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आप पूजा रोज करते है पर पूजा समय आपका ध्यान कही और होता है |आप पूजा एक घंटे कर रहे है पर आपका ध्यान ५ मिनट भी ईश्वर पर एकाग्र नहीं हुआ ,जबकि आप प्रपंच दिन भर कर रहे है ,झूठ दिन भर बोल रहे है ,किसी को भी मानसिक -शारीरिक कष्ट दिन भर दे रहे है |क्या आपने सोचा है ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है ,वह सर्वत्र व्याप्त है ,वही तो आपकी जीवनी उर्जा है वह न हो तो आप भी नहीं होगे ,वह तो आपके अंदर ही है ,,जिसे आप कष्ट दे रहे है ,जिससे झूठ बोल रहे है ,जिसके साथ अन्याय कर रहे है ,बेईमानी कर रहे है उसमे भी वही ईश्वर व्याप्त है |एक तरफ आप उसी सर्वव्यापी ईश्वर से ऐसा कर रहे है दूसरी और उससे अपने सुखी होने का वरदान मांग रहे है ,क्या वह आपकी सुनेगा ?नहीं सुनेगा |
कथा सत्यनारायण की सुन रहे है ,मन घर की महाभारत में लगा है ,चिंता है अन्य उद्यमों की ,ऐसे में कैसे वह ईश्वर सुनेगा ,जब आप एकाग्र हो उसे अपने मन से कथा सुनायेगे तभी तो वह सुनेगा ,आप तो उसे महाभारत सूना रहे है ,,ध्यान रहे ईश्वर को आपके द्वारा चढ़ाये जा रहे प्रसाद-फुल-अगरबत्ती से कुछ भी लेना देना नहीं होता वह इन्हें नहीं लेता यह तो बस एक सकारात्मक वातावरण- ऊर्जा का और श्रद्धा का निर्माण करते है ,उसे तो आपके मन के भाव से मतलब होता है ,आप कितना भी कुछ चढा ले ईश्वर उससे प्रसन्न नहीं होता ,ऐसा होता तो वह गरीब और अघोरियो को तो मिलता ही नहीं ,,ईश्वर तो केवल आपके श्रद्धावनत हो उसके भाव में -याद में -गुण में डूब जाने पर ही प्रसन्न हो जाता है ,तो जिससे वह प्रसन्न हो वह क्यों नहीं करते आप ,क्यों आडम्बर में पड़े है ,,
याद रहे दूसरों की दी हुई बद्दुआ भी आपके पुण्य ,पूजा के प्रभाव को क्षीण करती है क्योकि आशीर्वाद यदि दिल से दिया जाए तभी कुछ फलित होता है वह भी अच्छे व्यक्ति द्वारा ,किन्तु बद्दुआ अवश्य फलित होती है ,व्यक्ति कैसा भी हो ,क्योकि उसके साथ व्यक्ति क्रोधित निश्चित होता है और प्रबल आत्मबल के साथ पूरी अनिष्टता की भावना के साथ बद्दुआ देता है ,अतः उसमे स्थित ईश्वर की भी मज़बूरी उसे पूरा करने की हो जाती है क्योकि आखिर है तो वह भी उसकी ही संतान ,,अतः बद्दुआओ से सदैव बचना चाहिए ,कोई ऐसा कार्य न करे जिससे किसी के अंदर स्थित ईश्वर को कष्ट हो ,उसे ही कष्ट देकर आप अपने लिए उसी से कुछ मांगेगे तो वह कैसे देगा ,|,आप पूजा करते रहेगे वह अनसुना करता रहेगा |
जब आप ईश्वर को कुछ सुनाते हैं ,उससे कुछ कहते हैं ,तो आपको अपनी बात तो
याद रहती है ,अपनी परेशानियां तो आप उससे कह देते हैं पर अपने कर्म आपको याद रहते
नहीं |दिल से आप यह तक नहीं कह पाते की मैंने जो गलतियाँ की वह नहं दोहराऊंगा |आप
तो ईश्वर को भो मूर्ख बनाने का प्रयत्न करते हैं ,की वह कुछ देख थोड़े रहा ,उसे जो
कहो वह मान लेगा |आप क्यों भूल जाते हो की वह आपके भी अन्दर है ,जिस भाव से आप
मांग रहे हो उस भाव को वह अन्दर से देख रहा है ,वह आपके ही अन्दर बैठा आपके कर्मों
,सोचों ,भावों और आज कर रहे आपके क्रिया कलाप को चुपचाप देख रहा |उसके अनुसार ही
वह परिणाम दे देता है |अगर आप खुद को ठीक से देख लो तो आपको पहले ही पता चल जाएगा
की ईश्वर आकी सुनेगा की नहीं |.......................................[व्यक्तिगत विचार ].............................................हर-हर महादेव
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