Sunday, 10 December 2017

अपनी तरह अपने देवता को चुनिए ,अधिक लाभ होगा

अपनी प्रकृति और कर्म के अनुसार देवता और पद्धति चुनिए अधिक फायदे में रहेंगे   
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पूजा -पाठ ,धर्म-कर्म ,साधना अनुष्ठान बहुत पवित्रता की मांग करती है ,,वाह्य पवित्रता के साथ आतंरिक पवित्रता सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है |अगर आप पवित्र नहीं ,मानसिक रूप से शुद्ध नहीं हैं तो सफलता की संभावना सामान्य या वैदिक पद्धति से मिलना मुश्किल है |हो सकता है बहुत से लोग मुझसे असहमत हों पर वास्तविकता यही है की आप यदि किसी भी ऊर्जा को आमंत्रित और पूजित करते हैं तो आपका मानसिक संतुलन ,आपका आचार भी तदनुरूप होना चाहिए |वैदिक अथवा सामान्य पद्धतियों में अधिकतर आप सात्विक शक्तियों की उपासना -साधना करते हैं इसलिए आवश्यक हो जाता है की आप भी सात्विक हों ,सच्चरित्र हों  ,शुद्ध और पवित्र मानसिकता के हों |अगर ऐसा नहीं है तो आपके मष्तिष्क का तालमेल सम्बंधित शक्ति [देवता] या ऊर्जा से नहीं बन पाता और वह आकर्षित होकर आपसे नहीं जुड़ पाती |
पूजा-पाठ तो अधिकतर लोग करते हैं किन्तु फिर भी कष्ट ही कष्ट उठाते रहते हैं |खुद को सांत्वना देते हैं की भगवान परिक्षा लेता |बकवास है ,भगवान् कोई परीक्षा नहीं लेता सामान्य स्थितियों में ,वह बहुत विशेष स्थितियों में ही परीक्षा लेता है ,वह भी इसलिए की सम्बंधित व्यक्ति में क्षमता है की नहीं उसे संभालने की |परीक्षा परिस्थितियों और वातावरण के परिवर्तित हो जाने से उत्पन्न होती है जिसमे व्यक्ति को संतुलन बनाने की जरुरत होती है क्योकि वह एक विशेष स्थिति का अभ्यस्त होता है और परिवर्तन से अव्यवस्थित होता है और उसे परीक्षा कहता है |यह परीक्षा विरले के साथ ही होती है |सामान्य लोगों के साथ समस्या यह होती है की वह पूजा करते हैं और अधिक उम्मीद भी रखते हैं ,जबकि उनके मानसिक और चारित्रिक कमियों के कारण वह ऊर्जा उनसे जुड़ ही नहीं पाती |ऐसे में उम्मीद भी टूटती है और वह पहले से अधिक परेशांन होते जाते हैं क्योकि उम्मीद में हाथ पाँव फैलाते चले जाते हैं ,इसलिए कष्ट भी बढ़ते जाते हैं ,,भ्रम में रहते हैं की भगवान् परीक्षा ले रहा है ,जबकि वह तो जुड़ा ही नहीं है अभी तक आपसे |
सात्विक देवताओं ,शक्तियों, उर्जाओं के साथ आपको भी सात्विक होना पड़ता है |आप गणेश ,सरस्वती ,शिव ,विष्णु ,हनुमान ,सूर्य ,अग्नि ,वरुण ,गायत्री ,मातंगी आदि सात्विक देवी-देवता की साधना -उपासना कर रहे हैं ,और साथ में मांस-मदिरा का उपभोग करते हैं ,पर स्त्री गमन करते है या पर पुरुष गमन करती हैं |यहाँ तक की आप पहले कभी चरित्रहीन रहे हैं या किसी भी कारण वश या आपके कदम बहक चुके हैं |लोगों को धोखा देते हैं |रिश्वत लेते हैं ,चाहे यह मजबूरी में हो या जीवित रहने की आवश्यकता ही क्यों न हो |आप प्रतिदिन कुछ न कुछ गलत कर ही जाते हैं जो नैतिक दृष्टि से गलत होता है तो आपको ऐसे देवी-देवता की कृपा मिलनी बेहद मुश्किल है |कारण है की इनकी परिकल्पना बेहद पवित्र है ,इनके मन्त्रों से उत्पन्न ऊर्जा समीकरण बेहद पवित्र हैं ,यह मानसिक और शारीरिक पवित्रता पर ही आकर्षित होते हैं |इन्होने खुद आदर्श रखे थे इसलिए आदर्श चाहते हैं |ऐसे में जब आप इनकी उपासना साधना करते हैं तो आपमें अगर उपरोक्त कोई कमी है तो आप इनके सामने यह कह पाने की स्थिति में नहीं होते की ,,हे देवी या हे प्रभु यदि में पूर्ण पवित्र होऊं या यदि में मन -वचन और कर्म से सही होऊं तो आप मुझ पर कृपा करें और अपनी शक्ति मुझे प्रदान करें |साधना उपासना के समय भी आप खुद को शुद्ध नहीं मान पाते |इसलिए यह शक्तियां आप की और आकृष्ट नहीं होती और आपसे नहीं जुड़ पाती फलतः आपको अपेक्षित कृपा नहीं मिल पाती |

कहने को कोई कुछ भी कहे अथवा कोई भी तर्क दे किन्तु यह एक प्राकृतिक सत्य है की जैसी आपकी मनोवृत्ति ,सोच ,मानसिक भाव ,आचार-व्यवहार होगा वैसे ही ईष्ट आपसे जुड़ पाते हैं ,,सोच और आचार भिन्न और देवता की प्रकृति भिन्न है तो वह आपसे नहीं जुड़ पाती |आप भ्रम में जीते रहते हैं और सर पटकते रहते हैं ,फायदा कुछ होता नहीं |पूजा दो घंटे और परिणाम शून्य होता है |में यह भी नहीं मानता की ९९% लोग बिना किसी इच्छा के पूजा करते हैं |पूजा पाठ के समय सबमे कोई न कोई इच्छा अवश्य होती है |चाहे संकल्प ले या न ले |अतः जब पूजा करें और परिणाम न मिले तो मानलें की कहीं कुछ गलत है जो परिणाम नहीं मिल रहा है |जो लोग जिस प्रकृति के हैं उन्हें उसी प्रकृति के अनुरूप ,अपने चाल और चरित्र के अनुरूप ,अपने खान-पान के अनुरूप शक्ति का चुनाव करना चाहिए और वैसी ही पद्धति भी चुननी चाहिए ,तभी सफलता मिल पाती है |..................................................................हर-हर महादेव

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