकी टी.वि. गायब थी |
इस तरह के चमत्कार हर समय होते हैं ,हर जगह होते हैं |इस चमत्कार के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की बेटे की अद्भुत कहानी बिलकुल मनगढ़ंत थी |सच तो यह था की उसने फुटपाथ से एक धातु का ॐ का लाकेट लिया और उसे कुछ इस तरह रगडा की वह पुरानी सी लगे |फिर एक कहानी के साथ उसने पिता को वह लाकेट दे दिया |यद्यपि बेटे का उद्देश्य पिता को आत्मबल और सांत्वना देकर मजबूत करना था पर पिता के गहन आस्था और प्रबल विश्वास से चमत्कार हो गया |अब आप समझ गए होंगे की फुटपाथ के उस लाकेट से पिता का उपचार नहीं हुआ था |उपचार तो पिता की कल्पनाशीलता के कारण हुआ था ,जो प्रबलता से बढ़ गयी थी |इसके साथ ही पूर्ण उपचार की विश्वास भरी उम्मीद भी थी |कल्पनाशक्ति ,आस्था या व्यक्तिपरक भावना के साथ मिल गयी और इन दोनों के मेल से उसके अवचेतन मन की शक्ति ने उपचार कर दिया |जो कार्य दवाइयां दो साल में करती वह कार्य दो दिन में हो चूका था |पिता को कभी पता नहीं चल पाया की उसके साथ यह चाल चली गयी थी |अगर उन्हें यह बात पता चल जाती ,तो हो सकता है की उन्हें वह बीमारी दोबारा हो जाती |बहरहाल उनकी टी.वी. कभी नहीं लौटी |वे टी.वी.से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त हो गए |
यही होता है अक्सर धर्मस्थलों के चमत्कार में |जब आपके अवचेतन तक प्रबल आस्था और विश्वास सम्बंधित शक्ति के प्रति जागृत हो जाती है ,तो अवचेतन क्रिया करने लगता है |धर्मस्थल में अगर ऊर्जा इकट्ठी है या वहां वास्तव में कोई शक्ति है तो सोने में सुहागा होता है तथा अवचेतन से वहां की शक्ति भी जुड़ जाती है और लाभ शीघ्र हो जाता है |अगर धर्मस्थल में शक्ति न भी हो तो भी अगर प्रबल विश्वास जग जाए की अमुक हमारा यह कार्य कर देगा तो ,अवचेतन उस कार्य को पूर्ण कर देता है |नाम भले हो की अमुक शक्ति के कारण हुआ पर असल चमत्कार तो यह अवचेतन करता है ,शक्ति संबल का कार्य करती है और विश्वास को आधार देती है |यही सिद्धांत मनौतियों में कार्य करता है |नाम किसी शक्ति का होता है और कार्य अवचेतन करता है |........................................................हर-हर महादेव

खुद को खुद सलाह /सुझाव दें -सफल हो जायेंगे

सफलता के लिए कुछ सुझाव
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१. आपका आतंरिक मन अर्थात अवचेतन मन आपके शरीर की सभी महत्वपूर्ण क्रियाओं का नियंत्रण करता है जबकि आपको इसका भान तक नहीं होता |क्या कभी सोचा है की यह सब कैसे अपने आप होता रहता है ,आप तो ईश्वर की रचना मान संतुष्ट हो लेते हैं पर क्या यह सोचा है की वह ईश्वर इसे करता कैसे है | इसी गुण के कारण कहा जाता है की ईश्वर सबके भीतर मौजूद है ,क्योकि उसकी स्वचालित प्रणाली सबमे सामान रूप से कार्यरत रहती है |
२. अवचेतन मन सभी समस्याओं के जबाब जानता है ,क्योकि यहाँ सभी सूचनाएं जो आपने जन्म -जन्मान्तर में देखि सुनी है इकठ्ठा रहती हैं |तभी तो सम्मोहनकर्ता ,सम्मोहनावस्था में आपको आपके पिछले जन्मों और घटनाओं तक ले जा सकता है |कभी कभी आपको ऐसे चित्र स्वप्न में दीखते हैं जो आपने पहले नहीं देखे होते |यह आपको आपके पिछले किसी जन्म का दृश्य दिखाता है और कभी अचानक कहीं जाने पर आपको लगता है अरे यह तो में अपने स्वप्न में देख चूका था |
३. सोने से पहले अपने अवचेतन मन से कोई विशेष आग्रह करें तो आप पायेंगे की आपको आपके आग्रह के अनुसार परिणाम प्राप्त होते हैं |आप चमत्कृत हो सकते हैं |
४. आप अपने अंतर्मन पर जो भी छाप या प्रभाव छोड़ते हैं ,वह आगामी परिस्थतियों ,अनुभवों और घटनाओं के रूप में व्यक्त होती हैं ,क्योकि जो आपकी छाप होती है उसके ही अनुसार अंतर्मन एक निश्चित भूमिका बना देता है और आगामी समय में आप उसी के अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं |सोचिये आपको भूत के नाम से बचपन से डराया गया है ,जबकि आपने भूत कभी देखा नहीं |अब आपका अवचेतन एक निश्चित विचार बना बैठा है और आपमें डर को उसने स्थायी बना दिया है |कभी अकेले अथवा अँधेरे में किसी परछाई अथवा आवाज से आप डर सकते हैं भूत समझकर जबकि वह परछाई आपकी अथवा किसी अन्य वस्तु की हो सकती है |डर से आपकी आतंरिक शारीरिक प्रक्रिया बिगड़ जाती है जिससे बुखार ,बेहोशी ,तनाव ,डिप्रेशन ,दौरे आदि हो सकते हैं और काल्पनिक आकृति से अप परेशान हो सकते हैं |यह अवचेतन के मात्र एक काल्पनिक डर का परिणाम होता है |
५. आपको चेतन मन में मौजूद विचारों के बारे में सतर्क रहना चाहिए क्योकि यही विचार लगातार बने रहने पर स्थायी हो सकते हैं अवचेतन में |और जैसे विचार स्थायी होंगे उसके अनुसार अवचेतन आपका स्वभाव और उस विचार के अनुसार आपकी प्रतिक्रिया निर्धारित कर देगा जो समय आने पर आपकी परिस्थिति का निर्माण कर देगा |
६. क्रिया और प्रतिक्रिया का नियम शाश्वत है |आपका चेतन मन का विचार क्रिया है और उस विचार पर आपका अवचेतन मन स्वतः प्रतिक्रिया करता है |जैसे विचार होंगे वैसी प्रतिक्रया आपको प्राप्त होगी और भविष्य में वैसे विचार पर आप अवचेतन द्वारा बनाई गयी प्रतिक्रिया को ही व्यक्त करेंगे |इसलिए अपने विचारों पर नजर रखें |
७. सारी कुंठाए और अवसाद ,अधूरी इच्छाओं के कारण उत्पन्न होते हैं |निराशा और हीन भावना भी अपनी अथवा अपने परिस्थिति की कमजोरी और असफलता का गहरा भान होने पर ही उत्पन्न होती हैं |अगर आप बाधाओं ,विलम्ब और मुश्किलों पर ध्यान केन्द्रित करेंगे तो आपका अवचेतन मन उसी अनुरूप प्रतिक्रया करेगा और इस तरह आप अपनी ही भलाई को रोक देंगे |बाधा ,विलंब और मुश्किल आपको हर जगह दिखाई देगा ,आत्मबल कमजोर हो जाएगा और खुद पर से विश्वास कम हो जाएगा जिससे अधूरे मन और शक्ति से आप कोई भी प्रयास करेंगे |जो आपके पास ज्ञान है भी वह दुविधा में व्यक्त नहीं हो सकेगा और आप सचमुच में मुश्किल में पड़ सकते हैं अथवा आपके कार्य में बाधा आ सकती है अथवा आपके कार्य में विलं हो सकता है |जबकि सच तो यह है की आप सक्षम होते हैं ऐसे अवसर अथवा समय से पार पाने में ,पर गलत सोच खुद पर भारी पड़ जाती है |
८. जीवन की समरसता ,सफलता ,ख़ुशी के सूत्र और सिद्धांत आपके भीतर लयबद्ध और सामंजस्य के साथ प्रवाहित हो सकता है ,केवल आप चेतन मन से दृढ़तापूर्वक कहें की में विश्वास करता हूँ की हर शक्ति मुझमे है और में हर तरह से सक्षम हूँ |मेरे भीतर कोई अंतर्द्वंद नहीं है और खुशियाँ मेरे चारो तरह हैं |मुझमे हर वह क्षमता है की में सफल हो सकूं |मेरी उत्पन्न इच्छाएं मेरा अवचेतन मन मेरे द्वारा पूरा कर रहा है |इससे आपकी दुविधा ,अंतर्द्वंद और संघर्ष समाप्त हो जायेंगे |आपके विचार और क्रिया संतुलित होगी |
९. आप चिंता ,तनाव ,भय के कारण अपने शरीर की रासायनिक क्रियाएं बिगाड़ देते हैं जिससे ह्रदय ,फेफड़ों और अन्य अंगों की सामान्य ले बिगड़ जाती है |चिंता ,तनाव ,भय का सीधा असर आपकी अन्तःस्रावी ग्रंथियों पर पड़ता है जिससे आपकी रासायनिक क्रियाएं गड़बड़ा जाती हैं | ध्यान दीजिये रतिकाल में केवल यह आभास होना की कोई हम देख रहा है आपकी उत्तेजना समाप्त कर देता है अथवा अँधेरे में यह आभास हो की कोई और है यहाँ ,आपको पसीने -पसीने कर देता है जबकि वहां कोई नहीं होता |यह भय के कारण रासायनिक परिवर्तन के उदाहरण हैं |लगातार भय ,चिंता ,तनाव  होने पर आपका स्वास्थय खराब हो जाता है और जो क्षमता होती भी है वह भी समाप्त होने लगती है जिससे जो आपको मिल भी सकता है उसे भी आप नहीं ले पाते हैं फलतः निचे गिरते जाते हैं जबकि आप इसे रोक सकते थे केवल खुद पर विश्वास करके |
१०. अपने अवचेतन मन में स्वास्थ्य की उत्तमता ,शान्ति ,सुख ,सद्भावना ,प्रेम ,लगाव का विचार भरें |इससे आपके शरीर की कार्यप्रणाली सामान्य रहेगी और आपको आपके इन विचारों के अनुसार भविष्य में परिणाम प्राप्त होंगे ,परिस्थितियां प्राप्त होंगी |अवचेतन मन में बुरे विचार ,दुर्भावना ,अशांति ,ईर्श्य की भावना भरेंगे तो प्रेम या शान्ति का माहौल मिलने पर भी आपका मन अशांत रहेगा और आपको कुछ अच्छा नहीं लगेगा |आपकी भावनाओं में लगाव नहीं होगा |
११. अपने चेतन मन से सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद करते रहें |सफलता की उम्मीद करते रहें |आशा जगाये रखें और खुद पर भरोसा कायम रखें |आपका अवचेतन मन आपकी इन आदतन विचारों को स्वीकार कर लेगा और इन्हें साकार भी कर देगा |
१२. कभी भी अपनी समस्या की नकारात्मक कल्पना न करें ,अपितु अपनी समस्या के सुखद अंत या समाधान की ही सदैव कल्पना करें |इससे आपके अवचेतन में संगृहीत ज्ञान आपके सामने आएगा और आपको रास्ता मिलेगा |आत्मबल बढ़ेगा और प्रयास अधिक होंगे |अंततः अवचेतन ऐसी परिस्थिति बनाएगा की समस्या का समाधान आपके पक्ष में हो |
१३. अपनी उपलब्धि को हलके में न लें और उससे असंतुष्ट न हों |उसे महसूस करें और उसके रोमांच को अनुभव करें |आप जो भी अनुभव करेंगे या कल्पना करेंगे या महसूस करेंगे उसे आपका अवचेतन मन स्वीकार करके आगामी परिणाम को प्रभावित करेगा और बदल देगा |.................................................................हर-हर महादेव 

अवचेतन के चमत्कार लाखों वर्षों से हो रहे

अवचेतन की शक्ति का उपयोग युगों युगों से है
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विभिन्न धर्मों ,सम्प्रदायों ,संस्कृतियों ,महाद्वीपों में युगों युगों से अवचेतन मन की उपचारक शक्ति का उपयोग होता आया है ,भले उनको इसके तकनीक का वास्तविक ज्ञान न रहा हो अथवा वह यह न जानते रहे हों की यह अवचेतन के चमत्कार हैं अथवा वे यह मानते रहे हों की यह ईश्वर के चमत्कार हैं |युगों युगों से लोग जानते रहे हैं और मानते रहे हैं की कहीं न कहीं पर एक उपचारक शक्ति है ,जो व्यक्ति की शारीरिक क्षमताओं को दोबारा लौटा सकती है ,उसका पुनर्निर्माण कर सकती है और बीमारी ठीक कर सकती है |वे मानते थे की यह रहस्यमय शक्ति कुछ विशेष स्थितियों में जाग्रत की जा सकती है और इसे सही तरीके से जाग्रत करने पर मानवीय कष्ट कम हो जाता है |सभी देशों -धर्मों का इतिहास इस विश्वास की पुष्टि करता है |
दुनिया के शुरूआती इतिहास में मनुष्यों को भले या बुरे के लिए गोपनीय तरीके से प्रभावित करने का ज्ञान ,जिसमे बीमारी का उपचार भी शामिल था ,पुजारियों और धर्मगुरुओं तक ही सीमित था |यह विश्वास किया जाता था की ईश्वर ने उन्हें कुछ विशेष शक्तियां दी है ,जिनमे उपचार करने की शक्ति भी शामिल है ,अथवा यह माना जाता था की ईश्वर की उनपर विशेष कृपा है और उन्हें यह सिद्धि है की वे उपचार कर सकते हैं |उपचार के तरीके और कर्मकांड दुनिया भर में अलग अलग थे ,लेकिन आम तौर पर उनमे ईश्वर की आराधना और चढ़ावा शामिल होता था |इसके आलावा विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान भी किये जाते थे ,जैसे हाथ या सर पर हाथ रखना और मन्त्रों का प्रयोग |ताबीज ,जंतर ,अंगूठियाँ ,स्मृतिचिन्ह और तस्वीरों का प्रयोग भी किया जाता है |इन क्रियाओं का दोहरा उद्देश्य होता था ,किन्तु सामान्य जन केवल एक ही पक्ष समझ पाता था की यह सब ईश्वर का चमत्कार है |जबकि दूसरा पक्ष अवचेतन का जागरण और वहां विश्वास उत्पन्न करना भी होता था ,जो व्यक्ति की आस्था को इतना प्रबल करता था की ईश्वरीय ऊर्जा जुड़े न जुड़े उसका मनोबल आधी समस्या समाप्त कर देता था अथवा अवचेतन आतंरिक तौर पर शरीर की हीलिंग स्गुरु कर देता था |कर्मकांड और मंत्रादी वातावरण और ब्रह्मांडीय ऊर्जा को भी व्यक्ति से सम्बंधित करते थे |
अवचेतन की क्रिया जगाने के विभिन्न तरीके उपयोग में लाये जाते थे जिनमे विश्वास अटल करना मुख्य होता था |उदाहरण के लिए कुछ प्राचीन मंदिरों में पुजारी रोगियों को नशीले पदार्थ भी खिलाते थे और उनके मदहोश हो जाने पर सम्मोहन के सुझाव देते थे |मरीजों को आश्वासन दिया जाता था की उनके नींद में ईश्वर दिखेगा और उनका उपचार हो जाएगा |इस तरह बहुत से रोगी स्वस्थ भी हो जाते थे |भारतीय परंपरा में ईश्वर के प्रति आस्था इतनी प्रबल कर दी जाती थी की व्यक्ति को विश्वास होता था की उसकी समस्या ईश्वर अवश्य हल करेगा |इसके लिए उसे प्रवचन ,उदाहरण ,कथाओं ,मिथकों के सहारे एक अद्भुत कल्पनालोक रचकर विश्वास दिला दिया जाता था की सभी समस्या ईश्वर हल कर देगा आप उस पर अट्टू विश्वास रखे |यह कारगर था व्यक्ति का विश्वास उसके अवचेतन की शक्ति को प्रबल कर उसकी समस्या हल करता था |ईश्वर तो सर्वत्र विद्यमान है ही आस्था से ऊर्जा को दिशा मिल जाती थी |
कुछ सम्प्रदायों में अजीब तरीके भी अपनाए जाते थे ,जैसे उन्हें कहा गया की वे राल ,लोबान और गंधरस को छिपकलियों के साथ मिलाकर दूज के चाँद की रौशनी में खुली हवा में कूटें |इस अजीब और रहस्यमय रश्म के बाद वे देवी की प्रार्थना करते थे ,अपना बनाया हुआ काढा पीते थे और सो जाते थे |अगर उनकी आस्था दृढ होती थी तो उन्हें सपने में देवी नजर आती थी |हालांकि यह अनुष्ठान हमें अजीब लगे ,संभवतः अति कल्पनाशील लगे ,लेकिन इसके बावजूद इससे अक्सर रोगी ठीक हो जाते थे |
प्राचीन समय के लोगों ने अवचेतन मन की अविश्वसनीय शक्ति के दोहन के कई कारगर तरीके खोज लिए थे ,जिनसे वे उपचार करते थे |हालांकि वे यह जानते थे की यह तरीके कारगर हैं किन्तु वे यह नहीं जानते थे की वे कैसे और क्यों कारगर थे |आज हम देख सकते हैं की वे अवचेतन मन को शाशाक्त सुझाव देकर उपचार कर रहे थे |धार्मिक अनुष्ठान और काढ़े तथा ताब्ज लोगों की कल्पना और विश्वास पर गहरा असर डालते थे |इनके कारण उनका अवचेतन मन उपचारक शक्ति के प्रबल सुझावों को आसानी से स्वीकार कर लेता था और अवचेतन मन की उपचारक शक्ति से मरीज ठीक हो जाता था |
सभी युगों ,समय और देशों में ऐसा हुआ है की जहाँ अधिकृत उपचारक अथवा चिकित्सक असफल हो गए और मरीजों ने उम्मीद छोड़ दी ,वहां अनधिकृत उपचारको और धर्म गुरुओं को उल्लेखनीय सफलता मिली है |यह सोचने पर मजबूर करता है |दुनिया के सभी हिस्सों में इन उपचारकों ने ये इलाज कैसे किये ?,इसका जबाब आसान है |ये उपचार इसलिए हुए ,क्योकि रोगी के अंधे विश्वास ने उसके अवचेतन मन में निहित उपचारक शक्ति को जगा दिया |उपचारकों के इलाज के और तरीके जितने कल्पनाशील और अजीब होते थे ,इस बात की उतनी ही ज्यादा संभावना होती थी की रोगी यह यकीन कर ले की इतनी अजीब चीज निश्चित रूप से असाधारण शक्तिशाली होगी |उत्तेजित भावनात्मक अवस्था के कारण उनके लिए चेतन और अवचेतन मन में स्वास्थ्य के सुझाव को स्वीकार करना आसान हो जाता था |आज भी यह परम्परा चल रही है |जितने अजीब इलाज के तरीके ,उतना अधिक विश्वास और उतनी ही जल्दी समस्या सुधार |चाहे तंत्र हो ,चिकित्सा हो ,कर्मकांड हो अथवा पूजा पद्धति आप ध्यान से देखें जितना अधिक आडम्बर और अजीब क्रियाएं उतना अधिक विश्वास |यह विश्वास ही मूल कुंजी है किसी भी क्षेत्र में सफलता की ,चाहे फिर ईश्वर प्राप्ति ही क्यों न हो अथवा स्वास्थय समस्या |तरीके माध्यम हैं विश्वास जगाने के ,विश्वास तो आप करते हैं और सफलता बी आपको ही मिलती है |अगर सामान्य स्थिति में ही विश्वास प्रबल है तो चमत्कार आप ही करते हैं |...................................................................हर-हर महादेव 

चमत्कार ईश्वर नहीं आप करते हैं

आपका अवचेतन कैंसर और लकवा से भी मुक्ति दिला सकता है
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अपने तंत्र -मन्त्र -गुह्य ज्ञान और जीवन के अबूझ रहस्यों के शोध क्रम में मेरी अनेक सिद्धों -महात्माओं ,मौलवियों -पादरियों ,चिकित्सकों ,पराविज्ञान विशेषज्ञों से मुलाकातें हुई हैं और अनेक रहस्यों को जानने ,समझने का सौभाग्य मिला है |मैंने अनेक विषयों के प्रकांड विद्वानों की पुस्तकों को समझने का प्रयत्न किया है और उनपर विशेषज्ञों की राई भी समझी है |इसी क्रम में मेरी एक धर्मगुरु से मुलाक़ात हुई और उन्होंने बताया की वे बुरी तरह फ़ैल चुके फेफड़े के कैंसर से कैसे उबरे |उन्होंने पूर्ण स्वास्थ्य के विचार को अवचेतन तक पहुंचाकर यह चमत्कारी परिणाम पाया |मेरे आग्रह पर उन्होंने मुझे उस प्रक्रिया का जो विस्तृत वर्णन बताया उसके अनुसार वह दिन में कई बार खुद को मानसिक रूप से पूरी तरह शिथिल कर लेते थे |
वह अपने शरीर से यह बोलकर खुद को शिथिल करते थे की " मेरे पंजे शिथिल हैं ,मेरे टखने शिथिल हैं ,मेरा दिल और फेफड़े शिथिल हैं ,मेरा सर शिथिल है ,मेरा पूरा अस्तित्व बिलकुल शिथिल है "|लगभग पांच मिनट बाद वह खुद को उनींदी अवस्था में पाते थे |फिर यह सत्यतापूर्ण प्रेरणा भरते थे |
ईश्वर की पूर्णता अब मुझमे व्यक्त हो रही है |सम्पूर्ण स्वास्थ्य का विचार अब मेरे अवचेतन मन में भर रहा है |ईश्वर ने मेरी जो छवि बनाई है ,जैसा मुझे बनाया है ,वह आदर्श छवि और व्यक्तित्व है |मेरा अवचेतन मन उसी आदर्श छवि और व्यक्तित्व के अनुसार मेरे शरीर को दोबारा बना रहा है |मेरे शरीर के क्षतिग्रस्त अंग और कोशिकाएं ठीक हो रहे हैं ,पुनर्निर्मित हो रहे हैं |मुझमे मौजूद ईश्वर इसमें मेरे अवचेतन की मदद कर रहा है |कोई भी रोगजनक जीवाणु -विषाणु मेरा शरीर का अंग नष्ट नहीं कर सकता ,मेरे शरीर की क्षति नहीं कर सकता |मेरा अवचेतन मेरे शरीर की सुरक्षा में सक्षम है ,पुनर्निर्माण में सक्षम है |
इस प्रकार के उपचारक और प्रेरणादायक विचारों को बार बार दोहराकार अवचेतन तक पहुचने से उनके अवचेतन ने इसे सही मान लिया और उसी दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया जिस दिशा की प्रेरणा उसे दि गई थी|वह धर्मगुरु जो की प्रकांड विद्वान् और मनोविश्लेषक भी थे इस तथ्य से भली भाँती अवगत थे की ईश्वर खुद में है उसे निर्देशित करने की आवश्यकता है |इस क्रिया से उनका उल्लेखनीय उपचार हुआ और वे पूरीतरह ठीक हो गए |उन्होंने जिस तकनीक का उपयोग किया था ,वह सम्पूर्ण स्वास्थ्य के विचार को अवचेतन मन तक पहुचाने का सीधा और सरल तरीका था |
स्वास्थय के विचार को अवचेतन मन तक पहुचाने का एक और अद्भुत तरीका अनुशाषित या वैज्ञानिक कल्पना है |एक लकवे का मरीज मेरे सामने आया जबकि मुझे कोई चिकित्सकीय ज्ञान नहीं है |में तो एक मामूली देवी भक्त और तंत्र पर खोज करने वाला व्यक्ति हूँ |मुझे पहले तो समझ नहीं आया की इसे में क्या चिकित्सा दे सकता हूँ ,किस तरह शरीर में उत्पन्न हो चुकी कमी को मन्त्र -तंत्र से ठीक करूँ जबकि यह व्यक्ति खुद जप आदि करने में सक्षम ही नहीं है |पर उसे राहत तो देनी ही थी अतः उसे देवी कवच धारण कराकर मैंने एक नया विचार उसे दिया |मैंने उसे बताया की वह कल्पना में स्पष्ट तस्वीर देखे की वह अपने घर में चहलकदमी कर रहा है ,घर के सामान खुद चलकर छू रहा है ,फोन पर बार कर रहा है और वे सभी काम कर रहा है ,जो वह सामान्य स्थिति में करता |मैंने उसे बताया की उसका अवचेतन मन सम्पूर्ण स्वास्थ्य की मानसिक तस्वीर को स्वीकार कर लेगा |उसे धारण कराया गया कवच किसी भी नकारात्मक ऊर्जा से उसे प्रभावित नहीं होने देगा |वह बार बार इस कल्पना को दोहराए |खुद को सामान्य महसूस करे |
उसने खुद को इस भूमिका में झोंक दिया |उसने सचमुच महसूस किया की वह अपने आफिस से लौट चूका है |घर में खुद चलकर आ रहा है |वह जानता था की वह अपने अवचेतन मन को एक मूर्त और निश्चित काम दे रहा है |उसका अवचेतन मन वह फिल्म थी ,जिस पर तस्वीर की छाप छोड़ी जा रही थी |वह व्यक्ति पढ़ा लिखा था जिससे उसने मेरी बात समझी की में क्या कहना चाहता हूँ और क्या समझा रहा हूँ |कूप मंडूक मूर्ख और अन्धविश्वासी होता तो कहकर चला जाता की में तो धार्मिक तांत्रिक उपचार के लिए आया था यह पता नहीं क्या अजीब सा बता रहे हैं |कोई अनपढ़ या अन्धविश्वासी होता तो यही समझता की इन्हें कुछ नहीं आता उल्टा पुल्टा बता रहे हैं ,भला कल्पना करने से भी कोई ठीक होता है |अगर ऐसा होता तो सबकी कल्पनाएँ ही पूर्ण न हो जाती |किन्तु वह मर्म समझा और लग गया |
उसने कई सप्ताह तक गहनता से तस्वीर देखि |मन में विश्वास भरा |काल्पनिक रूप से अंगों का सञ्चालन किया ,पर एक निश्चित दिशा बनाये रही जैसा मैंने उसे कहा था |रोज अलग अलग कल्पनाएँ नहीं की ,ना ही दिशा बदली |इस तरह एक निश्चित दिशा में निश्चित कल्पना से उसके अवचेतन तक एक निश्चित विश्वास पंहुचा |फिर एक दिन उसके घर दूरी पर रखी फोन की घंटी बजी |घर के लोग बाहर थे |उसके पलंग से कुछ फूट की दूरी पर बज रही घंटी तक उसने अचानक खुद को सामान्य समझते हुए पहुचने का प्रयत्न किया और फोन का जबाब देने में भी जैसे तैसे कामयाब हो गया |अचानक हुई इस प्रतिक्रिया से उसके निष्क्रिय अंगों का सञ्चालन शुरू हो गया |और उसी पल से उसका लकवा गायब हो गया |उसके अवचेतन मन की उपचारक शक्ति ने उसकी मानसिक तस्वीर पर प्रतिक्रिया की और उपचार संभव हो गया |यह व्यक्ति एक मानसिक अवरोध से पीड़ित था जिसने मष्तिष्क में उत्पन्न तंत्रिका आवेगों को उसके पैरों तक पहुचने से रोक दिया था |इसलिए वह चल नहीं पाता था |जब उसने अपना ध्यान अपने भीतर की उपचारक शक्ति पर केन्द्रित किया तो उसके एकाग्र ध्यान से शक्ति प्रवाहित होने लगी और वह दोबारा चलने लगा |हमारे द्वारा दिए गए कवच ने किसी भी प्रकार के नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव उस पर नहीं आने दिया जिससे वह सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहा और कामयाब हुआ |
अपने तंत्र क्षेत्र के खोज और अनुभवों के आधार पर मैंने यह पाया है की सब कुछ आप ही करते हैं |ईश्वर आप में ही है |चमत्कार भी आप ही करते हैं |ईश्वर तो केवल सहायत करता है |बहुत से लोगों को हो सकता है अच्छा भी न लगता हो किन्तु तभी में कहता हूँ की "चमत्कार ईश्वर नहीं आप करते हैं "|ईश्वर तो उसे पूर्ण करता है |कहावत भी है पहले से की ,,ईश्वर उसी की सहायत करता है जो अपनी सहायत खुद करे |अर्थात आप खुद लड़ेंगे तभी वह आपका साथ देगा |ईश्वर को चमत्कार करना होता और वह खुद सांसारिकता में रूचि लेता तो दुनिया इतने रंगों और धर्मों की न होती |इतनी असमानता न होती ,इतने कष्ट न होते |कोई अति धनि और कोई अति दरिद्र न होता |ईश्वर वाही देखता है जो उसे दिखाया जाए |आपमें दिखाने की क्षमता चाहिए |आप नहीं दिखा सकते तो वह निर्लिप्त रहता है |कहानियाँ तो हमने कल्पना से बना रखी हैं ......................................................................हर-हर महादेव

अवचेतन चमत्कार करता है

आपका अवचेतन आँखों की रौशनी लौटा सकता है
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दुनिया के सबसे मशहूर उपचारक धर्मस्थलों में से एक दक्षिण -पश्चिम फ्रांस का लूर्डेस है |लूर्डेस के चिकित्सा विभाग में बहुत सि फाइलें है ,जिनमे चमत्कारी उपचारों का विस्तृत विवरण है |इनमे से एक मैडम बायर का उपचार था |मैडम बायर नेत्रहीन थी |उनकी चक्षु तंत्रिकाएं क्षीण और बेकार हो चुकी थी |लूर्डेस आने के बाद उनकी आँखों की रौशनी लौट आई |उनकी जांच करने वाले कई डाक्टरों ने प्रमाणित किया की उनकी चक्षु तंत्रिकाएं अब भी बेकार थी ,लेकिन इसके बावजूद वे देख सकती थी |एक महीने बाद दोबारा जांच में यह पाया गया की उनका चक्षु तंत्र दोबारा ठीक होकर सामान्य हो गया था |
क्या यह धर्मस्थल के पानी का चमत्कार था या मैडम बायर के अवचेतन का विश्वास |संभव है धर्मस्थल के पानी में कुछ विशेषता हो पर उनके विश्वास पर अवचेतन मन ने वास्तव में चमत्कार किया |उनका उपचार तो उनके अवचेतन मन ने किया ,जिसने उनके विश्वास पर प्रतिक्रिया दी |उनके अवचेतन मन के भीतर के उपचारक सिद्धांत ने उनके विचार की प्रकृति के अनुरूप प्रतिक्रिया की |विश्वास अवचेतन मन तक पंहुचा विचार है |विश्वास का अर्थ है किसी भी चीज को सच मानना |जिस चीज पर विश्वास हो जाता है ,वह अपने आप हो जाती है |
निःसंदेह मैडम बायर इस धर्मस्थल पर बड़ी उम्मीद और आस्था के साथ गई थी |वे अपने दिल में जानती थी की वे ठीक हो जायेंगी |उनके अवचेतन मन ने इसी के अनुरूप प्रतिक्रिया की और हमेशा मौजूद उपचारक शक्तियों को सक्रीय कर दिया |अवचेतन मन जिसने आँख बनाई थी ,निश्चित रूप से एक मृत तंत्रिका को दुबारा सजीव कर सकता था |रचनात्मक सिद्धांत ने जिस अंग की रचना की थी ,वह उनकी दोबारा रचना कर सकता था |यह उदाहरण है की आपके विश्वास के अनुरूप ही आपको मिलेगा |
सामान्य रूप से हम अक्सर देखते हैं की हम किसी डाक्टर के यहाँ जाते हैं तो अगर छोटी मोती बिमारी हो तो वह डाक्टर की विटामिन की गोली से भी ठीक हो जाती है जबकि हमें पता भी नहीं होता की डाक्टर केवल विटामिन की गोली दे रहा |बच्चे को कोई छोटी तकलीफ हो और आप उसे विटामिन या कैल्सियम की गोली दे कहें की इस दवा से तुम ठीक हो जाओगे तो आपको आश्चर्य होगा की वह सचमुच ठीक हो जाता है |यह विश्वास की शक्ति है जो अवचेतन तक पहुचती है और अवचेतन ठीक कर देता है |अक्सर अधिकतर डाक्टरों की दवा विश्वास पर काम करती है और मरीज की आधी समस्या विश्वास की वजह से ठीक हो जाती है |आपको किसी डाक्टर पर विश्वास न हो और वह बहुत बड़ा ही डाक्टर हो तो भी आपको ठीक होने में बहुत समय लग जाएगा |अनुभव करके देख सकते हैं |आपके मन में प्रबल विश्वास हो की आपको कुछ नहीं हो सकता तो आपको आश्चर्य होगा की आपको बहुत कम समस्याओं का सामना करना पड़ता है |ध्यान अवश्य रखें की विश्वास और अतिविश्वास में अंतर होता है और अतिविश्वास आपको डूबा भी सकता है |.......................................................हर-हर महादेव 

आपमें अद्भुत शक्ति है

अवचेतन शरीर को नियंत्रित करता है
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चाहे आप जागे हो या सोये ,आपके अवचेतन मन की अथक शक्ति आपके शरीर के सभी महत्वपूर्ण कार्यों को नियंत्रित करती है |इसमें आपके चेतन मन के किसी तरह के दखल की जरुरत नहीं होती है |जब आप सो जाते हैं तो भी आपका ह्रदय धड़कता रहता है |आपके सीने और फेफड़े की मांशपेशियाँ फेफड़ों में हवा भरती और निकालती रहती है |आपके शरीर की कोशिकाओं के काम के कारण निकली कार्बन डाई आक्साइड के बदले में ताज़ी आक्सीजन भर ली जाती है ,जिसकी आपको कार्य करने के लिए जरुरत होती है |आपका अवचेतन मन आपकी पाचक प्रक्रियाओं और ग्रंथियों क्र स्राव के अलावा आपके शरीर के अन्य सभी अद्भुत जटिल कार्यों को नियंत्रित करता है |यह सब लगातार होता रहता है ,चाहे आप जाग रहे हों या सो रहे हों |
अगर आपको अपने शरीर के सभी काम चेतन मन से करने पड़े ,तो आप निश्चित ही असफल हो जायेंगे |आप शायद बहुत जल्दी मर जायेंगे |ये प्रक्रियाएं बहुत जटिल हैं और आपस में बुरी तरह गुंथी हुई है |किन्तु आपका अवचेतन इसे आसानी से करता रहता है |चेतन और अवचेतन के फर्क को समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं |मान लें ,आप किसी सुपरसोनिक जेट में बैठकर समुद्र के ऊपर से गुजर रहे हों और काकपिट में घुस जाएँ |निश्चित ही आपको हवाई जहाज उड़ाना नहीं आता है ,लेकिन आप पायलट का ध्यान भटकाकर परेशानी जरुर खड़ी कर सकते हैं |इसी तरह से आपका चेतन मष्तिष्क शरीर को तो नहीं चला सकता ,लेकिन वह इसके सही तरह से काम करने के रास्ते में बाधा जरुर बन सकता है |
चिंता तनाव ,डर और निराशा ,ह्रदय ,फेफड़ों ,आमाशय और आतों के सामान्य कार्यों में बाधा डाल सकती हैं |जब आप शारीरिक और मानसिक रूप से विचलित महसूस करते हैं ,तो आप जो सबसे अच्छा काम कर सकते हैं वह है शिथिल होना ,आराम करना और विचार प्रक्रिया को रोक देना |अपने वाचेतन मन से बात करें |इससे कहें की यह शान्ति ,सामंजस्य और दैवी विधान को स्थापित करें |ऐसा करने पर आप पायेंगे की आपके शरीर की समूची कार्य प्रणाली दोबारा सामान्य हो गई है |अपने अवचेतन मन से अधिकार और विश्वास के साथ बोलें |यह आपके आदेश का पालन करके प्रतिक्रिया करेगा |
आप अपने अवचेतन मन से अपने काम करवा सकते हैं |इसकी खामोश प्रक्रिया को आप देख सुन नहीं सकते |आपका पाला हर बार अपने वाचेतन मन के बजाय चेतन मन से पड़ता जबकि सभी महत्वपूर्ण कार्य अवचेतन मन ही करता है |अपने चेतन मन से सर्वश्रेष्ठ की आशा करते रहें और यह पक्का करें की आपके आदतन विचार अच्छी ,सुन्दर ,सच्ची ,न्यायपूर्ण और सद्भावनापूर्ण चीजों पर केन्द्रित हों |अपने चेतन मन का ध्यान रखें ,इसके विचारों को नियंत्रित रखें और दिल में जान लें की आपका अवचेतन मन आपके ही आदतन विचारों के अनुरूप परिणाम दे रहा है ,व्यक्त कर रहा है और परिस्थितियां बना रहा है |
याद रखें जिस प्रकार पानी उसी पाइप का आकार ले लेता है ,जिसमे वह बहता है ,उसी तरह आपमें जीवन सिद्धांत ,आपके विचारों की प्रकृति के अनुरूप प्रवाहित होता है |दावा करें की आपके अवचेतन की उपचारक शक्ति आपके भीतर सामंजस्य ,सेहत ,शान्ति ,सुख और प्रचुरता के रूप में प्रवाहित हो रही है |ज्ञानी व्यक्ति या प्यारे मित्र के रूप में इसकी कल्पना करें |दृढ़ता से यकींन करें की यह आपके भीतर लगातार प्रवाहित हो रहा है ,आपको सजीव ,सजग ,सक्रीय बना रहा है ,प्रेरित कर रहा है और समृद्ध बना रहा है |इसकी वापस प्रतिक्रिया आपको इसी रूप में प्राप्त होगी ,क्योकि यह वैसी की प्रतिक्रिया देता है जैसा आप चेतन मन से इसमें भरते हैं |जैसा आप यकीन करेंगे वैसा ही आपको मिलेगा |आप किसी प्रक्रियां को बार बार नियंत्रित करने के लिए सोचेंगे तो आपका अवचेतन मन कुछ समय बाद स्वयमेव उसे नियंत्रित करने लगेगा और आपको आश्चर्य होगा की आपके सोचने मात्र से यह कार्य होने लगा |................................................................हर-हर महादेव 

सभी कष्टों का उपचार आप ही के पास है

रोग -कष्ट का इलाज है अवचेतन में
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आपके अवचेतन मन की शक्ति अतुलनीय और असीमित है |आपका अवचेतन मन आपको प्रेरित करता है और मार्गदर्शन देता है |यह यादों के भण्डार से तस्वीरें और दृश्य निकालकर लाता है |आपका अवचेतन आपके दिल की धड़कन और रक्त संचार नियंत्रित करता है |यह पाचन और उत्सर्जन को सुचारू बनता है |आपका वचेतन शरीर की सभी अनिवार्य प्रक्रियाएं और कार्यों को नियंत्रित करता है जिनका आपको पता तक नहीं चलता |आपका वाचेतन मन कभी सोता नहीं ,न ही कभी आराम करता है ,यह हमेशा काम करता रहता है |आपका अवचेतन मन आपके आदर्शों ,महत्वाकांक्षाओं और परोपकारों का स्रोत है |अवचेतन मन असाध्य रोगों को ठीक कर सकता है |दर्द की अनुभूति रोक सकता है |यह आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रमाणित हो चूका है |
एस्डेल एक स्काटिश सर्जन थे ,जिन्होंने १८४० के दशक में बंगाल में काम किया था |उस जमाने में बेहोश करने के लिए ईथर या रासायनिक एनेस्थेसिया की अन्य आधुनिक विधियों का इस्तेमाल नहीं होता था |१८४३ से १८४६ के बीच डा.एस्डेल ने सभी तरह के कुल मिलाकर चार सौ बड़े आप्रेसन किये |इनमे आँख ,कान ,गले के अलावा अंग काटने ,ट्यूमर हटाने और कैंसर की गाँठ हटाने के आपरेशन शामिल थे |इन सभी आप्रेशनों में केवल मानसिक एनेस्थेसिया ही दिया गया |मरीजों का कहना था की उन्हें कोई दर्द नहीं हुआ और आपरेशन के दौरान इनमे से कोई भी नहीं मरा |आश्चर्य की बात यह थी की आपरेशन के बाद एस्डेल के बहुत कम मरीज मरे |यह उस वक्त की बात थी जब लोग बैक्टीरिया -वायरस के बारे में जानते भी नहीं थे |लुई पाश्चर और जोसेफ लिस्टर ने यह साबित नहीं किया था की संक्रमण बैक्टीरिया से फैलता है |किसी को भी एहसास नहीं था की आपरेशन के बाद होने वाली संक्रमण दूषित औजारों और हानिकारक विषाणुओं के कारण होती है |जब एस्डेल अपने मरीजों को सम्मोहन की अवस्था में सुझाव देते थे की उन्हें कोई संक्रमण या सेप्टिक नहीं होगा ,तो मरीज के अवचेतन मन इस सुझाव पर प्रतिक्रया करते थे |वे संक्रमण के जीवनघाती खतरों से लड़ने की प्रक्रिया शुरू कर देते थे |इस सर्जन ने यह खोज लिया था की अवचेतन मन की चमत्कारी शक्ति का इस्तेमाल कैसे किया जाए |
आपका अवाचेतन मन आपको समय और स्थान से परे कर सकता है |यह आपको हर दर्द और कष्ट से मुक्त कर सकता है ,यह आपको सभी समस्याओं के जबाब दे सकता है ,चाहे वे जो भी हों |आपके भीतर ऐसी शक्ति और ज्ञान है जो आपकी बुद्धि से परे है और आप इसके चमत्कार पर हैरान हो सकते हैं |रोग से ठीक होने का दूसरा प्रमाण है की एक व्यक्ति को चरम रोग हुआ |वह लगभग १० वर्षों तक विभिन्न स्थानों और विशेषज्ञ डाक्टरों से इलाज कराता रहा किन्तु उसे लाभ नहीं हुआ और उसका चर्मरोग बिगड़ता गया |फिर एक दिन उसकी मुलाक़ात एक दार्शनिक ,मनोवैज्ञानिक धर्म गुरु से हुई जिसने उसे बताया की शमस्त शरीर एक कोशिका से उत्पन्न होता है ,तुम्हारा भी और हर प्राणी वनस्पति का |इसे बिगाड़ने अथवा रोगग्रस्त करने वाला भी एक कोशिका का ही होता है तो तुम करोड़ों कोशिकाएं रखकर भी उससे नहीं लड़ पा रहे |तुम्हारी समस्या तो मात्र कुछ कोशिकाओं की है |तुम चाहो तो ऐसा हो सकता है ,तुम खुद इसे ठीक कर सकते हो ,अपने डाक्टर से कहो तो |व्यक्ति समझ गया की धर्म गुरु क्या समझाने की कोशिस कर रहे हैं |उसके शरीर की रचना करने वाली अवचेतन बुद्धि घडी बनाने वाले की तरह है |यह ठीक ठीक जानती है की उसके शरीर की सभी महत्वपूर्ण क्रियाओं और प्रक्रियाओं का उपचार कैसे किया जाए ,शरीर को दोबारा कैसे बनाया जाए और मार्गदर्शन कैसे किया जाए |इस काम को सही तरीके से करवाने के लिए स्वास्थय का आदर्श विचार देना होगा |यह आदर्श विचार वह कारण बन जाएगा ,जिसका परिणाम उपचार होगा |वुँक्ति ने एक प्रार्थना तैयार की --
मेरा शरीर और इसके सभी अंग मेरे अवचेतन मन की असीमित बुद्धि ने बनाये हैं |यह जानता है की मेरा उपचार कैसे किया जाए |इसकी बुद्धि ने मेरे सभी अंग ,उतक ,मांस पेशियाँ और हड्डियाँ बनाई हैं |मेरे भीतर की यह असीमित उपचारक शक्ति मेरे अस्तित्व की हर कोशिका को रूपांतरित कर रही है और मुझे सम्पूर्ण बना रही है |में उस उपचार के लिए धन्यवाद देता हूँ ,जो में जानता हूँ की इस समय हो रहा है |मेरे भीतर की रचनात्मक बुद्धि में अद्भुत शक्तियाँ हैं |,,,इस प्रार्थना को हर रोज पांच मिनट तक दिन में तीन चार बार व्यक्ति दोहराने लगा |लगभग तीन महीने में उसके चरम रोग पूरी तरह ठीक हो गए साथ ही कुछ अन्य समस्याएं भी समाप्त हो गई |जो डाक्टर इलाज करते थक गए थे घबरा गए की कैसे इतनी जल्दी ठीक हो गया |आपका शरीर तभी रोग ग्रस्त होता है जब आपकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो |प्रतिरोधक क्षमता का सीधा सम्बन्ध अवचेतन मन से होता है |हमारी सारी समस्या ,उन्नति ,अवनति ,सफलता -असफलता का सूत्र हमारे अवचेतन में ही होता है |हमारे ऋषियों ने यूँही नहीं कहा ,अहम् ब्रह्माष्मी ,,|व्यक्ति चाहे तो कुछ भी कर सकता है |ईश्वर भी बन सकता है |............................................................................हर-हर महादेव 

आधार वाक्य प्रेरणा /उन्नति /सफलता देता है

जीवन के लिए आधार वाक्य जरुर बनाएं
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प्राचीन यूनान के जमाने से दार्शनिक और तर्क शास्त्रियों ने सिलोजिज्म नामक तर्क का अध्ययन किया है |सिलोजिज्म में मष्तिष्क व्यावहारिक रूप में तर्क करता है |इसका मतलब यह है की आपका चेतन मन जिस प्रमुख आधार वाक्य को सही मानता है ,उसी से यह निष्कर्ष तय होता है ,जिस पर आपका अवचेतन मन पहुचेगा |इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है की वह सवाल या समस्या कौन सि है |अगर आधार वाक्य सही है तो निष्कर्ष अवश्य सही होगा |उदाहरण के लिए -
हर गुण प्रशंसनीय है
दयालुता एक गुण है ,इसलिए दयालुता प्रशंशनीय है |
या यह
सभी निर्मित चीजें बदलती और ख़त्म होती हैं |
मिश्र के पिरामिड निर्मित चीजें हैं ,इसलिए पिरामिड बदलेंगे और ख़त्म होंगे |
पहले वाक्य को प्रमुख आधार वाक्य कहा जाता है और सही आधार वाक्य से सही निष्कर्ष निकलते हैं |आधार वाक्य की कार्य प्रणाली अवचेतन की असीमित शक्ति पर कार्य करती है |यह वाही रास्ते निकालता है जो आप उसमे भरते हैं चेतन मन द्वारा |अपनी इच्छाओं को साकार करने और कुंठा से उबरने के लिए दिन में कई बार द्रिघ्ता से कहें ---- असीमित बुद्धिमत्ता ने मुझे यह मनोकामना दि है और यही मुझे इसे साकार करने की आदर्श योजना की राह दिखाती है ,उस ओर ले जाती है और आवश्यक बातें बताती है |में जानता हूँ की मेरे अवचेतन की अधिक गहरी समझ अब प्रतिक्रिया कर रही है और में जो महसूस करता हूँ तथा जिस पर मन में दावा करता हूँ ,वह बाहर व्यक्त होती है |संतुलन और सद्बुद्धि हर ओर है |
दूसरी तरफ अगर आप कहते हैं -- अब कोई रास्ता नहीं बचा है ,अब सारा खेल ख़त्म हो गया ,इस उलझन से बाहर निकलने का कोई तरीका नहीं ,में बाधित और अवरुद्ध हूँ ,,,तो आपको आपके अवचेतन मन से कोई जबाब या प्रतिक्रिया नहीं मिलेगी |अगर आप चाहते हैं की आपका अवचेतन आपके लिए काम करे तो ,इसका सहयोग पाने के लिए इससे आग्रह करना होगा |यह आपके लिए हमेशा काम कर रहा है |आपके अवचेतन के पास अपनी बुद्धि है लेकिन यह आपके विचारों और छवियों के पैटर्न को स्वीकार कर लेता है |जब आप इसमें समस्या का जबाब तलाशते हैं तो आपका वाचेतन प्रतिक्रया करेगा और यह आपसे उम्मीद करेगा की आप अपने चेतन मन में किसी सच्चे निर्णय या फैसले पर पहुच जाएँ |आपको यह मानना होगा की आपके अवचेतन मन के पास जबाब है |अगर आप कहते हैं ,,,मुझे नहीं मालूम की कोई रास्ता है या नहीं ,में पूरी दुविधा और उलझन में हूँ ,मुझे जबाब क्यों नहीं मिलता ?,,,तो आप अपनी प्रार्थना को नकार रहे हैं |समय काटते सैनिक की तरह आप ऊर्जा का प्रयोग तो करते हैं ,लेकिन आगे नहीं बढ़ते हैं |
अपने मष्तिष्क के पहियों को विराम दें |आराम से बैठ जाएँ ,शिथिल हो जाएँ ,,शान्ति से कहें ---- मेरा अवचेतन मन जबाब जानता है |यह इस समय भी प्रतिक्रया कर रहा है |में धन्यवाद देता हूँ ,क्योकि में जानता हूँ की मेरे अवचेतन की असीमित बुद्धिमत्ता साड़ी बातें जानती है और मुझे इस वक्त आदर्श जबाब दे रही है |मेरा सच्चा विश्वास मेरे अवचेतन मन की बुद्धिमत्ता और ज्ञान को मुक्त कर रहा है |मुझे ख़ुशी है की ऐसा हो रहा है |याद रखिये अच्छा सोचेंगे अच्छा होगा ,बुरा और नकारात्मक सोचेंगे बुरा होगा |आपका अवचेतन मन आपके साथ बहस नहीं करता |यह चेतन मन के आदेश को चुपचाप मान लेता है |
जब आप एक आधार वाक्य अपने लिए चुन लेते हैं और बार बार उसे दोहराते हैं ,तो यह अवचेतन में स्थायी हो जाता है और अवचेतन उसे सही मान लेता है |दुनिया कुछ भी कहती रहे पर अवचेतन उसे ही सही मानता है |भारतीय महर्षियों ने अवचेतन की इसी शक्ति को बहुत पहले जान लिया था |वह समझ गए थे की सब कुछ व्यक्ति ही करता है ,उर्जायें तो मात्र माध्यम होती हैं |इसीलिए उन्होंने खुद मनुष्य को ईश्वर बनाने की बात कही |व्यक्ति में असीमित शक्ति होती है |अगर आप आधार वाक्य बनाते हैं की -- दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं,,  तो आपका वाचेतन इसे सच मान लेगा |परिस्थितियां कुछ भी बन जाएँ पर अवचेतन हमेशा कहेगा दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं |इससे होगा यह की हमेशा अन्दर से आशा और उत्साह की आवाज आएगी की दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं |
आपका अवचेतन किसी भी परिस्थिति में आपको हार मानने नहीं देगा और आपका मष्तिष्क हमेशा हल खोजने की ओर दौडाता रहेगा और उसे संयत रखेगा ,हताश नहीं होने देगा |इसमें संचित जीवन भर की सूचनाओं का विश्ह्लेषण करेगा ,अगर हल मिल गया तो ठीक नहीं मिला तो यह कई दिनों तक हल खोजता रहेगा ,यहाँ तक की पूर्व जन्मों तक भी इसका जाना असंभव नहीं |यह अनेक लोकों की यात्रा करेगा ,पूर्व समय और सूचनाओं का विश्लेष्ण करेगा और सलाह सुझाता रहेगा |अंततः कोई न कोई रास्ता निकाल ही देगा |आत्मबल तो हमेशा बनाये ही रहेगा ,संघर्ष की शक्ति देता रहेगा |इसलिए हर सफल व्यक्ति अपने लिए आधार वाक्य जरुर चुने होता है |यही उसकी सफलता का राज होता है |"" भीड़ का हिस्सा मत बनो "" एक आदर्श आधार वाक्य है जो कुछ नया हमेशा करने की प्रेरणा देता है और आपको अलग करने को प्रेरित करता रहता है |यह मेरा आधार वाक्य है ,जिससे हमेशा मुझे कुछ नया खोजने की प्रेरणा मिलती है |लकीर पीटना और आंखमूंदकर कोई बात मान लेना मेरे बस का नहीं |यही मेरी tantra और पारलौकिक खोजों का आधार और प्रेरणा है |.................................................................................हर-हर महादेव 

सलाह /सुझाव आंख मूंदकर न मानें

एक सुझाव किसी का जीवन नष्ट अथवा समाप्त कर सकता है
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सुझाव अथवा सलाह एक सार्वभौम हक़ लोगों को लगता है |जिसे देखो दुसरे को सलाह देता नजर आता है |भले दुसरे की परिस्थिति न जानता हो ,समस्या न समझता हो ,क्षमता न देखता हो कितु हर कोई सलाह बिन मागे दे देता है |कभी भी यह नहीं सोचता की उसकी सलाह का परिणाम क्या हो सकता है |यह तो समाज और लोगों की बात है ,जहाँ बिन मांगे सलाह मिलते रहते हैं ,यद्यपि इन पर कुछ कम लोग ध्यान देते हैं |स्थिति तब विषम हो जाती है जब कोई खुद किसी से सलाह लेने गया हो और सलाह देने वाला ऐसी सलाह दे दे की उसकी हिम्मत टूट जाए और इतना गहरे अवचेतन बैठ जाए की उसका जीवन नष्ट हो जाए अथवा समाप्त ही हो जाए |
इस तरह की सलाह आजकल आधुनिक ज्योतिषी और पंडित ,आपके हमारे घर वाले ,रिश्तेदार तथा तथाकथित तांत्रिक देते हैं की व्यक्ति सुधरने की बजाय नष्ट हो जाए और उसकी स्थिति और बिगड़ जाए |यह अपने छोटे से स्वार्थ में इतना बड़ा अहित कर देते हैं की व्यक्ति की समस्या नहीं ,व्यक्ति ही समाप्त हो जाता है |इन्हें मनोविज्ञान की तो समझ होती नहीं ,न इनके लिए व्यक्ति कोई महत्त्व रखता है |इन्हें तो बस अपने स्वार्थ से मतलब होता है ,जिसका आधार इनका अधकचरा ज्ञान होता है |पारंपरिक रूप से देखें तो ज्योतिषी-तांत्रिक-पंडित आदि के एक निश्चित संस्कार बनाए गए हैं किन्तु आज उन्हें जानने वाला ही कम है मानने और अमल करने वाला तो दुर्लभ है |ज्योतिष अथवा कोई भी शास्त्र स्पष्ट बताने से मन करता है ,संदेह व्यक्त करना की ऐसा हो सकता है ,एक आदर्श भाषा रही है ,किन्तु आज सीधे बोला जाता है |इतना ही नहीं ऐसी बातों से भी डरा दिया जाता है जिसके लिए व्यक्ति गया ही नहीं अथवा जिसका कोई लेना देना ही नहीं |डर और भय उत्पन्न करने के लिए आजकल ऐसे ऐसे योगों -दोषों को बताया जाता है ,जैसे यह पहले थे ही नहीं और उपाय न किये गए तो सबकुछ समाप्त हो जाएगा |ज्योतिषी जाते ही ग्रह ,कालसर्प, मांगलिक आदि ऐसे बताएगा जैसे अब सब समाप्त होने वाला है |
तांत्रिक भूत-प्रेत-अभिचार तुरंत बतायेगा ,भले वह हो या न हो |व्यक्ति तो पहले से परेशान ,एक भय नया उत्पन्न हो गया ,तीसरा पैसे भी ले लिए गए |अब वह इतना टूट जाता है की जो है उससे भी हाथ धोने लगता है |ऐसा सभी उन जगहों पर होता है जहाँ कोई किसी से सलाह लेने जाए |सलाह देने वाला अपना स्वार्थ देखने लगता है |व्यक्ति का लाभ बहुत ही कम देखते हैं |एक उदाहरण निम्न प्रकार है -
हमारे एक दूर के रिश्तेदार ने एक मशहूर भविष्यवक्ता से अपना भविष्य पूछा [[चूंकि घर की मूली घास बराबर लगती है ,इसलिए उन्होंने हमारी बात न मानी ]]|उस मशहूर ज्योतिषी ने उसे बताया की उसका दिल बहुत कमजोर है ,उसका मन बहुत विचलित है ,मारकेश आने वाला है ,ग्रह स्थितियां विपरीत हैं और अगली अमावस्या को वह मर जाएगा |वह रिश्तेदार स्तब्ध रह गया |वह गया था पारिवारिक समस्या के निवारण का उपाय पूछने ,पर बताया ऐसा गया की उसके होश गम हो गए |उसने अपने परिवार के हर व्यक्ति को भविष्यवाणी बताई |उसने अपने वकील से मिलकर वसीयत ठीक करवा ली |जब मैंने उसका विश्वास डिगाने की कोशिस की ,तो उसने मुझे बताया की उस भविष्यवक्ता में अद्भुत पारलौकिक शक्तियां हैं |यह भविष्यवक्ता लोगों का बहुत भला या बुरा कर सकती/सकता है |उसे भविष्यवाणी की सच्चाई पर पूरा भरोसा है | जब अमावस्या करीब आने लगी ,तो वह खोया खोया रहने लगा |एक महीने पहले वह आदमी खुश ,स्वस्थ ,उत्साही और जोशीला था |अब वह बीमार दिखने लगा |भय के कारण अमावस्या आने आते  ब्लड प्रेशर बढ़ गया ,डिप्रेसन ,घबराहट बढ़ गयी |अमावस्या को सोचकर की आज में मर जाऊँगा उसे बहुत बुरा हार्ट अटैक आ गया और वह सचमुच मर गया |हालांकि उसे पता ही नहीं था की अपनी मौत का कारण एक सुझाव और वह खुद था |ऐसा इसलिए हुआ की वह खुले मन और दिमाग से अपनी भलाई के लिए सलाह लेने गया था ,इसलिए सलाह ने उसके अवचेतन के गहरे तुरंत प्रवेश कर लिया और अवचेतन ने उसे सही मान लिया |सही मानकर अवचेतन ने उस दिशा में काम शुरू कर दिया की सचमुच वह मरने वाला है |
हममे से कितनो ने ही इस तरह की कहानियाँ सुनी हैं और यह सोचकर थोड़े काँपे हैं की यह दुनिया रहस्यमई अनियंत्रित शक्तियों से भरी पड़ी है ? हाँ दुनिया शक्तियों से भरी पड़ी है ,लेकिन वे न तो रहस्यमय हैं और न ही अनियंत्रित |रिश्तेदार ने खुद अपनी जान ले ली ,क्योकि उसने एक शसक्त सुझाव को अपने अवचेतन मन में दाखिल होने दिया |उसे भविष्यवक्ता की शक्तियों पर भरोसा था ,इसलिए उसने उसकी भविष्यवाणी को पूरा स्वीकार कर लिया |आइये अवचेतन मन की कार्यविधि के आधार पर इस घटना को देखें |व्यक्ति का चेतन या तार्किक मन जिस बात पर यकीं करता है ,अवचेतन उसे स्वीअकार लेता है और उसके अनुरूप कार्य करता है |रिश्तेदार जब भविष्यवक्ता के पास गया तो वह सुझाव ग्रहण करने की मनोदशा में था |भविष्यवक्ता ने उसे एक नकारात्मक सुझाव दिया ,जिसे उसने सच मान लिया [भले वह गलत सुझाव स्वार्थ वश दिया गया हो ],वह दहशत में आ गया |उसे पूरा विश्वास था अगली अमावस्या को वह मरने वाला है |उसने इसके बारे में सबको बता दिया और अपनी मौत की तैयारी करने लगा |मौत के बारे में उसके डर और आशंका को उसके अवचेतन मन ने सही मान लिया और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की की हार्ट अटैक आ जाए |इस प्रकार अवचेतन ने उसे हकीकत में बदल दिया |
जिस भविष्यवक्ता ने मौत की भविष्यवाणी की उसकी शक्ति बहुत अधिक नहीं थी किन्तु भ्रम फैला रखा था |उसके सुझाव में जान लेने की शक्ति नहीं थी |अगर वह आदमी मन के नियमों को जानता ,तो वह इस नकारात्मक सुझाव को पूरी तरह अस्वीकार कर देता और भविष्यवक्ता के शब्दों पर जरा भी ध्यान न देता |अगर वह जानता की वह अपने ही विचारों और भावनाओं द्वारा नियंत्रित है तो वह जिन्दा रह सकता था |तब भविष्यवक्ता की भविष्यवाणी बख्तरबंद टैंक पर फेकी गयी रबर की गेंद जैसी होती |किन्तु जागरूकता और समझ की कमी के कारण उसने अपनी मौत को खुद ही बुला लिया |
यह एक उदाहरण मात्र है |ऐसा हमारे समाज में आसपास रोज होता है ,|लोग सलाह देते समय नहीं सोचते की इसका अगले पर क्या प्रभाव होगा |अपने स्वार्थ के लिए ऐसी सलाहें दी जाती हैं की व्यक्ति टूट जाए ,नष्ट हो जाए ,मर जाए अथवा अलग विपत्ति में पद जाए |किसी को भूत की सलाह दे दीजिये झूठा |अब वह भ्रम में हो जाएगा |मन में बैठ गया तो हर जगह डरेगा |डरेगा तो मन कमजोर होगा ,मानसिक बल का ह्रास होगा और डर उसे किसी भी समय निश्चिन्त नहीं रहने देगा |फलतः चिंता -भय बढने से स्वास्थय खराब होगा और व्यक्ति की असफलता शुरू और कार्यप्रणाली छिन्न भिन्न |उसे तो फिर बादलों और वृक्षों के आकार में भी भूत दिखने लगेंगे |इसी तरह कोई सुझाव किसी को गंभीरता से दे दीजिये की आप में अमुक कमी है ,तर्क से साबित कर दीजिये ,व्यक्ति स्वीकार कर ले तो उसमे कमी न भी हो तो कुछ दिन में उत्पन्न हो जायेगी |
याद रखिये दूसरों के सुझावों में कोई शक्ति नहीं होती |आप अपने विचारों द्वारा उन्हें शक्ति देते हैं |आपको अपनी मानसिक सहमति देनी होती है |आपको उस विचार को स्वीकार करना होता है |तब वह विचार आपका बन जाता है और आपका वाचेतन उसे साकार करने के लिए काम करता है |याद रखें आपके पास चुनने की क्षमता है ,जिंदगी चुनें ,मौत चुनें ,प्रेम चुनें ,नफ़रत चुनें ,सेहत चुनें या दुःख |आप कभी किसी की सलाह सुझाव को आख मूदकर न माने |समझें ,तर्क की कसौटी पर परखें |नकारात्मक सुझावों का अधिक विश्लेषण करें की कहीं यह किसी स्वार्थवश तो नहीं दिया गया |आधुनिक सुझाव दाताओं से सावधान रहें और समझें |यह आपको और पतन के रास्ते पर ले जा सकता है |...........................................................हर-हर महादेव 

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...