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शनि ग्रह
पृथ्वी से सबसे दूर का मूल ग्रह है जिसे सात मूल ग्रहों में स्थान दिया गया है
|पौराणिक मान्यता के अनुसार शनि का जन्म सूर्य की द्वीतीय पत्नी छाया से हुआ है
|ज्योतिषीय मतानुसार यह ग्रह पृथ्वी से ७९१०००००० मील की दूरी पर है |इसका व्यास
७१५०० मील [मतान्तर से ७४९३२ मील ]मन गया है |सूर्य से इसकी दूरी ८८६०००००० मील है
|यह अपनी धुरी पर १० घंटे ३० मिनट में घूमता है जबकि सूर्य के चारो ओर परिक्रमा
करने में इसे प्रायः १०७५९ दिन ६ घंटे अर्थात लगभग २९ वर्ष ६ महीने लगते हैं |यह
अत्यंत मंद गति से चलने वाला ग्रह है इसी कारण इसके नाम मंद तथा शनैश्चर अर्थात
शनै शनै चलने वाला रखे गए हैं |सूर्य के समीप पहुचने पर इसकी गति लगभग ६० मील
प्रतिघंटा ही रह जाती है |इसके चारो ओर तीन वाले हैं और इसके १० चन्द्रमा अर्थात
उपग्रह हैं |यह अन्य ग्रहों की अपेक्षा हल्का और ठंडा है |
शनि को काल
पुरुष का दुःख माना गया है और ग्रह मंडल में इसे सेवक का पद प्राप्त है |यह कृष्ण
वर्ण ,वृद्ध अवस्था वाला ,शूद्र जाती ,नपुंसक लिंग ,आलसी स्वरुप ,तमो गुणी, वायु
तंत्व और वात प्रकृति ,दारुण और तीक्ष्ण स्वाभावि होता है |इसका धातु लोहा ,वस्त्र
-जीर्ण ,अधिदेवता -ब्रह्मा ,दिशा पश्चिम है |यह तिक्त रस का ,उसर भूमि का ,शिशिर
ऋतू का प्रतिनिधि माना जाता है |इसका रत्न नीलम है |यह पृष्ठोदयी ,पाप संज्ञक
,सूर्य से पराजित होता है |यह कूड़ा घर का प्रतिनिधि ,संध्याकाळ में बली ,वेदाभ्यास
में रूचि न रखने वाला ,कूटनीति -दर्शन -क़ानून जैसे विषयों में रूचि रखने वाला है
|इसका वाहन भैंसा ,वार -शनिवार ,प्रतिनिधि पशु काला घोडा ,भैंसा ,बकरी हैं |शनि का
जीव शरीर में हड्डी ,पसली ,मांस पेशी ,पिंडली ,घुटने ,स्नायु ,नख तथा केशों पर
आधिपत्य माना गया है |यह लोहा ,नीलम ,तेल ,शीशा ,भैंस ,नाग ,तिल ,नमक ,उड़द ,बच तथा
काले रंग की वस्तुओं का अधिपति है |यह कारागार ,पुलिस ,यातायात ,ठेकेदारी ,अचल
संपत्ति ,जमीन ,मजदूर ,कल कारखाने ,मशीनरी ,छोटे दुकानदार तथा स्थानीय संस्थाओं के
कार्य कर्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है |
बलवान शनी
विशिष्टता ,लोकप्रियता ,सार्वजनिक प्रसिद्धि एवं सम्मान को देने वाला भी होता है
|इसके द्वारा वायु ,शारीरिक बल ,उदारता ,विपत्ति ,दुःख ,योगाभ्यास ,धैर्य ,परिश्रम
,पराक्रम ,मोटापा ,चिंता ,अन्याय ,विलासिता ,संकट ,दुर्भाग्य ,व्यय ,प्रभुता
,ऐश्वर्य ,मोक्ष ,ख्याति ,नौकरी ,अंग्रेजी भाषा ,इंजीनियरी ,लोहे से सम्बंधित काम
,साहस तथा मूर्छा आदि रोगों के सम्बन्ध में विचार किया जाता है |शनि की साधे साती
और ढैया अपना चरम प्रभाव प्रकट करती है |सूर्य के साथ शनि का वेध नहीं होता तथा ५
,९ ,१२ में इसे वेध प्राप्त होता है जबकि ३ -६ -११ में यह अच्छा प्रभावी माना जाता
है |इसकी स्वराशियाँ मकर और कुम्भ हैं तथा यह समय समय पर मार्गी और वक्री होता
रहता है |यह तुला राशि के २० अंश तक परम उच्चस्थ और मेष राशि के २० अंश तक परम
नीचस्थ होता है जबकि कुम्भ के २० अंश तक परम मूल त्रिकोणस्थ होता है |लग्न से
सातवें भाव में ,तुला मकर एवं कुम्भ राशि में ,स्वद्रेष्काण ,दक्षिणायन ,शनिवार
,राश्यंत में और कृष्ण पक्ष का वक्री शनी बलवान माना जाता है |बुध ,शुक्र ,राहू
तथा केतु इसके मित्र जबकि सूर्य मंगल तथा चन्द्रमा से यह शत्रुता रखता है ,गुरु के
साथ यह समभाव रखता है |यह जहाँ बैठता है वहां से तृतीय ,सप्तम और दशम को पूर्ण
दृष्टि से देखता है |यह सूर्य के बाद बलवान ग्रह है और इसकी गणना पाप ग्रहों में
की जाती है |यह जातक के जीवन पर प्रायः ३६ से ४२ वर्ष के बीच अपना विशेष प्रभाव
प्रकट करता है |गोचर में यह राशि संचरण के ६ माह पहले से ही अपना प्रभाव प्रकट
करना आरम्भ कर देता है और एक राशि पर ३० माह तक रहता है |जिस राशि पर होता है उसके
अगले और पिछले दोनों राशियों को प्रभावित करता है |यह राशि के अंतिम भाग में अपना
पूर्ण फल देता है |........................................................................हर
-हर महादेव
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