Sunday 17 December 2017

आगम तंत्र [Aagam Tantra ] -1

:::::::::::::::::::आगम तंत्र शास्त्र ::::::::::::::::::
===============================
आगम ग्रंथ में साधारणतया चार पाद होते है – ज्ञानयोगचर्या और क्रिया। इन पादों में इस समय कोई-कोई पाद लुप्त हो गया हैऐसा प्रतीत होता है और मूल आगम भी सर्वांश में पूर्णतया उपलब्ध नहीं होतापरंतु जितना भी उपलब्ध होता है वही अत्यंत विशाल हैइसमें संदेह नहीं।
प्राचीन आगमों का विभाग इस प्रकार हो सकता है:
शैवागम संख्या में दस ),
रूद्रागम संख्या में अष्टादश )
ये अष्टाविंशति आगम (१०  १८) ‘सिद्धांत आगम’ के रूप में विख्यात हैं। भैरव आगम’ संख्या में चौंसठ सभी मूलतशैवागम हैं। इन ग्रंथों में शाक्त आगम आंशिक रूप में मिले हुए हैं। इनमें द्वैत भाव से लेकर परम अद्वैत भाव तक की चर्चा है।
शैवागम
किरणागममें लिखा है किविश्वसृष्टि के अनंतर परमेश्वर ने सबसे पहले महाज्ञान का संचार करने के लिये दस शिवों का प्रकट करके उनमें से प्रत्येक को उनके अविभक्त महाज्ञान का एक एक अंश प्रदान किया। इस अविभक्त महाज्ञान को ही शैवागम कहा जाता है। वेद जैसे वास्तव में एक है और अखंड महाज्ञान स्वरूप हैपरंतु विभक्त होकर तीन अथवा चार रूपों में प्रकट हुआ हैउसी प्रकार मूल शिवागम भी वस्तुतएक होने पर भी विभक्त होकर दस आगमों के रूप में प्रसिद्व हुआ है। इन समस्त आगमधाराओं में प्रत्येक की परंपरा है।
दस शिवों में पहले प्रणव शिव हैं। उन्होंने साक्षात् परमेंश्वर से जिस आगम को प्राप्त किया था उसका नाम कामिक’ आगम है। प्रसिद्वि है कि उसकी श्लोकसंख्या एक परार्ध थी। प्रणव शिव से त्रिकाल को और त्रिकाल से हर को क्रमशयह आगम प्राप्त हुआ। इस कामिक आगम का नामांतर हैकामजत्रिलोककी जयरथकृत टीका में कही नाम मिलता है।
द्वितीय शिवागम का नाम है – योग  इसकी श्लोक संख्या एक लक्ष हैऐसी प्रसिद्वि है। इस आगम के पाँच अवांतर भेद हैं। पहले सुधा नामक शिव ने इसे प्राप्त किया था। उनसे इसका संचार भस्म मेंफिर भस्म से प्रभु में हुआ।
तृतीय आगम चित्य है। इसका भी परिमाण एक लक्ष श्लोक था। इसके अवांतर भेद हैं। इसे प्राप्त करनेवाले शिव का नाम है दीप्त। दीप्त से गोपति नेफिर गोपति से अंबिका ने प्राप्त किया।
चौथा शिवागम कारण है। इसका परिमाण एक कोटि श्लोक हे। इसमें सात भेद हैं। इसे प्राप्त करनेवाले क्रमशकारणकारण से शर्वशर्व से प्रजापति हैं।
पाँचवाँ आगम अजित है। इसका परिमाण एक लक्ष श्लोक है। इसके चार अवांतर भेद हें। इसे प्राप्त करनेवालों के नाम हैं सुशिवसुशिव से उमेशउमेश से अच्युत।
षष्ठ आगम का नाम सुदीप्तक (परिमाण में एक लक्ष एवं अवांतर भेद नौ हैं। इसे प्राप्त करनेवालों के नाम क्रमशईशईश से त्रिमूर्तित्रिमूर्ति से हुताशन।
सप्तम आगम का नाम सूक्ष्म (परिमाण में एक पद्महै। इसके कोई अवांतर भेद नहीं हैं। इसे प्राप्त करनेवालों के नाम क्रमशसूक्ष्मभव और प्रभंजन हैं।
अष्टम आगम का नाम सहस्र है। अवांतर भेद दस हैं। इसे प्राप्त करनेवालों में कालभीमऔर खग हैं।
नवम आगम सुप्रभेद है। इसे पहले धनेश ने प्राप्त कियाधनेश से विघनेश और विघनेश से शशि ने।
दशम आगम अंशुमान है जिसके अबांतर भेद 12 हैं। इसे प्राप्त करनेवालों के नाम क्रमशअंशु अब्र और रवि हैं।
दस अगमों की उपर्युक्त सूची किरणागम के आधार पर है। श्रीकंठी संहिता में दी गई सूची में सुप्रभेद का नाम नहीं है। उसके स्थान में कुकुट या मुकुटागम का उल्लेख है।
रूद्रागम
इन आगमों के नाम और प्रत्येक आगम के पहले और दूसरे श्रोता के नाम दिए जा रहे हैं:
1. विजय (पहले श्रोता अनादि रूद्रदूसरे स्रोता परमेश्वर),
2. नि:श्वास (पहले श्रोता दशार्णदूसरे श्रोता शैलजा),
3. पारमेश्वर (पहले श्रोता रूपदूसरे श्रोता उशना:),
4. प्रोद्गीत (पहले श्रोता शूली दूसरे श्रोता कच),
5. मुखबिंब (पहले श्रोता प्रशांतदूसरे श्रोता दघीचि),
6. सिद्ध (पहले बिंदुदूसरे श्रोता चंडेश्वर),
7. संतान (पहले श्रोता शिवलिंगदूसरे श्रोता हंसवाहन),
8. नारसिंह (पहले श्रोता सौम्यदूसरे नृसिंह),
9. चंद्रांशु या चंद्रहास (पहले श्रोता अनंत दूसरे श्रोता वृहस्पति),
10. वीरभद्र (पहले श्रोता सर्वात्मादूसरे श्रोता वीरभद्र महागण),
11. स्वायंभुव (पहले श्रोता निधनदूसरे पद्यजा),
12. विरक्त (पहले तेजदूसरे प्रजापति),
13. कौरव्य (पहले ब्राह्मणेशदूसरे नंदिकेश्चर),
14. मामुट या मुकुट (पहले शिवाख्य या ईशानदूसरे महादेव ध्वजाश्रय),
15. किरण (पहले देवपितादूसरे रूद्रभैरव),
16. गलित (पहले आलयदूसरे हुताशन),
17. अग्नेय (पहले श्रोता व्योम शिवदूसरे श्रोता ?)
18. ?
श्रीकंठी संहिता में रूद्रागमों की जो सूची है उसमें रौरवविमलविसरऔर सौरभेद ये चार नाम अधिक हैं। और उसमें विरक्तकौरव्यमाकुट एवं आग्नेय ये चार नाम नहीं है। कोई-कोई ऐसा अनुमान करते हैं कि ये कौरव्य ही रौरव हैं। बाकी तीन इनसे भिन्न हैं। अष्टादश अगम का नाम कहीं नहीं मिलता। इसमें किरणपारमेश्वर और रौरव का नाम है।
नेपाल में आठवीं शताब्दी का गुप्त लिपि में लिखा हुआ नि:श्वास तंत्र संहिता नामक ग्रंथ है। इसमें लौकिक धर्ममूल सूत्रउत्तर सूत्रनय सूत्रगुह्य सूत्र ये पाँच विभाग हैं। लौकिक सूत्र प्रायउपेक्षित हो गया है। बाकी चारों के भीतर उत्तरसूत्र कहा जाता है। इस उत्तर सूत्र में 18 प्राचीन शिव सूत्रों का नामोल्लेख है। ये सब नाम वास्तव में उसी नाम से प्रसिद्ध शिवागम के ही नाम हैंयथा
नि:ष्श्वास ज्ञान
स्वायंभुव मुखबिंब
मुकुट या माकुट प्रोद्गीत
वातुल ललित
वीरभद्र सिद्ध
विरस (वीरेश?) संतान
रौरव सर्वोद्गीत
चंद्रहास किरण पारमेश्वर
इसमें 10 शिवतंत्रों के नाम है यथा – कार्मिकयोगजदिव्य (अथवा चिंत्य), कारणअजितदीप्त सूक्ष्मसाहस्र अंशुमान और सुप्रभेद।
ब्रह्मयामल (लिपिकाल 1052 0) 39 अध्याय में ये नाम पाए जाते हैं – विजयनि:श्वासस्वायंभुवबाबुलवीरभद्ररौरवमुकुटवीरेशचंद्रज्ञानप्रोद्गीत ललितसिद्ध संतानकसर्वोद्गीतकिरण और परमेश्वर (द्रष्टव्य हरप्रसाद शास्त्री द्वारा संपादित नेपाल दरबार का कैटलाग खंड 2, पृ0 60)  कामिक आगम में भी 18 तंत्रो का नामोल्लेख है।...........[क्रमशः द्वितीय भाग में ]

No comments:

Post a Comment

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...