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काली ,तारा ,षोडशी ,भुवनेश्वरी ,भैरवी ,छिन्नमस्ता ,बगलामुखी ,धूमावती ,मातंगी और कमला ,ये दस महाविद्यायें कही गयी हैं |इन महाविद्याओं का मूल सम्बन्ध शक्तिपीठों से भी हैं यद्यपि शक्तिपीठ ५१ अथवा १०८ कहे जाते हैं किन्तु सभी से किसी न किसी महाविद्या का ही स्वरुप जुड़ा है |इन शक्तिपीठों की उपासना भी महाविद्याओं के ही समान है और शक्तिपीठों की देवियों का महत्त्व भी लगभग समान है |तंत्र साधना के लिए काम रूप कामाख्या अति प्रसिद्ध शक्तिपीठ है जहाँ नील पर्वत पर स्थित माँ कामाख्या का पवित्र धाम है |यहाँ तंत्र साधना में महाविद्या षोडशी त्रिपुरसुन्दरी का माँ कामाख्या रूप में प्राकृतिक योगदान मानव मस्तिष्क की सोच तथा समझ से परे है।माँ कामाख्या को काली और त्रिपुरा षोडशी का सम्मिलित रूप माना जाता है और दोनों ही महाविद्याओ के साधक इनकी भी साधना करते हैं | तंत्र-साधना का प्रथम सोपान कुमारी पूजन विधान इसी स्थान पर किया जाता है। जो साधक तंत्र साधना में प्रवेश करते हैं उन्हें सर्वप्रथम इस स्थान पर कुमारी पूजन अनिवार्य रूप से करना होता है। अन्य साधनाओं में अम्बूवाची योग में यहां सर्वाधिक सिद्धिदायी साधना विश्व प्रसिद्ध है।
तंत्र साधना में शीघ्र सिद्धि-प्राप्ति हेतु श्मशान में साधना की जाती है। इसके लिए महाश्मशान ही प्रशस्त हैं। जाग्रत श्मशान में साधना भी शीघ्र फलदायी कही गई है। चक्रतीर्थ श्मशान, उज्जैन तथा मणिकर्णिका घाट जाग्रत श्मशान हैं जबकि बंगाल के वीरभूमि जिले में रामपुराहाट के समीप तारापीठ का श्मशान महाश्मशान कहालाता है। तंत्र साधना की पराकाष्ठा इसी श्मशान की साधना में निहित है।
महाविद्याओं में माँ तारा ऐसी देवी हैं जिन्हें भगवान राम से जोड़ा जाता है और वशिष्ठ से भी ,किन्तु यह वाही वशिष्ठ हैं यह संदेहात्मक तथ्य है ,क्योकि तारा से सम्बंधित वशिष्ठ का काल समय मेल नहीं खाता |महाविद्या में तारा महाविद्या बौद्ध धर्म में भी पूजित हैं भिन्न नाम से |इन्हें नील सरस्वती भी कहा जाता है और यह काली के ही सामान एक उग्र शक्ति हैं जो प्रतिक्षण विनाश की देवी है ,जबकि काली सम्पूर्ण विनाश की |मां तारा को विपदुद्धारिणी तारा-, विपदुद्धारिणी मां तारा, तारिणी मां तारा कहा जाता है। सभी आपदाओं से, विपदाओं से तारने वाली मां तारा मृत्यु के पश्चात भी तारने वाली शक्ति के चरण कमल इस स्थान पर महा श्मशान में प्रतिष्ठित हैं |जहां साधना, पूजन, हवन आदि कार्य किया जाता है। महापुरुषों व अवतारों की साधना स्थली: भगवान राम, बुद्ध, महावीर, ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, देवगुरु बृहस्पति, महर्षि दधीचि जैसे महाऋषियों ने इस स्थान पर साधनाएं कर सिद्धियां प्राप्त की थीं। वामाक्षेपा नामक महान तांत्रिक जिन्हें मां तारा ने स्वयं स्तन पान कराया था वह इस स्थान के प्रथम पूज्य महामानव हैं। तंत्र के षटकर्मों का अध्ययन इसी श्मशान भूमि में साधना करके ही किया जा सकता है। प्रत्येक अमावस्या को यहां मेला जैसा लगता है। सबसे बड़ा मेला और सिद्धि-प्राप्ति का वार्षिक महोत्सव प्रत्येक भाद्रपद माह की अमावस्या पर होता है। इस महापर्व पर, ग्रहण की अमावस्या पर्व पर तथा दीपावली की अमावस्या पर अनुभवी और विशिष्ट तांत्रिकगण अपने शिष्यों को यहां गुप्त तंत्र सिद्धियां-प्राप्ति हेतु गुह्यतम साधनाएं सम्पन्न कराते हैं। इस स्थान में अनेक तंत्र साधिकाएं जिन्हें भैरवियां कहा जाता है, निवास करती हैं तथा अनेक तंत्र साधकों की साधनाओं में सहायता करती हैं। इस स्थान पर अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए अलग-अलग साधनों से हवन सामग्रियों से विभिन्न विशेष मुहूर्तों में हवन किया जाता है। सर्वमनोकामनाओं की पूर्ति, भूमि, भवन, वाहन, सुख, स्मृति, ऋणनाश, क्लेश नाश, दाम्पत्य, संतान, परिवार, कुटुम्ब आदि के सुख के लिए शत्रु नाश, वाद-विवाद, चुनाव, प्रतियोगिताओं में, परीक्षा में विजय व सफलता के लिए आरोग्य-प्राप्ति, ग्रह शांति, रोग नाश तथा शांति आदि की प्राप्ति सहित अनेक कार्यों हेतु तंत्र विधि से शीघ्र फलदायी हवन किया जाता है। कलियुग में तंत्र साधना शीघ्र फलदायी होती है वेदों के ये शब्द इसी स्थान पर सत्य अवश्य सिद्ध होते हैं। ऐसा इस स्थान के साधकों का मानना है। मां तारा त्वरित फल देने वाली आशुसिद्धिदायी दयामयी माता है।किन्तु ध्यान देने योग्य है माँ तारा साधना बहुत ही उच्च कोटि कि साधना है | इस साधना को सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर ही गुरू के मार्ग दर्शन मेँ ही संपन्न करना चाहिए । बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है क्योंकि तारा एक उग्र शक्ति है और प्रतिक्षण विनाश के बाद सृष्टिरत रहती हैं |...................................................................हर-हर महादेव्
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