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हिन्दू धर्म में भिन्न -भिन्न प्रकार और गुणों के देवी -देवता हैं ,जिनके
अपने विशिष्ट गुण हैं |उनके स्वरुप की परिकल्पना उनके गुणों और प्रकृति के आधार पर
की गयी है | यद्यपि मूल आर्य मूर्ती पूजक नहीं थे पर बाद में मानसिक एकाग्रता का
आधार बनाने और भिन्न भिन्न उद्देश्यों की पूर्ती के लिए इनके स्वरुप की परिकल्पना
के साथ विशिष्ट पद्धतियाँ और मंत्र विकसित किये गए हमारे ऋषि -मुनियों द्वारा ,ताकि
साकार आराधना से मुक्ति -मोक्ष भी मिल सके और भौतिक आवश्यकताएं भी पूर्ण की जा
सकें |यह आर्य संस्कृति का धर्म और अध्यात्म में विकास है |इन देवी -देवताओं और
शक्तियों को लोग अपनी पसंद के अनुसार अथवा आवश्यकता के अनुसार ईष्ट के रूप में
पूजते हैं | सभी आस्तिक लोगो के अपने अलग ईष्ट होते है |,,श्रद्धा के अनुसार
लोग ईष्ट की आराधना करते है ,|सामान्यतया यह पसंद पर आधारित होता है ,जो
उनको अच्छा लगता है उसे मुख्य देवता अर्थात ईष्ट मानकर आराधना करते हैं |अधिकतर
लोग इसमें फायदा -नुक्सान नहीं देखते ,यह मन को अच्छा लगने पर अथवा अधिसंख्य लोगों
के अनुसार अनुसरण पर आधारित होता है |सामान्य लोगों को जानकारी नहीं होती की कौन
देवता हमें अधिक लाभ पहुचा सकता है और कौन हमारी प्रकृति के अनुकूल नहीं है |सामान्य
धारणा है की देवी -देवता माता -पिता हैं कभी नुक्सान नहीं कर सकते |अपने बच्चों पर
कृपा ही करेंगे चाहे जैसे पूजा करें |यह भी धारणा रहती है की किसी को भी पूजो सब
एक सामान लाभ देते हैं |
यहाँ थोड़ी गलती हो सकती है |ठीक है सब माता -पिता हैं ,सब लाभ ही देंगे पर उनके
भिन्न स्वरुप का ,भिन्न गुण का कुछ राज तो होगा ही |अगर ऐसा नहीं था तो सबको एक ही
तरह का बनाया गया होता या सब एक ही तरह के होते |अलग अस्त्र ,अलग मुद्रा ,अलग गुण ,अलग
प्रकृति ,अलग पद्धति ,अलग मंत्र क्यों होते |इसका कारण यह है की जिसमे जो गुण अधिक
है उसको वैसा स्वरुप और आकार दिया गया है |लोगों को इस बात को समझना चाहिए |जिस
ईष्ट की आराधना आप कर रहें हैं उसका गुण आपमें आता है |अर्थात जब आप किसी की
आराधना करते हैं तो इसका अर्थ होता है की आप उसे अपने आप में बुला रहे हैं |वह
कहीं बाहर आकर खड़ा होकर आपका कार्य नहीं करता |वह तो आपमें ही आता है |जिस तरह के
उसके गुण होंगे वह आपमें भी बढ़ेंगे |उसकी प्रकृति आपमें भी आएगी |लोगों की यह सब
समझ में नहीं आता |वह तो बस श्रद्धा और अन्धानुकरण में व्यस्त हैं |इसी पोस्ट पर
कुछ कमेन्ट जरुर आ जायेंगे की यह सब सही नहीं है |सब माता -पिता हैं और कोई हानि
कर ही नहीं सकता ,जबकि यथार्थ अलग होता है |हर देवता -देवी एक ऊर्जा स्वरुप है और
किसी ऊर्जा की अधिकता विक्षोभ उत्पन्न करती है |
लोग ईष्ट के चुनाव में इस बात का ध्यान ही नहीं देते |,यदि इसमें अपनी आवश्यकता और फायदे नुक्सान का भी ईष्ट के चयन में ध्यान दिया जाए तो ईष्ट अधिक लाभप्रद हो सकता है ,,जैसे आप मोटे है ,चर्बी बढ़ रही है ,कार्यक्षमता में कमी आती जा रही है ,सुस्ती बढ़ रही है और आप लक्ष्मी जी की पूजा -आराधना किये जा रहे है ,ध्यान दीजिए और विचार कीजिये ,आपमें लक्ष्मी जी से सम्बंधित चक्र पर्याप्त क्रियाशील है ,तभी तो आप मोटे हो रहे है ,आप लक्ष्मी जी की आराधना धन के लिए कर रहे है ,किन्तु धन तो आपको आपके भाग्यानुसार ही मिलेगा
,जितना भाग्य में है उतना आपको मिल रहा है ,इससे अधिक भाग्य में नहीं है तो वह आपको लक्ष्मी जी की अधिक पूजा करने से भी नहीं मिलेगा ,,अब आप लक्ष्मी जी की पूजा -आराधना लगातार करते जा रहे है तो आप उनकी ऊर्जा को लगातार
आमंत्रित करते जा रहे है ,उनके चक्र को अधिक क्रियाशील करते जा रहे है ,तो अब आप अपने लिए कष्ट भी आमंत्रित कर रहे है |उनके दुसरे गुण भी
अधिक आ रहे हैं |,ध्यान दे अधिकता
से आपमें मोटापा भी आएगा ,तब डायबिटीज ,ब्लड प्रेशर
,काम क्षमता -क्रियाशीलता में कमी ,सुस्ती ,आलस्य ,अनिद्रा भी आ सकती है ,,धन किस काम का जब आप उसका उपभोग ही न कर सके ,,आपको अपनी क्षमता
,क्रियाशीलता ,ऊर्जा,स्वास्थय ,उत्तम करना चाहिए ,आपको तो दुर्गा-काली -भैरव-हनुमान जैसी शक्तियों की आराधना-साधना-पूजा करनी चाहिए ,जिससे आप सक्रीय, स्वस्थ ,उर्जावान रहते हुए जीवन का आनंद ले सके |इसी तरह आपमें काम -क्रोध -उग्रता -गुस्सा
अधिक है और आप दुर्गा ,काली ,भैरव की उपासना किये जा रहे हैं तो क्या वह गुण आपका
कम हो जाएगा |नहीं होगा |दुर्गा ,काली ,भैरव की शक्ति और ऊर्जा आपमें आने पर आपकी
उग्रता और शक्ति और बढ़ेगी |आप आक्रामक होते जायेंगे |ऐसे में आप कोई भी अनर्थ कर
अपना भी अहित कर सकते हैं और अपना जीवन दांव पर लगा सकते हैं |...............................................................[प्रस्तुत विचार सभी के लिए उपयुक्त हो ,यह जरुरी नहीं ,अतः एक सामान्य विचार की दृष्टि से ही देखा जाए ]........................................................हर-हर महादेव
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