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भारतवर्ष में प्रकट हुए भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का छठा स्थान हैं। इस ज्योतिर्लिंग में कुछ मतभेद हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में ‘डाकिन्यां भीमशंकरम्’ ऐसा लिखा है, जिसमें ‘डाकिनी’ शब्द से स्थान का स्पष्ट उल्लेख नहीं हो पाता है। इसके अनुसार भीमशंकर ज्योतिर्लिंग मुंबई से पूरब और पूना से उत्तर भीमा नदी के तट पर अवस्थित है।यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र
में मुम्बई-पुणे मार्ग पर भीमा नदी के
पास डाकिनी नामक स्थान पर और मतानुसार गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर अवस्थित
है इसके अतिरिक्त मोटेश्वर महादेव के नाम से विख्यात नैनीताल के उज्ज्नक नामक
स्थान को भी भीमाशंकर (भीमेश्वर) के नाम से जाना जाता है l शिव पुराण में इस ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है --- भीम नामक राक्षस ने भगवान शिव के प्रिय भक्त महाराज सुदक्षिण को सेवकों सहित बंदी बना लिया था l बन्दीगृह में नरेश सुदक्षिण पार्थिव शिवलिंग रख कर अर्चना कर रहे थे l उन्हें ऐसा करते देख राक्षस भीम ने उस शिवलिंग पर अपनी तलवार से प्रहार किया l शिवलिंग का तो कुछ नहीं हुआ परन्तु उसके भीतर से भगवान शिव प्रगट हुए l उन्होंने अपनी हुँकार से उस राक्षस को वहीं जला कर भस्म कर दिया, तत्पश्चात ऋषि-मुनि व देवगणों ने भगवान शिव की स्तुति की और लोक कल्याण हेतु इसी स्थान पर सदा निवास करने की प्रार्थना की l भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना सहज स्वीकार कर ली और ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए वहां पर निवास करने लगे l उनका यह ज्योतिर्लिंग भीमेश्वर के नाम से विख्यात हुआ l
जनश्रुतियों तथा महाराष्ट्र में बहने वाली भीमा
नदी को आधार बनाकर कुछ लोग भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का स्थान मुम्बई से पूर्व
और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे मानते हैं। वहाँ पर भगवान शिव
सह्याद्रि पर्वत पर अवस्थित हैं। द्वाद्वश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में ‘डाकिन्यां भीमशंकरम्’ ऐसा लिखा है, किन्तु इस ‘डाकिनी’ स्थान का कहीं अता-पता नहीं है। हो सकता
है, प्राचीनकाल में वहाँ कोई बस्ती रही हो, जो कालान्तर में नष्ट हो गई हो। सह्याद्रि पर्वत जिस पर
भगवान भीमशंकर विराजमान हैं, उसी से भीमा नदी निकल
कर प्रवाहित होती है। इस लिंगमूर्ति से किंचित जल रिसता हुआ गिरता है। इसके समीप
ही जल के दो कुण्ड भी हैं और आस-पास लोगों की बस्ती
है। उन निवासियों के अनुसार भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध करने के बाद उसी
स्थान पर विश्राम किया था।उस समय अवध के निवासी किसी सूर्यवंशी राजा ने उस
पर्वत पर जाकर कठोर तपस्या की थी। उसकी भक्ति और तपस्या से भगवान शंकर अतीव
प्रसन्न हुए थे। बताते हैं कि उस राजा का भी नाम ‘भीम’ था। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया था, उसी समय से यह ज्योतिर्लिंग भीमशंकर के नाम से प्रसिद्ध
हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि अवध नरेश राजा भीम और भीमा नदी के कारण
सह्याद्रि पर्वत का वह भाग और शिवलिंग श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से
विख्यात हुआ। ..... ..[अगला अंक - सातवा ज्योतिर्लिंग - श्री
विश्वेश्वर जी -काशी ]..............................हर-हर महादेव
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