Sunday 17 December 2017

विभिन्न धर्मो में तंत्र साधना का स्वरुप

::::::::::::::विभिन्न धर्मो में तंत्र साधना ::::::::::::::
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बौद्ध धर्मः-
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बौद्ध धर्म में विभिन्न प्रकार के शिष्यों के लिए चार प्रकार की तांत्रिक साधना बतलायी गई हैं।
. चर्य तंत्र, . क्रिया तंत्र, . योग तंत्र, . अनुत्तर योग तंत्र
इसमें पहला दो मूल तांत्रिक साधना नहीं है। शक्तियाँ केवल अंतिम दो- योग तंत्र एवं अनुत्तर योग तंत्र में ही निहित है। इसके द्वारा पर्ूण्ाता की प्राप्ति संभव है। हालांकि महात्मा बुद्ध अपने भिक्षुओ को जादू, टोना एवं तांत्रिक शक्तियों से दूर ही रहने का निर्देश देते थे। उनके अनुसार ये शक्तियाँ मानव को गलत राह पर ले जाती है। बाद में बौद्ध धर्म में हीनयान एवं महायान दो भाग हो गये। हीनयान के मानव शारीरिक सुखों को त्यागकर मोक्ष प्राप्ति संभव मानते हैं। लेकिन महायान में शारीरिक सुखों को भोग करके मोक्ष प्राप्ति की बात करते हैं। यहीं से प्रारंभ होती है महायान की तंत्र साधना इसमें ये लोग स्त्रियों का भी उपयोग करते हैं। इनकी साधना पद्धति को बज्रयान कहते हैं। बज्रयान का मतलब है- नाशवान।
बज्रयान की दो शाखाएँ हैं - . सहजयान . कालचक्र यान।
बौद्ध धर्म में मंत्र का बहुत महत्त्व है। इनकी एक मंत्र है जिसे ये महामंत्र कहते हैं।
ओं मणि पद्में हुम”
इसी मंत्र से साधक और लामा लोग तंत्र की साधना करते हैं। यह बहुत ही प्रभावकारी मंत्र है। बौद्ध लामाओं के अनुसार इस मंत्र का संबन्ध शरीर के चार भागो से है।
जैसे - ओं का- कंठ से, मणि का- हृदय से, पद्म का- नाभि से, और हुम का- काम केन्द्र्र से।
इस एक छोटे से महामंत्र के जाप से उत्पन्न ध्वनियाँ पूरे शरीर में गूँजती हैं और सातों चक्रों को जागृत करती हैं।
जैन धर्म में तंत्र का महत्व
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जैन धर्म में ध्यान योग के साथ-साथ तंत्र, यंत्र, मंत्र तीनों को भी विशेष रुप से उल्लेख किया गया है। र्सवज्ञ भाषित गणधर देव द्वारा रचित द्वादशांग में बारहवाँ अंग दृष्टिवाद है। उसके पाँच विभाग हैं।
. परिक्रम . सूत्र . पर्ूवानुयोग . पर्ूवगत . चूणिर्का
इस में चौथे पर्ूवगत के १४ भेद है। उनमें विद्यानुवाद नामक एक पर्व है। जिस में तंत्र, मंत्र, यंत्र का वर्ण्र्ाामिलता है।
जैन धर्म में तंत्र के दो प्रकार बताए हैं। लौकिक और लोकोत्तर
लौकिक- इसका संबन्ध जादू टोना, नजर उतारना, भूत-प्रेत बाधा, वशीकरण, मारण इत्यादि से है।
लोकोत्तर यह आत्मोन्नति के लिए किया जाता है।
जैनों का मूल और महामंत्र है णमोकार मंत्र। इसे बहुत ही प्रभावकारी माना जाता है। इसके संबन्ध में तो यहाँ तक कहा जाता है कि जो व्यक्ति णमोकार मंत्र का नियमपर्ूवक आठ करोडÞ, आठ लाख, आठ हजार, आठ सौ आठ बार जाप करेगा वह परम सत्य को प्राप्त करेगा एवं जन्म मृत्यु के चक्र से छुटकारा पायेगा। इसमें इसके अलावा अलग-अलग कार्याें के लिए अलग अलग मंत्रों के जाप का भी प्रावधान है। जैसे - धन प्राप्ति के लिए -’क्लीं’, शांति के लिए- ‘हृी’, विद्या के लिए – ‘ऐं’ कार्यसिद्धि के लिए -’झों’ इत्यादि।
हिन्दू धर्म में तंत्र का महत्वः-
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मार्कण्डेय पुराण की दुर्गासप्तशती और अथर्ववेद तंत्र शास्त्र का सर्वोत्तम ग्रंथ है। अथर्ववेद में धन-प्राप्ति, सुख-शांति, व्यापारिक सफलता, रोग निवारण, इच्छित कार्य सफलता, इत्यादि कार्यों के लिए विशेष मंत्र का उल्लेख है। अथर्ववेद के अनुसार प्रत्येक मंत्र के प्रत्येक अक्षर में एक विशेष ध्वनि होती है और प्रत्येक ध्वनि का अपना कंपन होता है और इन कंपनों की निश्चित संख्या होती है। हिन्दू धर्म में तंत्र का विशाल साहित्य उपलब्ध है |ब्रह्म पुराण में दश महाविद्या की श्रेष्ठता है और मार्कंडेय पुराण में नव दुर्गा की ,किन्तु प्रकारांतर से दोनों ही शक्तियां सामान है |इनके अतिरिक्त यामलों आदि का विशाल साहित्य उपलब्ध है | मार्कण्डेय पुराण में ७०० श्लोकों का उल्लेख है। इसमें माँ दुर्गा जो शक्ति की ही देवी है, इनकी गोपनीय तांत्रिक साधना का वर्णन है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण मंत्र है।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै नमः’
र्सव मनोकामना के पूर्ती के लिए नव दुर्गा यंत्र के साथ इस मंत्र के जाप का विधान बताया जाता है। शक्ति की अभिव्यक्ति के लिए हमेशा आधार की आवश्यकता होती है, और बिना आधार शक्ति प्रकट नहीं होती।
आदि शंकराचार्य ने तंत्र -मंत्र की सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक सौर्न्दर्य लहरी’ पाठकों एवं साधको के लिए काफी उपयोगी है। इसमें सौ यंत्र हैं और प्रत्येक का एक-एक मंत्र हैं। इसके अलावे अजित मुखर्जी का तंत्र आर्ट’ और फिलिप राँसन का दी तंत्र’ काफी उपयोगी है। इसमें प्राचीन मंदिरों के तंत्र चित्रों का विस्तार से उल्लेख किंया गया है। इसके अलावे तंत्र को गहर्राई से समझने के लिए ओशो के प्रवचनों का तंत्र सूत्र को पढÞना भी लाभकारी होगा जो छः खण्डो में है।
मंत्रयोग को एक विज्ञान भी कहा गया है। मननात्त्रायते इति मंत्रः’ इसका अर्थ है- जिसके बार-बार स्मरण मात्र से मनुष्य जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है और उसके जीवन में अलौकिक शक्तियों का उदय होता है।
सौर्न्दर्य लहरी के प्रथम श्लोक में शंकराचार्य कहते हैं -
शिवः शक्तियुक्तो यदि शक्ति प्रभवितुं खलम’ सौर्न्दर्यलहरी -

अर्थात् शक्ति की प्रकृति त्रिगुणात्मक होती है। इसी कारण से तंत्र में शक्ति को अधोमुखि त्रिभुज के रुप में अभिव्यक्त किया जाता है। इन तीनों तत्वों को सत्व, रज, तम और परा, परापरा और अपरा तथा सगुणात्मक उपासना में महासरस्वती, महालक्ष्मी महाकाली की संज्ञा दी जाती है। इस के अलावे ब्रम्हाण्ड में छः प्रकार की शक्तियाँ विद्यमान हैं, जिसे पराशक्ति, ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति, कुण्डलिनी शक्ति और मंत्र शंक्ति कहते हैं।.......................................................................हर-हर महादेव 

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