Saturday 13 June 2020

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी महाशंख के कारण करते हैं |लेखक लोग शंख को ही तांत्रिक सामग्री मानकर ग्रन्थ पूर्ण कर देते हैं |में आपसे यह स्पष्ट करना चाहता हूँ की शंख और महाशंख दोनों अलग हैं |यह क्या है और इसके tantra प्रयोग क्या हैं यह हम स्पष्ट करते हैं |शंख को बजाना शुभ होता है |शंख के द्वारा अर्ध्य दिया जाता है |शंख द्वारा देव स्नान कराया जाता है ,कुछ सेवन किया जाता है ,|इसके आलावा शंख के tantra में कोई प्रयोग नहीं होते |दक्षिणावर्ती शंख भी पूजन में ही प्रयुक्त होता है जिसका प्रयोग लक्ष्मी उपासना में किया जाता है ,इसके अतिरिक्त बहुत प्रयोग tantra में शंख के नहीं हैं ,जबकि महत्त्व बहुत दिया जाता है ,इसका कारण यही महाशंख है जिसके बारे में हम आगे बताने जा रहे हैं |वास्तव में शंख और महाशंख में बहुत भेद होता है |
                   व्यक्ति के प्राणांत हो जाने पर उसी शव से यह महाशंख प्राप्त होता है ,जबकि शंख तो समुद्र में जीव का खोल है |इसे हमेशा याद रखना चाहिए |स्त्री और शूद्र से चांडाल की उत्पत्ति होती है तथा "तज्जायश्चेव चांडाल सर्व मंत्र विवर्जितः " इसी कारण यह लोग मन्त्रों से हीन होते हैं |"मंत्रहीनेतुस्थ्यादिसर्ववर्ण विभुषिताम" जो लोग मन्त्रों से हीन होते हैं उन्ही की अस्थियों में सभी वर्ण रहते हैं |
                     जो साधक महाशंख की माला से जप करता है वह निःसंदेह अणिमा आदि सिद्धियों को प्राप्त करता है |यह माला बनानी तथा प्राप्त करनी तो सरल है क्योकि इसमें धन का कोई व्यय नहीं होता किन्तु खतरनाक अवश्य है |धन के विषय में जितनी सरल है उतनी ही स्वर्ग से भी दुर्लभ है ,क्योकि स्वर्ग तो आपको प्राप्त हो जाएगा परन्तु इस माला की प्राप्ति किसी व्यावसायिक व्यक्ति से नहीं होती |यहाँ तक की आज के तथाकथित बड़े बड़े तांत्रिक और स्वयंभू साधक तक इसके बारे में जानते तक नहीं ,पानी और देखनी तो दूर की बात है |इसे प्राप्त करने के लिए श्मशान में घूमना पड़ता है अथवा यह माला भाग्यवश ही गुरुकृपा से प्राप्त होती है |व्यक्ति इसे बना सकता है अगर खुद भी प्रयास करे तो |इस माला के द्वारा सही मन्त्रों का जप करना चाहिए |मंत्र के सभी दोषों को यह माला समाप्त कर देती है |मंत्र किसी भाँती के दोष से युक्त हो सकता है परन्तु यह माला कभी भी दोषी नहीं होती है |इसी कारण    महाशंख सर्वत्र तेषु योजितम अर्थात महाशंख ही सब प्रकार के मन्त्रों से लाभ प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ है |
पूर्वजन्म के शुभ तथा सफल कर्मो के प्रयास से यदि कभी किसी को महाशंख की माला प्राप्त हो जाती है तो वह व्यक्ति तो क्या उसका समस्त परिवार ही समस्त साधनाओं का लाभ प्राप्त कर लेता है |
क्या है महाशंख
-------------------- महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग तंत्र में शंख का प्रयोग इसी महाशंख के कारण करते हैं |लेखक लोग शंख को ही तांत्रिक सामग्री मानकर ग्रन्थ पूर्ण कर लेते हैं |इसका कारण यह है की लेखक अच्छे साधक ही मुश्किल से होते हैं उस पर वे उच्च स्तर के शाक्त साधक हों बेहद मुश्किल है |खुद साधना और मूल तंत्र का अनुभव न होने से यहाँ वहां से सुनी हुई बातों और पुराने शास्त्रों को तोड़ मरोड़कर कुछ अपनी कल्पनाएँ घुसेड़कर एक किताब लिख देते हैं और कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं |वास्तविक तंत्र एक तो वैसे भी गोपनीय होता है जो इन लेखकों को पता ही नहीं चलता उस पर खुद साधना ज्ञान न होना कोढ़ में खाज हो जाता है और सतही षट्कर्म की किताब सामने होती है |आज तंत्र की दुर्दशा का यह बहुत बड़ा कारण है और मूल तंत्र के लोप का भी |
सामान्य शंख को बजाना शुभ होता है |शंख के द्वारा अर्ध्य दिया जाता है |शंख द्वारा कुछ सेवन किया जाता है |शंख द्वारा देव स्नान भी कराते हैं |इसके अलावा तंत्र में शंख के कोई काम नहीं होते जबकि शंख का महत्त्व बहुत अधिक है |तो आखिर वह कौन सा शंख है जो इतना महत्त्व पूर्ण है |तंत्र में दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग लक्ष्मी प्राप्ति हेतु जरुर किया जाता है ,किन्तु यह पूजन होता है |वास्तव में शंख और महाशंख में बहुत बड़ा अंतर होता है |
व्यक्ति के प्राणांत हो जाने पर उसी शव से यह महाशंख प्राप्त होता है जबकि शंख की प्राप्ति सबको मालूम है |चांडाल लोग मन्त्रों से हीन होते हैं और जो लोग मन्त्रों से हीन होते हैं उन्ही की अस्थियों में सभी वर्ण होते हैं |हिंदी की शब्दमाला को ही वर्ण या वर्णमाला कहते हैं |इन्ही वर्णों पर अं की मात्रा लगाने से यह वर्ण बीज वर्ण बन जाते हैं |अ से लेकर क्ष तक के सभी वर्ण अस्थियों के मध्य सदा विद्यमान रहते हैं |प्रस्तुत चित्र के अनुसार दर्शाए गएँ अंगों पर चिन्ह के स्थानों की अस्थि लेकर माला बनाने पर वह महाशंख की माला कहलाती है |
इस माला के द्वारा जप करने पर समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं |इन स्थानों की अस्थियाँ लेकर स्थानानुसार ही माला में पिरोया जाता है ||इस माला को सर्प की भाँती बनाया जाता है अर्थात आगे से मोती होती होती पीछे जाकर पतली हो जाए |स्पष्टतः यह समझ लें की माला का मूल मोटा और फिर क्रमशः पतला होता चला जाता है |माला को बनाते समय पहले मोती अस्थि डाली जाती है ,फिर उससे पतली ,फिर और उससे पतली अस्थि पिरोते जाते हैं |जहाँ जहाँ चित्र में चिन्ह लगे हैं वहां वहां की अस्थि ली जाती है |सर से पैर तक की अस्थियाँ क्रम से पिरोई जाती हैं |जब माला बन जाती है तो प्रणव की गाँठ लगाईं जाती है |इसके उपर एक लम्बी अस्थि डालकर पुनः ब्रह्मगाँठ लगाईं जाती है |इसे बनाकर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है |प्राण प्रतिष्ठा का विधान अत्यंत गोपनीय होता है |
इस माला को गोपनीय रखा जाता है और इस पर जप की शुरुआत मोटी तरफ से करके समापन पतली तरफ किया जाता है |पुनः मोती तरफ से शुरुआत होती है |इस भाँती जप करने से निश्चित सिद्धि प्राप्त होती है |
महाशंख की माला बनाने के लिए स्त्री ,ब्राह्मण तथा मन्त्र दीक्षित व्यक्ति के शव की अस्थियाँ नहीं ली जाती |शव साधना में भी स्त्री का शरीर उपयोग नहीं किया जाना चाहिए |महाशंख की माला हेतु बिना दीक्षित ,जो ब्राह्मण न हो उसके शव की अस्थियाँ उपयुक्त होती हैं इसीलिए शूद्र अथवा चांडाल की अस्थियाँ अधिक उपयुक्त होती हैं |.................................................................हर-हर महादेव 

गृहस्थ कैसे ईश्वरीय शक्ति महसूस करे ?


गृहस्थ कैसे ईश्वरीय शक्ति महसूस करे       
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हमने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित लेख -"" क्यों अपना कष्ट खुद दूर नहीं करते "" में सामान्य लोगों के जीवन ,कष्टों ,समस्याओं पर लिखा था और सुझाव रखा था की क्यों न हम खुद अपना कष्ट दूर करें ,बजाय यहाँ -वहां ,पंडितों ,मौलवियों ,ज्योतिषियों ,तांत्रिकों ,मंदिरों ,मस्जिदों तक दौड़ने के |हमारा उद्देश्य यह है की व्यक्ति खुद इतनी ईश्वरीय ऊर्जा प्राप्त करे की उसके कष्ट दूर हो जाएँ |वह शोषण ,धोखे ,फरेब से बच सके ,साथ ही एक शक्ति ऐसी उसके साथ जुड़े जो हमेशा उसकी सहायक रहे ,अर्थात ईश्वर वास्तविक रूप से व्यक्ति के साथ जुड़े |इस सम्बन्ध में लोगों के पास अक्सर कोई स्पष्ट दृष्टि नहीं होती |तकनिकी ज्ञान नहीं होता ,जबकि लगभग हर आस्तिक व्यक्ति पूजा -पाठ करता है ,मंदिरों -मस्जिदों में जाता है और चाहता है की ईश्वर उससे जुड़े ,उस पर कृपा करे ,उसके कष्ट दूर करे ,उसे सुखी करे |हर व्यक्ति ईश्वर और ईश्वरीय ऊर्जा महसूस करना चाहता है किन्तु अधिकतर को वर्षों पूजा -पाठ करने पर कुछ भी महसूस नहीं होता ,बड़े बड़े कर्मकांड ,अनुष्ठान का कभी कभी कोई परिणाम नहीं दिखता ,इसलिए ही हमें यह लेख लिखने की जरूरत महसूस हुई की कुछ मूलभूत बातें जो हमें ज्ञान हैं यदि उनसे किन्ही लोगों का भला हो जाए और उन्हें ईश्वरीय ऊर्जा महसूस हो तो बताने में कोई बुराई नहीं |
ईश्वरीय ऊर्जा या शक्ति महसूस करना आसान नहीं ,किन्तु यह उतना कठिन भी नहीं जितना लोग सोचते हैं या कहा जाता है |यदि निष्ठा ,चाहत ,लगन ,श्रद्धा ,विश्वास है तो" ईश्वर जरुर मिलता है "|ईश्वर का साक्षात्कार अक्सर साधकों को होता है ,किन्तु उसकी शक्ति ,उसकी ऊर्जा तो हर कोई महसूस कर सकता है यदि चाह ले तो |हालांकि जो तरीके हम लिखने जा रहे उनसे भी साक्षात्कार हो सकता है यदि व्यक्ति एकाग्र हुआ तो |ईश्वरीय उर्जा या शक्ति प्राप्त करने ,उसे महसूस करने के लिए सबसे पहले तो खुद को उससे जोड़ना होना ,उसमे डूबना होगा ,उसका चिंतन करना होगा ,उस पर एकाग्र होना होगा ,खुद को उसका और उसको अपना समझना होगा ,इतना जुड़ाव महसूस करना होगा की वह अवचेतन तक जुड़ जाए |यहाँ महत्त्व वस्तुओं ,पदार्थों ,पूजन सामग्रियों ,आडम्बरों ,मंत्र संख्याओं का नहीं होता अपितु महत्त्व भावना ,एकाग्रता और चाहत का होता है |ईश्वरीय ऊर्जा महसूस करने के लिए गुरु की भी कोई बहुत आवश्यकता नहीं ,यद्यपि साक्षात्कार और सिद्धि बिन गुरु के मुश्किल होती है |हमने जो भी पद्धतियाँ सोची हैं अथवा विकसित की हैं इस हेतु उन्हें बिन गुरु के किया जा सकता है ,हाँ सुरक्षा कवच की जरूरत पड़ती है जो सिद्ध साधक से बनवाकर धारण किया जा सकता है |कुछ पद्धतियाँ ईश्वरीय ऊर्जा महसूस करने के लिए निम्न हो सकती हैं |
हमने अपने blogपर तथा अपने फेसबुक पेजों "अलौकिक शक्तियाँ" तथा "tantramarg" पर एक साधना पद्धति प्रकाशित की हुई है जिसका शीर्षक है ,"15 मिनट पर्याप्त हैं ईश्वरीय ऊर्जा प्राप्ति के लिए " या "15 मिनट और ईश्वरीय शक्ति प्राप्ति "| इस पद्धति में दीपक पर त्राटक करते हुए गणपति की साधना बताई गयी है जिससे आज्ञा चक्र की सिद्धि ,गणपति की सिद्धि और कृपा प्राप्त होती है |एकाग्रता के अनुसार यह पद्धति भूत -भविष्य -वर्तमान देखने तक की शक्ति प्रदान कर सकती है |इससे गणपति की कृपा प्राप्त होती है और विघ्न बाधाएं समाप्त हो खुशहाली प्राप्त होती है |इस साधना हेतु मात्र १० से १५ मिनट का समय पर्याप्त होता है और इसे बिन गुरु के भी किया जा सकता है ,मात्र सुरक्षा कवच धारण करके |
हमने दूसरी साधना पद्धति भगवती काली से सम्बंधित ,अपने उपरोक्त blogs और फेसबुक पेजों पर प्रकाशित की है जिसमे मात्र काली सहस्त्रनाम के पाठ से काली की शक्ति महसूस करने की पद्धति बताई गयी है |इसका शीर्षक "महाकाली साधना "-[जिन्हें गुरु न मिले ] अथवा "काली सहस्त्रनाम -सौ समस्या का एक इलाज " है |इस पद्धति में मात्र काली जी के एक हजार नामों को एक विशेष समय -पद्धति से पढने या पाठ करने के बारे में बताया गया है |इससे भगवती की कृपा मिलती है और उनकी ऊर्जा महसूस भी होती है |यह साधना भी बिन गुरु के मात्र सुरक्षा कवच के साथ की जा सकती है |
आप सामान्य व्यक्ति हैं ,आपको कोई पूजा पद्धति -कर्मकांड नहीं आता ,अपनी समस्या के लिए मंदिरों ,मौलवियों ,पंडितों ,ज्योतिषियों के चक्कर काटने पर मजबूर हैं ,आपको कोई परिणाम नहीं समझ में आता ,नकारात्मक प्रभावों से कष्ट पा रहे तो आप अपने उस ईष्ट देवता का सुन्दर सा चित्र ले आयें जो आपको सबसे अधिक प्रिय हों |इस चित्र को पूजा स्थान या अपने कमरे में अपने बैठने के स्थान के स्थान पर इस प्रकार लगाएं की चित्र आपके आँखों के सामने पड़े |जो आपको समझ आता तो उतनी पूजा प्रतिदिन करें ,स्नान जरुर करें रोज और भोजन पूर्व ईष्ट को मन की भावना से अथवा उपलब्ध संसाधनों से भोजन जरुर कराएं |स्नान बाद सामान्य पूजन ,नैवेद्य चढ़ाकर आप अपने ईष्ट से अपनी मनोकामना कहें |आप अपने ईष्ट में गुरु ,माता -पिता ,भाई -बहन ,मित्र की भावना करें |यह जरुर याद रखें की रोज आपकी मनोकामना बदलनी नहीं चाहिए ,कम से कम एक महीने तक एक प्रकार की मनोकामना स्थिर रहनी चाहिए |आप जिस रूप में अपने ईष्ट को एक बार मान लें फिर उसे कभी नहीं बदलें और हमेशा उसी रूप में उसे याद करें |अब आप अपने ईष्ट के चित्र पर एकटक एकाग्र हो जाएँ और कल्पना रखें की वह आपकी ओर देख रहे हैं ,आपको आशीर्वाद दे रहे हैं ,मुस्करा रहे हैं ,बात कर रहे या बात करेंगे |कुछ समय बाद ही चित्र बदलता लगेगा ,ईष्ट की भाव भंगिमा ,स्वरुप बदलेगा ,और कुछ समय बाद आपको लगेगा की चित्र साकार होकर ईष्ट में बदल गया |एकाग्रता अच्छी होने पर यह एक सप्ताह से १५ दिन में संभव है |जिस दिन ईष्ट साकार रूप ले लिया ,या आपकी एकाग्रता इतनी हुई की आप खुद का अस्तित्व मात्र एक मिनट भूल जाएँ और ईष्ट के स्वरुप में खो जाएँ तो ईष्ट की कृपा आपको मिल जायेगी और उसकी ऊर्जा आपसे जुडकर आपकी सोच ,भावना के अनुरूप काम करने लगेगी ,आपकी शारीरिक ,मानसिक और चक्रों की स्थिति में परिवर्तन के साथ साथ आसपास का वातावरण तक उसकी ऊर्जा से संतृप्त होने लगेगा और आपको उसकी शक्ति ,ऊर्जा महसूस होने लगेगी |यहाँ हम यह चेतावनी देना चाहेंगे की ईष्ट का चुनाव हमेशा सौम्य शक्ति में से ही करें यदि आपके पास सक्षम गुरु नहीं हैं या आपने सुरक्षा कवच नहीं पहना |इस प्रकार के ईष्ट में हनुमान ,भैरव ,काली ,बगला ,दुर्गा ,रूद्र ,दक्षिणावर्ती सूंड के गणेश आदि का चयन न करें ,यदि आप इनमे से या ऐसी उग्र शक्ति का चयन करते हैं तो सुरक्षा कवच जरुर पहने या सक्षम गुरु की अनुमति के बाद ही यह करें | यदि नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित नहीं हैं तो सौम्य शक्ति से आपकी मनोकामना पूर्ण हो जायेगी |
ईश्वरीय शक्ति प्राप्ति ,ईश्वर का साक्षात्कार ,ईश्वर से वार्तालाप अवचेतन पर आधारित क्रिया है |चेतन की चंचलता के बीच यह मुश्किल होता है |जब तक ईष्ट का जुड़ाव अवचेतन स्तर पर नहीं होता उसका साक्षात्कार ,वार्तालाप संभव नहीं होता |एक बार ऐसा होने पर फिर वह चेतन स्तर और स्वरुप पर भी सक्रीय हो जाता है |यद्यपि सभी पद्धतियों में अवचेतन की भूमिका होती ही है किन्तु हमारी इस पद्धति में अवचेतन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है |आप अपने ईष्ट का एक सौम्य सुंदर का चित्र अपने पूजन स्थान में स्थापित करें |एक क्रिस्टल बाल टेनिस की गेंद के आकार का लें और उसे चित्र के सामने स्थापित करें ,बाल के पीछे ईष्ट के रंग के अनुकूल रंग का एक जीरो वाट का बल्ब इस प्रकार जलाएं की पूरे बाल का रंग उसी रंग से छा जाए |ईष्ट का चित्र और क्रिस्टल बाल इस प्रकार रखें की यह आँखों की सीध में २ फुट की दूरी पर रहें |ईष्ट की सामान्य पूजा प्रतिदिन होनी चाहिए |पूजन बाद अपने ईष्ट को कुछ पल एकटक देखें फिर क्रिस्टल बाल पर ध्यान एकाग्र करें और उसमे ईष्ट के चित्र को उभारने का प्रयत्न करें |शुरू में क्रिस्टल बाल बिलकुल सादा नजर आएगा ,फिर एकाग्रता बढने के साथ भिन्न भिन्न चित्र ,लोगों के आकार ,दृश्य दिखेंगे |यह सब अवचेतन की तस्वीरें होंगी |समय के साथ ईष्ट भी दिखेगा ,फिर स्थिर होगा ,फिर आशीर्वाद दे सकता है ,वार्तालाप हो सकता है ,साक्षात्कार हो सकता है |यह क्रिया प्रतिदिन १० से १५ मिनट करें |यदि आपकी एकाग्रता ,याददास्त ,विश्वास ,श्रद्धा अच्छी है तो इस क्रिया में साक्षात्कार भी मुश्किल नहीं |इस साधना की सफलता ,शक्ति की कोई सीमा नहीं |भूत -भविष्य -वर्त्तमान के दर्शन संभव हैं |इस साधना में किसी अवचेतन के जानकार से कुछ लाइनें लिखवाकर प्रतिदिन उनका तीन -चार बार १० मिनट दोहराव करने से ईष्ट आपके अवचेतन से जुड़ जाता है और उस पर श्रद्धा -विश्वास बढ़ता है |ईष्ट के अवचेतन से जुड़ने पर एक अदृश्य ऊर्जा ईष्ट की आपसे जुड़ जाती है |उसके गुण ,आकृति स्थायी होने लगते हैं |इस साधना में सुरक्षा कवच अति आवश्यक होता है जिससे शरीर की सुरक्षा रहे |कभी कभी खुद को भूलने ,ईष्ट में डूबने पर भयात्मक या रोमांचक अनुभूतियाँ होती हैं ,ऐसे में सुरक्षा कवच जरुरी होता है |इस साधना हेतु तब तक उग्र देवी -देवता का चयन न करें ,जब तक सक्षम गुरु न हों अन्यथा सौम्य शक्ति का ही चयन करें |
5. यदि आप साधक हैं और वर्षों साधना करने के बाद भी आपको ईश्वरीय ऊर्जा महसूस नहीं हो पा रही ,अथवा आप दीक्षित तो हैं पर आपको आपके गुरु से पर्याप्त सहायता नहीं मिल पा रही या आपके गुरु आपका लक्ष्य दिलाने में अक्षम लग रहे तो आप अश्रद्धा मत रखिये या भटकिये मत |आप सक्षम व्यक्ति या अपने गुरु से सुरक्षा कवच प्राप्त कीजिये ,उनसे चयनित ईष्ट की साधना की अनुमति प्राप्त कीजिये |आप अपने सुविधानुसार स्थान का चयन कीजिये और मिटटी युक्त जमीन पर ईशान कोण में किसी चौकी या बाजोट पर ईष्ट की मूर्ती स्थापित कर उसके सामने मिटटी में हवन कुंड बनाइये |ईष्ट की पूजा रोज सुबह जरुर कीजिये |यदि सौम्य शक्ति है तो सुबह का समय और उग्र शक्ति है या देवी शक्ति है तो रात्री का समय साधना के लिए चयनित कीजिये |साधना समय अपने आसन के चारो ओर सिन्दूर -कपूर -लौंग -घी की सहायता से पेस्ट बना घेरा बनाएं |अब अपनी पद्धति अनुसार या कुछ नहीं पता तो सामाय पूजन कर धुप दीप जलाकर बिलकुल धीमे स्वरों में ,धीरे धीरे लंबा खींचते हुए पूर्ण नाद के साथ ईष्ट के मंत्र की दो माला जप करें |मन्त्र जप में जल्दबाजी न हो ,रटते हुए जप न हो ,समय न देखें इस समय ,घड़ी -मोबाइल साथ न हो ,स्थान पर प्रकाश धीमा हो ,जप समय ध्यान मूर्ती पर हो |जप के बाद इष्ट के अनुकूल हवन सामग्री से कुण्ड में हवन करें और अपना जप हवन अपने ईष्ट को समर्पित करें |यह क्रम लगातार कम से कम ५१ दिन चले |इस सामान्य सी लगने वाली साधना से आपके ईष्ट की कृपा आपको प्राप्त हो जायेगी और उसकी ऊर्जा ,शक्ति आपको अपने आसपास और स्वयं में महसूस होने लगेगी |यहाँ तक की आप द्वारा अभिमंत्रित जप ,वस्तु लोगों का भला करने लगेगी |खुद के कल्याण के साथ दूसरों का कल्याण भी कुछ हद तक आप करने में सक्षम होंगे |यहाँ भी उग्र शक्ति का चयन आप बिना सक्षम गुरु के न करें |यहाँ विस्तृत पद्धति इसलिए नहीं दी जा रही की इस प्रकार की साधना साधक ही कर सकते हैं जिन्हें अपने गुरु से जानकारी लेनी चाहिए या जो पहले से काफी कुछ जानते हैं ,साथ ही हामारा लेख सामान्य लोगों को ईश्वरीय ऊर्जा महसूस कराने से सम्बंधित है |
उपरोक्त सभी साधनाएं ,बिना गुरु के भी संभव हैं ,और सक्षम साधक द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कवच धारण करके की जा सकती हैं |सभी साधनाओं में ईष्ट कृपा ,उसकी ऊर्जा महसूस होना ,यहाँ तक की साक्षात्कार ,वार्तालाप ,तक संभव है ,और सभी के लिए संभव है ,बस जरूरत है श्रद्धा -विश्वास -एकाग्रता -निष्ठां -आत्मबल की |इन्हें करके खुद की समस्या हल करने के साथ दूसरों की भी समस्याएं हल की जा सकती हैं और हमेशा के लिए पंडित ,मौलवी ,ज्योतिषी ,तांत्रिक के चक्कर से मुक्ति पायी जा सकती है |आज की समस्या तो हल होगी ही भविष्य में कोई समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी ,जो भाग्य में है उसका अधिकतम मिलेगा |साक्षात्कार की स्थिति आते ही भाग्य तक बदल जाएगा |...................................................हर-हर महादेव 


Thursday 16 April 2020

स्त्रियों के लिए भूत- टोना -टोटका रक्षा ताबीज

भूत बाधा /अभिचार नाशक कवच [केवल स्त्रियों के लिए ]
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                         सामान्य रूप से भूत–प्रेत ,आत्माएं ,वायव्य बाधाएं ,तांत्रिक टोटके और अभिचार स्त्रियों को अधिक और शीघ्र प्रभावित करते हैं |इसका कारण स्त्रियों की शारीरिक और मानसिक बनावट भी होती है और स्त्रियों के प्रति कामुक पुरुष आत्माओं का आकर्षण भी होता है |स्त्रियों का खून अक्सर पतला होता है और भूत– प्रेत पतले खून वालों को शीघ्र प्रभावित करते हैं ,पतले खून वाले और ठंडी प्रकृति वाले पुरुष भी इसी कारण शीघ्र इनकी चपेट में आ जाते हैं |स्त्रियाँ कोमल भावनाओं और ह्रदय वाली होती हैं ,मानसिक बल और कठोरता कम होने से आत्माओं को कम प्रतिरोध मिलता है और वह शीघ्र प्रभावी हो जाते हैं |अक्सर दुर्घटनाओं अथवा आकस्मिक रूप में मरे ही भूत–प्रेत बनते हैं और असंतुष्ट होते हैं ,अपनी तृप्ति के लिए इन्हें स्त्रियाँ आसन शिकार मिलती हैं और उनसे यह अपनी इच्छा पूर्ती करते हैं |
                                कभी -कभी असावधानीवश ,दुर्घटनावश ,अपवित्र स्थिति में अथवा अन्य किसी कारणवश अक्सर किसी अविवाहित अथवा कुँवारी कन्या ,लड़की या किसी भी महिला पर यकायक भूत /जिन्न /प्रेत /आसेब इत्यादि का साया हो जाता है जो की उस स्त्री का जीवन नरक सामान बना देता है |ऐसी परिस्थितियों में यदि उसे अभिमत्रित ” भूत बाधा नाशक कवच ” गले में धारण करा दिया जाए तो चमत्कारिक रूप से लाभ दिखाई देने लग जाते हैं |यह कवच महाविद्या काली की शक्ति से संपन्न होता है और नकारात्मक ऊर्जा का तीब्र प्रतिरोधक होता है ,चाहे वह कोई भी नकारात्मक या वायव्य ऊर्जा या शक्ति हो |इससे स्त्री सुरक्षित रहती है और कहीं भी उसे इन बाधाओं का भय नहीं होता |बच्चे के जन्म काल और बाद में भी स्त्री को इन आत्माओं से सर्वाधिक भय होता है ,|इस काल में भगवती का यह यन्त्र कवच उनकी पूर्ण सुरक्षा करता है |अगर पहले से किसी बाधा से प्रभावित कोई स्त्री इन्हें धारण करती है तो क्रमशः शरीर की शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा वृद्धि के साथ उस शक्ति का प्रभाव कम हो जाता है और अंततः वह छोड़ देती है |कवच की शक्ति से किसी तांत्रिक द्वारा किये गए अभिचार से भी बचाव होता है और अगरपहले से कोई अभिचार है तो उसका प्रभाव क्रमशः नष्ट होता है |अतः स्त्रियों को सुरक्षा हेतु भगवती का कवच धारण करना चाहिए |……………………………………………………………..हर–हर महादेव 

टोने -टोटके -अभिचार से बचाव हेतु ताबीज

 अभिचार रक्षा कवच
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                                      मनुष्य के स्वभाव के कुछ गुण दूसरों को कष्ट देते हैं ,जैसे ईर्ष्या ,द्वेष ,दुश्मनी ,टांग खीचने की आदत आदि मनुष्यगत दुर्गुण हैं |यह गुण या दुर्गुण बहुतों में पाए जाते हैं |लोग अपनी क्षमता से आगे बढने की बजाय दूसरों की टांग खींचते हैं जिससे उसकी वृद्धि रोक सकें ,कारण लोग लोग खुद के दुखों से कम दुखी और दुसरे के सुखों से अधिक दुखी होते हैं |भले वह बेचारा परेशान ही खुद क्यों न हो |दुश्मनी में तो लोग दुसरे का नुकसान करते ही हैं ,ईर्ष्या ,जलन ,द्वेष में अधिक नुक्सान करते हैं |खुद सामने आने से बचने के लिए ऐसे लोग अक्सर tantra और टोटकों का भी सहारा लिया करते हैं और अभिचार और टोटके करते रहते हैं |ऐसे में बहुत से लोग जिन्होंने किसी का कुछ बिगाड़ा भी नहीं और खुद की मेहनत से जीवन यापन कर रहे हैं इनसे पीड़ित हो जाते हैं |कभी -कभी, कोई -कोई लोग तांत्रिक क्रियाओं के चपेट में बेवजह भी आ जाते हैं ,जैसे मार्ग में की हुई क्रिया पर ध्यान नहीं दिया और वह साथ लग गई |अँधेरे ,सुनसान ,दोपहर आदि में कोई क्रिया साथ हो ली आदि आदि |इन क्रियाओं /अभिचारों के कारण व्यक्ति की मानसिक /आर्थिक / पारिवारिक स्थितियों में कष्ट आ जाते हैं और वह समझ भी नहीं पाता|गृह कुछ कहते हैं और उसके साथ होता कुछ है |इन्हें tantra द्वारा ही हटाया जा सकता है |सामान्य उपायों का इन पर कोई प्रभाव नहीं होता |
                                अक्सर हमारे यहाँ इस तरह की शिकायतें आती हैं और विश्लेषण पर हम उपरोक्त समस्या पाते हैं |इन्ही कारणों से हमने इनसे बचने के तरीके के रूप में सुरक्षा कवच निर्मित किये |यदि आप किसी भी प्रकार की भूत -प्रेतादि , उपरी बाधा के शिकार हैं अथवा किसी शत्रु ने दुर्भावनावश आपके ऊपर तांत्रिक अभिचार कर्म अथवा तंत्र प्रयोग या टोना -टोटका करवा दिया है और आप लाख प्रयत्नों के बाद भी उन तांत्रिक दुष्कर्मों से छुटकारा नहीं पा सके हों तो आप हमारे केंद्र के तंत्र विशेषज्ञों द्वारा वर्षों की साधना और दिव्य शक्तियों के संयोग से सिद्धिकाल में विशेष रूप से निर्मित ” तंत्र रक्षा कवच “को मंगवाकर सदैव के लिए अपने गले में धारण करके वांछित लाभ प्राप्त कर सकते हैं |इस दिव्य कवच पर किसी भी प्रकार का जादू -टोना असर नहीं डाल सकता है |ऐसा देखा गया है क्योंकि यह कवच महाविद्याओं की शक्तियों से संपन्न होते हैं जो इस ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्तियां हैं |जीवन में समस्त उपरी बाधाओं से रक्षा हेतु सदैव के लिए इस प्रचंड शक्तिशाली कवच को अपने गले में धारण अवश्य ही करना चाहिए |इससे आप अभिचार /टोन– टोटके /tantra /वायव्य बाधा से सुरक्षित रहेंगे और नकारात्मक ऊर्जा से आपका बचाव होगा |…………………………………………………………….हर–हर महादेव 

पति जब परमेश्वर न बन पाए ,दाम्पत्य तबाह हो तो ?

पति जब देवता न बन पाए ,घर तबाह करे तो 
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                                  दाम्पत्य जीवन स्त्री -पुरुष के एक संकल्प के साथ एक होकर चलने के भावना से शुरू होता है |इसमें लड़का और लड़की दोनों दो पहिये होते हैं और इनकी इस सम्बन्ध में अपनी सोच ,कल्पनाएँ ,भावनाएं होती हैं |विवाह के पूर्व लडकी अपने मन में अपने भावी वैवाहिक जीवन और पति को लेकर असंख्य कल्पनाएँ करती है ,उसकी अनेक भावनाएं होती है | वह अपने पति को सौम्य ,सरल ,सीधा ,बात मानने वाला ,प्यार करने वाला ,उसका सम्मान करने वाला ,चरित्रवान ,समझदार ,सुख दुःख में साथ देने वाला कल्पित करती हैं |विवाह पूर्व वह कलह ,विवाद ,ईगो ,चारित्रिक दोष की कल्पना नहीं कर पाती और सोचती है की पति को अपने अनुकूल ढाल लेगी |विवाह बाद अधिकतर मामलों में इसका उल्टा हो जाता है |आधुनिक समय में लगभग २० प्रतिशत दम्पति अलग हो जाते हैं विभिन्न कारणों से |इनमे पुरुषों की कमी से अलगाव अधिक होता है लेकिन स्त्री के कारण अलगाव का प्रतिशत भी तेजी से बढ़ रहा है |80 प्रतिशत दम्पतियों में से 75 प्रतिशत एडजस्ट करते हैं मजबूरी में एक दुसरे की कमी को देखते समझते हुए भी |केवल 5 प्रतिशत की लाइफ शान्ति से चल पाती है और वे यह कह सकते हैं की उनका पार्टनर सहयोगी है और वह संतुष्ट हैं |इन 5 प्रतिशत को अगर छोड़ दें तो अलग होने वाले मामलों सहित कुल दम्पतियों में से अधिकतर में कलह होता है ,|इनके कारण अलग अलग हो सकते हैं |पति पत्नी दोनों की कमियां इसके लिए जिम्मेदार हो सकती हैं ,विभिन्न दोष ,कारण ,प्रभाव इनके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं किन्तु कलह बहुत से मामलों में स्त्री द्वारा ही अधिक किया जाता है ,जबकि गलती पुरुषों की हो सकती है |स्त्री मजबूरी में भी कलह करती है जबकि उसका वश न चले |
                                       विवाह पूर्व की सोच से जब वर्तमान मेल नहीं खाता तो क्षुब्धता ,क्रोध उत्पन्न होता है |स्वभाव न मिलने पर तो कलह होता ही है अथवा एक दुसरे से असंतुष्टि तो कलह कराता ही है ,विभिन्न प्रकार कमियां इसे और बढ़ा देते हैं |विभिन्न दोष ,कमियां ,किया कराया ,ग्रहीय स्थितियां भी इसे बढाते हैं किन्तु हमारा विषय यह नहीं की यह क्यों होता है ,क्योकि इस पर हम कुछ पोस्ट पहले लिख चुके हैं |आज हम यह देखते हैं की स्थितियां जो भी हो ,इन पर कैसे नियंत्रण किया जा सकता है |यदि पति बिगड़ा है ,या झगड़ालू है ,मार पीट करता है ,या स्वार्थी है ,या चारित्रिक रूप से कमजोर है ,या किसी और से सम्बन्ध रखता हो ,नशे अथवा दुर्व्यसन पाल रखा है ,परिवार -घर की चिंता नहीं करता ,आलसी हो ,उन्नति से उदासीन हो ,खुद की कमियों से अभाव में जीने को मजबूर कर दे ,अनावश्यक शक करे ,समस्याएं होने पर भी पत्नी की न सुने ,पत्नी को कुछ न करने दे ,अनावश्यक हमेशा टोका टाकी करे अथवा प्रतिबन्ध लागू करे ,सम्मान न करे ,उपेक्षित रखे ,असहयोगी है और आपकी मजबूरी भी है की उसे साथ लेकर चलना भी है तो कैसे उसे सुधारा जाए ,कैसे उसे अनुकूल किया जाए ,कैसे उसकी कमियों को हटाया जाए |हमारे पास अक्सर इस तरह के मामले आते रहे हैं चूंकि हम तंत्र और ज्योतिष से जुड़े रहे हैं अतः इसके लिए हमारे कुछ सुझाव हैं |यदि आप या आपका कोई परिचित इस तरीके की समस्या में घिरा हो जहाँ पुरुष के कारण घर नरक बन रहा हो तो यदि आपको उचित लगता है तो अपनी सुविधानुसार आजमायें अथवा उन्हें सुझाएँ ,हमें उम्मीद है की आपकी समस्या सुलझ सकती है |
१. प्रथम कार्य तो यह करें की पुरुष की कुंडली किसी विद्वान् ज्योतिषी को दिखाएँ और उग्रता ,स्वार्थ ,आलस्य अथवा कामुकता उत्पन्न करने वाले ग्रह के प्रभाव को सिमित करने का प्रयास करें ,साथ ही ज्योतिषी के परामर्श के अनुसार बौद्धिक स्तर उठाने वाले ,दाम्पत्य सुख दिलाने वाले ,स्वभाव में मधुरता लाने वाले ग्रह की शक्ति मजबूत करें |
२. अपने घर के वास्तु पर ध्यान दें |स्थान कैसा भी हो ,घर कैसा भी हो उसे ठीक किया जा सकता है ,अतः ऐसी व्यवस्था वास्तु अनुसार करें की शान्ति बढ़े ,तनाव कम हो ,कलह कम हो ,दिमाग पर बोझ न हो ,प्यार उत्पन्न हो |
३. पुरुष को ,उसकी जिम्मेदारियों को ,पारिवारिक संस्कार और स्थिति को समझने का प्रयत्न करें |उसकी सोच ,शैली ,देखें और तदनुरूप व्यवहार करें |उसे उसकी जिम्मेदारियों ,अपनी आवश्यकता को प्यार से समझाएं |कभी उसके ईगो को हर्ट न करें और किसी अन्य का तुलनात्मक उदाहरण बिलकुल भी न दें ,अपितु उसे प्रेरित करें की वह बहुत अच्छा है और वह सब कुछ कर सकता है |और अच्छा हो सकता है और उन्नति कर सकता है |
४. पुरुष से मिलने जुलने वालों ,उसके दोस्तों मित्रों और उसको सुझाव देने वालों पर ध्यान दें |उसके द्वारा की जा रही तुलना अथवा दिए जा रहे उदाहरण को समझने का प्रयत्न करें ,क्यों और किस ओर यह इशारा कर रहे |उसके बाद अपनी प्रतिक्रिया संतुलित रूप से दें |उसके अवचेतन की धारणाओं को समझकर उन्हें अपरोक्ष रूप से बदलने का प्रयत्न करें |उसकी कुंठाओं को दूर करने का प्रयत्न करें |हमेशा कमियां इंगित न करें |कहीं से घर आने पर तुरंत कोई शिकायत अथवा फरमाइश अथवा उलझन न व्यक्त करें |
5. यह देखें की विवाह पूर्व अथवा बाद में किसी द्वारा किसी स्वार्थ के लिए अथवा अपने दोष हटाने के लिए किसी द्वारा कोई तांत्रिक क्रिया तो नहीं की गयी आपके दाम्पत्य जीवन पर अथवा पुरुष पर | इससे भी कलह होता है और विभिन्न कमियां उत्पन्न हो जाती है |कोई दोनों को अलग तो नहीं करना चाहता अथवा कोई पुरुष को अपनी ओर तो नहीं खीचना चाहता या ऐसा कर चूका है |
६. उस घर के पितरों ,कुलदेवता आदि की स्थिति पता करें की वे संतुष्ट हैं की नहीं ,उनकी पूजा ठीक से हो रही की नहीं |जो परिवारीजन अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए हैं उनकी शान्ति के प्रयत्न करें ,पितरों को श्राद्धादी से संतुष्ट करवाने का प्रयत्न करें और कुलदेवता की वार्षिक पूजा सुनिश्चित कराएं |इनके कारण भी पारिवारिक माहौल बिगड़ता है और अभाव ,कमियां लोगों में उत्पन्न होती हैं |
7. ज्यादा टोटके न आजमायें ,न ही बार बार अलग -अलग ज्योतिषी की सलाह लें |एक बार ही खूब सोच समझकर सलाह लें और उपाय करें |हर वस्तु की अपनी ऊर्जा होती है |यदि सही स्थान पर न लगे तो व्यतिक्रम भी उत्पन्न होता है |किसी उपाय को लगातार उसके निश्चीत समय तक करें |घबराकर जल्दी जल्दी उपाय न बदलें |यहाँ वहां से पढकर या सुनकर उपाय न आजमायें बल्कि जानकार से समझकर अपनी स्थितियों के अनुसार उनका विश्लेष्ण कर उपाय करें |बहुत उपायों की ऊर्जा आपस में टकराकर निष्क्रिय भी हो जाती है और अगले उपाय के लिए असफलता का रास्ता भी बना देती है |
८. पति या पुरुष पर किसी नकारात्मक शक्ति ,किये कराये ,टोने -टोटके ,वशीकरण  आदि का प्रभाव लगे तो उसे किसी उग्र शक्ति जैसे काली ,तारा ,कामाख्या ,बगला ,भैरव ,के यन्त्र इनके सिद्ध साधक से बनवाकर और कम से कम २१००० मन्त्रों से अभिमंत्रित करा कवच में धारण कराएं |यदि वह इन्हें न पहने तो उसके तकिये अथवा बिस्तर आदि के नीचे रखें |
९. यदि पुरुष में चारित्रिक दोष हो अथवा स्वभाव में अधिक उग्रता हो ,सौमनस्य का अभाव हो ,कोई अभाव हो ,कोई शारीरिक कमी हो तो उसे षोडशी त्रिपुरसुन्दरी का यन्त्र इनके सिद्ध साधक से बनवाकर और २१००० मन्त्रों से अभिमंत्रित करा कवच में धारण कराएँ |इससे स्वभाव -शरीर की कमियों का नियंत्रण होता है और अच्छे बुरे को समझने की शक्ति का विकास होने के साथ दाम्पत्य सुख -समृद्धि की वृद्धि होती है |
१०. यदि पुरुष अधिक स्वतंत्र हो ,किसी को कुछ न समझता हो ,बड़े छोटो को समझने ,सहयोग ,सम्मान की भावना न हो ,किसी नशे आदि की समस्या से लिप्त हो ,कोई जुआ आदि की लत हो ,गलत लोगों की संगत में हो ,तो षोडशी यन्त्र धारण कराने के साथ ही उसे खुद के प्रति वशीभूत करें जिससे वह आपकी बात को माने और आपके कहे अनुसार चले |उसकी अच्छे बुरे को सोचने समझने की शक्ति का विकास हो |
११. यदि आपको लगता हो की पुरुष के किन्ही अन्य स्त्रियों या किसी अन्य स्त्री से भी सम्बन्ध हो सकते हैं या लगता हो की उसके कार्यक्षेत्र में किसी से सम्बन्ध बन सकते हैं तो ,प्रकृति उच्चाटन के प्रयोग करें और साथ ही आप खुद श्यामा मातंगी यन्त्र इसके सिद्ध साधक से बनवाकर ,अभिमंत्रित कराकर धारण करें ,जिससे उसका झुकाव आपकी ओर बढ़े और वह आपके प्रति आकर्षित और वशीभूत हो |
१२. यदि आपको लगता हो की घर -परिवार में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव है ,किसी द्वारा दाम्पत्य में बाधा डालने हेतु कुछ किया गया है ,पारिवारिक उन्नति रोकने हेतु कुछ किया गया है ,तो आप चमत्कारी दिव्य गुटिका की प्रतिदिन रोज सुबह पूजा करें और रात में काली सहस्त्रनाम का पाठ करें |इससे नकारात्मक प्रभाव ,किया कराया का प्रभाव समाप्त हो जाएगा और शान्ति उत्पन्न होगी |
उपरोक्त प्रयोग गंभीर प्रकृति के और दीर्घकालिक प्रभाव के हैं |इनके अतिरिक्त अनेक टोटके और प्रयोग दाम्पत्य कलह ,पति को सुधारने ,समस्या निवारण के लिए शास्त्रों में दिए गए हैं |चूंकि विषय पति की कमियों का है अतः कुछ टोटकों का दिया जाना प्रासंगिक होगा |
१.  जिन स्त्रियों के पति किसी अन्य स्त्री के मोहजाल में फंस गये हों या आपस में प्रेम नहीं रखते हों, लड़ाई-झगड़ा करते हों तो इस टोटके द्वारा पति को अनुकूल बनाया जा सकता है।  गुरुवार अथवा शुक्रवार की रात्रि में 12 बजे पति की चोटी (शिखा) के कुछ बाल काट लें और उसे किसी ऐसे स्थान पर रख दें जहां आपके पति की नजर न पड़े। ऐसा करने से आपके पति की बुद्धि का सुधार होगा और वह आपकी बात मानने लगेंगे। कुछ दिन बाद इन बालों को जलाकर अपने पैरों से कुचलकर बाहर फेंक दें। मासिक धर्म के समय करने से अधिक कारगर सिद्ध होगा| 
२.  कई बार पति किसी दूसरी स्त्री के चंगुल में आ जाता है तो अपनी गृहस्थी बचाने के लिए स्त्रियां यह प्रयोग कर सकती हैं। गुरुवार रात 12 बजे पति के थोड़े से बाल काटकर उसे घर के बाहरी दरवाजे अथवा गेट पर ले जाकर जला दें व बाद में पैर से मसल दें ,वापस आते समय पीछे न देखें ,अवश्य ही जल्दी ही पति सुधर जाएगा।
३. पति पत्नी के क्लेश के लिए पत्नी बुधवार को तीन घंटे का मोंन रखें |शुक्रवार को अपने हाथ से साबूदाने की खीर में मिश्री डाल कर खिलाएं तथा इतर दान करें व अपने कक्ष में भी रखें |इस प्रयोग से प्रेम में वृद्धि होती है|
४. यदि निरंतर घर में कलह का वातावरण बना रहता हो,अशांति बनी रहती हो.व्यर्थ का तनाव बना रहता हो तो.थोड़ी सी गूगल लेकर " ॐ ह्रीं मंगला दुर्गा ह्रीं ॐ " मंत्र का १०८ बार जाप कर गूगल को अभी मंत्रित कर दे और उसे कंडे पर जलाकर पुरे घर में घुमा दे.ये सम्भव न हो तो गूगल ५ अगरबत्ती पर भी ये प्रयोग किया जा सकता है.घर में शांति का वातावरण बनने लगेगा।
५. शनिवार की रात्रि में 7 लौंग लेकर उस पर 21 बार पति का  नाम लेकर फूंक मारें और अगले रविवार को इनको आग में जला दें। यह प्रयोग लगातार 7 बार करने से अभीष्ट व्यक्ति पति का वशीकरण होता है। अगर आपके पति किसी अन्य स्त्री पर आसक्त हैं और आप से लड़ाई-झगड़ा इत्यादि करते हैं। तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत कारगर है,|
६. प्रत्येक रविवार को अपने घर तथा शयनकक्ष में गूगल की धूनी दें। धूनी करने से पहले उस स्त्री का नाम लें और यह कामना करें कि आपके पति उसके चक्कर से शीघ्र ही छूट जाएं। श्रद्धा-विश्वास के साथ करने से निश्चिय ही आपको लाभ मिलेगा |
७. अगर पति का पत्नी के प्रति प्यार कम हो गया हो तो श्री कृष्ण का स्मरण कर तीन इलायची अपने बदन से स्पर्श करती हुई शुक्रवार के दिन छुपा कर रखें। जैसे अगर साड़ी पहनतीं हैं तो अपने पल्लू में बांध कर उसे रखा जा सकता है और अन्य लिबास पहनती हैं तो रूमाल में रखा जा सकता है।
शनिवार की सुबह वह इलायची पीस कर किसी भी व्यंजन में मिलाकर पति या प्रेमी को खिला दें। मात्र तीन शुक्रवार में स्पष्ट फर्क नजर आएगा।
८. जब आपको लगे की आपके पति किसी महिला के पास से आ रहें हैं तो आप किसी भी बहाने से अपने पति का आंतरिक वस्त्र लेकर उसमे आग लगा दें और राख को किसी चौराहे पर फैंक कर पैरों से रगड़ कर वापिस आ जाएं.
९. यह प्रयोग शुक्ल पक्ष में करना चाहिए |एक पान का पत्ता लें ! उस पर चंदन और केसर का पाऊडर मिला कर रखें ! फिर दुर्गा माता जी की फोटो के सामने बैठ कर दुर्गा स्तुति में से चँडी स्त्रोत का पाठ 43 दिन तक करें ! पाठ करने के बाद चंदन और केसर जो पान के पत्ते पर रखा था, का तिलक अपने माथे पर लगायें ! और फिर तिलक लगा कर पति के सामने जांय ! यदि पति वहां पर न हों तो उनकी फोटो के सामने जांय ! पान का पता रोज़ नया लें जो कि साबुत हो कहीं से कटा फटा न हो ! रोज़ प्रयोग किए गए पान के पत्ते को अलग किसी स्थान पर रखें ! 43 दिन के बाद उन पान के पत्तों को जल प्रवाह कर दें ! शीघ्र समस्या का समाधान होगा |
१०.शराब छुड़ाने के लिए - आप किसी भी रविवार को एक शराब की उस ब्रांड की बोतल लायें जो ब्रांड आपके पति सेवन करते हैं| रविवार को उस बोतल को किसी भी भैरव मंदिर पर अर्पित करें तथा पुन: कुछ रूपए देकर मंदिर के पुजारी से वह बोतल वापिस घर ले आयें|जब आपके पति सो रहें हो अथवा शराब के नशे में चूर होकर मदहोश हों तो आप उस पूरी बोतल को अपने पति के ऊपर से उसारते हुए २१ बार "ॐ नमः भैरवाय"का जाप करें| उसारे के बाद उस बोतल को शाम को किसी भी पीपल के वृक्ष के नीचे छोड़ आयें|कुछ ही दिनों में आप चमत्कार देखेंगी|
११. जिस महिला से आपके पति का संपर्क है उसके नाम के अक्षर के बराबर मखाने लेकर प्रत्येक मखाने पर उसके नाम का अक्षर लिख दें|उस औरत से पति का छुटकारा पाने की अपने ईष्ट से प्रार्थना करते हुए उन सारे मखानो को जला दें तथा किसी भी प्रकार से उसकी काली भभूत को पति के पैर के नीचे आने की व्यवस्था करें |
१२.  होली के दिन 5-5 रत्ती के 5 मोतियों का ब्रेसलेट पहनें। इसके अतिरिक्त हर पूर्णिमा को चांदी के पात्र में कच्चा दूध डालकर चन्द्रमा को अर्ध्य दें, पति-पत्नी की आपसी संबंधों में मधुरता आयेगी।
इन टोटकों के अतिरिक्त अनेक टोटके ,मन्त्र ,उपाय पति को सुधारने के ,दाम्पत्य प्रेम बढाने के शास्त्रों में दिए गए हैं |जैसी जिस उपाय की शक्ति और ऊर्जा वैसा वह कार्य करती है |.....................................................हर हर महादेव  


पत्नी जब लक्ष्मी न बन पाए -घर बर्बाद करने पर उतारू हो तो ?

घर की लक्ष्मी घर नर्क बना दे तो ?
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                                          विवाह के पूर्व हर लड़के के मन में अपने भावी वैवाहिक जीवन और पत्नी को लेकर असंख्य कल्पनाएँ होती हैं ,अनेक भावनाएं होती हैं |कितना भी माडर्न व्यक्ति हो अथवा रुढ़िवादी हो वह अपनी पत्नी को सौम्य ,सरल ,सीधा ,बात मानने वाली ,प्यार करने वाली ,परिवार -खानदान की मर्यादा और संस्कार को समझने योग्य ,चरित्रवान ,समझदार ,सुख दुःख में साथ देने वाली ,सबका सहयोग करने वाली और परिवार को एक सूत्र में बांधकर चलने वाली ,माता -पिता का ध्यान देने वाली कल्पित करता हैं |विवाह पूर्व कोई कलह ,विवाद ,ईगो ,चारित्रिक दोष की कल्पना नहीं कर पाता और सोचता है की पत्नी को अपने अनुकूल ढाल लेगा |विवाह बाद अधिकतर मामलों में इसका उल्टा हो जाता है |आधुनिक समय में लगभग २० प्रतिशत दम्पति अलग हो जाते हैं विभिन्न कारणों से |इनमे यद्यपि प्रतिशत तो अभी पुरुषों की कमी से अलगाव का अधिक है ,तथापि स्त्री के कारण अलगाव का प्रतिशत भी तेजी से बढ़ रहा है |80 प्रतिशत दम्पतियों में से 75 प्रतिशत एडजस्ट करते हैं मजबूरी में एक दुसरे की कमी को देखते समझते हुए भी |केवल 5 प्रतिशत की लाइफ शान्ति से चल पाती है और वे यह कह सकते हैं की उनका पार्टनर सहयोगी है और वह संतुष्ट हैं |इन 5 प्रतिशत को अगर छोड़ दें तो अलग होने वाले मामलों सहित कुल दम्पतियों में से अधिकतर में कलह होता है ,|इनके कारण अलग अलग हो सकते हैं |पति पत्नी दोनों की कमियां इसके लिए जिम्मेदार हो सकती हैं ,विभिन्न दोष ,कारण ,प्रभाव इनके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं किन्तु कलह बहुत से मामलों में स्त्री द्वारा ही अधिक किया जाता है |
                                        संस्कार और वातावरण माता -पिता और खानदान का दिया होता है जो वाह्य तौर पर व्यक्ति को एक परिधि में रखता है ,किन्तु जब बात खुद की आती है और स्वतंत्र सोच कार्य करने लगती है तब संस्कार ,वातावरण भूलने लगता है और जो बेसिक नेचर है वह सामने आने लगता है | आज तो माता -पिता ही लगभग स्वतंत्र हो रहे अथवा उनके पास समय ही नहीं की वह बच्चों पर ध्यान दे सकें खानदान से तो बहुतों की दूरी बन चुकी है |ऐसे में जिन कन्याओं पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए उन्हें स्वतंत्र छोड़ दिया जा रहा |कुछ कमियां सोसल मिडिया ,इंटरनेट ,टी वी ,सिनेमा ,डेली सोप और नारी स्वतंत्रता की वकालत करने वाले उत्पन्न कर रहे जिससे संस्कार और गंभीरता का क्षय होता जा रहा और व्यक्तिगत स्वार्थ ,महत्वाकांक्षा ,सहयोग का अभाव ,संवेदनशीलता का अभाव ,संतोष और सहनशीलता का अभाव उत्पन्न हो रहा |आज तो माता -पिता तक अपनी बेटी को सहनशीलता और सहयोग न सिखाकर यह समझाते हैं की अपना हित पहले देखो |अपने कैरियर ,स्वार्थ ,स्वतंत्रता से समझौता जरुरी नहीं |परिणाम होता है की लड़की विवाह पूर्व ही सपने पाल लेती है की वह अकेले रहेगी पति के साथ |उसका पति केवल उसकी सुनेगा ,केवल उसकी बात मानेगा ,सारी कमाई उसे ही देगा ,वह स्वतंत्र रहेगी ,कोई रोक टोक नहीं होगा ,वह अपनी इच्छा से जीवन जियेगी आदि आदि |इन सबसे ऐसी मनोवैज्ञानिक स्थिति उत्पन्न हो जाती है की वह सिर्फ अपना हित देखने वाली बन जाती है |कुछ तो पहले से ही इतना स्वतंत्र और मुक्त विचारधारा की होती हैं की वह कोई बात अथवा संस्कार या दबाव मानने को तैयार ही नहीं होती |
                                       इसके बाद शुरू होती है घर के नरक बनने की कहानी |पहले की सोच से जब वर्तमान मेल नहीं खाता तो जबरदस्ती उसे पाने की चाहत उत्पन्न होती है ,अथवा स्वतंत्र होकर खुद का स्वार्थ देखने की भावना पनपती है |स्वभाव न मिलने पर तो कलह होता ही है अथवा एक दुसरे से असंतुष्टि तो कलह कराता ही है ,विभिन्न प्रकार के पूर्वाग्रह इसे और बढ़ा देते हैं |विभिन्न दोष ,कमियां ,किया कराया ,ग्रहीय स्थितियां भी इसे बढाते हैं किन्तु हमारा विषय यह नहीं की यह क्यों होता है ,क्योकि इस पर हम कुछ पोस्ट पहले लिख चुके हैं |आज हम यह देखते हैं की स्थितियां जो भी हो ,इन पर कैसे नियंत्रण किया जा सकता है |यदि पत्नी बिगड़ी है ,या झगड़ालू है ,या स्वार्थी है ,या चारित्रिक रूप से कमजोर है ,असहयोगी है और आपकी मजबूरी भी है की उसे साथ लेकर चलना भी है तो कैसे उसे सुधारा जाए ,कैसे उसे अनुकूल किया जाए ,कैसे उसकी कमियों को हटाया जाए |हमारे पास अक्सर इस तरह के मामले आते रहे हैं चूंकि हम तंत्र और ज्योतिष से जुड़े रहे हैं अतः इसके लिए हमारे कुछ सुझाव हैं |यदि आप या आपका कोई परिचित इस तरीके की समस्या में घिरा हो जहाँ स्त्री के कारण घर नरक बन रहा हो तो यदि आपको उचित लगता है तो अपनी सुविधानुसार आजमायें अथवा उन्हें सुझाएँ ,हमें उम्मीद है की आपकी समस्या सुलझ सकती है |
१. प्रथम कार्य तो यह करें की स्त्री की कुंडली किसी विद्वान् ज्योतिषी को दिखाएँ और उग्रता ,स्वार्थ अथवा कामुकता उत्पन्न करने वाले ग्रह के प्रभाव को सिमित करने का प्रयास करें ,साथ ही ज्योतिषी के परामर्श के अनुसार बौद्धिक स्तर उठाने वाले ,दाम्पत्य सुख दिलाने वाले ग्रह की शक्ति मजबूत करें |
२. अपने घर के वास्तु पर ध्यान दें |स्थान कैसा भी हो ,घर कैसा भी हो उसे ठीक किया जा सकता है ,अतः ऐसी व्यवस्था वास्तु अनुसार करें की शान्ति बढ़े ,तनाव कम हो ,कलह कम हो ,दिमाग पर बोझ न हो |
३. स्त्री को समझने का प्रयत्न करें ,मनोवैज्ञानिक रूप से उसकी विचारधारा ,सोच ,अवचेतन की कुंठाओं को बदलने का प्रयत्न करें |अकस्मात् होने वाली उसके द्वारा प्रतिक्रिया पर ध्यान दें और उसका कारण खोजने का प्रयत्न करें ,यह उसके अवचेतन की कहानी व्यक्त कर देगा |अपनी कमियों पर भी बराबर ध्यान दें |मनोवैज्ञानिक सुझाव और संपर्क बहुत कारगर होते हैं |
४. पत्नी या स्त्री को नीचा दिखाने का प्रयत्न न करें ,न आपके परिवार का कोई ऐसा करे ,यह आक्रोश उत्पन्न करता है |कभी भी उसके मायके की कमियां न निकालें न बुराई करें |मायका कैसा भी हो पत्नी के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है |उसे बच्चों के उदाहरण आदि पर समझाएं की हम जो संस्कार आज अपने बच्चों के सामने अपने माता -पिता के प्रति दिखाएँगे वह उनका अनुसरण कर सकते हैं |
५. पत्नी या स्त्री की किसी से तुलना न करें |उसके साथ कुछ समय जरुर प्यार से बिताएं |उसकी थोड़ी प्रशंशा भी करें |उसकी कमियों पर झुंझलायें नहीं अपितु किसी और तरीके से उसे ही महसूस करने दें की उसमे यह कमी है | प्रशंशा बहुत अधिक भी न करें उसकी हर समय की वह खुद को ही सबसे ऊपर मानने लगे |
६. स्त्री से मिलने जुलने वालों और उसको सुझाव देने वालों पर ध्यान दें |उसके द्वारा की जा रही तुलना अथवा दिए जा रहे उदाहरण को समझने का प्रयत्न करें ,क्यों और किस ओर यह इशारा कर रहे |उसके बाद अपनी प्रतिक्रिया संतुलित रूप से दें |
७. यह देखें की विवाह पूर्व अथवा बाद में किसी द्वारा किसी स्वार्थ के लिए अथवा अपने दोष हटाने के लिए किसी द्वारा कोई तांत्रिक क्रिया तो नहीं की गयी आपके दाम्पत्य जीवन पर अथवा स्त्री पर | इससे भी कलह होता है और विभिन्न कमियां उत्पन्न हो जाती है |
८. अपने पितरों ,कुलदेवता आदि की स्थिति पता करें की वे संतुष्ट हैं की नहीं ,उनकी पूजा ठीक से हो रही की नहीं |जो परिवारीजन अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए हैं उनकी शान्ति के प्रयत्न करें ,पितरों को श्राद्धादी से संतुष्ट करें और कुलदेवता की वार्षिक पूजा सुनिश्चित कराएं |इनके कारण भी पारिवारिक माहौल बिगड़ता है और अभाव ,कमियां लोगों में उत्पन्न होती हैं |
९. ज्यादा टोटके न आजमायें ,न ही बार बार अलग -अलग ज्योतिषी की सलाह लें |एक बार ही खूब सोच समझकर सलाह लें और उपाय करें |हर वस्तु की अपनी ऊर्जा होती है |यदि सही स्थान पर न लगे तो व्यतिक्रम भी उत्पन्न होता है |
१०. पत्नी या स्त्री पर किसी नकारात्मक शक्ति ,किये कराये ,टोने -टोटके ,वशीकरण ,कोख बंधन आदि का प्रभाव लगे तो उसे किसी उग्र शक्ति जैसे काली ,तारा ,कामाख्या के यन्त्र इनके सिद्ध साधक से बनवाकर और कम से कम २१००० मन्त्रों से अभिमंत्रित करा कवच में धारण कराएं |ऐसी शक्तियों के यन्त्र न धारण कराएं जिनमे अशुद्धि का डर हो क्योकि स्त्री बार बार अशुद्ध होगी ही |
११. यदि स्त्री में चारित्रिक दोष हो अथवा स्वभाव में अधिक उग्रता हो ,चंचल स्वभाव हो ,सौमनस्य का अभाव हो ,कोई अभाव हो ,कोई शारीरिक कमी हो तो उसे षोडशी त्रिपुरसुन्दरी का यन्त्र इनके सिद्ध साधक से बनवाकर और २१००० मन्त्रों से अभिमंत्रित करा कवच में धारण कराएँ |इससे स्वभाव -शरीर की कमियों का नियंत्रण होता है और अच्छे बुरे को समझने की शक्ति का विकास होने के साथ दाम्पत्य सुख -समृद्धि की वृद्धि होती है |
१२. यदि स्त्री अधिक स्वार्थी हो ,स्वतंत्र हो ,किसी को कुछ न समझती हो ,बड़े छोटो को समझने ,सहयोग ,सेवा की भावना न हो तो षोडशी यन्त्र धारण कराने के साथ ही उसे खुद के प्रति वशीभूत करें जिससे वह आपकी बात को माने और आपके कहे अनुसार चले |इस हेतु वशीकरण प्रयोग अच्छा काम करते हैं |
१३. यदि आपको लगता हो की पत्नी अधिक आकर्षक है अथवा सुंदर है और आप अपेक्षाकृत कम ,या वह किसी और के प्रति भी आकर्षित हो सकती है ,अथवा वह भी कामकाजी महिला है जो अनेक लोगों के सम्पर्क में होती है तो आप श्यामा मातंगी यन्त्र अभिमंत्रित करा कवच में धारण करें |इससे आपकी आकर्षण -वशीकरण शक्ति बढती है और चूंकि पत्नी सबसे अधिक समय साथ होती है अतः उसपर सबसे अधिक प्रभाव होगा ,यद्यपि प्रभाव सभी मिलने वालों पर होगा |
उपरोक्त प्रयोग गंभीर प्रकृति के और दीर्घकालिक प्रभाव के हैं |इनके अतिरिक्त अनेक टोटके और प्रयोग दाम्पत्य कलह के लिए शास्त्रों में दिए गए हैं |चूंकि विषय कलह का है अतः कुछ टोटकों का दिया जाना प्रासंगिक होगा |
१. यदि पति पत्नी का आपस में बिना बात के झगड़ा होता है और झगडे का कोई कारण भी नही होता तो अपने शयनकक्ष में पति अपने तकिये के नीचे लाल सिन्दूर रखे व पत्नी अपने तकिये के नीचे कपूर रखे|प्रात: पति आधा सिन्दूर घर में ही कहीं गिरा दें और आधे से पत्नी की मांग भर दें तथा पत्नी कपूर जला दे|
२. पति पत्नी के क्लेश के लिए पत्नी बुधवार को तीन घंटे का मोंन रखें |शुक्रवार को अपने हाथ से साबूदाने की खीर में मिश्री डाल कर खिलाएं तथा इतर दान करें व अपने कक्ष में भी रखें |इस प्रयोग से प्रेम में वृद्धि होती है|
३.  यदि निरंतर घर में कलह का वातावरण बना रहता हो,अशांति बनी रहती हो.व्यर्थ का तनाव बना रहता हो तो.थोड़ी सी गूगल लेकर " ॐ ह्रीं मंगला दुर्गा ह्रीं ॐ " मंत्र का १०८ बार जाप कर गूगल को अभी मंत्रित कर दे और उसे कंडे पर जलाकर पुरे घर में घुमा दे.ये सम्भव न हो तो गूगल ५ अगरबत्ती पर भी ये प्रयोग किया जा सकता है.घर में शांति का वातावरण बनने लगेगा।
४.अगर आपके परिवार में अशांति रहती है और सुख-चैन का अभाव है तो प्रतिदिन प्रथम रोटी के चार भाग करें, जिसका एक गाय को, दूसरा काले कुत्ते को, तीसरा कौवे को तथा चौथा टुकड़ा किसी चौराहे पर रखवादें तो इसके प्रभाव से समस्त दोष समाप्त होकर परिवार की शांति तथा सम्रद्धि बढ़ जाती है | 
5. कांच के एक कटोरे में लघु मोती शंख रख कर उसे अपने बिस्तर के नजदीक किसी टेबल आदि पर अथवा पास की किसी जगह पर रखें। इससे कमरे के आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और पति-पत्नी में प्रेम बढ़ेगा।
६. ग्यारह गोमती चक्र लेकर लाल सिंदूर की डिब्बी में भरकर अपने घर में रखने से दाम्पत्य प्रेम बढ़ता है।
इनके अतिरिक्त अनेकानेक प्रयोग और टोटके हैं जो दाम्पत्य कलह ,स्त्री को वशीभूत करने के लिए दिए गए हैं ,पर इन्हें बहुत सोच समझकर ,पूर्ण विधि जानकार ही करना चाहिए |....[ अगले भाग में - पति जब देवता न रह जाए -घर बर्बाद करने पर उतारू हो तो ]..................................................हर-हर महादेव  

पति-पत्नी के व्रत-पूजा का फल दूसरों को तो नहीं मिल रहा ?

किसको मिल रहा हैं पति-पत्नी के व्रत-उपवास-पूजा का फल
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क्या कभी सोचा है ?
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                            पति या पत्नी अक्सर व्रत -उपवास रखते हैं ,पूजा -पाठ करते हैं ,अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए | पत्नियाँ अथवा महिलायें व्रत-उपवास में अधिक लिप्त होती हैं ,कुछ वास्तविक श्रद्धा से कुछ सामाजिक और सांस्कारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए |पति अथवा पुरुष पूजा-पाठ-अनुष्ठान अधिक करवाते हैं या करते हैं |सामान्य धारणा है की पत्नी द्वारा रखे गए व्रत उपवास का परिणाम बच्चों और पति को ही मिलता है ,जबकि पति द्वारा किये जा रहे पूजा-पाठ का परिणाम परिवार-बच्चो और पत्नी को मिल रहा है ,,पर क्या वास्तव में यही सच्चाई है |कभी यह सच था ,उस समय की नैतिकता और सामाजिक परिवेश के अनुसार ,,पर क्या आज भी वही माहौल है ,वही नैतिकता और संस्कार बचे हैं ,उसी तरह व्यक्ति पति या पत्नी के प्रति समर्पित है ,जो आज भी वही परिणाम मिल रहे हैं |गंभीरता से सोचने पर और तार्किक विश्लेषण करने पर स्थिति बिलकुल उलटी नजर आती है ,जो एक अलग ही दृश्य दिखाती है |
                                     सामान्य धारणा है की पति -पत्नी मन्त्रों और सामाजिक संस्कारों से बंधे होते हैं इसलिए उनके द्वारा किया जाने वाला पुण्य या पाप अथवा व्रत-उपवास ,पूजा-पाठ का परिणाम स्वयमेव पति या पत्नी को आधा मिल जाता है और स्वयमेव बच्चों को भी लाभ होता है |किन्तु यहाँ सोचने वाली बात यह है की विवाह के जिस बंधन से आज हम बंधते हैं ,उसकी परिकल्पना तो सामाजिक उश्रीन्खलता को रोकने के लिए हुई थी |यह नैसर्गिक नियम तो है नहीं ,अगर नैसर्गिक नियम होता तो हर प्राणी में यह नियम होता |मनुष्य विकसित और बुद्धिमान जीव है अतः उसने जब देखा की स्त्रियों के लिए हर समुदायों में युद्ध और मारकाट हो रही है तो विवाह की अवधारणा के साथ एक स्त्री और एक पुरुष को साथ में विभिन्न संस्कारों के साथ बांधकर साथ रहने के लिए कहा ,जिससे एक स्त्री पर एक पुरुष का अधिकार हो और उस स्त्री के लिए मारकाट नहीं हो |                                          नैसर्गिक रूप से तो प्रकृति में मादा और नर स्वतंत्र उत्पन्न होते हैं और स्वतंत्र सम्भोग के साथ विकास करते हैं ,सभी जीवों-वनस्पतियों में ऐसा ही होता है |जीवमात्र की आत्मा अकेले और स्वतंत्र रूप से शरीर में जन्म लेती है और अकेले शरीर त्याग करती है |फिर यह साथ तो जीवन भर के मात्र आपसी सहयोग के लिए ही होता है |भावनात्मक अनुभूतियों के कारण रिश्ते भले प्रगाढ़ हो जाएँ पर फिर भी आना और जाना अकेले ही पड़ता है ,क्योकि प्रकृति के नियम में युगल की अवधारणा नहीं है ,,हाँ आत्मा की युगालता होती अवश्य है ,पर प्रकृति के संपर्क में वह भी बिखर जाती है और युगल आत्मा अलग अलग उत्पन्न होती है ,|जब कभी यह मिल जाती है तब तो इस प्रकृति के खेल और जनम -मरण से ही मुक्त हो जाती है |कहने का तात्पर्य यह की प्रकृति में सभी स्वतंत्र उत्पन्न होते हैं धनात्मक अथवा ऋणात्मक प्रकृति के साथ [नर अथवा मादा प्रकृति के साथ ]इनमे आपसी बंधन बाद में सामाजिक संरचना को स्थिर और व्यवस्थित रखने के लिए बनाया गया |ऐसे में जब तक भावनात्मक लगाव न हो ,आतंरिक जुड़ाव न हो ,केवल मन्त्रों से आपसी पूजा-पाठ अथवा व्रत -उपवास का परिणाम एक-दुसरे को मिल जाय संभव नहीं लगता |हां अगर भावनात्मक लगाव है ,आपसी प्रेम है ,आतंरिक जुड़ाव है तो इनके परिणाम एक दुसरे को अवश्य मिल सकते हैं |
                              आज के समय में हम देखते हैं की विवाहेत्तर सम्बन्ध बहुत बनते हैं ,,विवाह पूर्व भी आजकल अधिकतर लोग सम्बन्ध बना चुके होते है |ऐसे में एक कटु सत्य हम कहना चाहेंगे की आप अगर भ्रम पाले हुए हैं की आपके ऐसे पति या पत्नी के व्रत-उपवास, पूजा-पाठ का परिणाम आपको मिल रहा है या मिल जाएगा तो आप भारी भ्रम में हैं |व्यक्ति का भावनात्मक जुड़ाव जहां कही भी अधिक होगा वहां ही उसके द्वारा अर्जित सकारात्मक ऊर्जा का स्थानान्तरण होगा भले वह किसी से भी जुड़ा हो , किसी भी सामाजिक बंधन में न बंधा हो |अगर पति या पत्नी किसी भी अन्य से विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाते हैं या किसी अन्य से प्यार करते हैं तो स्वयमेव उनके द्वारा किये जा रहे पूजा-पाठ, व्रत उपवास का परिणाम उस व्यक्ति तक पहुँच जाएगा |क्योकि यह सब मानसिक तरंगों का खेल है और अर्जित ऊर्जा मानसिक तरंगों के माध्यम से सर्वाधिक जुड़े व्यक्ति तक स्थानांतरित होकर उसे लाभ पहुचाती है |,उसके बाद उससे कम जुड़े व्यक्ति तक थोडा कम लाभ पहुचता है ,|फिर सबसे कम जुड़े व्यक्ति तक सबसे कम लाभ पहुचता है |अगर आपकी पत्नी या पति आपको प्यार नहीं करता /करती तो निश्चित मानिए की उसके द्वारा किये गए किसी भी ऐसे कार्य का परिणाम आपको नहीं मिलने वाला ,भले ही वह संकल्प ही क्यों न ले सार्वजनिक रूप से |वह सार्वजनिक रूप से भी संकल्प लेगा तो उसके मन में तो लगाव नहीं ही होगा फिर आने वाली ऊर्जा स्थानांतरित कैसे होगी ,या तो वह नष्ट हो जायेगी या जिसके प्रति मन में लगाव होगा उस और मुड़ जायेगी |ऐसे में भले पति-पत्नी कुछ भी दिखावा करें ,परिणाम किसी और को मिलेगा |
                                     हमारी बात बहुत लोगों की समझ में नहीं आएगी ,कुछ लोगों को बुरी भी लग सकती है ,पर यह सच्चाई है |इस मामले में बहुत चरित्रहीन व्यक्ति कभी अधिक लाभान्वित हो सकता है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष  |ऐसा व्यक्ति अगर कईयों से जुड़ा है और वह लोग उसके सच्चाई को न जानते हुए उसे बहुत प्यार करते हों और लगाव रखते हों तो उनके द्वारा अर्जित सकारात्मक ऊर्जा उस चरित्रहीन व्यक्ति तक भी पहुच जाती है और उसके पापों में दुसरे के पुण्य से कमी आ जाती है |इसलिए कभी कभी हम देखते हैं की बहुत पापी और चरित्रहीन व्यक्ति भी बहुत उन्नति करता जाता है और बहुत सुखी भी होता है |यह सब मानसिक तरंगों से ऊर्जा स्थानान्तरण का खेल है |यह कुछ उसी तरह है जैसे पहले राजे महाराजे हजारों रानियाँ रखते थे ,किन्तु फिर भी सुखी रहते थे ,क्योकि सभी रानियों के व्रत-उपवास ,धर्म -कर्म के परिणाम उन्हें मिलते रहते थे और उनके पापों में कमी आती रहती थी |
                                  कोई महिला करवा चौथ का व्रत करती है ,अपने पति के लिए ,पर उसके किस पति को इसका फल मिलेगा |क्या केवल इसलिए यह साथ रह रहे पति को मिल जायेगा की उसने मंत्र से साथ सात फेरे लिए हैं ,या इसलिए मिल जायेगा की वह उसे जल पिलाएगा |ऐसा कुछ नहीं होता ,यदि उस पत्नी में अपने पति के प्रति ,समर्पण ,प्यार ,एकनिष्ठा नहीं है तो पति को ही पूर्ण फल नहीं मिलेगा ,बल्कि हर उस व्यक्ति को मिलेगा जो उस महिला से शारीरिक और भावनात्मक रूप से पति जैसा जुड़ा हो ,भले उस व्यक्ति ने उससे शादी नहीं की हो |सोचने वाली बात है की अगर अफ़्रीकी महिला अथवा अंग्रेज महिला जिसने भारतीय मंत्र से फेरे नहीं लिए ,किसी के साथ मात्र रह रही है और करवा चौथ का व्रत करती है तो क्या उसके साथ के व्यक्ति को फल नहीं मिलेगा ,,अवश्य मिलेगा क्योकि वह पति जैसा ही है ,शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़ा है ,इसलिए ऊर्जा का स्थानान्तरण उस तक मात्र उस स्त्री के सोचने से ही होने लगेगा |यहाँ पति को बिलकुल ही बहुत कम फल मिल सकता है या नहीं भी मिल सकता है ,अगर स्त्री उसे नहीं पसंद करती ,या उससे भावनात्मक रूप से नहीं जुडी है ,या किसी अन्य पुरुष से भावनात्मक रूप से जुडी है और किसी अन्य को मानसिक रूप से अपना पति मानती है |भले वह सामाजिक दिखावे के लिए व्रत रखे और पति भ्रम पाले रहे की उसे तो फल मिलेगा ही ,जो करेगी मुझे ही मिलेगा ,पर ऐसा नहीं होता ,जिससे वह मानसिक जुड़ाव रखेगी ,यहाँ तक की जिससे -जिससे जुड़ाव रखेगी उसे या उन सभी को फल स्वयमेव मिलेगा ,भले वह उसका विवाह पूर्व प्रेमी ही क्यों न हो |
                                   सोचिये पत्नी व्रत के समय दिमाग में अपने विवाह पूर्व के प्रेमी का ध्यान करती है और उसे मानसिक रूप से पति मानती है अथवा उसकी ही याद में खोई है या आज पति के अतिरिक्त किसी अन्य से जुडी है और वह याद आता रहता है ,,आज की शादी को विवशता मान रही है तो क्या तब भी पति को उसके व्रत का फल मिलेगा |वह शारीरिक और मानसिक रूप से कुछ अन्य से भी जुडी है पर सामाजिक मर्यादा के कारण उनमे शादी संभव नहीं ,तब भी क्या पति को ही फल मिलेगा ,नहीं मिलेगा क्योकि यह प्रकृति के नैसर्गिक नियमों और ईश्वर के नियमो के ही विरुद्ध हो जाएगा |जब आप ईश्वरीय या प्रकृति की ऊर्जा का आह्वान करते हैं तो वह आपके मानसिक तरंगों से ही क्रिया करती है और जिस दिशा में या जिस  एकाग्रता से आप सोचते हैं उसी दिशा में वह घूमती है ,वह आपके बोले शब्दों को नहीं सुनती वह मन के वाणी को सुनती है ,इसलिए वहां जाती है जहाँ मानसिक तरंगे पहुचती है |ऐसे ही इश्वर भी मिलता है ,ऐसे ही उसकी ऊर्जा भी मिलती है ,ऐसे ही वह ऊर्जा उन जगहों पर पहुचती है |
                                                ऐसा ही पतियों के साथ होता है |उनके पूजा पाठ का सकारात्मक प्रभाव वहां अधिक जाता है जिसको वह अधिक चाहता है |भले पत्नी कोई भी हो पर अगर वह उससे मानसिक लगाव और प्यार नहीं रखता तो उसके पूजा-पाठ का परिणाम बहुत कम पत्नी को मिल पाता है |वह जिन -जिन से सम्बंधित होता है शारीरिक और मानसिक रूप से उन सभी को परिणाम मिलता है ,जिसे वह अधिक चाहता है उसे अधिक मिलता है |ऐसा ही संतानों के मामले में होता है |सामने एक संतान है जो वैध रूप से पैदा है ,पर कुछ अवैध भी हैं ,तो जब भी पति या पत्नी कोई पूजा-पाठ-व्रत-उपवास संतान के नाम पर करेंगे उसका परिणाम या पुण्य सभी संतानों में स्वयमेव वितरित हो जाएगा क्योकि वह सभी इसी शरीर से उत्पन्न हैं और उनमे आतंरिक जुड़ाव [खून-क्रोमोसोम-जीन] है |पति या पत्नी किसी अन्य से अवैध रूप से जुड़े हैं और उससे संतान है तो सम्बंधित व्यक्ति के पुण्य और पाप दोनों का परिणाम उस संतान को भुगतना होता है ,भले सार्वजनिक रूप से किसी का भी नाम पिता या माता के रूप में चल रहा हो |इसलिए यदि कोई यह समझे की पति या पत्नी की पूजा-आराधना-व्रत-उपवास-पुण्य-पाप का परिणाम उसे मिल रहा है तो यह खुद को धोखा देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है |यदि सम्बंधित व्यक्ति ]पति या पत्नी ]पूर्ण समर्पित नहीं है और वास्तविक प्यार नहीं करता या वास्तविक रूप से भावनात्मक नहीं जुड़ा है तो उसका परिणाम नहीं मिलने वाला ,वह अगर ऐसा करता है तो सकारात्मक ऊर्जा तो उत्पन्न होती है किन्तु जिसको वह चाहता है उस दिशा में घूम जाती है और व्यक्ति यहाँ भ्रम पाले रहते हैं की वह हमारे लिए कर रहा है हमें परिणाम मिलेगा |
                                      अतः हमारा विनम्र निवेदन है की यदि आप अपनी पत्नी या पति से वास्तविक प्रेम नहीं करते ,भावनात्मक लगाव नहीं है ,आप अपने पति या पत्नी के प्रति पूर्ण एकनिष्ठ समर्पित नहीं है तो यह दिखावा मत कीजिये ,उसे बार -बार धोखा जीवन भर मत दीजिये क्योकि आपका सारा किया धरा उसके लिए एक धोखा मात्र है ,उसे तो कुछ मिलने ही वाला नहीं है |अगर आप विवाह पूर्व या बाद में किसी अन्य से भी शारीरिक सम्बन्ध रख चुके हैं या रख रहे हैं ,भावनात्मक लगाव अन्य से भी रखते हैं तब भी परिणाम पति या पत्नी को बहुत अल्प ही मिलता है और आपका किया हुआ कार्य उसके लिए धोखा देना ही है |पूर्व के पाप कभी भी आपके किसी भी पुण्य को पूर्णता के साथ आपके पति तक नहीं पहुचने देंगे जीवन भर ,क्योकि आपको वह व्यक्ति भूलेगा नहीं और आपका पुण्य स्थानांतरित होता रहेगा |जैसे कहा जाता है की पहला प्यार भूलता नहीं है तो यहाँ भी यह होता है की आपका किया धरा अपने आप पहले प्यार तक पहुचता रहता है भले ही उसने धोखे से ही सब कुछ किया हो अथवा आपके सम्बन्ध समाप्त हो गए हों ,पर अगर वह याद आता है और प्यार आपके मन में उत्पन्न होता है तो उस तक भी लाभ स्थानांतरित होता ही होता है |आपकी एक गलती पूरे जीवन आपको किसी का पूर्ण रूप से होने नहीं देगी ,भले आप बाद में किसी के प्रति पूर्ण समर्पित ही क्यों हो जाएँ |अतएव अगर कोई ऐसा पाठक हमारी अलौकिक शक्तियां अथवा Tantramarg नामक फेसबुक पेजों को या हमारे इस blog  को पढ़ रहा हो, जिसने  जीवन में किसी अन्य से सम्बन्ध नहीं रखे तो वह ध्यान दे और कभी पति या पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य से सम्बन्ध न रखे ,क्योकि आपकी एक गलती जीवन भर आपके कर्मों को अधूरा कर देगी ,बाद में पछता कर भी आप कुछ नहीं कर पायेंगे | ………..[व्यक्तिगत विचार और चिंतन ]……………………………………………..हर-हर महादेव

आत्मा युगल [twin soul] की अवधारणा ,विवाह तथा अंतर्संबंध

क्या यह सत्य है की आत्मा का मोक्ष युगल मिलने पर ही होता है
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विवाह और आत्मा युगल [twin soul] की अवधारणा तथा अंतर्संबंध 
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                             यह ब्रह्माण्ड एक निर्विकार - निर्गुण परम तत्व से उत्पन्न होता है और उसी में समाहितहोता है ,इसे सदाशिव- परमेश्वर- परब्रह्म- परम तत्व आदि के नाम से जाना जाता है | इस तत्व से जब सृष्टि उत्पन्न होती है तो वह द्विगुणात्मक हो जाती है ,अर्थात शिव,अर्धनारीश्वर हो दो गुणों का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं ,एक धनात्मक और दूसरा ऋणात्मक,,इसीलिए सम्पूर्ण प्रकृति द्विगुणात्मक होती है | स्त्री ऋणात्मक ऊर्जा और पुरुषधनात्मक ऊर्जा का प्रतिरूप होता है | समस्त संसार की उत्पत्ति इस धनात्मक औरऋणात्मक के आपसी संयोग से होती है ,मनुष्यों में भी ऐसा है ,किन्तु मनुष्यों में विवाह कीअवधारणा है जबकि प्रकृति के अन्य किसी जीव या पदार्थ में यह व्यवस्था नहीं है | अर्थात यह मनुष्य द्वारा अपने लिए बनाई गयी एक व्यवस्था है ,प्रकृति ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई ,अपने आपसी लाभ और सुरक्षा के दृष्टिगत यह व्यवस्था विकसित हुई है | किन्तुइसके पीछे गंभीर रहस्य भी हो सकते हैं ,जिसके बारे में सामान्य मनुष्य नहीं सोचता |
                        यद्यपि विवाह की व्यवस्था एक सामाजिक कृत्रिम व्यवस्था है ,जिसके शुरू होने के पीछेअपने कारण थे |वास्तव में इस प्रथा के शुरू होने कारण था की प्राचीन काल में स्त्रियाँअसुरक्षित थी ,उनके लिए पुरुषों में मारकाट मची रहती थी ,इसलिए एक ऐसी विधि बना दीगयी ,जिससे जिस युवती के साथ उस विधि को पूरा किया गया हो ,वह उस पुरुष कीसंपत्ति बन जाती थी ,दूसरा कोई उसको प्रणय का अधिकारी नहीं होता था | यह व्यवस्थावास्तव में एक पुरुष को एक स्त्री के साथ जोड़ने ,संतानोत्पत्ति ,काम वासना की शांति,मार- काट से बचने के लिए की गयी और इसे धर्म से बाद में जोड़ दिया गया ,साथ ही बादमें रचित कथाओं- मिथकों में व्यवस्था अनंत कालीन बना दी गयी |प्रकृति में प्राकृतिक तौरपर किसी भी जीव जंतु में विवाह की व्यवस्था नहीं है |मनुष्यों में विवाह की व्यवस्था कायह एक सामान्य कारण माना जाता है और है भी ,पर ऋषि- मुनि- तत्व वेत्ता- ब्रह्म ज्ञानी इसके पीछे के मूल कारण को भी जानते थे ,इसलिए इसे सामाजिक के साथ ही धार्मिक औरतात्विक महत्व प्राप्त हुआ |
                            विचारणीय है की जब सदाशिव ,सृष्टि उत्पन्न करने के लिए दो विपरीत गुणों में अपने कोपरिवर्तित करते है ,जब ब्रह्माण्ड की प्रत्येक चीज इन्ही मूल दो गुणों का प्रतिनिधित्व करतीहै ,जब हर जीव - वनस्पति ,पदार्थ यहाँ तक की परमाणु में भी मूल रूप से यही दो गुणधनात्मक और ऋणात्मक होते हैं ,इन्ही से सृष्टि उत्पन्न होती है ,इन्ही से बनती है तो यहकैसे हो सकता है की उसी सदाशिव के अंश से उत्पन्न आत्मा केवल एक गुण वाली हो याअकेले उत्पन्न होती हो | जब स्त्री - पुरुष ,नर- मादा अलग अलग उत्पन्न होते हैं तो इनमेबसने वाली आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी | गंभीर सोचनीय बात है | प्रकृति में सबकुछ द्विगुनात्मक है ,इन दो के मिलने से ही पूर्णता आती है ,इन दो के मिलने से ही तीसरेकी उत्पत्ति होती है ,तब आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी और उसकी पूर्णता अकेलेकैसे संभव होगी | अवतार और ईश्वर तक दो गुणों में परिभाषित होते हैं तब आत्मा क्यों नहीं| एक बात और सोचने वाली है की कभी कभी सुना जाता है की अमुक योनी वाला इतने वषोंतक जीवित रहा ,क्या वह किसी का इंतज़ार करता रहा ,और उससे मिलने पर ही उसकीमुक्ति हुई |क्यों वह इतने वर्षों तक जीवित रहा ,क्या पाना चाहता था |क्यों कोई हजारों वर्षों तक तपस्या करता रहता है तो कोई महान सिद्ध अल्पायु में ही शरीर त्याग देता है |यह सब क्या है ,और क्यों होता है |हमे लगता है यह एक मुख्य कारण हो सकता है |
                               हम अक्सर देखते हैं की एक ही उम्र के एक ही समय में जन्मे दो बच्चो में जिनमे एककन्या और एक बालक होता है ,उनके आपसी गुण और स्वभाव भिन्न होते हैं ,बच्ची कोगुडिया अच्छी लगती है या बनाव श्रींगार और बच्चे को गेंद या खेलकूद के पुरुषोचित गुण,जबकि उन्हें सामान माहौल में रखा जाए तब भी | यह सब किसी भिन्न शक्ति का संकेतक है | संभवतः इन्ही सब गुणों और इसके पीछे के मूल निहितार्थों को जानते हुए विवाह कीअवधारणा विकसित की गयी | आत्मा की द्वैतता भी इसका कारण हो सकता है ,जिन्हेंप्राचीन महर्षि जानते थे | यद्यपि आज यह सामान्य और लौकिक बंधन तथा आपसी संतुलन की दृष्टि से बनाया गया रिवाज लगता है | पर संभव है इसके अन्य अर्थ भी हों | संभव है की साथ रखने की दृष्टि से महर्षियों ने सोचा हो की साथ रहते दो अधूरी आत्माओंका मिलन हो जाए जो जन्म चक्र और गर्भाधान के चलते प्रकृति वश पूर्व की बातें भूल जातेहैं |
                          संभव है की हमारे आत्मा की उत्पत्ति के समय हमारी आत्मा ने दो दो हिस्सों का रूपलिया हो ,जिनके मिलने पर ही उनकी पूर्णता और मुक्ति निर्धारित हो | संभव है विवाह कीअवधारणा के पीछे यह रहस्य हो की कभी तो वे बिछड़े हिस्से आपस में किसी जन्म में मिलजायेंगे और पूर्ण हो मुक्त हो जायेंगे | कभी कभी ऐसा भी सुनने में आता है की एक व्यक्तिको दिया कष्ट दूसरा महसूस करता है ,जैसे कहावत है की मजनू को दिया कष्ट लैलामहसूस करती थी | क्या इसका कोई अर्थ है | यद्यपि हमारी सोच अजीब लग सकती है बहुतलोगों को ,पर क्या ऐसा नहीं हो सकता | यद्यपि यह हमारे विचारों का भटकाव मात्र भी हो सकता है पर बिना कारण के कुछ नहीं होता ,कुछ तो ऐसा महसूस हुआ है जिससे यह सोचनेपर मजबूर हुए हैं ,भगवती की कुछ तो प्रेरणा लगती है |[मेरी बात किसी ज्ञानी महापुरुष को गलत लगे तो क्षमा करेंगे ,किसी की भावना को ठेस लगे तो हम क्षमा प्रार्थी हैं ,हम कोईविवाद नहीं चाहते ,यह हमारे व्यक्तिगत विचार हैं और वैचारिक आजादी का उपयोग अपनेपेज Tantra Marg ,अलौकिक शक्तियां तथा अपने blog पर हम कर रहे है] ……………………………………………………………………….हर–हर महादेव 

Twin Soul :: आत्मा युगल या जुडवा आत्मा

कभी जुड़वाँ आत्मा या आत्मा युगल के बारे में सोचा है ?,क्या है आत्मा युगल या जुड़वाँ आत्मा [twin soul]
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                                    यह ब्रह्माण्ड एक निर्विकार -निर्गुण परम तत्व से उत्पन्न होता है और उसी में समाहित होता है ,इसे सदाशिव-परमेश्वर-परब्रह्म-परम तत्व आदि के नाम से जाना जाता है |इस तत्व से जब सृष्टि उत्पन्न होती है तो वह द्विगुणात्मक हो जाती है ,अर्थात शिव ,अर्धनारीश्वर हो दो गुणों का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं ,एक धनात्मक और दूसरा ऋणात्मक,,इसीलिए सम्पूर्ण प्रकृति द्विगुणात्मक होती है |स्त्री ऋणात्मक ऊर्जा और पुरुष धनात्मक ऊर्जा का प्रतिरूप होता है |समस्त संसार की उत्पत्ति इस धनात्मक और ऋणात्मक के आपसी संयोग से होती है ,मनुष्यों में भी ऐसा है ,किन्तु मनुष्यों में विवाह की अवधारणा है जबकि प्रकृति के अन्य किसी जीव या पदार्थ में यह व्यवस्था नहीं है |अर्थात यह मनुष्य द्वारा अपने लिए बनाई गयी एक व्यवस्था है ,प्रकृति ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई ,अपने आपसी लाभ और सुरक्षा के दृष्टिगत यह व्यवस्था विकसित हुई है | किन्तु इसके पीछे गंभीर रहस्य भी हो सकते हैं ,जिसके बारे में सामान्य मनुष्य नहीं सोचता |
                                   विचारणीय है की जब सदाशिव ,सृष्टि उत्पन्न करने के लिए दो विपरीत गुणों में अपने को परिवर्तित करते है ,जब ब्रह्माण्ड की प्रत्येक चीज इन्ही मूल दो गुणों का प्रतिनिधित्व करती है ,जब हर जीव -वनस्पति ,पदार्थ यहाँ तक की परमाणु में भी मूल रूप से यही दो गुण धनात्मक और ऋणात्मक होते हैं ,इन्ही से सृष्टि उत्पन्न होती है ,इन्ही से बनती है तो यह कैसे हो सकता है की उसी सदाशिव के अंश से उत्पन्न आत्मा केवल एक गुण वाली हो या अकेले उत्पन्न होती हो |जब स्त्री -पुरुष ,नर-मादा अलग अलग उत्पन्न होते हैं तो इनमे बसने वाली आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी |गंभीर सोचनीय बात है |प्रकृति में सब कुछ द्विगुनात्मक है ,इन दो के मिलने से ही पूर्णता आती है ,इन दो के मिलने से ही तीसरे की उत्पत्ति होती है ,तब आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती होगी और उसकी पूर्णता अकेले कैसे संभव होगी |अवतार और ईश्वर तक दो गुणों में परिभाषित होते हैं तब आत्मा क्यों नहीं |एक बात और सोचने वाली है की कभी कभी सुना जाता है की अमुक योनी वाला इतने वषों तक किसी का इंतज़ार करता रहा ,और उससे मिलने पर ही उसकी मुक्ति हुई |यह सब क्या है ,और क्यों होता है | 
                              कभी किसी के बहुत कम आयु में मुक्त या मोक्ष हो जाने की बात सुनाई देती है ,कभी सुनते हैं की कुछ संत हजारों वर्षों तक तप कर रहे हैं |कभी ऐसा भी सुनने में आता है की अमुक व्यक्ति-संत-महात्मा- महापुरुष हजारों वर्षों तक कहीं कहीं कभी कभी अपने से जुड़े लोगों को दीखता है ,क्यों होता है ऐसा या यह सब |कहीं इनका कोई सम्बन्ध आत्मा के युगल में उत्पन्न होने से तो नहीं ,,जब सभी कुछ युगल में उत्पन्न होती है तब आत्मा कैसे अकेले उत्पन्न होती है |जब किसी भी पदार्थ- जीव -वनस्पति की पूर्णता दो विपरीत प्रकृतियों के आपसी मिलन से ही पूर्ण होती है ,तब आत्मा की पूर्णता कैसे अकेले होती है ,यहाँ तक की सबसे छोटे कण परमाणु का भी स्थायित्व धन और ऋण के परस्पर संतुलन से ही है अन्यथा यह भी बिखर जाता है या दुसरे से सम्बंधित हो जाता है |
                               क्यों साधना में पुरुष शक्ति के साथ स्त्री शक्ति का और स्त्री शक्ति के साथ पुरुष शक्ति का मंत्र जप अथवा पूजा आवश्यक होता है ,क्यों शक्ति त्रिकोण के साथ भैरवों का जुड़ाव है ,,क्यों शिवलिंग में योनी है ,क्यों विष्णु के साथ लक्ष्मी ,ब्रह्मा के साथ सरस्वती और शिव के साथ शिवा हैं |क्या यह कोई संकेत है या केवल मनुष्य की परिकल्पना ,,क्यों नहीं जीवों -वनस्पतियों में एक लिंगी व्यवस्था है ,क्यों द्वि लिंगी या उभय लिंगी व्यवस्था है ,,इन सबके पीछे कारण हैं |जब इनके अपने कारण हैं तो आत्मा में भी ऐसा हो सकता है |,है ना गंभीरता से सोचने वाली बात |आत्मा के साथ उसके जोड़े के भी उत्पन्न होने की पूर्ण सम्भावना है ,तभी तो उसकी पूर्णता होगी |कभी कहीं कुछ इस सम्बन्ध में पढ़ा था ,उस लेख ने आंदोलित किया हमारे विचारों को और हम यह सोचने पर विवश हुए की ऐसा बिलकुल संभव है और शायद इसका व्यक्ति के मोक्ष आदि से गंभीर सम्बन्ध है |इसका सम्बन्ध जीवों के एक दुसरे के लिए आपसी आकर्षण और पागलपन से भी हो सकता है ,|हमें लगता है हमारे आत्मा के जन्म के साथ ही उसका धनात्मक या ऋणात्मक भी उसी समय उत्पन्न होता है, यह आपका पति या पत्नी ही हो जरुरी नहीं |आपको क्या लगता है ,सोचिये……[व्यक्तिगत विचार ] …………………………………………………..हर-हर महादेव 

१५ मिनट की साधना से ईश्वर मिल सकता है

१५ मिनट पर्याप्त हैं ईश्वरीय ऊर्जा प्राप्ति हेतु 
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                                                 ईश्वरीय ऊर्जा की प्राप्ति प्रतिदिन के १५ मिनट के प्रयास में हो सकती है |यदि हम ऐसा कहते हैं तो लोगों को आश्चर्य हो सकता है ,हो सकता है कुछ लोग आलोचनात्मक भी हो जाएँ ,क्योकि बहुतेरे वर्षों साधना करते रहते हैं ,घंटों करते रहते हैं किन्तु परिणाम समझ में नहीं आता ,फिर भी स्वयं को सिद्ध समझे हुए होते हैं |ऐसे में वह लोग आलोचना भी कर सकते है ,अथवा कुछ महाज्ञानी जो लम्बे-चौड़े कर्मकांड को ही सिद्धि और साधना के सूत्र मानते हैं वह भी आलोचना कर सकते हैं |किन्तु हम फिर भी कहना चाहेंगे की ईश्वरीय ऊर्जा केवाल १५ मिनट प्रतिदिन के प्रयास से पायी जा सकती है |हम कोई सिद्ध नहीं हैं ,कोई सन्यासी नहीं हैं ,अज्ञानी और बेहद सामान्य श्रद्धालु  हैं किन्तु फिर भी अनुभव किया है, अपने नजदीकियों को अनुभव कराया है कि यदि हम चाहें तो ईश्वरीय ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं केवल थोड़े से गंभीर प्रयास से |सामान्य ईश्वरीय ऊर्जा, जिससे हमारा भौतिक जीवन सुखमय हो सके ,नकारात्मक ऊर्जा हट सके ,सफलता बढ़ सके आदि के लिए बहुत गंभीर साधना करनी पड़े ,तंत्र की गंभीर क्रियाएं करनी पड़े आवश्यक नहीं है | सामान्य ईश्वरीय ऊर्जा कोई भी, कभी भी, कहीं भी प्राप्त कर सकता है ,केवल कुछ सूत्रों ,कुछ नियमों ,कुछ निर्देशों को गंभीरता से पालन करने की जरुरत है |
                              हम अपने इस पोस्ट में एक ऐसी महत्वपूर्ण, अति तीब्र प्रभावकारी किन्तु बेहद सरल साधना को प्रस्तुत कर रहे हैं ,जिससे किसी को भी ईश्वरीय ऊर्जा की अलौकिकता का आभास हो सकता है |किसी का भी जीवन बदल सकता है |कोई भी ईश्वरीय ऊर्जा प्राप्त कर सकता है ,केवल १५ मिनट के प्रयास से |हमने बहुतों को यह बताया है ,कुछ सफल हुए ,कुछ घबराकर हट गए ,कुछ नियमित न रह पाने से अथवा अत्यंत सरल पद्धति होने से मजाक समझ अविश्वास में छोड़ बैठे |कुछ इसे करके अत्यंत सफल हो गए और खुद को सिद्ध ही मानने लगे |यह है तो बहुत ही छोटा और सरल प्रयोग पर इसकी शक्ति अद्वितीय है |इससे ईश्वरीय ऊर्जा तो निश्चित रूप से प्राप्त होती ही है ,अगर एकाग्रता और लगन बना रहा तो ईश्वर साक्षात्कार अथवा प्रत्यक्षीकरण भी हो जाता है |भूत-भविष्य-वर्तमान के ज्ञान की शक्ति प्राप्त हो सकती है |किसी भी शक्ति की प्राप्ति हो सकती है ,केवल मार्गदर्शन और तकनिकी ज्ञान मिलता रहे |इस प्रयोग में किसी कर्मकांड की ,लम्बे चौड़े पद्धति की ,विशिष्ट पूजा-पद्धति की भी आवश्यकता नहीं है |कोई भी कर सकता है |
साधना विधि ::–इस साधना को आप किसी भी गणेश चतुर्थी अथवा शुक्लपक्ष के बुधवार से प्रारम्भ कर               
========== सकते हैं | आप नित्यकर्म और स्नान आदि से स्वच्छ हो ,ऊनि लाल अथवा रंगीन आसन पर स्थान ग्रहण करें |भगवान गणेश का एक सुन्दर सा चित्र लें जिसमे उनकी सूंड उनके दाहिने हाथ की और मुड़ी हो [चित्र पहले से लाकर रखे रहें ] |इस चित्र को अपने पूजा स्थान पर स्थापित करें | फिर उनकी स्थापना करें |आप हाथ जोड़कर अपने ध्यान में गणेश जी को लायें और फिर आँखें खोलकर कल्पना द्वारा उस काल्पनिक गणेश जी को धीरे-धीरे लाकर चित्र में स्थापित कर दें और कल्पना करें की गणेश जी ने आकर उस चित्र में अपने को समाहित कर लिया है |अब उनकी विधिवत पूजा कर दें |पूजा आपको रोज सुबह करनी है किन्तु चित्र स्थापना और गणपति की मानसिक प्रतिष्ठा चित्र में एक बार ही करनी है |पूजा में सिन्दूर, लाल फूल और लौंग यथासंभव प्रतिदिन चढ़ाएं |पूजा करने के बाद आप उठ सकते हैं |इस समय इस स्थान पर अगर श्वेतार्क गणपति की भी स्थापना की जाए तो सफलता और बढ़ जायेगी |
                                    अब आपको दिन में किसी भी समय का एक निश्चित समय निश्चित करना है जप आप रोज नियमित उन्हें १५ मिनट का समय दे सकें |यह समय बिलकुल एकांत का होना चाहिए ,कोई आवाज अथवा विघ्न नहीं होनी चाहिए |इसके लिए स्थान आपका शयन कक्ष भी हो सकता है अथवा पूजा स्थान अथवा कोई भी एकांत स्थान |यदि ब्रह्म मुहूर्त में इसे कर सकें तो अति उत्तम है ,अन्यथा आप इसे रात्रीं में सोने के पूर्व भी कर सकते हैं |जब आप समय निश्चित कर लें की अमुक समय आप रोज साधना कर सकते हैं तो फिर उस समय और स्थान में परिवर्तन न हो |इसीलिए आपको जहाँ और जब सुविधा हो एक बार में ही चुनाव कर लें |यदि सुबह कर रहे है पूजा के समय ही तो फिर स्नान की दोबारा आवश्यकता नहीं है अन्यथा रात्री आदि में साधना करने के पूर्व स्नान आदि करके स्वच्छ हो एक ऊनि लाल अथवा रंगीन ऊनि कम्बल अपनी सुविधानुसार स्थान पर बिछाएं |सामने दो फुट की दूरी पर एक स्टूल अथवा आँखों के बराबर ऊँची कोई ऐसी वस्तु रखे जिसपर दीपक रखा जा सके |अब एक घी का दीपक और अगर बत्ती जलाएं |इन्हें गणेश जी को दिखा -समर्पित कर प्रणाम करें और ध्यान से उनके चित्र को देखें |अब उस दीपक को उठाकर अपने साधना स्थल पर लाकर स्टूल पर रखें ,दो अगर बत्ती जलाकर वहां लगायें |अब आसन पर आराम से सुखासन में बैठ जाएँ |आसन के चारो और पहले से सुरक्षा घेरा बनाकर रखें |इसके लिए सिन्दूर-कपूर और लौंग को चूर्णकर घी में मिला गणपति के मंत्र पढ़ते हुए आसन के चारो और घेरा बना दें और भगवान गणेश से प्रार्थना करें की वह आपकी सब प्रकार से सुरक्षा करें |
                                     अब आसन पर बैठ कर अपनी अपलक दृष्टि आपको दीपक की लौ पर जमानी है |दीपक की लौ में नीचे नीले फ्लेम के ठीक ऊपर मध्य भाग पर ध्यान और दृष्टि केन्द्रित करें |मन में सदैव एक ही कल्पना रहे की इस दीपक में भगवान गणेश मुझे दिखेंगे और आशीर्वाद देंगे |मन में प्रबल विशवास रखें की वह जरुर दिखेंगे और मुझे उनकी कृपा प्राप्त होगी |इस अवधि में उपांशु जप चलता है गणपति के मंत्र का |मंत्र का चुनाव आप खुद भी कर सकते हैं किन्तु किसी सिद्ध साधक से मंत्र प्राप्त करने पर मंत्र पहले से उर्जिकृत रहता है और सफलता/सिद्धि जल्दी प्राप्त होती है | सदैव अपने ध्यान को गणेश पर ही केन्द्रित करने का प्रयास होना चाहिए |यद्यपि मन बहुत भटकता है पर कुछ दिन में एकाग्रता आने लगती है और दीपक में आकृतियाँ उभरने लगती हैं ,जिससे रोमांच भी होता है |कभी क्षणों के लिए गणपति भी दिख सकते हैं और भिन्न भिन्न लोग भिन्न भिन्न आकृतियाँ |यह सब अवचेतन के चित्र होते हैं जिन्हें देखकर आप भी हतप्रभ होते रहते हैं ,किन्तु हमेश दिमाग में एक ही निश्चय रखें की हमें गणेश जी स्पष्ट दिखेंगे और आशीर्वाद देंगे |कुछ दिन बाद गणपति की आकृति उभरने लगती है ,क्षणों-क्षणों के लिए ,कभी कुछ कभी कुछ |फिर धीरे धीरे अनवरत प्रयास से गणपति की आकृति स्थायी होने लगती है |यदि जब कभी आपकी एकाग्रता एक मिनट के लिए भी स्थायी हो जाती है अथवा एक मिनट भी गणपति स्थायी होकर रुकते हैं अथवा स्पष्ट दीखते हुए आशीर्वाद मुद्रा में आशीर्वाद देने लगते हैं आपकी साधना सफल होने लगती है |आपको अनेक परिवर्तन स्वतः नजर आने लगते हैं |एक मिनट की आत्म विस्मृति [खुद की सुध भूल जाना ] प्राप्त होते ही आप सिद्धि की शक्ति से साक्षात्कार करने लगते हैं |
                                       गणपति के चित्र का दीपक में स्थायी होना और आशीर्वाद देने का मतलब आप द्वारा उनकी ऊर्जा को वातावरण से बुलाने पर वह आ रही है और उसका सम्बन्ध आपके मष्तिष्क और अवचेतन से बन गया है |आपमें इसके साथ ही आतंरिक रासायनिक परिवर्तन भी होने लगते हैं और वाह्य भौतिक परिवर्तन भी होने लगते हैं ,क्योकि आपके आज्ञा चक्र की तरंगों की प्रकृति बदल जाती है ,उसकी क्रिया तीब्र हो जाती है |आज्ञा चक्र के ईष्ट देव आप पर प्रसन्न होने लगते हैं ,अतः सब और उनके गुणों के अनुसार मंगल ही मंगल होने लगता है |आपकी सोची इच्छाएं पूर्ण होने लगती हैं क्योकि आपकी मानसिक तरंगों में इतनी शक्ति आ जाती है की वह लक्ष्य पर पहुचकर उसे आंदोलित और आपके पक्ष में करने लगती हैं |
                                   जब गणपति की आकृति रोज स्थायी होने लगे तो उसे अधिकतम देर तक स्थायी रखने का प्रयास करें |कुछ दिनों के प्रयास में यह संभव हो सकता है |फिर उन्हें आप अपने मानसिक बल और मन के भावों से घुमाने का प्रयास करें ,अथवा कभी यह हाथ कभी वह हाथ उठायें ,कभी उन्हें घुमाने का प्रयास करें |एकाग्रता, लगन और निष्ठां से यह भी संभव हो जाएगा |,उनके घुमते ही आपके आसपास का माहौल भी आपकी मानसिक ईच्छाओं के साथ प्रभावित होने लगता है |यह साधना की उच्च स्थिति है |यह स्थिति आने पर समाधि की भी स्थिति संभव है अथवा भाव में डूबने पर साक्षात गणपति आपके सामने आकर खड़े हो सकते हैं |इस प्रकार इस साधना की शक्ति की कोई सीमा नहीं है |इस साधना से आप दुनिया में कुछ भी पा सकते हैं |त्रिकाल दर्शिता की क्षमता भी |
                                        इस साधना की शुरुआत केवल  ५ मिनट से करें ,क्योकि आँखों पर बहुत जोर पड़ता है |लगातार दीपक देखते हुए जब आँखों में जलन हो या अत्यधिक पानी आये तो कुछ सेकण्ड के लिए आँखें बंद कर लें किन्तु ध्यान गणपति पर ही एकाग्र रखें |फिर आँखें खोलकर दीपक की लौ में उन्हें देखने का प्रयास करें |इसे प्रति सप्ताह एक मिनट बढ़ते जाएँ और अंततः १५ मिनट तक जाए |इससे अधिक नहीं |यह पूरी प्रक्रिया ३ महीने की सामान्य रूप से है |तीन महीने में हर हाल में दर्शन/साक्षात्कार हो जाने चाहिए [हो जाते हैं ],यदि तीन महीने में आप सफल नहीं होते हैं तो मान लीजिये की आपके पूर्व कर्म बहुत अच्छे नहीं रहे और आपको ईश्वरीय ऊर्जा या दर्शन या आपकी मुक्ति मुश्किल है |आप में भारी कमियां हैं |आप बहुत ही गंभीर नकारात्मकता से ग्रस्त हैं |फिर तो आपका कल्याण केवल गुरु के हाथों ही संभव हो सकता है |हमारे कुछ शिष्यों को इस प्रक्रिया में केवल दो तीन दिनों में भी सफलता मिली है ,कुछ को महीनो लगे हैं |पर अनुभव सबको अवश्य हुआ है ,परिवर्तन सबके अन्दर आता ही है |आप इसे करके देखें ,और नीचे लिखी सावधानी और चेतावनी पर ध्यान देते हुए साधना मार्ग पर अग्रसर हों ,हमें पूरा विश्वास है आपका जीवन बदल जाएगा ,आपको ईश्वरीय ऊर्जा का साक्षात्कार होगा ,भले आपने कभी कोई साधना न की हो ,भले आप साधक न हों ,पर इससे आप साधक बन जायेंगे और गंभीर प्रयास से सिद्ध भी एक विशेष शक्ति के |इस शक्ति के प्राप्त होने पर इसके अनेकानेक प्रयोग हैं जिससे आप अपने परिवार का ,मित्रों का ,लोगों का भला कर सकते हैं ,उनके दुःख दूर कर सकते हैं जबकि आपका भला तो खुद ब खुद होता है |
विशेष जानकारी और चेतावनी
===================== –यह साधना कोई भी कर सकता है ,किन्तु यह तांत्रिक साधना ही है |मूल तांत्रिक पद्धति क्लिष्ट और गुरुगम्य होती है किन्तु इसे कोई भी थोड़ी सावधानी से कर सकता है | साधना में साधित की जा रही शक्ति शिव परिवार की और सौम्य हैं ,इनसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती ,किन्तु परम सात्विक और उच्चतम सकारात्मक शक्ति होने से इनकी साधना से जब सकारात्मकता का संचार बढ़ता है तो ,आसपास और व्यक्ति में उपस्थित अथवा उससे जुडी नकारात्मक शक्तियों को कष्ट और तकलीफ होती है ,उनकी ऊर्जा का क्षरण होता है ,फलतः वह तीब्र प्रतिक्रया करती है और साधक को विचलित करने के लिए उसे डराने अथवा बाधा उत्पन्न करने का प्रयास करती हैं |इस साधना को करते समय आपको कभी विचित्र अनुभव भी हो सकते हैं ,कभी लग सकता है की कोई आगे से चला गया ,कोई पीछे से चला गया ,कोई पीछे है ,या कमरे में है या कोई और भी आसपास है ,कभी अनापेक्षित घटनाएं भी संभव हैं |
                                          सबका उद्देश्य आपको विचलित करना होता है |यह सब गणेश नहीं करते ,अपितु आपके आपस पास की नकारात्मक शक्तियां करती हैं जिससे आप साधना छोड़ दें |,कभी कभी पूजा से भी दूसरी नकारात्मक शक्ति आकर्षित हो सकती हैं |व्यक्ति के काम को बिगाड़ने और दिनचर्या प्रभावित करने का प्रयस भी यह नकारात्मक उर्जायें कर सकती हैं ,इसलिए यह अति आवश्यक होता है की साधना की अवधि में साधक किसी उच्च सिद्ध साधक द्वारा बनाया हुआ शक्तिशाली यन्त्र-ताबीज अवश्य धारण करे ,जिससे वह सुरक्षित रहे और साधना निर्विघ्न संपन्न करे |तीब्र प्रभावकारी साधना होने से प्रतिक्रिया भी तीब्र हो सकती है अतः सुरक्षा भी तगड़ी होनी चाहिए |यह गंभीरता से ध्यान दें की आप जो यन्त्र-ताबीज धारण कर रहे हैं वह वास्तव में उच्च शक्ति को सिद्ध किया हुआ साधक ही अपने हाथों से बनाए और अभिमंत्रित किये हुए हो ,अन्यथा बाद में सामने खतरे या समस्या  आने पर मुश्किल हो सकती है |सिद्ध अथवा साधक के यहाँ की भीड़ ,अथवा प्रचार से उनका चुनाव आपको गंभीर मुसीबत में डाल सकता है |साधना पूर्ण है ,किन्तु इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटी होने अथवा समस्या-मुसीबत आने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे |गुरु का मार्गदर्शन और समुचित सुरक्षा करना साधक की जिम्मेदारी होगी |हमारा उद्देश्य सरल ,सात्विक ,तंत्रोक्त साधना की जानकारी देना मात्र है |………………………………………………हर-हर महादेव

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...