रविवार, 28 जनवरी 2018

तांत्रिक /ज्योतिषी पर लोगों की नकारात्मकता का प्रभाव पड़ता है

ज्योतिषी / तांत्रिक को लोगों के नकारात्मकता का प्रभाव भुगतना पड़ सकता है
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शास्त्रों में कहा गया है ,ज्योतिष अभिशापित विद्या है ,इसके सम्बन्ध में अनेक मत है और सम्बंधित कहानियां भी हैं | इसी प्रकार हम अनुभव करते हैं की अक्सर तंत्र साधना जुड़े अधिकतर लोगों के बाद के समय कष्टकर होने लगते हैं यदि वह सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं तो |बहुत बार हम सुनते हैं की तंत्र साधक असामयिक अथवा दुखद अंत का भी शिकार हो गए जबकि उनके यहाँ हजारों की भीड़ हुआ करती थी और लोगों को लाभ भी होते थे |कई बार हम पाते हैं की साधक अथवा ज्योतिषी के जीवन का पूर्वार्ध अच्छा रहा किन्तु वृद्धावस्था कष्टकर हो जाती है |अक्सर पाया जाता है की तंत्र अथवा ज्योतिष से जुड़े लोगों के परिवार को भी कष्ट उठाने पड़ते हैं अथवा संतान बिगड़ जाती है ,अथवा आकस्मिक दुर्घटनाएं होने लगती हैं[अपवाद हर जगह होते हैं ]|कभी कभी हम देखते हैं की ज्योतिषी-तांत्रिक के परिवार के स्थिति के कारण उनका उपहास भी होता है की जो अपना भाग्य नहीं सुधार सकता वह दूसरों के भाग्य क्या बतायेगा अथवा सुधारेगा |इनके पीछे अपने कारण हैं |जो व्यावहारिक तौर पर समझ में आता है और जो अनुभव हुआ है ,उनका विश्लेषण करने पर व्यक्तिगत रूप से मैं पाता हूँ की यह सब ऊर्जा का स्थानान्तरण के कारण होता है |प्रकृति के ऊर्जा चक्र में हस्तक्षेप के कारण होता है |प्रकृति के नियम तोड़ने के कारण होता है |भावना जुड़ाव से उत्पन्न ऊर्जा [नकारात्मक ]के स्थानान्तरण के कारण होता है |
ज्योतिषी के पास जब कोई जाता है तो वह अपने भाग्य की जानकारी के लिए जाता है जो की व्यक्ति के कर्मों से निर्धारित ग्रह स्थितियों के कारण बना होता है |सबसे पहले ज्योतिषी द्वारा यही प्रकृति के नियमों का उलंघन होता है की वह प्रकृति द्वारा निर्धारित भाग्य को व्यक्ति को बता देता है |दूसरा बड़ा उलंघन होता है की ज्योतिषी उपाय बताकर सम्बंधित भाग्य के कमी -अधिकता को प्रभावित करने का उपक्रम बता कर प्रकृति के नियमों में सीधा हस्तक्षेप कर देता है |यहाँ उपाय बताते प्रकृति के विरुद्ध कार्य हो जाता है |जब व्यक्ति उपाय करता है तो उसके दिमाग में ज्योतिषी भी घूम रहा होता है ,जिसके फलस्वरूप उपाय से उसके नकारात्मकता में तो कमी आती है पर ज्योतिषी की नकारात्मकता में वृद्धि संभव है अगर ज्योतिषी धार्मिक और सक्षम नहीं है तो |कारण है प्रकृति का नियम ,की उर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है न नष्ट की जा सकती है ,केवल उसकी प्रकृति में परिवर्तन किया जा सकता है |उपाय करने पर उपाय से उत्पन्न ऊर्जा का प्रभाव ग्रह से उत्पन्न उर्जा पर पड़ता है जिससे उसमे कमी आती है अथवा उसका प्रभाव निष्क्रिय होता है अथवा वह स्थानांतरित हो जाती है |यह नकारात्मक ऊर्जा ज्योतिषी की तरफ भी स्थानांतरित हो सकती है ,क्योकि वह भावनात्मक रूप व्यक्ति की तरफ से जुड़ा होता है |यद्यपि यह आवश्यक नहीं है |ज्योतिषी का ईष्ट प्रबल है अथवा उसका भाग्य बहुत अच्छा है तो वह इस नकारात्मक उर्जा को आने नहीं देता |पर ज्योतिषी प्रकृति के नियमों का उलंघन का दोषी तो हो ही जाता है |क्योकि प्रकृति किसी को अपने नियमों के उलंघन की इजाजत नहीं देती अतः इसके परिणाम भी मिलते ही हैं |यह कारण हो सकते हैं ज्योतिषी के प्रभावित होने के |इनके अतिरिक्त कुछ व्यावहारिक कारण भी होते हैं जो उनके ज्योतिषी बनने के कारण उत्पन्न होते हैं ,किन्तु दुसरे व्यक्ति से सम्बंधित होने के कारण उनका विवेचन यहाँ अनुपयुक्त होगा |
तंत्र साधक ,ज्योतिषी से भी अधिक प्रभावित होते हैं व्यक्ति के नकारात्मक ऊर्जा से ,क्योकि यह सीधे जुड़े होते हैं हर प्रकार से |तंत्र क्षेत्र ,शक्ति को नियंत्रित कर उपयोग करने का मार्ग है |तांत्रिक भी अपनी विभिन्न क्रियाओं से शक्ति उत्पन्न कर उनका उपयोग सम्बंधित व्यक्ति अथवा उसके कार्यों के लिए करता है |तांत्रिक कई प्रकार से इन सब से प्रभावित होता है |जब वह किसी को कोई उपाय बताता है किसी कष्ट से मुक्त होने का तो वह प्रकृति के नियमों में हस्तक्षेप करता है और प्रकृति के नियम तोड़ने का दोषी होता है |तांत्रिक के बताये उपाय करने में व्यक्ति अगर गलती करता है तो होने वाला व्यतिक्रम तुरंत तांत्रिक को प्रभावित कर सकती है ,क्योकि मार्गदर्शक अथवा मंत्रादी प्रदाता वही होता है |तांत्रिक अगर किसी के द्वारा किसी क्रिया हेतु कोई वस्तु-पदार्थ-वस्त्रादि लेता है तो उसके साथ व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा भी आती है ,जो तांत्रिक की सकारात्मक ऊर्जा का क्षय अथवा उसमे कमी करती है ,क्योकि नियम वही है ,ऊर्जा न उत्पन्न की जा सकती है न नष्ट की जा सकती है केवल स्वरुप बदल सकता है अथवा स्थानान्तरण हो सकता है |तांत्रिक विभिन्न साधनाओं से जो ऊर्जा अर्जित करता है ,अगर उसका उपयोग व्यक्ति विशेष के लिए करता है तो उसकी ऊर्जा का क्षय होता है |ऐसा नहीं है की उसके लिए अक्षय ऊर्जा का स्रोत उपलब्ध होता है ,वह ऊर्जा साधना करके ही अर्जित कर सकता है |कभी कभी तो ऐसा भी होता है की अगर तांत्रिक सक्षम नहीं है तो व्यक्ति द्वारा प्रदत्त वास्तु के साथ आई नकारात्मक ऊर्जा तांत्रिक की स्थिति बिगाड़ देती है अथवा उस पर आक्रमण तक कर देती है अगर वह छेड़छाड़ की कोसिस करता है तो |तांत्रिक जब किसी को कोई टोटका-उपाय-मन्त्र बताता है तो ,उपाय करने वाले से वह जुड़ जाता है ,यहाँ उससे जुडी नकारात्मकता का भी जुड़ाव होता है और उपायोपरांत ऊर्जा स्थानान्तरण तांत्रिक की और संभव है |कभी -कभी तांत्रिक द्वारा बताई गयी अथवा की गयी क्रिया किसी अन्य तांत्रिक द्वारा उलट दिए जाने पर संबधित शक्ति दुगने शक्ति के साथ तांत्रिक पर लौटती है ,जहाँ वह अगर सक्षम नही होता तो उसका नुक्सान हो सकता है |क्योकि तंत्र में सब कुछ ऊर्जा और शक्ति का ही खेल होता है |
यह माना जाता है की जब आप किसी को कोई मंत्र बताते हैं तब स्वाभाविक तौर पर आप उस प्रक्रिया हेतु व्यक्ति के गुरु हो जाते हैं ,क्योकि आप एक ऊर्जा का सूत्र प्रदान करते हैं व्यक्ति को उपयोग हेतु |इस प्रकार आप उस मंत्र के प्रति उत्तरदाई हो जाते हैं प्रकृति के नियमो के अनुसार |उस मंत्र के प्रयोग से सम्बंधित किसी भी क्रिया का परिणाम आप पर भी पड़ता है |इसी तरह सभी प्रकार के उपाय बताने में होता है |यही कारण है की गुरु लोग शिष्य बनाने में विशेष सावधानी बरतते हैं ,क्योकि शिष्य के कर्म उन्हें प्रभावित करते हैं |यह बात ज्योतिषी और तांत्रिक दोनों पर लागू होती है |कर्मकांड अथवा पूजा-पाठ करने वाले इन सब से बचे रहते हैं क्योकि वह खुद सबकुछ करते हैं और केवल अपने कर्म के उत्तरदाई होते हैं ,किन्तु ज्योतिषी और तांत्रिक पर दुसरे के कर्मों का भी प्रभाव पड़ता है |कर्मकांड अथवा यज्ञ-अनुष्ठान-पूजा-पाठ करने वाले अधिक सुखी भी हो सकते हैं |
 ज्योतिषी अथवा तांत्रिक जो की समाज से जुड़े हों अथवा गृहस्थ हों ,वह दूसरों के लिए कार्य सामान्यतः जीविकोपार्जन अथवा शुल्क के लिए लिए लोगों के कार्य करते अथवा सलाह देते हैं |लोगों द्वारा दिया हुआ शुल्क या पैसा भी ज्योतिषी और तांत्रिक के लिए नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत होता है ,क्योकि जो नकारात्मकता [ग्रह बाधा, वास्तु दोष ,वायव्य बाधा ,अभिचार बाधा आदि ] से ग्रस्त होगा वाही परेशांन  होगा और वाही ज्योतिषी अथवा तांत्रिक के पास आएगा ,साथ ही दुखित भी होता है ,ऐसे में उसके द्वारा दिया गया पैसा भी नकारात्मक उर्जा लिए हो सकता है ,जिसके उपयोग से ज्योतिषी अथवा तांत्रिक नकारात्मकता से ग्रस्त हो सकता है |लोग कहते हैं की ज्योतिषी अथवा तांत्रिक का कार्य भलाई का है ,पुण्य का है जो लोगों की सहायता करता है |किन्तु ध्यान देने की बात है की ज्योतिषी अथवा तांत्रिक सामान्यतः किसकी सहायता करता है ,कौन उसके पास आता है |जो उनके पास आते हैं वह कर्म और भाग्य प्रभाव से पीड़ित होते हैं अर्थात या तो कर्म बिगड़े होते हैं या भाग्य बिगड़े होते हैं ,अर्थात वह अपने आज के अथवा पूर्व के कर्मों से उत्पन्न नकारात्मक उर्जा से ग्रस्त होते हैं |जो खुद नकारात्मकता से ग्रस्त हो उसकी सहायत से पुण्य कैसे होगा और भला कैसे होगा |यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है की आप तो उससे मूल्य लेते हैं ,फिर यह पुण्य कैसे ,भलाई कैसे |आप तो उस नाकारात्मकता से ग्रस्त से नकारात्मकता ही तो पायेंगे |वह तो आपको आशीर्वाद भी नहीं देता ,क्योकि उसने मूल्य चुकाया होता है ,अतः आपको आशीर्वाद भी प्राप्त नहीं होता |अगर वह आशीर्वाद देता भी है तो क्या उसके आशीर्वाद में पवित्रता -सात्विकता है |आज के समय में शुद्ध- सात्विक-पवित्र-आस्थावान-अच्छे कर्म वाले व्यक्ति बहुत कम हैं ,इसकी सहायता से ,इनकी आशीर्वाद से पुण्य जरुर मिलता ,लाभ मिलता है |पर हैं कितने |अधिकतर तो ऐसे आते हैं जिनके आशीर्वाद में भी नकारात्मकता हो सकती है ,क्योकि उनके पास धनात्मक ऊर्जा होती ही नहीं |जिनके पास आशीर्वाद की शक्ति होगी ,वह प्रबल धार्मिक ,आस्थावान ,कर्मयोगी होगा आज उसकी परिस्थितियां कुछ भी हों और वह तो आपके पास आएगा ही नहीं ,क्योकि वह ईश्वर से मांगेगा जो मांगना है ,या कर्म में भरोसा करेगा |उसे तो अपनी आस्थ-विश्वास-आत्मबल और कर्म पर भरोसा होगा |अर्थात जो आपके पास आएगा वह इन कमियों से ग्रस्त होगा |तो उससे आपको मूल्य के अतिरिक्त कुछ मिलना मुश्किल है |यद्यपि अपवाद हर जगह होते हैं ,कुछ अच्छे और आशीर्वाद की शक्ति से संपन्न लोग भी मिलते हैं जिनसे आपको लाभ होता है और आप वास्तविक भलाई भी करते हैं किन्तु प्रतिशत बहुत कम होता है अर्थात अधिकतर आपकी नकारात्मकता बढाने वाले ही आते हैं |
यदि ज्योतिषी अथवा तांत्रिक सीधे किसी के मामलों में हस्तक्षेप न करें अथवा खुद अधिकतम करने की कोसिस करें तो कुछ प्रभाव में कमी हो सकती है |ज्योतिषी तांत्रिक को सदैव बेहद आस्थावान होना चाहिए और ऐसे यत्न करने चाहिए की उनमे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहे और वह बढ़ता रहे |इसके लिए ईष्ट प्रबलता अति आवश्यक है |कम ही सही पर गंभीर साधना करनी चाहिए ,जिससे वह धनात्मक ऊर्जा वाला रहे |अन्यथा उसके कष्ट प्राप्ति की सम्भावना बढती जाती है |जैसा की हमने बहुत सी कहानियों में सुना है की अमुक सिद्ध या महात्मा को आशीर्वाद तो दे दिया किन्तु खुद उस समस्या से पीड़ित होगया |यह इसी ऊर्जा स्थानान्तरण का परिणाम होता है |

[प्रस्तुत विचार पूर्णतया व्यक्तिगत हैं ,सभी के लिए उपयुक्त हों अथवा हर कोई सहमत हो आवश्यक नहीं ,जिन्हें अनुपयुक्त लगे अथवा जो असहमत हों कृपया क्षमा करें  ]...........................................................................हर-हर महादेव  

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