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मदुरै का निर्माण पांडियन राजा कुलशेखर ने 6वीं शताब्दी में लगभग 2500 वर्ष पूर्व करवाया था। यह उस समय का स्वर्ण युग था जब कला, वास्तुकला और अधिगम्यता का भव्य विस्तार हुआ था। मीनाक्षी मंदिर का र्निमाण नायक शासन काल के समय हुआ। यह मन्दिर तमिल संप्रदाय के लिए जीवनाधार अवस्थिति है तथा इसका वृतांत तमिल साहित्य के पुरातन काल से प्राप्त होता है।
मदुरै के हृत्पिंड में अवस्थित मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर भगवान शिव की सहचारी देवी मीनाक्षी के प्रति समर्पित है। कहा जाता है कि भोर फटते ही मदुरै का जनमानस प्रकृति की उफौ सुनकर नहीं बल्कि मंदिर से आने वाली पवित्र मंत्रोच्चार की ध्वनि सुनकर जागता है। मंदिर में मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार चितराई है जिसकी व्यवस्था अप्रैल और मई मास में की जाती है। मान्यता है की देवराज इंद्र को शिव जी का स्वरूप शिवलिंग के रूप में मिला और उन्होंने मूल मंदिर बनवाया। इस त्यौहार के दौरान शोभायात्रा में इंद्र के वाहन को भी स्थान दिया जाता है।
इस त्यौहार को मीनाक्षी अर्थात मछली के आकार की आंख वाली देवी और सुंदरेश्वर अर्थात भगवान महादेव की शादी की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। खगोलीय विधि-विधान से शादी को योजनाबद्ध किया जाता है। इस शादी को देखने के लिए भारी मात्रा में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। मंदिर में बने स्तंभ मीनाक्षी तथा सुंदरेश्वर विवाह के खूबसूरत दृश्यों की झांकी प्रस्तुत करते हैं। यहां करीब-करीब 985 संपन्न पच्चीकारी वाले स्तंभ है। जिनकी सुंदरता का बखान करना असंभव है।
वास्तु शास्त्र वैदिक काल से ही अस्तिव में आया और मीनाक्षी मंदिर इसके विकास का उदाहरण है। यहां के अधिरचना संग्रह में 12 आलीशान गोपुरम हैं। जो बहुत बड़े हैं और महीन चित्रकारी से सुसज्जित हैं। मंदिर पत्थरों से बना है तथा परिसर में यज्ञशाला और रंगमंडप भी है। मुख्य मंदिर के अतिरिक्त गणेश जी और भगवान शिव के भी मंदिर हैं। मन्दिर का वास्तु आश्चर्यचकित कर देने वाला है तभी तो इसे विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में प्रथम स्थान प्राप्त है।
इस मन्दिर को आदिशक्ति के सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है क्योंकि देवी मीनाक्षी माता पार्वती का ही रूप हैं और इस मंदिर को आदिशक्ति के इक्यावन शक्तिपीठों
में स्थान प्राप्त है।
मदुरई के राजा पंडित राजा मलयध्वज संतानहीन थे। उनकी कठोर तपस्या के बल पर देवी पार्वती ने उनकी पुत्री के रूप में अवतार लिया। जिनका नाम उन्होंने मीनाक्षी रखा। हिन्दुओं की पुरानी कथाओं के अनुसार भगवान शिव का इस मन्दिर से बहुत गहरा सम्बन्ध है।
1 भगवान शिव अपने गणों सहित मदुरई में आए और उन्होंने मीनाक्षी देवी से विवाह करने का प्रस्ताव उनके पिता के समक्ष रखा। उनके पिता ने इस प्रस्ताव को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।
2 इस मन्दिर का सम्बन्ध भगवान शिव के साथ तब बना जब देवी पार्वती का हाथ भगवान शिव के हाथों में देते हुए देवी के भाई भगवान विष्णु को बहुत प्रसन्नता हुई। इस विवाह को देखने के लिए पूरी पृथ्वी के लोग मदुरई में एकत्रित हुए थे। भगवान विष्णु स्वयं अपने निवास बैकुण्ठ से इस विवाह का नियत्रंण करने पधारे थे।.....................................................................हर-हर महादेव
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