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त्वचा रोग एक ऐसा रोग है जो कभी सामान्य
इलाजो से ठीक हो जाता है कभी लाइलाज होता है |त्वचा रोगों में विभिन्न प्रकार के
रोग आते है ,जिनमे सामान्य दाद-खाज
से लेकर असाध्य कुष्ठ रोग तक शामिल है ,,
ज्योतिषीय दृष्टि से त्वचा रोग का कारक
बुध है ,चन्द्र और शुक्र जलीय ग्रह है और कर्क- वृश्चिक- मीन जलीय राशिया है ,इन
सब पर सूर्य ,मंगल ,शनि ,राहू ,केतु का प्रभाव होने से यह रोग बढ़ता है ,उत्पत्ति
का समय इनका प्रभाव समय अथवा प्रतिरोधक क्षमता में कमी का समय हो सकता है |
तंत्र की दृष्टि में त्वचा और
प्रतिरोधात्मकता की कारक भगवती काली है ,इन्ही की ऊर्जा की कमी से त्वचा रोग
,प्रतिरोधक क्षमता में कमी ,बंध्यापन ,नपुंसकत्व ,उत्साह की कमी,आती है और वायव्य
बाधाये भी परेशान कर सकती है ,काली ही
रक्त निर्माण की कारक है ,अतः शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इन्ही से उत्पन्न होती है
,,अक्सर यह देखने में आता है की त्वचा रोग के साथ ही प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ
जाती है और बंध्यापन अथवा नपुंसकत्व आने लगता है ,इसका कारण है काली का ही डिम्भ
अथवा शुक्राणु निर्माण का कारक होना ,यह मूलाधार की देवी है जहा से उपरोक्त सब कुछ
नियंत्रित होता है |
बुध ग्रह को यद्यपि विष्णु से जोड़ा
जाता है ,तथापि तंत्र में बुध को गणेश जी से सम्बंधित माना जाता है ,अर्थात यदि
गणेश को अनुकूल बनाया जाए नियंत्रित किया जाए तो बुध के प्रभाव पर भी प्रभाव पड़ेगा
और इसके प्रभाव को नियंत्रित या बलि किया जा सकता है |गणेश जी आज्ञा चक्र के देवता
है और उस पर नियंत्रण करते है ,यदि इन्हें नियंत्रित करने अर्थात आज्ञा चक्र को
नियंत्रित करने का प्रयास किया जाए तो मानसिक क्षमता ,आत्मविश्वास ,विचारो का
केन्द्रीकरण बढ़ जाता है ,यह अकाट्य तथ्य है की यदि प्रबल आत्मविश्वास -पूर्ण
एकाग्रता से मानसिक ऊर्जा को किसी निश्चित उद्देश्य के लिए प्रक्षेपित किया जाए तो
वह त्वरित कार्य करता है ,इसीलिए कहा जाता है की डाक्टर पर विश्वास,आशा रखने वाला जल्दी ठीक हो जाता है ,इसके पीछे मुख्य वजह उसका विश्वास से
उत्पन्न आत्मबल होता है ,,अर्थात यदि गणपति को साधा जाए तो बुध का प्रभाव
नियंत्रित होगा और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी |
मूलाधार की देवी काली को शनि-राहू-केतु का नियंत्रक माना जा सकता है ,इन सबसे उत्पन्न प्रभाव काली के
क्षेत्र के अंतर्गत आता है ,काली ही त्वचा और रक्त की उत्पत्ति करता है ,अतः यदि
इन्हें सबल किया जाए और ऊर्जा नियंत्रित की जाए तो उत्पन्न होने वाली त्वचा ,त्वचा
की प्रकृति पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और विकृति कम होने की संभावना बनेगी
,काली अनुकूल होने पर शनि -राहू-केतु
के प्रभाव भी नियंत्रित होगे ,अधिकतर त्वचा रोग इनके कारण ही अथवा काली के कारण ही
उत्पन्न होते है ,अतः यह उत्पत्ति रुक सकती है |
उपरोक्त के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला
जा सकता है की यदि गणेश जी और माता काली की उपयुक्त साधना /आराधना की जाए ,इनके
वस्तुओ का उपयोग बढ़ाया जाए,यथा श्वेतार्क मूल धारण करना ,विशिष्ट तिलक लगाईं जाए
,मूलाधार पर विशिष्ट तांत्रिक वनस्पतियों का लेप लगाया जाए ,इनकी ऊर्जा बधाई जाए
और बढ़ी ऊर्जा को नियंत्रित कर एक निश्चित दिशा में लक्षित रखा जाए तो त्वचा रोग पर
नियंत्रण किया जा सकता है,प्रतिरोधक क्षमता बढाई
जा सकती है ,ग्रहों के प्रभाव पर नियंत्रण किया जा सकता है ,,कभी-कभी त्वचा रोग वायव्य बाधाओं के कारण भी होता है ,यह क्षेत्र भी काली के
ही अंतर्गत आता है ,सभी वायव्य बाधाये और नकारात्मक शक्तियों का नियंत्रण काली ही
करती है ,अतः इनकी ऊर्जा बढ़ते ही यह प्रभाव भी समाप्त हो जाते है और इनसे उत्पन्न
सभी समस्याए भी ,|
[उपरोक्त
समस्त विश्लेषण व्यक्तिगत विचार है ,हमने अपने जानकारी के आधार पर विश्लेषित करने
का प्रयास किया है ,जरुरी नहीं की हर कोई सहमत हो ]
.............................................................................................हर-हर महादेव
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