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घुंघुची या
गुंजा या रत्ती एक लता जाती का पौधा होता है |प्रायः छोटे छोटे पौधों के तनो से
लिपटकर उर्ध्वमुखी होता है |यह सफ़ेद तथा लाल दो रंगों में प्राप्त होता है |आदिकाल
से जौहरी लोग सोना तथा रत्न का इससे वजन करते रहते हैं ,इसके नाम पर ही रत्ती नामक
वजन की मात्रा निर्धारित है| इसमें गुलाबी रंग के सेम के पुष्पों से कुछ बड़े सेम
के ही पुष्पों की भांति पुष्प लगते हैं |इस लता की पत्तियां इमली के पत्तों की
भांति होती हैं |इसके ऊपर शरद काल में पुष्प आते हैं |होली के कुछ पहले ही यह लता
सूख जाती है |इसके सूखकर फाटे फलों से रंगीन छोटे छोटे मोतियों की भांति लाल रंग
की तथा सफ़ेद रंग की रत्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं ,कभी कभी काले रंग की भी रत्ती
मिलती है |सामान्यतया लाल रंग की रत्ती की लता ही सर्वत्र उपलब्ध होती है ,सफ़ेद
लता भाग्यवश ही मिलती है |इन दोनों का ही तंत्र में बहुत व्यापक और विशिष्ट उपयोग
किया जाता है ,,लाल रत्ती किसी के घर में मात्र फेक देने भर से उस घर के प्राणी
आपस में लड़ लड़कर बेहाल हो जाते हैं |
इसके
मूल और दानों का ही अधिक प्रयोग किया जाता है ,सफ़ेद रत्ती अधिक उपयोगी होती है ,न
मिले तो लाल से भी काम चलाया जा सकता है |इसका प्रयोग विष निवारण में ,तिलक द्वारा
आकर्षण में ,पुत्र उत्पन्न कराने में ,शत्रु को पराजित करने में ,गुप्त शक्तियों
के दर्शन करने में ,काल ज्ञान प्राप्त करने में ,वीर्य स्तम्भन में ,काम शक्ति
बढाने में ,मारण क्रिया में ,दबा -गडा धन देखने में ,किसी को भयभीत करने में
,त्वचा -कुष्ठ रोग में ,नेत्र दृष्टि बढाने में ,किसी घर के निवासियों का उच्चाटन
करने में ,विद्वेष फैलाने में ,शत्रु-विरोधी को बाधा ग्रस्त करने में ,भूत-प्रेत की बाधा दूर करने में हो सकता है ,इसके अतिरिक्त भी इसके अनेकानेक
प्रयोग होते हैं जो सटीक औए निश्चित काम करते हैं
|..............................................हर-हर महादेव
घुंघुची या गुंजा या रत्ती एक लता जाती का पौधा होता है |प्रायः छोटे छोटे
पौधों के तनो से लिपटकर उर्ध्वमुखी होता है | आदिवासी और वनांचलों में रहने वाले ग्रामीण लोग अक्सर रंगबिरंगे बीजों या दानों से बनी ज्वैलरी पहने देखे जा सकते हैं। अक्सर ये लाल-काले, सफेद या हरे रंग के बीज होते हैं। ये जिस पौधे के होते हैं, उसे रत्ती के नाम से जाना जाता है। सैकड़ों सालों से रत्ती के बीजों का उपयोग सोना और चांदी के वजन की एक इकाई के रूप में किया जाता रहा है। यही कारण है कि महंगे गहनों और नगीनों की माप रत्ती में की जाती है। आज के इस आधुनिक ज़माने में भी लगभग एक जैसे वजन वाले रत्ती के बीज किसी जौहरी के लिए जेवरों की नाप-तौल के लिए एक इकाई के रूप में मान्य हैं।कुछ वर्ष पहले तक सुनार इसे सोना तोलने के काम में लेते थे क्योंकि इनके प्रत्येक दाने का वजन लगभग बराबर होता है करीब 120 मिलीग्राम। ये हमारे जीवन में कितनी बसी है इसका अंदाज़ा मुहावरों और लोकोक्तियों में इसके प्रयोग से लग जाता है।
यह तंत्र शास्त्र में जितनी मशहूर है उतनी ही आयुर्वेद में भी। आयुर्वेद में श्वेत गूंजा का ही अधिक प्रयोग होता है औषध रूप में साथ ही इसके मूल का भी जो मुलैठी के समान ही स्वाद और गुण वाली होती है। इसीकारण कई लोग मुलैठी के साथ इसके मूल की भी मिलावट कर देते हैं।वहीं रक्त गूंजा बेहद विषैली होती है और उसे खाने से उलटी दस्त पेट में मरोड़ और मृत्यु तक सम्भव है। आदिवासी क्षेत्रों
में पशु पक्षी मारने और जंगम विष निर्माण में अब भी इसका प्रयोग होता है।
गुंजा की तीन प्रजातियां मिलती हैं:-
1• रक्त गुंजा: लाल काले रंग की ये प्रजाति भी तीन तरह की मिलती है जिसमे लाल और काले रंगों का अनुपात 10%, 25% और 50% तक भी मिलता है।
ये मुख्यतः तंत्र में ही प्रयोग होती है।
श्वेत गुंजा • श्वेत गुंजा में भी एक सिरे पर कुछ कालिमा रहती है। यह आयुर्वेद और तंत्र दोनों में ही सामान रूप से प्रयुक्त होती है। ये लाल की अपेक्षा दुर्लभ होती है।
काली गुंजा: काली गुंजा दुर्लभ होती है, आयुर्वेद में भी इसके प्रयोग लगभग नहीं हैं हाँ किन्तु तंत्र प्रयोगों में ये बेहद महत्वपूर्ण है।
इन तीन के अलावा एक अन्य प्रकार की गुंजा पायी जाती है पीली गुंजा ये दुर्लभतम है क्योंकि ये कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं है किन्तु लाल और सफ़ेद प्रजातियों
में कुछ आनुवंशिक विकृति होने पर उनके बीज पीले हो जाते हैं। इस कारण पीली गूंजा कभी पूर्ण पीली तो कभी कभी लालिमा या कालिमा मिश्रित पीली भी मिलती है
गूंजा में गुलाबी रंग के सेम के
पुष्पों से कुछ बड़े सेम के ही पुष्पों की भांति पुष्प लगते हैं |इस लता की
पत्तियां इमली के पत्तों की भांति होती हैं |इसके ऊपर शरद काल में पुष्प आते हैं |होली
के कुछ पहले ही यह लता सूख जाती है |इसके सूखकर फाटे फलों से रंगीन छोटे छोटे
मोतियों की भांति लाल रंग की तथा सफ़ेद रंग की रत्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं ,कभी
कभी काले रंग की भी रत्ती मिलती है |सामान्यतया लाल रंग की रत्ती की लता ही
सर्वत्र उपलब्ध होती है ,सफ़ेद लता भाग्यवश ही मिलती है |इन दोनों का ही तंत्र में
बहुत व्यापक और विशिष्ट उपयोग किया जाता है ,,लाल रत्ती किसी के घर में मात्र फेक
देने भर से उस घर के प्राणी आपस में लड़ लड़कर बेहाल हो जाते हैं | काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है.
बीज दिखने में जितने खूबसूरत होते हैं, इसके ठीक विपरीत इनका सेवन अत्यंत घातक साबित हो सकता है। दरअसल, इसमें अत्यंत जहरीले एमीनो एसिड्स पाए जाते हैं और कहा जाता है कि एक साथ कुछ बीजों को चबा लेने से प्राण भी जा सकते हैं। हालांकि, आधुनिक विज्ञान के अनुसार प्युरिफ़िकेशन प्रक्रिया से इसके जहरीले अमीनो एसिड और रसायनों, जैसे एब्रीन आदि को अलग किया जा सकता है और इसे औषधि के रूप से इस्तमाल किया जा सकता है। बीजों का औषधीय तौर पर उपयोग हमेशा किसी जानकार की सलाह के बाद लेना चाहिए, वर्ना ये घातक हो सकता है।
रत्ती की पत्तियों की चाय बनाकर पीने से बुखार उतर जाता है, साथ ही सर्दी और खांसी में भी राहत मिलती है। रत्ती की पत्तियों को खौलते पानी में डालकर ढंक दिया जाए और जब पानी गुनगुना हो जाए तो इसे रोगी को पिलाया जाना चाहिए।
रत्ती को जड़ों से प्राप्त रस और अदरख का रस (दोनों समान मात्रा) और थोड़ा-सा घी का मिश्रण बनाकर कुकुरखांसी और दमा से परेशान रोगियों को देने पर काफी आराम मिलता है। पत्तियों को पीसकर मुहांसों पर लगाने से भी फ़ायदा होता है। हर्बल जानकारों के अनुसार, रत्ती की पत्तियों को चुटकी भर हल्दी के साथ कूट लिया जाए और मुहांसों पर रात में सोने से पहले लगा लिया जाए, तो काफी हद तक आराम मिल जाता है।
रत्ती की पत्तियों को चबाने से मुंह के छालों से राहत मिलती है। ग्रामीण इलाकों में हर्बल जानकार लोग पान के एक पत्ते में कत्था लगाकर रत्ती की पत्तियों को डाल कर उस व्यक्ति को देते हैं, जिसके मुंह में लगातार छाले होते हों। इसी फॉर्मूले को पेप्टिक अल्सर के रोगी को भी दिया जाता है। इससे तत्काल राहत मिलती है।
इसकी जड़ों को
पानी में डुबोकर रखने और फ़िर उसे कुचल कर रस की कुछ बूंदों को नाक में डालने से
माइग्रेन के रोगियों को फायदा होता है।
पत्तियों को घाव पर लगाने से घाव जल्दी सूखने लगता है। वैसे आदिवासी इसकी जड़ों को कुचलकर इसके रस को घाव पर लगाते हैं। माना जाता है कि यह रस घाव के संक्रमण को रोकने में मदद करता है। साथ ही, जल्दी घाव को सुखा भी देता है।
इसकी जड़ों को कुचलकर पीलिया से ग्रस्त रोगी को दिया जाए तो आराम मिलता है। यही रस बदन दर्द होने पर दर्द वाले हिस्सों पर लगाया जाए तो दर्द में काफी राहत मिलती है।
रत्ती की
जड़ों को कुचल कर इसके रस को सरसों के तेल के साथ जोड़ों पर मालिश करने से दर्द में
काफी राहत मिलती है।
इसके
मूल और दानों का ही अधिक प्रयोग किया जाता है ,सफ़ेद रत्ती अधिक उपयोगी होती है ,न
मिले तो लाल से भी काम चलाया जा सकता है |इसका प्रयोग विष निवारण में ,तिलक द्वारा
आकर्षण में ,पुत्र उत्पन्न कराने में ,शत्रु को पराजित करने में ,गुप्त शक्तियों
के दर्शन करने में ,काल ज्ञान प्राप्त करने में ,वीर्य स्तम्भन में ,काम शक्ति
बढाने में ,मारण क्रिया में ,दबा -गडा धन देखने में ,किसी को भयभीत करने में
,त्वचा -कुष्ठ रोग में ,नेत्र दृष्टि बढाने में ,किसी घर के निवासियों का उच्चाटन
करने में ,विद्वेष फैलाने में ,शत्रु-विरोधी को बाधा ग्रस्त करने में ,भूत-प्रेत की बाधा दूर करने में हो सकता है ,इसके अतिरिक्त भी इसके अनेकानेक
प्रयोग होते हैं जो सटीक औए निश्चित काम करते हैं |
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