Friday, 8 December 2017

कुलदेवता /देवी पूजन पद्धति [ जिनके कुलदेवता का पता न हो ]

::::::::::::::::::कुलदेवी /कुल देवता पूजा कैसे करें ::::::::::::::::::

कुलदेवी/कुलदेवता की जानकारी नहीं है तो कैसे इनकी पूजा करें
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प्रत्येक हिन्दू वंश और कुलों में कुल देवता अथवा कुल देवी की पूजा की परंपरा रही है |इस परंपरा को हमारे पूर्वजों और ऋषियों ने शुरू किया था |उद्देश्य था एक ऐसे सुरक्षा कवच का निर्माण जो हमारी सुरक्षा भी करे और हमारी उन्नति में भी सहायक हो |यह हर कुल और वंश के लिए विशिष्ट प्रकार की उर्जाओं की आराधना है ,जिसमे हर वंश के साथ अलग विशिष्टता और परंपरा जुडी होती है |कुछ वंश में कुल देवी होती हैं तो कुछ में कुल देवता |आज के समय में अधिकतर हिन्दू परिवारों में लोग कुल देवी और कुल देवता को भूल चुके हैं जिसके कारण उनका सुरक्षा चक्र हट चूका है और उन तक विभिन्न बाधाएं बिना किसी रोक टोक के पहुच रही हैं |परिणाम स्वरुप बहुत से परिवार परेशान हैं |इनमे स्थान परिवर्तन करने वाले अधिक हैं जैसे जो लोग आजादी के बाद पाकिस्तान से आये उनको पता नहीं हैं ,जो विदेशों में बस गए उनको पता नहीं है ,जिन्होंने किसी कारण धर्म अथवा सम्प्रदाय बदल दिया उन्हें पता नहीं है |हमने तो बहुत से सिक्ख और जैन में यह समस्या पाई है जिनके पूर्वज हिन्दू हुआ करते थे और कुल देवता की पूजा होती रही थी उनके यहाँ पहले ,पर बाद में बंद हो गयी |ऐसे कुछ परिवार आज विभिन्न बाधाओं से परेशान हैं ,पर आज की पीढ़ी को कुल देवता/देवी का पता ही नहीं है |वह अक्सर हमसे पूछते रहते हैं की आखिर वे अब करें तो क्या करें |.
ऐसे लोगों के लिए हम एक पूजा-साधना प्रस्तुत कर रहे हैं |जिसके माध्यम से आप अपनी कुलदेवी/ देवता की कमी को पूरा कर सकते हैं और एक सुरक्षा चक्र का निर्माण आपके परिवार के आसपास हो जाएगा | घर मे क्लेश चल रही हो,,कोई चिंता हो,,या बीमारी हो, धन कि कमी,धन का सही तरह से इस्तेमाल हो,या देवी/देवतओं कि कोई नाराजी हो तो इन सभी समस्याओ के लिये कुलदेवी /कुल देवता साधना सर्वश्रेष्ट साधना है.|चूंकि अधिकतर कुलदेवता /कुलदेवी शिव कुल से सम्बंधित होते हैं ,अतः इस पूजा साधना में इसी प्रकार की ऊर्जा को दृष्टिगत रखते हुए साधना पद्धती अपनाई गयी है |इस पद्धति में कुलदेवता और कुलदेवी दोनों की भावना और स्थापना इसलिए की गयी है ताकि यदि कुलदेवी हो तो उन्हें पूजा मिल जाए और कुलदेवता हों तो उन्हें पूजा मिल जाए |जो भी आपके कुलदेवता या कुलदेवी होंगे उन्हें उनकी पूजा मिलती रहेगी |
सामग्री :-
----------- पानी वाले नारियल, लाल वस्त्र ,सुपारिया , या १६ शृंगार कि वस्तुये ,पान के पत्ते , घी का दीपक, कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,पांच प्रकार कि मिठाई ,हलवा ,खीर ,भिगोया चना ,बताशा ,कपूर ,जनेऊ ,पंचमेवा ,दो चांदी की सुपारियाँ ,दो सिक्के ,मौली या कलावा या रक्षा सूत्र ,जौ -चना -गेहूं की पूरी ,बैगन की सब्जी ,कढ़ी और बेसन ,उड़द की छानी बरी ,कुछ कढ़ी में भिगोई कुछ अलग ,चने की दाल पकी हुई ,पका चावल |
साधना विधि :-
---------------- सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख हो एक लकड़ी के बाजोट या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं |उस पर दो जगह रोली और हल्दी के मिश्रण से अष्टदल कमल बनाएं |अब उत्तर की ओर किनारे के अष्टदल पर सफ़ेद अक्षत बिछाएं उसके बाद दक्षिण की ओर लाल रंग से रंग हुआ चावल बिछाएं |दोनों नारियल में मौली लपेटें |एक नारियल को एक तरफ किनारे सफ़ेद चावल के अष्टदल पर स्थापित करें |अब  दुसरे नारियल को कुंकुम से रंग दें अथवा लाल वस्त्र में लपेट दें ,फिर इस पर मौली बांधे |इस नारियल को पहले वाले नारियल के बायीं और अष्टदल पर स्थापित करें |प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने एक पान का पत्ता और दुसरे नारियल के सामने एक पान का पत्ता रखें |अब दोनों पत्तों पर एक एक सिक्का रखें ,फिर सिक्कों पर एक एक चांदी की सुपारियाँ रखें |प्रथम नारियल के सामने के एक पत्ते पर की चांदी की सुपारी पर मौली लपेट कर रखें इस प्रकार की सुपारी दिखती रहे ,यह आपके कुल देवता होंगे ऐसी भावना रखें |दुसरे नारियल और उनके सामने के पत्ते पर आपकी कुल देवी की स्थापना है | इनके सामने की चांदी की सुपारी को पूरी तरह मौली से लपेट दें |अब इनके सामने एक दीपक स्थापित कर दीजिये.|
अब गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये.| अब दोनों नारियल और सुपारियों की चावल, कुंकुम,  हल्दी ,सिंदूर, जल ,पुष्प,  धुप और दीप से पूजा कीजिये. |जहाँ कुमकुम से रंगा नारियल है अथवा लाल कपडे से ढका  नारियल है वहां कुमकुम, सिन्दूर और श्रृंगार सामग्रियां चढ़ेंगी |बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर चढ़ाएं ,हल्दी -रोली चढ़ा सकते हैं ,यहाँ जनेऊ चढ़ाएं ,जबकि दूसरी जगह जनेऊ न  चढ़ाए | इस प्रकार से पूजा करनी है | अब पांच प्रकार की मिठाई इनके सामने अर्पित करें |.घर में बनी पूरी -हलवा -खीर ,कढ़ी ,बैगन की सब्जी ,चावल ,चने की दाल आदि इन्हें अर्पित करें |चना ,बताशा चढ़ाएं |,आरती करें |साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है.| श्रृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये श्रृंगार सामग्री लाल नारियल के सामने चढा दे और माँ को स्वीकार करने की विनती कीजिये.|
इसके बाद हाथ जोड़कर इनसे अपने परिवार से हुई भूलों आदि के लिए क्षमा मांगें और प्राथना करें की हे प्रभु ,हे देवी ,हे मेरे कुलदेवता या कुल देवी आप जो भी हों हम आपको भूल चुके हैं ,किन्तु हम पुनः आपको आमंत्रित कर रहे हैं और पूजा दे रहें हैं आप इसे स्वीकार करें |हमारे कुल -परिवार की रक्षा करें |हम स्थान ,समय ,पद्धति आदि भूल चुके हैं ,अतः जितना समझ आता है उस अनुसार आपको पूजा प्रदान कर रहे हैं ,इसे स्वीकार कर हमारे कुल पर कृपा करें |
यह पूजा नवरात्र की सप्तमी -अष्टमी और नवमी तीन तिथियों में करें |इन तीन दिनों तक रोज इन्हें पूजा दें ,जबकि स्थापना एक ही दिन होगी | प्रतिदिन आरती करें ,प्रसाद घर में ही वितरित करें ,बाहरी को दें |सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता /कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता और उन्हें दीपक देखने तक की मनाही होती है ,किन्तु इस पद्धति में जबकि पूजा तीन दिन चलेगी कन्याएं शामिल हो सकती हैं ,अथवा इस हेतु अपने कुलगुरु अथवा किसी विद्वान् से सलाह लेना बेहतर होगा |वैसे यहाँ जबतक दीपक जले कम से कम तब तक कन्या इसे न देखे तो बेहतर |कन्या अपने ससुराल जाकर वहां की रीती का पालन करे |इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं ,किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें |वैसे यह आवश्यक नहीं है ,क्योकि सभी लोग पढ़े लिखे हों और सही ढंग से मंत्र जप कर सकें यह जरुरी नहीं |
साधना समाप्ति के बाद सपरिवार आरती करे.| इसके बाद क्षमा प्राथना करें |तत्पश्चात कुलदेवता /कुलदेवी से प्राथना करें की आप हमारे कुल की रक्षा करें हम अगले वर्ष पुनः आपको पूजा देंगे ,हमारी और परिवार की गलतियों को क्षमा करें हम आपके बच्चे हैं |तीन दिन की साधना /पूजा पूर्ण होने पर प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने के सिक्के सुपारी को जनेऊ समेत किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले |लाल रंगे नारियल के सामने की सुपारी और सिक्के को अलग डिब्बी में सुरक्षित करें ,जिस पर लिख लें कुलदेवी |अगले साल यही रखे जायेंगे कुलदेवी /कुलदेवता के स्थान पर |अन्य वस्तुओं में से सिक्के और पैसे रुपये जो आपने चढ़ाए हों किसी सात्विक ब्राह्मण को दान कर दें |प्रसाद घर वालों में बाँट दें तथा अन्य सामग्रियां बहते जल अथवा जलाशय में प्रवाहित कर दें |
विशेष 
----------  यह पूजा पद्धति हिन्दू ,जैन ,सिक्ख ,सिन्धी ,गुजराती ,मराठी सभी को दृष्टिगत रखते हुए बनाई गयी है और इसमें ऐसी प्रक्रिया अपनाई गयी है जिससे उनके तात्कालिक धर्म -सम्प्रदाय की मान्यता और पूजा आदि से कोई टकराव न हो |चूंकि यह सभी दुर्गा ,काली ,शिव को मानते हैं और सभी के कुलदेवता शिव परिवार से ही होते हैं अतः सभी इस पूजा को कर सकते हाँ |यदि पूजा करने में या समझने में कोई दिक्कत हो तो किसी योग्य कर्मकांडी की मदद लें |एक बार अच्छे से समझ कर पूजा करें और इसे हर साल जारी रखें |योग्य का मार्गदर्शन आपकी सफलता में वृद्धि करेगा |यह पूजा पद्धति हमारे द्वारा विभिन्न पद्धतियों का अध्ययन कर मध्य मार्ग के रूप में चुना गया है और सामान्यजन के लाभार्थ प्रस्तुत है |सबके लिए उपयुक्त हो आवश्यक नहीं ,|जो पूजन पद्धति एक बार अपनाई जाए उसे फिर बदला न जाए |सामान्य भोजन सामग्री चढाने का उद्देश्य यह है की पूर्व से ही सभी परिवारों में पारंपरिक रूप से उनके स्थानानुसार उपलब्ध भोज्य पदार्थ चढ़ते आये हैं और यह उनकी विशिष्टता होती है |हमारा उद्देश्य केवल ऐसे परिवारों को एक सुरक्षा कवच और कुलदेवी/कुलदेवता की एक सामान्य पूजा प्रदान करना है |कितने सफल हैं हम विद्वत जन विचार करें|
चेतावनी

----------- जो पूजा पद्धति एक बार अपनाई जायेगी वह फिर कभी बदली नहीं जा सकती ,टमाटर अथवा विदेशी मूल के खाद्यपदार्थ का उपयोग कुलदेवी /देवता के पूजा में न करें ,अपितु जो भारतीय मूल की वनस्पतियाँ हैं उनका ही उपयोग करें |आप अपने स्थान पर पारंपरिक रूप से बन रहे मूल खाद्य पदार्थ यहाँ चढ़ाएं और बेहतर होगा |एक बार स्थापित किये गए चादी की सुपारियों के रूप में कुलदेवी और देवता ही मूल सिक्के के साथ हमेशा के लिए कुलदेवी /देवता का स्थान लेंगे ,इन्हें नहीं बदला जा सकता न इनके साथ के सिक्के को ही बदला जा सकता है |हर साल अलग से चढ़ाए दक्षिणा के रूप के सोक्कों को अलग करके दान कर दें या मंदिर में चढ़ा दें ,वस्त्र जो पिछले साल के हों उन्हें प्रवाहित कर दें ,जाये चढ़े आसन रुपी वस्त्र ,और जनेऊ आदि के साथ चढ़ा एक पुष्प भी पूजा समाप्ति के बाद अलग डिब्बी में रख दें देवता समेत |अगले साथ यह वस्त्र और ,जनेऊ और पुष्प बदल जायेंगे |कोशिश पूरी करें की घर की अविवाहित कन्याएं पूजा समय जलते हुए दीपक को न देखें ,न कुलदेवता /देवी को छुएं |दीपक बुझने पर प्रणाम कर सकती हैं | .........[[पूर्णतया व्यक्तिगत अनुसंधान पर आधारित कुलदेवता/देवी की पूजा पद्धति अपने पाठकों सहित अपने मित्रों हेतु ]]...........................................................................हर-हर महादेव 

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