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शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहते हैं और दुख हो या सुख दीर्घ काल तक देते हैं। यही सच है विवाह के सुखद, -दुखद, संतोषजनक, दीर्घ या लघु होने के मामले में भी। शनि सबसे धीरे चलने वाला ग्रह हैं। जहां चंद्रमा एक राशि में सवा दो दिन, सूर्य एक महीने, मंगल पैंतालिस दिन, बुध अट्ठाइस दिन, बृहस्पति तेरह दिन, शुक्र एक महीने, राहु व केतु डेढ़ वर्ष तक विचरण करते हैं, वहीं शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहते हैं। शनि कोई भी वस्तु दीर्घ काल तक देते हैं, यदि बीमारी दे रहे हैं तो लंबी बीमारी देते हैं, सुख देते हैं तो लंबा सुख देते हैं। यदि शनि शुभ होकर सप्तम स्थान से जुड़ें तो शादी लंबी चलती है। शनि की दृष्टि दोषपूर्ण होती है, इसलिए बहुत ही कम शुभ होती है।
सप्तम स्थान में शनि स्थित हों, शुभ अवस्था में हों तो वैवाहिक जीवन सुखद होता है। सप्तम स्थान से जब भी शनि जुड़ते हैं तो जीवन साथी की उम्र अपने से ज्यादा देते हैं, यदि अशुभ होकर जुड़ें तो एक से अधिक विवाह का योग तथा तलाक शुदा से विवाह का योग बनता है। सप्तम भाव का शनि यदि सूर्य से पीड़ित हो तो शादी में स्थिरता नहीं होती है। एक से अधिक विवाह होता है, परंतु वैवाहिक सुख नहीं होता है। सप्तम भाव में शनि स्थित हो तथा बृहस्पति की दृष्टि हो तो शादी में स्थिरता होती है, परंतु आपस में मनमुटाव रहता है। यदि शनि से मंगल अशुभ होकर जुड़ रहे हों तथा सप्तम भाव पीड़ित हो तो पति-पत्नी के बीच न्यायालय में विवाद चलता है, विद्रोह होता है, हत्या या आत्म हत्या के कारण वैवाहिक जीवन नष्ट होता है। सप्तम भाव में शनि उच्च के या बली चंद्रमा के साथ हों तो विधवा स्त्री के साथ विवाह होता है, यदि चंद्र बीच का हो तो नौकरानी के साथ प्रेम संबंध रहता है। यदि बली शनि राहु से पीड़ित हों तो जीवन साथी अमीर मिलेगा, परंतु आपस में अनबन रहेगी। यदि शनि अपने ही नक्षत्र में हो बली हो तो उत्तरार्द्ध का वैवाहिक जीवन अच्छा रहता है। यदि शनि बुध से पीड़ित हों तो जीवन साथी डरपोक होता है, परंतु बुध उत्तम स्थिति में हों तो जीवन साथी शिक्षित और विद्वान् होता है।
यह योग ज्योतिष शास्त्र में वर्णित योग है, परंतु कोई भी योग को देखने व फल बताने से पूर्व पूरी जन्मकुंडली का अध्ययन करना आवश्यक है। जैसे नैसर्गिक ग्रह मत्रि, कारक-मारक आदि लग्ननुसार देखना आवश्यक है। पति-पत्नी की कुंडलियों को सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के उपरांत ही इन संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय देना चाहिए। शनि यदि जन्मकुंडली में वैवाहिक जीवन में अड़चन पैदा कर रहे हैं तो शनि के उपाय करना आवश्यक है। उपाय भी लग्न के अनुसार ही होते हैं। सामान्य उपाय शनि के इस प्रकार हैंर् दशरथ कृत शनि स्रोत का पाठ, शिवजी का अभिषेक कराएं। शनि की वस्तुएं काला तिल, काला उड़द, लोहा, सरसों का तेल, काला वस्त्र, नीलम रत्न आदि का दान करें। शनि यंत्र का शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्र पद) में पूजन करें। अन्य उपायों में कुंभ विवाह, इंद्राक्षी स्रोत्र का पाठ भी अशुभता को दूर करते हैं। ...........................................................हर-हर महादेव
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