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भाग -१ ]]
ईष्ट देव दो
प्रकार के होते हैं ,एक तो वह जिनको आधार मानकर हम अपनी मुक्ति की कामना रखते हैं
,दुसरे वह जो हमें हमारे जीवन के कष्टों से मुक्ति दिलाते हुए मुक्ति दिला सकें
|यहाँ हम भौतिक कष्टों से मुक्ति ,सुखद जीवन की कामना के साथ मुक्ति भी दे सके ऐसे
ईष्ट पर विचार कर रहे हैं |इसके लिए जन्मकुंडली से मुख्य उपास्य देवता /देवी
अर्थात ईष्ट देव का विचार करते समय जन्म कुंडली के लग्न ,पंचम व् नवंम स्थान से
विचार करें ,उनमे कौन सा ग्रह स्थित है ,कौन से ग्रहों की उनपर दृष्टि है |इनके
स्वामी की क्या स्थिति है |इन सभी योगकारक पक्षों के आधार पर निर्णय करें |जो ग्रह
बली हो उसके आधार पर उपासना करें |अथवा जो शुभ हो किन्तु कमजोर हो उसकी उपासना
करें |कुछ ज्योतिषी यहाँ द्वादश भाव अथवा नवांश का द्वादश भी देखने की सलाह देते
हैं किन्तु हमारा मत है की ऐसा केवल मुक्ति को दृष्टिगत रखते हुए किया जाना चाहिए
|जब आवश्यकता भौतिक परिस्थितियों से पार पाते हुए मुक्ति की भी हो तो लग्न ,पंचम
,नवम ही महत्वपूर्ण होते हैं |नवम ,पंचम और लग्न में से जो सबसे अधिक शुभ अवस्था
में हो भले वह कमजोर हो उसके ही स्वामी के अनुसार ईष्ट का चयन करें ,अथवा लग्न
,पंचम ,नवम की अपेक्षा यदि कोई इनमे बैठा ग्रह अधिक शुभ हो तो उसके अनुसार ईष्ट
चयन करें |यहाँ पूर्ण विश्लेषण तो संभव नहीं और यह कुंडली के गंभीर विश्लेषण के
बाद ही बताया जा सकता है की वास्तव में किसी के ईष्ट कौन होंगे ,पर किस ग्रह के
अनुसार ,अथवा किन ग्रहों की युतियों के अनुसार किस देवता की अराधना अधिक शुभद और
कलयाण कारक होगी यह जरुर यहाँ लिखा जा सकता है ,अतः यहाँ हम ग्रहों के अथवा उनकी
युतियों के आधार पर ईष्ट देवता का सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं ,जिससे इनके चयन में
आपको सहायता मिले |
सूर्य
----- यदि
कुंडली में सूर्य सर्वाधिक योगकारक हो ,शुभ हो और अकेले स्थित हो तो जातक को
विष्णु ,शिव ,दुर्गा ,ज्वाला देवी ,ज्वाला मालिनी ,गायत्री ,आदित्य ,स्वर्णाकर्षण
भैरव की उपासना करनी चाहिए |इनमे जैसी उसे अपनी आवश्यकता लगे उस अनुसार देवता का
चुनाव कर सकता है |
सूर्य -शनि
अथवा सूर्य -राहू -- यदि कुंडली में सूर्य -शनि अथवा सूर्य -राहू की युति हो
अर्थात सूर्य योगकारक और शुभ तो हो किन्तु शनि अथवा राहू से युत हो तो उसका प्रभाव
बदल जाता है और कुछ समस्याएं भी उत्पन्न होने लगती हैं और सूर्य को अपना फल देने
में भी कठिनाई होती है |ऐसी स्थिति में जातक को महाकाली ,महाकाल ,तारा ,शरभराज
,नीलकंठ ,यम ,उग्र भैरव ,काल भैरव ,श्मशान भैरव की पूजा -आराधना करनी चाहिए और
अपना ईष्ट बनाना चाहिए |
सूर्य -बुध
अथवा सूर्य -मंगल -- यदि जन्म कुंडली में सूर्य के साथ बुध अथवा मंगल की युति हो
तो जातक को गायत्री ,सरस्वती ,दुर्गा की उपासना करनी चाहिए और इनमे से किसी एक को
अपना मुख्य उपाय देवता अर्थात ईष्ट देव बनाना चाहिए |
सूर्य -शुक्र
-- सूर्य के साथ शुक्र की युति अलग प्रभाव उत्पन्न करती है जिससे जातक की
आवश्यकताएं बदल जाती है ,उसकी प्रकृति परिवर्तित हो जाती है अतः जातक को मातंगी
,वासुदेव ,तारा ,कुबेर ,भैरवी ,श्री विद्या की उपासना करनी चाहिए अर्थात इनमे से
किसी को मुख्य उपाय देवता के रूप में चुनना चाहिए
|
सूर्य -केतु
-- सूर्य के साथ केतु की युति हो तो छिन्नमस्ता ,आशुतोष शिव ,अघोर शिव की आराधना
उत्तम होती है |..................[ क्रमशः -अगले अंकों में
].....................................................हर हर महादेव
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