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योग सिद्धि प्राप्ति के लिए देह बनाना आवश्यक
है |विभिन्न मलों से दूषित इस शरीर में सर्वातिशायी परमात्मा और उनकी सहनीय शक्ति
के निवास के लिए योग्य व्यवस्था करना आवश्यक है |आतंरिक शुद्धि से पूर्व वाह्य
शुद्धि के लिए रुद्रयामल में पंचामरा साधन का निर्देश दिया है |इसमें पांच अमर
वस्तु दूर्वा [ग्रन्थियुक्त], विजया ,विल्वपत्र ,निर्गुन्डी और काली तुलसी
का प्रयोग होता है |विशेष यह है की इसमें विजय के पत्र दुगने और अन्य समां भाग में
लेकर उनका पृथक -पृथक चूर्ण बना उनका मिश्रण कर नीचे लिखे मन्त्रों का एक बार पाठ
प्रत्येक पर किया जाता है |
ॐ त्वं
दूर्वेअमर्पूज्ये त्वममृत -समुद्भवे |अमराम माँ सदा भद्रे कुरुष्व नृहरी प्रिये ||
ॐ संविदे
ब्रह्म सम्भूते ब्रह्मपुत्री सदाअनये |भैरवाणाम च त्रिप्त्यर्थे पवित्रा भव सर्वदा
||
ॐ
काव्यसिद्धिकरी-देवी विल्वपत्र निवासिनी |अमरत्वम सदा देहि शिवतुल्यं कुरुष्व में
||
ॐ निर्गुन्डी
परमानंदे योगानामधिदेवते |रक्ष माममरे देवी भावसिद्धिप्रदे नमः ||
ॐ विष्णो:
प्रिये महामाये महाकाल निवारिणी |माँ सदा रक्ष तुलसी मामेकमरम कुरु ||
फिर सबको मिलाकर ---
ॐ अमृते
अम्रितोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतमाकर्षयाकर्षय सिद्धिं देहि स्वाहा
इस मंत्र से
धेनु मुद्रा ,योनी मुद्रा तथा मत्स्य मुद्रा दिखाते हुए प्रणाम करें |
इसके पश्चात
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|| ॐ ऐ वद वद
वाग्वादिनी मम जिह्वाग्रे स्थिरी भव सर्वसत्व -वशंकरी शत्रुकंठ -त्रिशूलिनी स्वाहा
||
इस
मंत्र से चूर्ण का भक्षण करें |इन पाँचों वस्तुओं में क्रमशः --गणपति ,सरस्वती
,शिव ,योगिनी तथा विष्णु का निवास होने से ये देवता साधक पर प्रसन्न होकर उसे
सिद्धि प्रदान करते हैं |योग साधकों के लिए १. नेती, २. दन्ती, ३. धौती, ४. नेउली, ५, क्षालिनी के लिए
जो जहाँ उपदेश किया गया है ,वह भी पंचामरा योग के नाम से निर्दिष्ट है |इस योग से
कुंडलिनी -जागरण में भी सहयोग प्राप्त होता है
|................................................................हर-हर महादेव
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