Tuesday 28 January 2020

ईष्ट देवता किसको बनाए ?

ईष्ट के चुनाव और हमारी आवश्यकताएं
 ईष्ट किसको बनाए ?
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 [[ पारिवारिक व् व्यक्तिगत पूजा-अनुष्ठान के सन्दर्भ में ]]
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.   .सिद्धि-साधना भिन्न पथ है ,,किन्तु सामान्य पूजा -अनुष्ठान में सर्वत्र सामान्य लोग अपने कल्याण -सुख -संमृद्धि के लिए देवी-देवता की पूजा करते है ,किन्तु फिर भी उन्हें कभी -कभी अपेक्षित लाभ नहीं मिलता ,कल्याण नहीं होता ,,कभी-कभी तो कष्ट -परेशानिया बढ़ भी जाती है ,इसमें थोड़ी सी नासमझी के कारण लोग भारी अनिष्ट और भाग्य विकार को आमंत्रित करते है ,
..   .अब प्रश्न उठता है की भला कल्याणकारक देवी-देवता अनिष्ट कैसे कर सकते है ,तो यहाँ गलती गलती यह हो रही है की सभी देवी-देवता कल्याणकारी है ,परन्तु वे तब कल्याणकारी है जब आपको उनकी आवश्यकता है ,,आप मोटे है चर्बी बढ़ रही है और लक्ष्मी जी की निरंतर पूजा कर रहे है ,धन सम्पत्ति तो बाद की चीज है ,आप का स्वास्थय बिगड जाएगा ,मोटापा ,मधुमेह हो सकता है ,आप अपनी अकाल मृत्यु और घोर दुःख [शारीरिक कष्ट]को आमंत्रित कर रहे है ,,इसी प्रकार आप में काम-क्रोध-उत्तेजना अधिक है और आप काली जी या भैरव जी की पूजा कर रहे है ,आप कलह -झगड़े -राजदंड और अकालमृत्यु को आमंत्रित कर रहे है ,आपको तो शिव की पूजा करनी चाहिए ,,इसी प्रकार सरस्वती की पूजा भावुक व्यक्तियों के लिए उचित नहीं है ,,चंचल प्रकृति के सक्रीय व्यक्ति के लिए दुर्गा जी की पूजा उनमे अति सक्रियता ,चंचलता बढा देगी जिसे उनकी शान्ति समाप्त हो जायेगी ,,सोचिये यदि सभी देवी देवता सभी के लिए उपयुक्त होते तो उनमे इतनी विभिन्नता क्यों होती ,.
.   .याद रखिये आप किसी भी देवी-देवता की पूजा कर रहे है तो इसका मतलब है आप उस देवी देवता को आप अपने शरीर में बुला रहे है ,वास्तव में तो सभी पहले से आपके शरीर के अलग-अलग निश्चित चक्र में है ,पूजा से आप ब्रह्माण्ड से उसकी शक्ति को शरीर में खीच कर उनकी शक्ति बढा रहे है ,जिससे वे जाग्रत हो अधिक क्रियाशील हो सके ,,यदि वह शक्ति पहले से आपके शरीर में अधिक है ,तो अब शरीर का सारा उर्जा समीकरण असंतुलित हो जाएगा ,शक्ति बढने के कारण ही आप विनष्ट हो जायेगे ,,उदाहरण के लिए यदि आप क्रोधी है और भैरव जी या काली जी की शक्ति आमंत्रित कर रहे है ,तो क्रोध की अधिकता ऐसा अनर्थ करवा देगी की आप या तो आत्म ह्त्या कर लेगे या ह्त्या करके जेल चले जायेगे ,कलह-कटुता-झगडा तो आपसे आम हो जाएगा ,क्रोध को जबरदस्ती दबायेगे तो पागल हो जायेगे
     .याद रखिये प्रत्येक देवी-देवता ब्रह्माण्ड के एक निश्चित गुण और उर्जा का प्रतिनिधित्व करते है ,उनके मंत्रो ,पूजा पद्धति,उनके रूप में एक विशिष्टता होती है जो उसके गुणों को व्यक्त करती है ,उसकी पूजा करने पर आपमें वह गुण बढने लगते है ,यदि उसकी आपको आवश्यकता नहीं है तो वह आपमें अधिक होने पर कष्ट देने लगेगा ,अनर्थ करने लगेगा ,,अतः जिसकी कमी हो उसे ही बढाना और संतुलन बनाना चाहिए ,जिससे अधिकतम लाभ मिल सके ,..............
     ..विषमय है की ज्योतिष में रत्न ,अंगूठी ,ताबीज ,आदि के चुनाव में इसकी सावधानी बरती जाती है ,परन्तु पूजा-अनुष्ठान में हम जाने किस अंधश्रद्धा के शिकार है ,फलतः परिश्रम भी करते है और लाभ के बदले हानि और अनिष्ट के शिकार हो जाते है .............अतः अपने दैनिक लाभ के लिए आपको ऐसे देवी-देवता का चुनाव करना चाहिए जिनकी शक्ति और गुणों की आपको आवश्यकता है ,नाकि उनकी जिनके गुण आपमें पहले से ही अधिक है .........................................................................................हर-हर महादेव

ईष्ट देवता और आपकी आवश्यकता का संतुलन आवश्यक है .

आपका ईष्ट चयन और आप:
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 .....................सभी आस्तिक लोगो के अपने ईष्ट होते है ,,श्रद्धा के अनुसार लोग ईष्ट की आराधना करते है ,|ईष्ट का चुनाव अधिकतर लोग करते नहीं ,यह देखा -देखी,,सुनी सुनाई अथवा पारिवारिक धारणाओं और संस्कारों के आधार पर निश्चित हुए होते हैं |संस्कारानुसार बचपन से जो जैसी धारणा बनती है वैसे देवी देवता अच्छे लगते हैं और उनकी पूजा लोग करते रहते हैं |चुनाव की स्थिति तब आती है जब कोई समस्या हो और दूर न हो रही हो |इस स्थिति में ज्योतिष अथवा जानकार की सहायत ली जाती है अथवा उनके सुझाए अनुसार देवी देवता की आराधना लोग करते हैं |यदि पहले से ही इसमें अपनी आवश्यकता और फायदे नुक्सान का भी ईष्ट के चयन में ध्यान दिया जाए तो ईष्ट अधिक लाभप्रद हो सकता है |सामान्य धारणा है की कोई भी देवता या शक्ति सबकुछ दे सकता है ,यह सही भी है किन्तु वह अधिक वह ऊर्जा देगा जिसकी उसके पास अधिकता होगी |आहिर विशेष मंत्र ,विशेष स्वरुप ,विशेष पूजा पद्धति बनाने का कुछ तो कारण होगा |कारण यह है की उस तरह की विशेष उर्जा अधिक मिले जैसे गुणों का मालिक उसे बताया गया है |,, आप मोटे है ,चर्बी बढ़ रही है ,कार्यक्षमता में कमी आती जा रही है ,सुस्ती बढ़ रही है और आप लक्ष्मी जी की पूजा -आराधना किये जा रहे है |,ध्यान दीजिए और विचार कीजिये ,आपमें लक्ष्मी जी से सम्बंधित चक्र पर्याप्त क्रियाशील है ,तभी तो आप मोटे हो रहे है ,आप लक्ष्मी जी की आराधना धन के लिए कर रहे है ,किन्तु धन तो आपको आपके भाग्यानुसार ही मिलेगा ,जितना भाग्य में है उतना आपको मिल रहा है ,इससे अधिक भाग्य में नहीं है तो वह आपको लक्ष्मी जी की अधिक पूजा करने से भी नहीं मिलेगा ,,अब आप लक्ष्मी जी की पूजा -आराधना लगातार करते जा रहे है तो आप उनकी ऊर्जा को लगातार आमंत्रित करते जा रहे है ,उनके चक्र को अधिक क्रियाशील करते जा रहे है ,तो अब आप अपने लिए कष्ट भी आमंत्रित कर रहे है ,ध्यान दे अधिकता से आपमें मोटापा भी आएगा ,तब डायबिटीज ,ब्लड प्रेशर ,काम क्षमता -क्रियाशीलता में कमी ,सुस्ती ,आलस्य ,अनिद्रा भी  सकती है ,,धन किस काम का जब आप उसका उपभोग ही  कर सके ,,आपको अपनी क्षमता ,क्रियाशीलता ,ऊर्जा,स्वास्थय ,उत्तम करना चाहिए ,आपको तो दुर्गा-काली -भैरव-हनुमान जैसी शक्तियों की आराधना-साधना-पूजा करनी चाहिए ,जिससे आप सक्रीयस्वस्थ ,उर्जावान रहते हुए जीवन का आनंद ले सके ...............................................................[प्रस्तुत विचार सभी के लिए उपयुक्त हो ,यह जरुरी नहीं ,अतः एक सामान्य विचार की दृष्टि से ही देखा जाए ]........................................................हर-हर महादेव

बगलामुखी साधना और प्रभाव

बगलामुखी [ब्रह्मास्त्र विद्या ]महासाधना और प्रभाव 
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...................महाविद्या श्री बगलामुखी दश महाविद्या के अंतर्गत श्री कुल की महाविद्या है ,जिनकी पूजा साधना से सर्वाभीष्ट की प्राप्ति होती है ,,ग्रह दोष ,शत्रु बाधा ,रोग-शोक-दुष्ट प्रभाव ,वायव्य बाधा से मुक्ति मिलती है ,सर्वत्र विजय ,सम्मान ,ऐश्वर्य प्राप्त होता है ,वाद-विवाद ,मुकदमे में विजय मिलती है ,अधिकारी वर्ग वशीभूत होता है ,सामने वाले का वाक् स्तम्भन होता है और साधक को वाक् सिद्धि प्राप्त होती है ,,इनकी साधना से लौकिक और अलौकिक फलो की प्राप्ति होती है ,,
...........महाविद्या श्री बगलामुखी की साधना दक्शिनाम्नाय अथवा उर्ध्वाम्नाय से होती है ,,दक्सिनाम्नाय में इनकी दो भुजाये मानी जाती है और मंत्र में ह्ल्रिम बीज का प्रयोग होता है ,,उर्ध्वाम्नाय में इनकी चार भुजाये मानी जाती है और इनका स्वरुप ब्रह्मास्त्र स्वरूपिणी बगला का हो जाता है ,इस स्वरुप में ह्रीं बीज का प्रयोग होता है ,,.
.........बगलामुखी साधना में इनके मंत्र का सवा लाख जप ,दशांश हवन ,तर्पण ,मार्जन ,ब्राह्मण भोजन का विधान है इनकी साधना में सभी वस्तुए पीली ही उपयोग में लाने का विधान है यथा पीले फुल ,फल ,वस्त्र ,मिष्ठान्न आदि ,जप हल्दी की माला पर किया जाता है ,,.
........साधना के प्रारंभ के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त कृष्ण चतुर्दशी और मंगलवार का संयोग होता है ,,किन्तु कृष्ण चतुर्दशी ,नवरात्र ,चतुर्थी ,नवमी [शनि-मंगल-भद्रा योग ]अथवा किसी शुभ मुहूर्त में साधना प्रारंभ की जा सकती है ,,अपने सामर्थ्य के अनुसार १५,२१,अथवा ४१ दिन में साधना पूर्ण की जा सकती है ,मंत्र संख्या प्रतिदिन बराबर होनी चाहिए ,साधना में शुचिता ,शुद्धता ,ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है ,.
.....ब्रह्मास्त्र स्वरूपिणी बगला का पूर्ण मंत्र ""ओउम ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्ट|नाम वाचं मुखम पदम स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ओउम स्वाहा ""होता है ..
......जिस दिन साधना प्रारंभ करे सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त हो आचमन-प्राणायाम -पवित्री करण के बाद बगलामुखी देवी का चित्र स्थापित करे ,एक २ फीट लंबे-चौड़े लकड़ी के तख्ते या चौकी पर पीला कपडा बिछाकर उस पर रंगे हुए पीले चावलों से बगलामुखी यन्त्र बनाए |बगलामुखी यन्त्र के सामने पीले गंधक की सात ढेरिया बनाकर प्रत्येक पर दो दो लौंग रखे ,,अब गणेश-गौरी,नवग्रह,कलश,अर्ध्यपात्र स्थापित करे ,,शान्ति पाठ, संकल्प के बाद एक अखंड दीप [जो संकल्पित दिनों तक जलता रहेगा ]देवी के सामने रखे ,चौकी पर बने यन्त्र के सामने ताम्र-स्वर्ण या रजत पत्र पर बना बगलामुखी यंत्र स्थापित करे ,,अब भोजपत्र पर अपनी आवश्यकतानुसार अष्टगंध से कनेर की कलम से बगला यंत्र बनाकर चौकी पर रखे ,इसके बाद न्यासादीकर गुरु यंत्र , कलश,नवग्रह ,देवी पूजन ,यंत्रो की प्राण प्रतिष्ठा ,यंत्र पूजन ,आदि करे ,,इस प्रक्रिया में किसी जानकार की मदद ले सकते है किन्तु जप आप स्वयं करेगे ,,,पूजनोपरांत जप हल्दी की माला पर निश्चित संख्या में निश्चित दिनों तक होगा ,प्रतिदिन के पूजन में आप पंचोपचार या दशोपचार पूजन अपनी सामर्थ्य के अनुसार कर सकते है ,,प्रतिदिन जप के बाद दशांश जप महामृत्युंजय का करे ,जप रात्री में करे ,प्रथम दिन पूजन षोडशोपचार करे ,,निश्चित दिनों और संख्या तक जप होने पर हवंन प्रक्रिया पूर्ण करे ,हवन के बाद तर्पण-मार्जा-ब्राह्मण भोजन या दान करे,धातु यन्त्र को पूजा स्थान पर स्थापित कर भोजपत्र यंत्र को ताबीज में भर ले ,,अब साधना में त्रुटी के लिए क्षमा माँगते हुए विसर्जन करे ..अब आपकी साधना पूर्ण होती है ,,,कलाशादी को हटाकर शेष सामग्री बहते जल में प्रवाहित कर दे ,,..
.....अतिरिक्त भोजपत्र यंत्रो को ताबीज में भरकर आप जिसे भी प्रदान करेगे उसे बगला कृपा प्राप्त होगी ,उसके काम बनने लगेगे ,विजय -सफलता बढ़ जायेगी ,ग्रह दोष -दुष्प्रभाव समाप्त होगे ,,वायव्य बाधा से मुक्ति,मुकदमे में विजय,शत्रु-विरोधी की पराजय ,अधिकारी वर्ग का समर्थन ,विरोधी का वाक् स्तम्भन होगा ,ऐश्वर्य वृद्धि होगी ,सभी दोष समाप्त हो सुखी होगा, उसका कल्याण होगा ,,आपको उपरोक्त परिणाम स्वयमेव प्राप्त होगे ,,,,,,आप भविष्य में किसी शुभ मुहूर्त में बगला यंत्र भोजपत्र पर बनाकर पूजन कर २१०० जपादि कर ताबीज में भर जिसे भी प्रदान करेगे ,देवी कृपा उसको उपरोक्त फल प्राप्त होगे ,उसका कल्याण होगा ,,..........................................................[यह समस्त प्रक्रिया स्वानुभूत है ,और स्वयं द्वारा पूर्ण की हुई है ,कही से कापी-पेस्ट नहीं की गयी है ,साधना में योग्य व्यक्ति का मार्गदर्शन और पूजनादि हेतु अच्छी पुस्तक की मदद ली जानी चाहिए , ][सिद्ध बगलामुखी यन्त्र के लिए हमसे संपर्क किया जा सकता है मेसेज बॉक्स में ]..............................................................................................................हर-हर महादेव

पूजा -आराधना निष्फल तो नहीं हो रही ?

पूजा का फल मिल रहा क्या ?

...................हर आस्थावान ,धार्मिक व्यक्ति लगभग पूजा -आराधना करता है ,कुछ लोग मात्र अगरबत्ती जलाकर अपनी आस्था व्यक्त कर लेते है और कुछ पूरी पूजा -आराधना भी करते है ,इनमे कुछ लोग कई-कई घंटो पूजा करते हुए भी पाए जाते है ,किन्तु सभी आराधको में से बहुतायत संख्या में लोगो को उपयुक्त परिणाम या लाभ प्राप्त होते दिखाई नहीं देता ,जबकि  अधिकतर अपने घरों में तंत्र से सम्बंधित देवी-देवताओं यथा गणपति ,शिव ,दुर्गा ,काली ,श्री विद्या [श्री यन्त्र ]की भी पूजा करते है ,जिनके परिणाम अवश्य मिलने चाहिए ,|,ऐसा क्यों होता है ,,विचार करने पर अक्सर देखा जाता है की लोग निरुद्देश्य ,बिना उचित संकल्प के पूजा कर रहे है ,जबकि शक्ति साधना का मूल संकल्प है | ,जब आप निष्काम पूजा कर रहे हो अर्थात मोक्ष के लिए पूजा कर रहे हो तब तो बात अलग है किन्तु किसी उद्देश्य से पूजा करने पर उस उद्देश्य को संकल्प से व्यक्त करना चाहिए ,|ऐसा लाखों में कोई एक होगा जो वास्तव में निष्काम पूजा करता है ,,कहीं न कहीं आपके मन में कोई न कोई भावना तो होती है की अमुक चीज मिले ,भले वह मोक्ष की कामना ही हो |अतः कहीं न कहीं कामना होने पर उसे व्यक्त करना आवश्यक हो जाता है |
,ध्यान देने योग्य है शक्तियों [दुर्गा-काली-महाविद्या-भैरव-गणपति अथवा विष्णु ,लक्ष्मी ,सरस्वती ,सूर्य ]आदि उर्जा केंद्र है |इनकी कल्पना साकार रूप में और विशेष गुण के साथ की गई है ,तब जब आप इनकी आराधना करते हैं तो आपके मन में इनके गुण भी होते हैं तो यह मोक्ष की साधना कैसे हो गई |मिक्ष तो निराकार -निर्गुण परमब्रह्म या शिव में मिलन होता है |आप तो आराधना साधना एक गुण विशेष की ऊर्जा की कर रहे हैं तो आप निराकार में कैसे जायेंगे |गुण विशेष की शक्ति साधना में कोई न कोई उद्देश्य तो होता ही है ,अतः उसे व्यक्त भी करना चाहिए नहीं तो आपकी आराधना व्यर्थ जा सकती है |
 अपने विशिष्ट गुणों के साथ ,इन ऊर्जा ,शक्ति या देवी -देवताओं की अपनी कोई दृष्टि नहीं होती ,|भले आप सोचें की वह तो सब देख ही रहा है |वह तो सबमे है , जैसा साधक संकल्प कर उन्हें करने को कहता है वैसा वे करते है ,|,संकल्प का मतलब है  अपनी मानसिक विचारो को एक निश्चित दिशा में केन्द्रित करना ,| जिसके आधार पर आकर्षित होने वाली ऊर्जा [देवता ]उस दिशा में क्रिया कर सके, | अतः संकल्प अवश्य करना चाहिए पूजा के पूर्व |संकल्प से आप अपना वह उद्देश्य पूर्ण मानसिक बल से व्यक्त करते हैं जो कहीं न कहीं आपके अन्दर होता जरुर है |अतः उसे व्यक्त करना आवश्यक है ,इन शक्तियों की ऊर्जा को एक निश्चित दिशा देने के लिए |ध्यान दीजिये की आप साकार की और गुण विशेष की शक्ति की पूजा कर रहे अर्थात आप मोक्ष नहीं मुक्ति की साधना कर रहे और जिसकी साधना कर रहे वाही आपका अंतिम लक्ष्य होगा भी और आप वहां तक उस लोक तक या उस ऊर्जा केनरा तक ही जायेंगे |यह मुक्ति हुई न की मोक्ष |किसी गुण विशेष को पाना और उसमे मिलना मुक्ति है न की मोक्ष |अतः उस गुण की शक्ति से अपना मंतव्य भी व्यक्त होना चाहिए ,तभी वह उस दिशा में कार्य करेगा |
,,लोग अधिक पूजा पर भी शुन्य परिणाम या नकारात्मक परिणाम पाते हुए देखे जाते है ,इसका मूल कारण अक्सर गलतिया होती है |,अधिक करने से गलतियों की सम्भावना भी अधिक होती है और शक्तिया गलतिय को क्षमा नहीं करती ,| ऐसा शक्तियों का स्वरूप् बिगडने और उनके अनियंत्रित दिशा पकड़ने के कारण भी हो सकता है |,किसी एक शब्द की त्रुटी किसी मंत्र में अर्थ का अनर्थ कर देती है | ,कभी किसी बीज मंत्र का अशुद्ध उच्चारण उसके नाद में ही परिवर्तन कर देता है जिससे सम्बंधित चक्र और उर्जा पर कोई असर ही नहीं पड़ता अथवा कभी नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हो जाता है |,,कभी-कभी श्रद्धावश ऐसी सामग्री भी अर्पित की जाती है जो उस शक्ति विशेष के उर्जा संरचना और तरंगों के विपरीत तरंगों वाली होती है |,इससे भी परिणाम में कमी आती है,अथवा ऊर्जा प्रतिकर्षित होने लगती है  |आप भले कहें की वह तो माता है ,वह तो पिता है ,पर आप सोचिये माता को गाली देकर ,उसका नाम बिगाड़कर बुलायेंगे तो क्या वह खुश होगी |मन्त्र की गलती ऐसा कर सकती है |जिसकी स्वरुप की कल्पना और मंत्र विन्यास साभार और नाश के लिए बना है उसकी आराधना साधना से तो वैसी ही ऊर्जा उत्पन्न करेगी ,तब वह जब उग्र रूप में होगी तो आपकी गलती पर आपको भी दंड देगी |या अनियंत्रित हो जायेगी और विनाश उलटी दिशा में हो सकता है |इसलिए जितना किया जाए उतना बिलकुल सही हो ,गलती कहीं न हो यह ध्यान देना आवश्यक है |दुर्गा-काली-गणेश-रूद्र-महाविद्या tantra की शक्तियाँ हैं ,यहं गलती पर दंड का भी प्रावधान है उग्र शक्तियों में |
,,अक्सर ऐसा भी होता है की पूजा काफी देर तक की किन्तु मन कही और था ,इससे कोई परिणाम ही नहीं मिलने वाला | ,पूजा की जा रही है घर में सुख शान्ति के लिए और मन में क्रोध -क्षुब्धता है और दिशा ईष्ट पर न होकर किसी व्यक्ति या घर पर है | ,इससे शान्ति की जगह अशांति हो जायेगी क्योकि आवाहित ऊर्जा उस व्यक्ति की और क्रिया कर सकती है अथवा क्रोध रहने पर शांति से सम्बंधित ऊर्जा आकर्षित ही नहीं होगी ,अर्थात असफलता ,| ध्यान दीजिये की जब आप किसी की आराधना करते हैं तो इसका मतलब है आप उस शक्ति या देवी-देवता को बुला रहे होते हैं अपने पास |आपका मन कहीं और हुआ तो या तो वह आएगी ही नहीं और आएगी तो वह भी वाही देखेगी जो आप सोचेंगे ,क्योकि वह तो आपके मन से बंधी होती है | आप पूजा करते हुए गुस्से में हैं तो जिस दिशा में गुस्सा होगा उधर वह ऊर्जा घूम जायेगी और सम्बंधित व्यक्ति का नुक्सान कर सकती है |इसीलिए कहा गया है की कभी साधना या उपासना करते समय किसी को श्राप आदि न दें |अपने घर -परिवार को अपशब्द न कहें ,उनपर क्रोध न करें ,क्योकि आपके साथ कोई और शक्ति जुडी हो सकती है जो आपके शब्दों और मानसिक दिशा के साथ सम्बंधित व्यक्ति पर क्रिया कर सकती है |इसलिए साधना पूजा के समय बिलकुल शांत और एकाग्र रहें नहीं तो लाभ क्या नुक्सान भी संभव है ,यां कोई लाभ ही नहीं होगा और आपका समय केवल बर्बाद होगा |

कभी कभी पूजा का परिणाम उपयुक्त दिशा -माला-सामग्री -आसन आदि से भी प्रभावित होता है ,|आप साधना उग्र शक्ति की करें और सामान शक्ति वाला ,ठंडा प्रकृति का चढ़ाएं तो व्यतिक्रम उत्पन्न होगा |विपरीत गुण वाले माला -सामान से उर्जा अव्यवस्थित होगी और र्कात्र होने में दिक्कत होगी क्योकि दो विपरीत गुण टकरायेंगे |अतः जब भी कुछ करे उचित और सही तरीके से करे ,,इन छोटी-छोटी बातो पर यदि थोडा ध्यान दे दिया जाए तो पूजा निष्फल होने से बच जाए और उसका परिणाम प्राप्त हो ....................................................................हर-हर महादेव् 

मंत्र और उनका प्रभाव कैसे होता है ?

मंत्रो की शक्ति और प्रभाव 
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   .. मन्त्र एक विशिष्ट उर्जा उत्पन्न करने वाला ध्वनि है जिसमे पराशक्ति का समावेश होता है |यह एक अक्षर भी हो सकता है और शब्द समूह भी |मन्त्र की शक्ति सामान्यतया उनके नादों और उत्पन्न ध्वनि तरंगों में होती है ,किन्तु कुछ मन्त्र जैसे शाबर मन्त्र भावनाओं और शब्दों के चयन आदि पर भी कार्य करते है |वैज्ञानिक अनुसंधनों से सिद्ध हो चूका है की मंत्रो का सम्बन्ध परामनोविज्ञान और ध्वनि उर्जा से है |जिस प्रकार सूक्ष्म शारीर तथा चेतन या अवचेतन मन की अपनी सत्ता है ,उसी प्रकार मंत्रो की अपनी शक्ति है |........
                .मंत्रो के रचयिता ऋषि थे ,,वे परमानसिक शक्तियों के ज्ञाता थे |उन्होंने प्रत्येक मन्त्र के अक्षरों का इस प्रकार चयन किया था की उसमे परामानसिक शक्ति का समावेश होता था |प्रत्येक अक्षर का कोई न कोई स्वामी होता है |जब उस मन्त्र का जप होता है तो वे सभी देवता उस व्यक्ति की सहायता करते है जो उसका जप करता है या जिसने उसे सिद्ध कर लिया होता है |इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है ,जब कोई किसी मन्त्र विशेष का जप करता है अर्थात बार-बार उच्चारण करता है तो उस मन्त्र के नादों से ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो एक उर्जा समूह का निर्माण करती है ,यह उर्जा समूह ब्रह्माण्ड में उपस्थित अपने ही प्रकार की उर्जा को आकर्षित करती है और उससे मिल कर एक विशिष्ट शक्ति में परिवर्तित हो जाती है और जप करने वाले व्यक्ति से जुड जाती है और उसके मानसिक तरंगों के दिशा नुर्देशो के अनुसार कार्य करने लगती है ,यही उस मन्त्र की दैवीय या पराशक्ति होती है |मंत्रो की शक्ति का प्रभाव जब किसी पर डाला जाता है तो वहा रासायनिक परिवर्तन होता है जिससे क्रमशः मानसिक अथवा भौतिक परिवर्तन भी हो सकता है जिससे क्रिया कलाप उस दिशा में परिवर्तित होने लगते है जिस दिशा में मन्त्र की शक्ति निर्दिष्ट होती है या कार्य कर रही होती है |मंत्रो का प्रभाव जब व्यक्ति या वनस्पति पर होता है तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति और वनस्पति की प्रकृति अर्थात उससे उत्पन्न होने वाले तरंगों में परिवर्तन होने लगता है फलतः मन्त्र की प्रकृति के अनुसार अच्छे -बुरे परिणाम दृष्टिगोचर होने लगते है ..........
                  .मंत्रो को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है ईश्वरोपासना सम्बन्धी मन्त्र ,,विघ्न्बाधाओ से मुक्ति दिलाने वाले मन्त्र और किसी विशेष उद्देश्य की सिद्धि करने वाले मन्त्र |मंत्रो के लिए श्रद्धा एक आवश्यक शर्त मानी जाती है ,श्रद्धा न होने पर मन्त्र फलित नहीं होते क्योकि तब व्यक्ति की भावनाए केंद्रित नहीं होती ,जिससे मंत्रो से उत्पन्न उर्जा को उचित दिशा नहीं मिल पाती और वे अनियंत्रित रूप से क्रिया करने लगती है जिससे व्यक्ति को लाभ नहीं मिल पाटा ,अपितु कभी -कभी हानि का भी सामना करना पड़ जाता है क्योकि उत्पान उर्जा खुद पर ही क्रिया कर जाती है या गलत दिशा में मुड़ जाती है ...इसीलिए कहा जाता है की मन्त्र जब के समय श्रद्धा और भावना का उचित समावेश भी होना चाहिए ............................................................................................हर-हर महादेव

क्यों सुने ईश्वर आपकी ?

               अधिकतर लोग पूजा-पाठ करते हैं ,कुछ बहुत अधिक करते हैं कुछ कम करते हैं |कुछ हाथ जोड़कर काम चला लेते हैं |किन्तु कुछ को कृपा इश्वर की मिल पाती है और अधिकतर को नहीं मिलती और वह भ्रम पाले रहते हैं की ईश्वर शायद परीक्षा ले रहा है |कारण परिक्षा नहीं होता कारण आपकी खुद की मियाँ होती हैं |आप शुद्ध -पवित्र -नैतिक दृष्टि से सही -चारित्रिक दृष्टि से सही नहीं हैं इसलिए आपको पूर्ण कृपा नहीं मिल पाती |क्या आप ईश्वर के सामने जल-अक्षत-पुष्प लेकर संकल्प पूर्वक कह सकते है की ---यदि में मन-वचन और कर्म से शुद्ध-सही  और पवित्र होऊ तो हे ईश्वर मेरा यह कार्य कर दे या सहायक हो ,,यदि आप नहीं कह सकते तो वह ईश्वर  क्यों सुने आपकी पुकार ,,न कह पाने का मतलब है आपको खुद पर विश्वास नहीं है ,आपने कदम-कदम पर गलतिया की है ,धोखा दिया है ,अन्याय किया है ,किसी के भी साथ ,कभी भी | तभी तो आप आज यह कहने की स्थिति में नहीं है ,नहीं कह सकने की स्थिति में आपका आत्मबल कमजोर होता है ,ईश्वर से संकल्प पूर्वक माँगने में अपने मन का चोर आड़े आता है ,,आप ईश्वर से तो चाहते है पर अपने को नहीं देखना चाहते ऐसे ईश्वर से भी नहीं मिलता या कम मिलता है ,,कारण ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं एक ऊर्जा है जो सर्वत्र व्याप्त है ,वह तो आपके अंदर भी है वही न हो तो आप भी  कहा  होगे ,वह तो सबमे है ,वह तो आपके अन्दर बैठा सब जान रहा है ,आपके अंतर्मन की बाते भी वह जान रहा है ,आपके क्रिया कलाप भी वह देख रहा है ,जब आप गलती करते है तो वह जान रहा होता है ,बोलता कुछ नहीं क्योकि वह अंतर्मन के माध्यम से बोलता है और आप अपने अंतर्मान की सुनते नहीं |,,इसीलिए जब आप उससे माँगते है तब भी वह नहीं बोलता पर देता भी कुछ नहीं ,चाहे घंटो पुकारे |,,आप उसे बाहर आवाज देते है जबकि वह तो आपके अंदर ही बैठा सब देखता रहता है |,आपने गलतिया की होती है ,पुरे आत्मविश्वास से यह कहने की स्थिति में नहीं होते की मैंने कभी कोई गलती-अन्याय-कष्ट नहीं दिया या किया है मुझे आप यह दें |,इसलिए आपकी मानसिक ऊर्जा ईश्वरीय ऊर्जा को आंदोलित नहीं कर पाती फलतः आपकी आवाज उस तक नहीं पहुच पाती ,और आपको अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता ,|,अतः अपने को ऐसा बनाए की आप ईश्वर के सामने कह सके की मैंने कभी कोई गलती नहीं की ,किसी को कष्ट  नहीं दिया ,किसी की स्त्री या पुरुष पर गलत दृष्टि से नजर नहीं डाली ,पर द्रव्य हरन नहीं किया ,में पूरी तरह सही हू आप मेरा यह कार्य करे या सहायक हो |,ऐसे में ईश्वरीय ऊर्जा जरुर सहायक हो सकती है ,क्योकि आपका आत्मविश्वास और श्रद्धा उसे विवश करेगा और आपको उससे जोड़ेगा | ................................[व्यक्तिगत विचार ]..................................................हर-हर महादेव  

क्यों नहीं सुनता पुकार ईश्वर ?

क्योकि ईश्वर का अपमान करते है इसलिए नहीं सुनता वह आपके कष्ट पर 
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         आप पूजा रोज करते है पर पूजा समय आपका ध्यान कही और होता है |आप पूजा एक घंटे कर रहे है पर आपका ध्यान ५ मिनट भी ईश्वर पर एकाग्र नहीं हुआ ,जबकि आप प्रपंच दिन भर कर  रहे है ,झूठ दिन भर बोल रहे है ,किसी को भी मानसिक -शारीरिक कष्ट दिन भर दे रहे है |क्या आपने सोचा है ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है ,वह सर्वत्र व्याप्त है ,वही तो आपकी जीवनी उर्जा है वह न हो तो आप भी नहीं होगे ,वह तो आपके अंदर ही है ,,जिसे आप कष्ट दे रहे है ,जिससे झूठ बोल रहे है ,जिसके साथ अन्याय कर  रहे है ,बेईमानी कर रहे है उसमे भी वही ईश्वर व्याप्त है |एक तरफ आप उसी सर्वव्यापी ईश्वर से ऐसा कर रहे है दूसरी और उससे अपने सुखी होने का वरदान मांग रहे है ,क्या वह आपकी सुनेगा ?नहीं सुनेगा |
          कथा सत्यनारायण की सुन रहे है ,मन घर की महाभारत में लगा है ,चिंता है अन्य उद्यमों की ,ऐसे में कैसे वह ईश्वर सुनेगा ,जब आप एकाग्र हो उसे अपने मन से कथा सुनायेगे तभी तो वह सुनेगा ,आप तो उसे महाभारत सूना रहे है ,,ध्यान रहे ईश्वर को आपके द्वारा चढ़ाये जा रहे प्रसाद-फुल-अगरबत्ती से कुछ भी लेना देना नहीं होता वह इन्हें नहीं लेता यह तो बस एक सकारात्मक वातावरण- ऊर्जा का और श्रद्धा का निर्माण करते है ,उसे तो आपके मन के भाव से मतलब होता है ,आप कितना भी कुछ चढा ले ईश्वर उससे प्रसन्न नहीं होता ,ऐसा होता तो वह गरीब और अघोरियो को तो मिलता ही नहीं ,,ईश्वर तो केवल आपके श्रद्धावनत हो उसके भाव में -याद में -गुण में डूब जाने पर ही प्रसन्न  हो जाता है ,तो जिससे वह प्रसन्न हो वह क्यों नहीं करते आप ,क्यों आडम्बर में पड़े है ,,
याद रहे दूसरों की दी हुई बद्दुआ भी आपके पुण्य ,पूजा के प्रभाव को क्षीण करती है क्योकि आशीर्वाद यदि दिल से दिया जाए तभी कुछ फलित होता है वह भी अच्छे व्यक्ति द्वारा ,किन्तु बद्दुआ अवश्य फलित होती है ,व्यक्ति कैसा भी हो ,क्योकि उसके साथ व्यक्ति क्रोधित निश्चित होता है और प्रबल आत्मबल के साथ पूरी अनिष्टता की भावना के साथ बद्दुआ देता है ,अतः उसमे स्थित ईश्वर की भी मज़बूरी उसे पूरा करने की हो जाती है क्योकि आखिर है तो वह भी उसकी ही संतान ,,अतः बद्दुआओ से सदैव बचना चाहिए ,कोई ऐसा कार्य न करे जिससे किसी के अंदर स्थित ईश्वर को कष्ट हो ,उसे ही कष्ट देकर आप अपने लिए उसी से कुछ मांगेगे तो वह कैसे देगा ,,आप पूजा करते रहेगे वह अनसुना करता रहेगा ....[व्यक्तिगत विचार ].............................................हर-हर महादेव

श्री विद्या त्रिपुरसुन्दरी साधना

श्रीविद्या [ त्रिपुरसुन्दरी ] साधना 
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श्रीविद्या साधना भारतवर्ष की परम रहस्यमयी सर्वोत्कृष्ट साधना प्रणाली मानी जाती है। ज्ञान, भक्ति, योग, कर्म आदि समस्त साधना प्रणालियों का समुच्चय (सम्मिलित रूप) ही श्रीविद्या-साधना है। जिस प्रकार अपौरूषेय वेदों की प्रमाणिकता है उसी प्रकार शिव प्रोक्त होने से आगमशास्त्र (तंत्र) की भी प्रमाणिकता है। सूत्ररूप (सूक्ष्म रूप) में वेदों में, एवं विशद्रूप से तंत्र-शास्त्रों में श्रीविद्या साधना का विवेचन है।
शास्त्रों में श्रीविद्या के बारह उपासक बताये गये है- मनु, चन्द्र, कुबेर, लोपामुद्रा, मन्मथ, अगस्त्य अग्नि, सूर्य, इन्द्र, स्कन्द, शिव और दुर्वासा ये श्रीविद्या के द्वादश उपासक है। श्रीविद्या के उपासक आचार्यो में दत्तात्रय, परशुराम, ऋषि अगस्त, दुर्वासा, आचार्य गौडपाद, आदिशंकराचार्य, पुण्यानंद नाथ, अमृतानन्द नाथ, भास्कराय, उमानन्द नाथ प्रमुख है। इस प्रकार श्रीविद्या का अनुष्ठान चार भगवत् अवतारों दत्तात्रय, श्री परशुराम, भगवान ह्यग्रीव और आद्यशंकराचार्य ने किया है। श्रीविद्या साक्षात् ब्रह्मविद्या है।
समस्त ब्रह्मांड प्रकारान्तर से शक्ति का ही रूपान्तरण है। सारे जीव-निर्जीव, दृश्य-अदृश्य, चल-अचल पदार्थो और उनके समस्त क्रिया कलापों के मूल में शक्ति ही है। शक्ति ही उत्पत्ति, संचालन और संहार का मूलाधार है। जन्म से लेकर मरण तक सभी छोटे-बड़े कार्यो के मूल में शक्ति ही होती है। शक्ति की आवश्यक मात्रा और उचित उपयोग ही मानव जीवन में सफलता का निर्धारण करती है, इसलिए शक्ति का अर्जन और उसकी वृद्धि ही मानव की मूल कामना होती है। धन, सम्पत्ति, समृद्धि, राजसत्ता, बुद्धि बल, शारीरिक बल, अच्छा स्वास्थ्य, बौद्धिक क्षमता, नैतृत्व क्षमता आदि ये सब शक्ति के ही विभिन्न रूप है। इन में असन्तुलन होने पर अथवा किसी एक की अतिशय वृद्धि मनुष्य के विनाश का कारण बनती है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है कि शक्ति की प्राप्ति पूर्णता का प्रतीक नहीं है, वरन् शक्ति का सन्तुलित मात्रा में होना ही पूर्णता है। शक्ति का सन्तुलन विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। वहीं इसका असंतुलन विनाश का कारण बनता है। समस्त प्रकृति पूर्णता और सन्तुलन के सिद्धांत पर कार्य करती है। जीवन के विकास और उसे सुन्दर बनाने के लिये धन-ज्ञान और शक्ति के बीच संतुलन आवश्यक है। श्रीविद्या-साधना वही कार्य करती है, श्रीविद्या-साधना मनुष्य को तीनों शक्तियों की संतुलित मात्रा प्रदान करती है और उसके लोक परलोक दोनों सुधारती है।


श्रीविद्या-साधना ही एक मात्र ऐसी साधना है जो मनुष्य के जीवन में संतुलन स्थापित करती है। श्रीविद्या-साधना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अत्यंत सरल, सहज और शीघ्र फलदायी है। सामान्य जन अपने जीवन में बिना भारी फेरबदल के सामान्य जीवन जीते हुवे भी सुगमता पूर्वक साधना कर लाभान्वित हो सकते है। यह साधना व्यक्ति के सर्वांगिण विकास में सहायक है। कलियुग में श्रीविद्या की साधना ही भौतिक, आर्थिक समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन है। देवताओं और ऋषियों द्वारा उपासित श्रीविद्या-साधना वर्तमान समय की आवश्यकता है। यह परमकल्याणकारी उपासना करना मानव के लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है। आज के युग में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, अशांति, सामाजिक असंतुलन और मानसिक तनाव ने व्यक्ति की प्रतिभा और क्षमताओं को कुण्ठित कर दिया है। श्रीविद्या-साधक के जीवन में भी सुख-दुःख का चक्र तो चलता है, लेकिन अंतर यह है कि श्रीविद्या-साधक की आत्मा व मस्तिष्क इतने शक्तिशाली हो जाते है कि वह ऐसे कर्म ही नहीं करता कि उसे दुःख उठाना पड़े किंतु फिर भी यदि पूर्व जन्म के संस्कारों, कर्मो के कारण जीवन में दुःख संघर्ष है तो वह उन सभी विपरीत परिस्थितियों से आसानी से मुक्त हो जाता है। वह अपने दुःखों को नष्ट करने में स्वंय सक्षम होता है।……………………………………………………………………………………..हर-हर महादेव

रुद्राक्ष की अलौकिकता

रुद्राक्ष = पृथ्वी पर अलौकिक ऊर्जा का रूप 
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                       रुद्राक्ष में स्वयं शिव का अंश होता है, रुद्राक्ष को शिवाक्ष,शर्वाक्ष,भावाक्ष,फलाक्ष,भूतनाशन,पावन,हराक्ष, नीलकंठ,तृणमेरु,शिवप्रिय, अमर और पुष्पचामर भी कहते हैं,यह शिव को अत्यंत प्रिय है |, आयुर्वेद के ग्रंथों में भी रुद्राक्ष की महामहिमा का वर्णन है,| आयुर्वेदिक ग्रंथों में रुद्राक्ष को महौषधि,दिव्य औषधि आदि कह कर इसके दिव्य गुणों को विस्तार से बताया गया है,| रुद्राक्ष की जड़,छाल,फल,बीज और फूल सबमें औषधीय व दैवीय गुण छिपे हुये है. यदि आप तंत्र मंत्र जादू टोना अथवा किसी बुरे साए से परेशान हों! किसी की नजर ने जीना दूभर कर रखा हो! तरह तरह से ग्रहों की दशाओं ने जीवन की नैया को डावा-ड़ोल कर दिया हो! बुद्धि विवेक मस्तिष्क तनाव या किसी समस्या के कारण ठीक से काम न कर पा रहे हो! साथ ही आप यदि हृदय रोगों से परेशान हों, नक्षत्र दोष के कारण बनते काम बिगड़ रहे हों! तो अब समय आ गया है, "दुर्भाग्य के नाश का" और शिव की तरह प्रसन्न और मुक्त होने का. शिव पुराण में कहा गया है कि जिसने रुद्राक्ष धारण कर रखा हो, वो तो स्वयं शिव ही हो जाता है, अगर आपको लगता है कि आपका भाग्य साथ नहीं दे रहा, आप बहुत ही ज्यादा चंचल है और इस बजह से लगातार अपना नुक्सान कर रहे हैं, तो शिव के मन्त्रों से प्राण प्रतिष्ठा कर रुद्राक्ष धारण कीजिये, आपके जीवन में स्थिरता आने लगेगी. राहु, शनि, केतु, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से होने वाले रोगों व संकटों का नाश होगा, जीवन के संघर्षों से आपको राहत मिलेगी, साथ ही अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं को रोकेगा शिव का एक चमत्कारी रुद्राक्ष,| स्कन्द पुराण और लिंग पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष से आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है, कार्य, व्यवसाय, व्यापार में अपार सफलता दिलवाता है, रुद्राक्ष सुख समृद्धि प्रदान करता है, साथ ही साथ पाप, शाप, ताप से भी भक्त की रक्षा करता है, हम आपको बता दें कि रुद्राक्ष भारत, नेपाल, जावा, मलाया जैसे देशों में पैदा होता है, भारत के असाम, बंगाल, देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में रुद्राक्ष पैदा होतें है, रुद्राक्ष का फल कुछ नीला और बैंगनी रंग का होता है जिसके अन्दर गुठली के रूप में स्थित होता है शिव का परम चमत्कारी दैविक रुद्राक्ष, लेकिन रुद्राक्ष का एक हमशक्ल भी होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, पर उसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते, शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष की क्षमता उसके मुखों के अनुसार ही होती है, रुद्राक्ष एक मुखी से ले कर इक्कीस मुखी तक प्राय: मिल जाते है, सबकी अलौकिकता एवं क्षमता अलग अलग होती है, हिमालय की तराइयों से प्राप्त रुद्राक्ष की महिमा सबसे बड़ी कही गई है, दस मुखी और चौदह मुखी रुद्राक्ष अतिदुर्लभ कहे गए है, पंद्रह से ले कर इक्कीस मुखी तक के रुद्राक्ष साधारणतय: नहीं मिल पाते, और एक मुखी की तो महिमा ही अपरम्पार है, जिसे मिल जाए उसे जीवन में फिर कुछ और पाना शेष नहीं रहता, वो केवल अत्यंत भाग्य वाले को ही मिल पाता है, रुद्राक्षों में नन्दी रुद्राक्ष, गौरी शंकर रुद्राक्ष, त्रिजूटी रुद्राक्ष, गणेश रुद्राक्ष, लक्ष्मी रुद्राक्ष, त्रिशूल रुद्राक्ष और डमरू रुद्राक्ष भी होते है, जो अंत्यंत दैविक माने गए हैं. रुद्राक्ष का प्रयोग औषधि के रूप में तो होता ही है साथ ही इसे धारण भी किया जाता है या पूजा के लिए,माला के रूप में प्रयुक्त होता है,स्फटिक शिवलिंग, बाण लिंग अथवा पारद शिवलिंग को स्थापित कर यदि रुद्राक्ष धारण कर लिया जाए तो वो व्यक्ति सम्राटों जैसा बैभव प्राप्त कर लेता है, रुद्राक्ष ऐसा तेजस्वी मनका है जिसका उपयोग बड़े बड़े योगी संत ऋषि मुनि महात्मा परमहंस तो करते ही है साथ ही साथ तांत्रिक अघोरी जैसी वाममार्गी विद्याओं के जानकार भी इसके चमत्कारी प्रभावों के कारण इसकी महिमा गाते फिरते है, भारत के सिद्ध रुद्राक्षों का प्रयोग तो आज विश्व के हर कोने में बैठा व्यक्ति कर ही रहा है, तो आप और हम इसके दिव्य गुणों से दूर क्यों रहें? स्कंध पुराण में कार्तिकेय जी भगवान शिव से रुद्राक्ष की महिमा और उत्पत्ति के बारे में प्रश्न पूछते है तो स्वयं शिव कहते है कि "हे षडानन कार्तिकेय ! सुनो, मैं संक्षेप में बताता हूँ, पूर्व काल में युद्ध में मुश्किल से जीता जाने वाला दैत्यों का राजा त्रिपुर था. उस दैत्यराज त्रिपुर नें जब सभी देवताओं को युद्ध में परास्त कर कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. तो ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, प्रमुख देवगण तथा पन्नग गण मेरे पास आ कर त्रिपुर का बध करने के लिए मेरी प्रार्थना करने लगे. देवताओं की प्रार्थना सुन कर संसार की रक्षा के लिए मैं बेग से अपने धनुष के साथ सर्व देवमय भयहारी कालाग्नि नाम के दिव्य अघोर अस्त्र को ले कर दैत्य राज त्रिपुर का बध करने के लिए चल पड़ा. लेकिन उसे हम त्रिदेवों से अनेक वर प्राप्त थे, इसलिए युद्ध में लम्बा समय लगा, एक हजार दिव्य वर्षों तक लगातार क्रोद्धमय युद्ध करने से व योगाग्नि के तेज के कारण अत्यंत विह्वल हुये मेरे नेत्रों से व्याकुल हो आंसू गिरने लगे, योगमाया की अद्भुत इच्छा से निकले वो आंसू जब धरा पर गिरे और बृक्ष के रूप में उत्त्पन्न हुये, तो रुद्राक्ष के नाम से विख्यात हो गए, ये षडानन रुद्राक्ष को धारण करने से महापुण्य होता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है, रुद्राक्षों के दिव्य तेज से आप कैसे दुखों से मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जीते हुये शिव कृपा पा सकते हैं |.......................................................................हर-हर महादेव 

महाशक्ति दुर्गा

दुर्गा :: संहार के साथ सृष्टि की शक्ति 
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नवरात्र ,शक्ति आराधना का पर्व ,शक्ति आराधना का समय ,शक्ति को आत्मसात करने का समय ,भगवती दुर्गा की आराधना का समय ,भगवती के विविध रूपों की आराधना का समय ,अर्थात प्रकृति की विभिन्न शक्तियों की आराधना का समय ,प्रकृति की विभिन्न शक्तियों को सम्मान देने का समय ,अर्थात मात्री शक्ति को सम्मान देने का समय ,अर्थात शक्ति के आह्वान और प्रतिष्ठा का समय होता है |लगभग हम सभी इस पर्व को एक मोटे तौर पर दुर्गा देवी की आराधना का समय के रूप में जानते हैं |हमें पता है की इस समय भगवती की आराधना करने से उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होने की सम्भावना रहती है ,इसलिए हम अपनी सुख-संमृद्धि-सुरक्षा-खुशहाली के लिए उनकी अपने घरों में स्थापना करते हैं ,बुलाते हैं ,आराधना करते हैं |
देवी दुर्गा मे प्रकृति की [प्रकारांतर से ब्रह्माण्ड की ]समस्त शक्तियां समाहित हैं ,ऐसा ही कथाओं में भी कहा गया है ,अर्थात यह उस मूल ऊर्जा या शक्ति का समग्र रूप हैं जिनमे सभी उर्जायें एक साथ समाहित हैं |कथा के अनुसार सभी देवी-देवता इन्हें अपनी शक्ति देते हैं ,किन्तु अन्य कथा के अनुसार सब कुछ इन्ही से उत्पन्न है ,अर्थात यह मूल शक्ति है प्रकृति की उत्पत्ति और क्रियाकलाप की |सब इन्ही से शुरू होता है और इन्ही में समाहित हो जाता है ,यह विभिन्न स्वरूपों में इनका नियमन करती हैं |
सामान्य रूप से देवी दुर्गा सुरक्षा और संहार की शक्ति है [यद्यपि अन्य शक्तियां भी इनमे समाहित है और सबकुछ करने में सक्षम हैं ],उत्पत्ति कथा संहार से जुडी है |समग्र रूप से यह समस्त असुर-दैत्यों का संहार करती हैं और पाप-व्यभिचार-अत्याचार आदि का विनाश करती हैं ,संसार में अच्छे-धार्मिक प्राणियों की सुरक्षा करती हैं |,किन्तु जब हम व्यक्तिगत रूप से देखते हैं तो पाते हैं की जो महिसासुर और शुम-निशुम्भ-रक्तबीज कथाओं में बाहर राक्षस रूप में अत्याचार कर रहे थे और भगवती को उनके संहार के लिए अवतरित होना पड़ा था ,वह सभी तो हम सब के भीतर भी हैं ,महिसासुर हम में जब उत्पन्न होता है तो माँ-बहन कुछ नहीं देखता और राह चलती बहनों के साथ अत्याचार कर बैठता है ,रक्तबीज हर जगह उत्पन्न होते जा रहे हैं |हममे उत्पन्न होने वाला काम-क्रोध-लोभ-मोह-मद-मात्सर्य-ईर्ष्या आदि असुर ही तो हैं जो हमसे क्या क्या नहीं करवाते हैं |इन सभी का भी संहार भगवती हमारे भीतर ही कर सकती हैं ,तभी तो तंत्र कहता है की देवी दुर्गा हमारे शारीर के भीतर स्वाधिष्ठान चक्र में हैं और भीतर उत्पन्न होने वाले समस्त राक्षसों का संहार कर सकती हैं |किन्तु अपने आप न उन्होंने बाहर के राक्षसों का संहार किया था ,न भीतर के राक्षसों का करती हैं |
बाहर के राक्षसों का संहार करने के लिए देवताओं -ऋषियों ने उनसे प्रार्थना की थी तब वह अवतरित होकर संहार को उद्यत हो संसार को सुरक्षित की थी |इसीप्रकार जब हम उनका आह्वान करते हैं ,प्रार्थना करते हैं तभी वह हमारे भीतर जागती हैं और हमारे भीतर के राक्षसों का संहार करती हैं ,इसके लिए उन्हें जगाना पड़ता है ,बाहर भी भीतर भी ,उन्हें बुलाना पड़ता है ,प्रार्थना करनी पड़ती है |वह शरीर में ही हैं जैसे वह ब्रह्माण्ड में थी ,किन्तु देवताओं के बुलाने पर ही अवतरित हुई ,उसी तरह शरीर में होने पर भी उन्हें जगाना पड़ता है तभी वह सक्रिय होती हैं |नवरात्र का पर्व उन्ही को जगाने का समय है ,बुलाने का समय है जिससे वह अन्दर और बाहर के राक्षसों और राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश करें और हमारा कल्याण हो |प्रकारांतर से यह समय स्वाधिष्ठान चक्र से सम्बंधित शक्ति की साधना का भी है |
नवरात्र का समय ऐसा होता है की सूर्य की कोणीय किरने और ऊर्जा एक विशेष स्थिति में होती हैं, ग्रहीय स्थितियां विशिष्ट होती हैं ,पृथ्वी की स्थिति और विशेष रूप से भारतीय प्रायद्वीप की स्थिति और वातावरण विशिष्ट होती है ,जिसके अनुसार इस समय का निर्धारण शक्ति के इस स्वरुप को उपासित-साधित-जागृत करने के लिए चुना गया है |मूलतः यह शक्ति उग्र है ,और उग्र ही उग्र को काट सकता है अतः तामसिक और कष्टकारक शक्तियों को नष्ट करने के लिए उग्र का ही सहारा लेने के लिए यह साधना का समय होता है |बाहरी और आतंरिक तामसिक शक्तियां इस वातावरण में उग्र होती हैं अतः उनका शमन भी उग्रता से ही हो सकता है ,इसलिए दुर्गा को जगाया जाता है |दुर्गा संहार करके ,प्रकृति को नियमित करके तब नया निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती हैं |प्रकृति के विरुद्ध होने वाले को नष्ट कर प्रकृति का नियमन करती हैं |इनकी उपासना बाह्य रूप से अत्याचार से मुक्ति के साथ ही आतंरिक दोषों से मुक्ति के लिए भी होती है |जैसा सभी साधनाओ के मूल में आतंरिक दोषों से मुक्ति और उत्थान ही होता है वैसे ही इनकी साधना में भी मूल तत्त्व आतंरिक दोषों से मुक्ति और समग्र उत्थान ही होता है ,साधना में सदैव आतंरिक दोषों से मुक्ति की प्रार्थना का भाव होना चाहिए ,तभी यह वास्तविक लाभप्रद होंगी |केवल बाहरी सुरक्षा और अत्याचार से मुक्ति ,धन-संमृद्धि -संपत्ति-सुख की मांग करते रहेंगे और आतंरिक उन्नति की तारा ध्यान नहीं होगा तो पूर्ण फल प्राप्ति संदिग्ध हो सकती है |
सदैव ध्यान देने योग्य है की कोई भी शक्ति खुद आकर कुछ नहीं करती ,आपकी वह प्रत्यक्ष सहायत बहुत उच्च स्तर पर आपके पहुचने ही कर सकती है,सामान्यतः वह आपकी क्षमता में ही परिवर्तन करती है |जब उसका अवतरण होता है तो वह आपके शरीर में ही स्थान ग्रहण करती है ,फलतः आपकी क्षमताओं में परिवर्तन हो जाता है और आप सम्बंधित समस्या से अपने कर्मो से मुक्त होते हैं ,वह इस प्रकार क्षमता परिवर्तन कर आपकी अप्रत्यक्ष सहायत ही करती है |अतः उसकी साधना के समय सदैब आतंरिक भावों और दोषों से मुक्ति के साथ अपने शरीर में स्थान ग्रहण करने की भावना होनी चाहिए |...............................................................हर-हर महादेव 

ईश्वर या शक्ति को बुलाना आसान है ,पर संभालना बेहद मुश्किल है

हम रोज पूजा -आराधना -साधना -अनुष्ठान करते रहते हैं ,अपने ईष्ट या कामनानुसार देवता को बुलाने के लिए |अक्सर असफलता मिलती है ,कभी -कभी पूर्ण सालता मिल जाती है |कभी कुछ अनुभव तो होता है पर विशेष उपलब्धि सोचने पर दिखती नहीं ,कभी कभी बहुत समय तक यथास्थिति बनी रहती है कोई परिवर्तन महसूस नहीं होता |कभी परिवर्तन न दिखने पर विश्वास भी हिल जाता है की वास्तव में कुछ है या नहीं ,या सब झूठ ही कहा और लिखा गया है |
हम आपसे कहना चाहेंगे की सब सत्य लिखा और कहा गया है ,ईश्वर मिल सकता है ,वह आ सकता है ,उसे बुलाया जा सकता है ,पर सब कुछ मानसिक स्थिति पर निर्भर होता है ,मंत्र-उपाय-कर्मकांड-मुहूर्त-वातावरण सब केवल सहायक मात्र होते हैं |मुख्य भूमिका मानसिक स्थिति की होती है |ईश्वर मानसिक तरंगों और मानसिक ऊर्जा के आकर्षण से जुड़कर आता है ,अन्य सभी कुछ उसकी ऊर्जा को बढ़ाने अथवा उसे रोकने-सग्रहित करने के माध्यम होते हैं |मानसिक तरंगें निश्चित दिशा और निश्चित भाव -गुण में न लिप्त हों तो ईश्वरीय ऊर्जा उससे नहीं जुड़ पाती |फिर चाहे वर्षों तक जप किये जाते रहें कोई परिणाम नहीं मिलने वाला |
ईश्वर को बुलाना आसान है किन्तु सबसे मुश्किल उसके आने पर उसे संभालना ही होता है ,नियंत्रित करना और अपने से जोड़े रखना ही होता है |जब आप किसी निश्चित भाव-गुण-आकृति के ईष्ट में डूबते हैं ,पूर्ण एकाग्रता के साथ उसके मंत्र का जप करते हैं ,सम्बंधित सामग्री का उपयोग करते हैं तो इन सब के संयोग और मानसिक ऊर्जा से उत्पन्न तरंगो का प्रक्षेपण वातावरण में होने लगता है ,जिसके फलस्वरूप सामान प्रकृति की ऊर्जा आकर्षित होने लगती है और उसका संघनन साधक के आसपास होने लगता है ,अर्थात वह ईश्वर आने को उद्यत होने लगता है |अब सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है की क्या साधक की मानसिक-शारीरिक स्थिति उसे सँभालने की है |
साधक बेहद भावुक और भीरु ह्रदय है ,अपनी आवश्यकतापूर्ती के लिए साधना काली की करने लगा ,काली की ऊर्जा का अवतरण हो गया और साधक अपने स्वभावानुसार डर गया या रोने लगा ,उसकी हिम्मत जबाब दे गयी उनके भयानक ऊर्जा को महसूस करके ,अथवा उसकी शारीरिक स्थिति कमजोर है और वह काली की ऊर्जा को सहन करने लायक ही नहीं है |ऐसे में साधक की ह्रदय गति रूक सकती है ,शारीरिक ऊर्जा संरचना या पावर सर्किट नष्ट हो सकता है ,मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है |अथवा वह भावुकता में बहने लगा ,ऐसे में काली की ऊर्जा उससे जुड़ ही नहीं पाएगी और पुनः बिखर जायेगी ,व्यक्ति असफल हो जायेगा |ऐसा भी होता है की यदि स्वभाव में अति कोमलता है और काली की उग्र साधना कर रहे हों तो वह शक्ति साधक की और आकर्षित ही न हो |काली के लिए तो उग्र ,मजबूत, तामसिक भाव होना चाहिए ,शारीरिक रूप से मजबूती रखनी चाहिए ,हिम्मत होना चाहिए ,भय बिलकुल नहीं होना चाहिए |
इसी प्रकार अगर मानसिक भाव का संतुलन साधित की जाने वाली शक्ति से नहीं बैठता तो वह शक्ति आकर भी साधक से नहीं जुड़ पाती ,क्योकि उसे अपने अनुकूल मानसिक भाव नहीं प्राप्त होता है |जिस शक्ति या ईष्ट की साधना की जा रही हो उसके अनुकूल वातावरण के साथ ही उसके अनुकूल मानसिक भाव भी होना चाहिए ,,तदनुरूप शारीरिक स्थिति और ह्रदय की स्थिति भी बनानी होती है ,तभी सम्बंधित शक्ति आकर जुड़ पाती है |अक्सर साधना-अनुष्ठान करने पर सम्बंधित कार्य तो हो सकता है ,पर सम्बंधित शक्ति जुडी रह जाए जरुरी नहीं होता |यह सामान्य काम्य अनुष्ठानों में होता है ,जबकि व्यक्ति यदि ध्यान दे तो यहाँ भी आने वाली शक्ति जुडी रह सकती है |शक्ति विशेष की साधना में भी अक्सर सम्बंधित शक्ति नहीं जुड़ पाती साधक से फलतः असफलता मिलती है या कम सफलता मिलती है |इसका भी कारण आई हुई शक्ति को उसकी प्रकृति -गुण-स्वभाव के अनुसार स्थान न दे पाना या नियंत्रित न कर पाना होता है |
ईष्ट या शक्ति तो साधना प्रारम्भ होते ही आकर्षित होने लगता है ,पर जुड़ता वह भाव और शक्ति के अनुसार ही है |उसे आने पर संभालना और यथायोग्य स्थान देना ही मुश्किल होता है |यही सबसे अधिक गुरु की आवश्यकता होती है |साधना-पूजा-अनुष्ठान तो बहुतेरे करते हैं पर सफलता बहुत कम को ही मिल पाती है ,क्योकि उचित पद्धति-मार्गदर्शन और जानकारी का ही अभाव होता है |दिशा कोई ,शक्ति कोई, भाव कोई होता है |इनमे आपसी तालमेल नहीं होता |फलतः कहते मिल जाते हैं इतना किया कुछ नहीं हुआ |मंत्र-पद्धति-मुहूर्त-सामग्री-कर्मकांड पुस्तकों में मिल जाते हैं ,पर आई शक्ति को संभालें कैसे यह पुस्तक नहीं बता पाते ,इसके लिए योग्य गुरु की आवश्यकता होती है |पुस्तकें तो पुराने शास्त्रों को खोजकर लिख दी जाती है ,पर लिखने वाले साधक हों बहुत मुश्किल होता है ,साधक पुस्तकें नहीं लिखता |लिखने वाला अगर साधक हुआ भी तो विषयवस्तु की गोपनीयता के कारण यह नहीं बता सकता की कैसे आई ऊर्जा या शक्ति को संभालें या नियंत्रित करें |

आज के समय में अधिकतर की असफलता का यही कारण है की ऊर्जा तो पुस्तकों को पढ़कर ,मंत्र जपकर ,अनुष्ठान करके बुला ली जाती है पर उसे संभाले कैसे ,उसे नियंत्रित कैसे करें ,उसे कैसे स्थान दें अधिकतर नहीं जानते |बताने वाला नहीं मिलता |जो मिलते हैं खुद आधे-अधूरे ज्ञान वाले स्वयंभू ज्ञानी होते हैं |फलतः आई ऊर्जा बिखर जाती है |अनुष्ठान -साधना पर भी अपेक्षित परिणाम नहीं दीखता |अतः इस हेतु सद्गुरु खोजना ही सबसे पहले जरुरी होता है |इसीलिए गुरु को सर्वाधिक महत्व दिया गया है साधना क्षेत्र में |वही बताता है की कैसे और कब किस उर्जा को किस प्रकार नियंत्रित किया जाए ,जिससे वह आपके लिए कल्याणकारी हो सके ,आपके साथ जुड़ सके |वही बताता है की आपको किस प्रकार की उर्जा की आवश्यकता है ,आप किसे संभल पाएंगे ,आपकी प्रकृति के अनुकूल कौन है |किससे आपका कल्याण संभव है |.[व्यक्तिगत विचार ]................................................................हर-हर महादेव 

Tuesday 21 January 2020

भाग्य दुसरे के सहारे नहीं बदलता

कोई दूसरा किसी का भाग्य नहीं बदलता 
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अक्सर साधुओं ,महात्माओं ,ज्योतिषियों ,तांत्रिकों के पास ऐसे लोगों की भीड़ होती है जो अपनी समस्याएं लेकर उनके पास गए होते हैं |इनमे से कुछ छोटे उद्देश्य और समस्याओं से गए होते हैं तो कुछ बड़े लक्ष्य भी चाहते हैं |कुछ भाग्य भी बदलना चाहते हैं इन ज्ञानियों ,सिद्धों के सहारे ,किन्तु कोई भी सिद्ध ,साधू ,महात्मा ,संत ,ज्योतिषी ,तांत्रिक ,अघोरी-अवधूत किसी का भाग्य नहीं बदल सकता |अक्सर इनके पास जाने से कुछ लक्ष्यों की पूर्ती हो जाती है और लोग भ्रम पाल लेते हैं की ऐसा हो गया ,वैसा हो गया |वस्तुतः यह तो उनके भाग्य में ही था ,किन्तु उसकी प्राप्ति में किन्ही नकारात्मक उर्ज्जाओं का प्रभाव था जिससे वह नहीं मिल पा रही थी |इन दिव्य व्यक्तियों के पास जाने से वह नकारात्मक उर्जा अथवा प्रभाव हट गया और व्यक्ति को वह प्राप्त हो गया जो उसके भाग्य में था |व्यक्ति इसे भाग्य बदलना मान लेता है जबकि यह उसके भाग्य का ही होता है |
वास्तविक साधू ,महात्मा ,ऋषि ,सन्यासी ,तांत्रिक ,अघोरी यदि साधना कर रहा तो अपनी मुक्ति अथवा मोक्ष के लिए कर रहा है न की किसी और के लिए |यदि वह किसी और के लिए कर रहा होता तो समाज और देशों में इतनी विकृतियाँ और समस्याएं ही न होती |किन्तु उसे इन सबसे कोई मतलब नहीं होता |उसकी साधना खुद के लिए होती है |इससे प्राप्त उर्जा यदि वह किसी दुसरे के लिए उपयोग करता है तो उसकी संचित उर्जा में कमी आती है इसलिए कोई अपनी संचित उर्जा किसी के लिए नहीं खर्चा करता |यदि वह अपनी संचित उर्जा खर्चा करें तो किन्ही व्यक्तियों का भाग्य अलग से उर्जा देकर बदल सकते हैं किन्तु कोई ऐसा नहीं करता |कुछ उदहारण जरुर मिलते हैं विभिन्न सिद्धों के जीवन के किन्तु वहां भी या तो दुसरे का भाग्य बदलने में उन सिद्ध को समस्या का सामना करना पड़ा अथवा उनके पास अक्षुण ऊर्जा स्रोत प्राप्त हो चूका था जो आज बेहद कठिन है |यदि किसी के पास है भी तो वह कम से कम समाज में नहीं रहता ,उससे अलग हो जाता है ,क्योकि उसे किसी चीज की जरुरत नहीं रह जाती |अधिकांश के पास अक्षुण उर्जा स्रोत नहीं होता अर्थात उनके द्वारा साधना से प्राप्त ऊर्जा खर्च होने पर कम होगी |इसलिए कोई वास्तविक साधक किसी के लिए अपनी उर्जा खर्च नहीं करता |अतः कोई भी किसी का भाग्य नहीं बदलता |
यह जरुर होता है की जब कोई वास्तविक साधक साधना करता है तो उसमे और उसके आसपास ऊर्जा संघनित होने लगती है ,उसके मन्त्रों की शक्ति बढ़ जाती है |जब कोई व्यक्ति उनके आसपास जाता है अथवा जब वे कोई वास्तु अभिमंत्रित करके देते हैं तो व्यक्ति से जुडी नकारात्मक उर्जा ,अथवा नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं या पूरी तरह से हट जाते हैं जिससे उसके भाग्य में जो लिखा है वह पूरा मिलने लगता है |इस कारण यदि वह किसी दिशा में कार्य कर रहा होता है तो उसकी सफलता बढ़ जाती है अथवा लक्ष्य प्राप्त हो जाता है |कुछ भी भाग्य से अलग नहीं होता ,क्योकि कोई अपने भाग्य से अलग सोच ही नहीं सकता |भाग्य ही व्यक्ति की सोच और गुण निर्धारित करते हैं अतः जो कुछ भी लक्ष्य होता है या सोच होती है वह भाग्य के अनुसार होती है |सिद्ध की उर्जा उसे प्राप्त करा देती है उसके मार्ग की बाधाएं हटाकर |
सन्यासी ,साधू अथवा उच्च शक्तियों के साधक की कुंडलिनी के प्रभाव से उनके आसपास का वातावरण धनात्मक और सकारात्मक उर्जा से संघनित होता है ,यह जाने मात्र से नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं |यह अगर किसी वस्तु को अभिमंत्रित कर दें तो उसमे कई वर्षों तक उर्जा रहती है और नकारात्मक प्रभाव हटाये रहती है ,अथवा यह चाहें तो खुद व्यक्ति से नकारात्मक प्रभाव पूरा हटा सकते हैं जिससे उसके भाग्य का पूरा मिलता जाता है और वह सफल हो जाता है |इनके द्वारा दिया गया प्रसाद अथवा धुल भी चमत्कार इसी तरह करता है की वह व्यक्ति से नकारात्मक प्रभाव कम कर देता है या हटा देता है |
 छोटे तांत्रिक अथवा तुच्छ शक्तियों के साधक अपने मंत्र शक्ति और साधी गयी शक्ति की ऊर्जा से किन्हीं वस्तुओं को अभिमंत्रित करके अथवा पूजा पद्धति से किसी तरह के प्रभाव को हटाते हैं |इनकी साधना भौतिकता वादी होती है और यह मिक्ष अथवा मुक्ति के लिए नहीं भौतिक उपलब्धियों के लिए साधना कर रहे होते हैं |समस्या तो यह भी हल कर देते हैं किन्तु अपनी शक्ति के बल पर |भाग्य यह भी नहीं बदल सकते ,न ये स्थायी प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं |हाँ तात्कालिक समस्या हल हो जाती है ,एक उर्जा को दूसरी उर्जा पर लगाकर |
इनमे से कोई किसी का भाग्य नहीं बदलता ,क्योंकि भाग्य बिना कुंडलिनी जागरण के नहीं बदलती |बहुत सक्षम गुरु भी अपने किसी विशेष शिष्य का ही कुंडलिनी जाग्रत करता है सबका नहीं |बिना कुंडलिनी अथवा जन्मकालीन चक्र विशेष के आलावा किसी दुसरे चक्र की सक्रियता के भाग्य नहीं बदलता |इसलिए भाग्य बदलने के लिए व्यक्ति को खुद प्रयास करना होता है ,खुद साधना करनी होती है ,वह भी किसी महाविद्या अथवा उच्च शक्ति की |किसी तुच्छ शक्ति अथवा भूत -प्रेत ,पिशाच -ब्रह्म की साधना -सिद्धि से भाग्य नहीं बदलता ,न ही कुंडलिनी जागती है |इन सबसे तात्कालिक लाभ भले हो जाएँ वह भी भाग्य के अनुसार ,किन्तु परिणाम अच्छे नहीं होते |
हर पूजा ,उपाय आदि से इतना ही होता है की व्यक्ति को प्रभावित कर रही विभिन्न नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव या तो हट जाता है ,या कम हो जाता है |जैसा की हमने अपने पूर्व के लेख में लिखा है की ,,"" भाग्य का पूरा मिलना भी बड़े भाग्य की बात है "" |जिसके अनुसार जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को विभिन्न तरह की शक्तियाँ धरती पर प्रभावित करती हैं जिससे उसके भाग्य में लिखा हुआ भी पूरा नहीं मिलता |यही कारण होता है की किसी ज्योतिषी की किसी के बारे में सारी भविष्यवानियाँ सच नहीं होती |यद्यपि सच्चाई का प्रतिशत उसके ज्ञान पर निर्भर करता है किन्तु कितना भी ज्ञानी हो पूरा भविष्यवाणी सच नहीं होता |व्यक्ति के भाग्य में कई तरह की शक्तियाँ अवरोध उत्पन्न करती हैं |इन्हीं अवरोधों को पूजा और उपाय हटा देते हैं जिससे उसके भाग्य का पूरा मिलने से वह लाभान्वित हो जाता है |यही काम साधू ,संत और तांत्रिक भी करते हैं |कोई अपनी उर्जा लगाकर किसी का भाग्य नहीं बदलता |
किसी सिद्ध पीठ ,मंदिर ,देव स्थान में भी ऐसा ही होता है |आपके वहां जाने से अगर वहां सकारात्मक अथवा धनात्मक उर्जा का संघनन है तो वह आपके नकारात्मक उर्जा को प्रभावित करता है और आपको प्रभावित कर रही उर्जा कम हो जाती है अथवा हट जाती है |आपके साथ कुछ धनात्मक ऊर्जा भी जुड़ सकती है आपके भावनात्मक जुड़ाव के अनुसार ,जिससे आपकी कार्यप्रणाली ,सोच ,उत्साह ,क्षमता प्रभावित होती है ,फलतः कर्म और दिशा बदलने से आपको लाभ होने लगता है |बार बार ऐसी जगह जाने से प्रभाव और लाभ अधिक होता है ,किन्तु होता वही है जो आपके भाग्य में होता है ,हाँ यह पूरा मिलने लगता है अथवा प्राप्ति का प्रतिशत बढ़ जाता है |

आप किसी के पास यह सोचकर न जाएँ की कोई आपका भाग्य बदल देगा या आपको वह दिला देगा जो आपके भाग्य में है ही नहीं ,क्योकि जिसके पास यह क्षमता होगी वह कुछ रुपयों के लिए यह नहीं करेगा |उसे उस स्थिति में रुपयों की आवश्यकता ही नहीं होती |उसे तो कोई और लक्ष्य दीखता है |जो ऐसा करने का दावा करेगा ,सीधी बात है उसे भौतिक उपलब्धियां और पैसे चाहिए ,अर्थात उसके पास भाग्य बदलने की क्षमता नहीं है |भाग्य बदलने की क्षमता वाला भौतिक उपलब्धियों की ओर कभी नहीं भागता |जो कोई आपको कुछ देगा अथवा दिलाएगा वह आपके भाग्यानुसार ही होगा |कोई भी अधिकतम यही कर सकता है की आपके भाग्य में जो लिखा है वह पूरा दिला दे ,आपके नकारात्मक प्रभावों को हटाकर या हटवाकर |अलग से कोई कुछ नहीं देने वाला |इसलिए यह भ्रम पालना की कोई वह दिला देगा जो आपको नहीं मिलना ,दिवा स्वप्न से अधिक कुछ नहीं |फिर उसे पाने के लिए तो आपको ही प्रयास करना होगा ,बजाय दुसरे के सहारे के |हर कवच ,ताबीज ,गुटिका ,पूजा -पाठ ,उपाय इन्ही सूत्रों पर चलते हैं |सब कुछ आपके भाग्य का ही दिलाते हैं |कोई पूरा कोई अधूरा |.......................................................हर-हर महादेव

क्यों उन्नति -सफलता नहीं मिल रही आपको

क्यों नहीं उन्नति कर पा रहे आप
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आज का समय बेहद संघर्षमय हो चूका है |व्यक्ति को जीने के लिए अनेक तरह के संघर्ष करने पड़ते हैं |बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें आसान जीवन और सुख सुविधाएं मिल पाती हैं |शुरूआती जीवन माता -पिता पर आश्रित होता है और हर माता -पिता अपनी तरफ से पूरा प्रयास अपने बच्चे को सुखी रखने की करता है ,चाहता है की बेहतर -से बेहतर सुविधा अपनी परिस्थिति के अनुसार दे सके ताकि उसका बच्चा योग्य बन सके ,अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके और जीवन में उन्नति कर सके |जब जीवन संघर्ष खुद व्यक्ति का शुरू होता है तब उसे वास्तविकता समझ आती है |यहाँ जीवित रहना और एक स्तर बनाये रखना जब इतना मुश्किल है तो उन्नति कर पाना कितना कठिन होगा |कुछ लोग प्रबल भाग्य के सहारे उन्नति कर जाते हैं ,पर अधिकतर बड़े -बड़े सपने और कल्पनाएँ पाले जब जीवन संघर्ष में उतारते हैं तो एक सामान्य जीवन जीते हुए सपने गवां बैठते हैं |सारी कल्पनाएँ यथार्थ के धरातल पर धरी रह जाती हैं |
जब हम इसके कारणों का विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं की हर व्यक्ति अपने वर्त्तमान जीवन से बेहतर जीवन पा सकता था ,जी सकता और उन्नति कर सकता था ,पर उसे कुछ पीछे खीचने वाले कारकों का पता नहीं था या उसने इस पर ध्यान नहीं दिया या उसे इन सब कारकों पर विश्वास नहीं था |वह शरीर की ताकत ,जवानी के उमंग और जोश में मस्त था ,खुद की बुद्धि को श्रेष्ठ मानते हुए अन्य सभी को झुठलाता रहा |कुछ कर्म को मुख्य मानते रहे और अन्य सभी को नहीं माना तो कुछ अति भाग्यवादी बनकर कर्म को महत्त्व नहीं दिया |कुछ ने खुद पर भरोसा नहीं किया और दुसरे की सलाह से चलते रहे तो कुछ किसी की बात ही नहीं माने |कुछ अति शिक्षित और आधुनिक -वैज्ञानिक सोच वाले खुद को मानकर हर पीछे ले जाने वाले कारकों को अंधविश्वास और भ्रम मानकर चलते रहे तो कुछ के पास इतनी समझ ही नहीं थी की वह यह सब समझ पाते |
यह सत्य है की कर्म ही मुख्य है पर भाग्य की भूमिका भी अति महत्वपूर्ण होती है |एक व्यक्ति दिन भर फावड़ा चलाकर २०० रुपये कमाता है ,जबकि एक फेरी लगाकर १००० कमाता है |मेहनत दोनों की सामान है पर लाभ अलग है |भाग्य और कर्म दोनों में उचित संतुलन आवश्यक होता है |इसके साथ कुछ बहुत महत्वपूर्ण कारक होते हैं जो सभी की सफलता और असफलता के कारण बनते हैं |इनके कारण ही व्यक्ति असफल अथवा सफल होता है |हर व्यक्ति में एक अलग विशेष गुण होता है और हर व्यक्ति को दुसरे गुण के व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है |व्यक्ति अपने विशेष गुण को विकसित करले तो दूसरा उसके गुण से लाभान्वित होगा और पहला दुसरे के गुण से |इस तरह दोनों उन्नति कर पायेंगे |पर होता यह है की भेड़ों की झुण्ड की तरह जिधर एक चला दुसरे भी चल दिए |अपनी क्षमता -योग्यता देखी नहीं वहां चल दिए जो उनके लिए था ही नहीं |असफल तो होना ही था |
व्यक्ति के उन्नति न कर पाने के पीछे ,असफल होने के पीछे ,एक सामान्य जीवन जीते रह जाने के पीछे कुछ बेहद महत्वपूर्ण कारक होते हैं |इनमे पहला उनका पारिवारिक परिवेश ,स्थिति और आसपास का माहौल होती है ,जो उनकी मानसिकता बनाती है |इनसे व्यक्ति की सोच निर्धारित होती है ,उनके सोचने और समझने का ढंग प्रभावित होता है |उनके अवचेतन और मनः स्थिति की स्थिति बनती है |यहाँ का माहौल व्यक्ति को कुंठित अथवा हीन भावना ग्रस्त अथवा भयालू बना सकता है या साहसी ,बोल्ड और रिस्क लेने वाला बना सकता है |यहाँ के सुझाव और जीवन भर के सलाह ,दांत फटकार ,आदि व्यक्ति को जीवन भर प्रभावित करते हैं |इस स्थिति को विश्लेषित करके व्यक्ति को अगर यहाँ के दुष्प्रभावों से मुक्त कर दिया जाए तो वह सामान्य की अपेक्षा अधिक उन्नति कर सकता है |यहाँ शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं ,कैसी भी शिक्षा हो अथवा न हो व्यक्ति के अंतर्मन और अवचेतन को सुधारते ही वह उन्नति और सफलता की और अग्रसर हो जाता है |
उन्नति रोकने और सामान्य जीवन को मजबूर रखने अथवा असफल करने के दुसरे कारण पित्र दोष ,कुलदेवता /देवी के दोष ,ग्रह स्थितियां ,सम्मिलित परिवार का भाग्य ,वास्तु दोष ,स्थान दोष ,बाहर से आई कोई बाधा ,किसी के द्वारा भेजी गयी कोई बाधा ,किसी अन्य द्वारा किया गया कोई अभिचार या तंत्र कर्म या बंधन ,किसी वायवीय प्रभाव का बदला लेने का प्रयास आदि हो सकते हैं |यद्यपि खुद को आधुनिक और वैज्ञानिक सोच का मानने वाले तथाकथित शिक्षित लोग इन तथ्यों को नहीं मानेंगे भले पाश्चात्य देशों के वह लोग इन्हें माने जिनका यह अनुसरण करते हैं ,पर यह सब होता है |इनके प्रभाव से व्यक्ति कितना भी प्रयास करे उन्नति नहीं कर पाता |
पित्र दोष होने का मतलब कितना भी कमाइए पूरा नहीं पड़ेगा ,देखने में सामने चार खाने वाले होंगे पर खर्च ६ -८ व्यक्ति का होगा घर में ,बचत नहीं हो पाएगी और अनावश्यक खर्च होंगे |कुलदेवता /देवी दोष होने पर घर -परिवार किसी भी बाधा से असुरक्षित रहेगा ,कोई भी बाधा आएगी और हानि पंहुचा चली जायेगी या टिक जायेगी |वास्तु दोष -स्थान दोष से निर्णय प्रभावित होंगे ,शारीरिक -मानसिक कष्ट होंगे |लगातार किसी भी प्रयास में बाधा आएगी |अस्त व्यस्तता रहेगी |कोई बाहर से आई बाधा होगी तो हर तरह से परेशान करेगी |दिखेगा कुछ नहीं ,समझ कुछ नहीं आएगा पर काम सब बिगड़ते जायेंगे |
दिक्कत अधिक तब होती है जब कोई किसी समस्या को आपको दे देता है या भेज देता है |यह एक आम समस्या है जिसे अक्सर लोग नहीं समझते और नहीं मानते |इसे उतारा कहते हैं |अक्सर अपना दुर्भाग्य ,अपना कष्ट ,अपनी समस्या लोग उतारकर किसी दुसरे को दे देते हैं या कभी कभी आते जाते असावधानी वश उनका लाँघन हो जाने पर यह लग जाते हैं |इसमें गंभीर बीमारी ,रोग ,वायवीय बाधा ,संतान बंधन ,कोख बंधन जिससे बच्चा न हो ,कोई लगी हुई बाधा आदि भी हो सकता है |इनका प्रभाव होने पर विज्ञान फेल हो जाता है |डाक्टर का इलाज कुछ दिन काम करता है फिर समस्या उत्पन्न हो जाती है |सबकुछ सामान्य होने पर भी समस्या बनी ही रहती है |
इसी तरह की एक और समस्या होती है किसी विरोधी अथवा किसी अपने द्वारा ही ईर्ष्या में किया गया अभिचार या तंत्र कर्म |सामने आकर नुक्सान करने की जिसकी क्षमता नहीं होती या जो डरता है पर नुक्सान चाहता है ,उन्नति रोकना चाहता है ,वह इस तरह की क्रियाओं का सहारा तांत्रिक की मदद से लेता है |जरुरी नहीं की तांत्रिक को सबकुछ सही बताये ही गलत बता कर भी उससे क्रिया करबा लेता है ,या उससे पूछकर खुद कर सकता है |आजकल इन्टरनेट पर खुले आम टोटके दिए जा रहे ,ये फायदा भले कम करें पर नुक्सान पूरा करते हैं |इनका अपना विज्ञान होता है |आजकल लोग इसे पढकर चुपचाप करने लगे हैं |अक्सर इस तरह के केस हमारे सामने आते रहते रहते जिनमे व्यक्ति पर अभिचार हुआ होता है और करने वाले अधिकतर परिचित ही होते हैं |इसी समस्या में एक वायव्य आत्मा की बदला की कोशिस भी होती है |कोई आत्मा रुष्ट हो गयी किसी कारण अथवा आपको पता ही नहीं कोई किसी कारण मर गया और प्रेत हो गया तो वह बदला का भी प्रयास करता है |कुलदेवता रुष्ट हुए अथवा कमजोर हुए तो यह पूरा नुक्सान करता है |कभी कभी कोई इस तरह की आत्मा भेजकर भी नुक्सान करवाता है |
आप मानो या न मानो पर यह कुछ कारण हर व्यक्ति को कमोवेश प्रभावित करते हैं |भाग्य बहुत प्रबल है ,पूर्वजों ने अच्छे कर्म किये हैं ,कुलदेवता अथवा ईष्ट मजबूत हैं तो उन्नति हो जाती है अन्यथा एक सामान्य जीवन की मजबूरी होती है योग्यता और क्षमता कुछ भी हो |कम योग्यता और क्षमता वाला ऊपर चला जाता है ,अधिक वाला नीचे रह जाता |जवानी में समझ नहीं आता ,समय निकलने पर केवल पछताना और कारण खोजना रह जाता है |अधिकतर बाद में भी कोई प्रयास नहीं करते और सोचते हैं की हमारा समय तो ख़तम हो गया जो करना था कर लिया अब बच्चे अपना देखेंगे |इस तरह वे बच्चों की भी उन्नति रोकने की पहले से ही व्यवस्था कर देते हैं |जब समस्या रहेगी तो बच्चे भी कहाँ से उन्नति कर पायेंगे |जिसका बहुत तेज भाग्य होगा वह बढ़ जाएगा बाकी लटकते रह जायेंगे |

उपरोक्त कारक समस्याएं होने पर उन्नति तो रूकती ही है ,असफलता तो आती ही है और भी गंभीर समस्याएं खड़ी होती हैं |जैसे किसी का हमेशा रोगग्रस्त रहना |महिलाओं का स्वस्थ्य अच्छा न रहना ,बच्चों का स्वभाव और व्यवहार बिगड़ना ,बच्चों में दुर्व्यसन ,संस्कारहीनता ,बुरी संगत ,पारिवारिक मर्यादा के खिलाफ विवाहादि ,पिता -पुत्र में अनबन ,घर में कलह ,तनाव ,विवाद ,मनमुटाव |मांगलिक कार्यों यथा विवाह आदि में बाधा ,संतान न होना अथवा कन्या संतति की अधिकता या वंश हेतु पुत्र न होना |घर में अथवा कार्य स्थल पर जाते ही सर का भारी हो जाना ,कहीं भी मन न लगाना ,बेचैनी ,घबराहट ,हमेशा बुरा होने का अंदेशा |अचानत हानि होना |आग लग जाना |पूजा -पाठ में मन न लगना |ईश्वर के प्रति अश्रद्धा |भाग्य में लिखा होने पर भी न मिलना या कम मिलना जबकि कष्ट अधिक मिलना |कितने भी प्रयासों पर भी उन्नति न होना |नौकरी में अस्थिरता या बार बार छूटना |अपयश ,असम्मान ,दोषारोपण मिलना |व्यावसायिक उतार चढ़ाव अथवा लगातार हानि |कर्ज की स्थिति |लोगों द्वारा पैसे लेकर न देना आदि आदि बहुत कुछ हो सकता है |इसलिए इन पर समय रहते ध्यान देना चाहिए |आज अगर थोडा ध्यान दे दिया जाए तो कल उत्पन्न होने वाली अनेक भारी समस्याओं से राहत रहेगी |अगर ऐसा कुछ आज है तो उन्हें हटाकर या रोक कर भाग्यानुसार पूरा उन्नति किया जा सकता है |..........................................................हर -हर महादेव

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...