Wednesday, 24 January 2018

ज्योतिष के उपाय भाग्य बदल सकते है?

ज्योतिषीय उपाय भाग्य बदल सकते है
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        अक्सर यह प्रश्न सामान्यजन में यहाँ तक की ज्योतिषियों में भी उठता रहता है की क्या वास्तव में ज्योतिषीय उपाय भाग्य बदल सकते हैं अथवा क्या वास्तव में इनसे ग्रह प्राभावों पर कोई अंतर पड़ता है |इस सम्बन्ध में सबके अनुभव अलग अलग रहे हैं ,सबके अलग विचार होते हैं |बहुत से लोगों का मानना है की भाग्य नहीं बदला जा सकता ,चाहे जितने भी उपाय किये जाएँ |वैदिक ज्योतिष को मानने वाले मानते हैं की ज्योतिषीय उपायों से भाग्य में परिवर्तन संभव है |यदि यह सत्य होता की ज्योतिषीय उपायों से भाग्य में परिवर्तन नहीं किया जा सकता तो उपायों  का कोई औचित्य नहीं होता ,न इन्हें इतना महत्वपूर्ण स्थान ज्योतिष में सदैव से प्राप्त होता | |आधुनिक ज्योतिष की कुछ पद्धतियों में उपायों की अवधारणा ही नहीं है जैसे कृष्णमूर्ति पद्धति और लाल किताब जैसी पद्धति उपायों पर ही आधारित है |यह पूर्णतः अनुभव और अनुसंधान पर आधारित विषय है जबकि ज्योतिषी के लिए दोनों ही स्थितियां विषम होती हैं ,क्योकि अगर उपाय से भाग्य बदलता है तो उपाय करने पर ज्योतिषी की स्थायी भविष्यवाणी गलत हो सकती है ,क्योकि उसने तो जन्मकालीन ग्रहों के आधार पर भविष्यवाणी की होती है |अगर उपाय काम नहीं करते तो इनको बताने का कोई औचित्य ही नहीं और फिर ज्योतिष की प्रासंगिकता ही क्या है ,जो होना है वह तो होगा ही |इस प्रकार दोनों और विरोधाभास है |अब हम इनका विश्लेषण करते हैं और इन्हें तर्क की कसौटी पर कसते हैं |
............................सर्व प्रथम तो यह देखते है की भाग्य है क्या |माना जाता है की भाग्य व्यक्ति के पूर्व जन्मो के कर्मो का परिणाम होता है जिसके अनुसार व्यक्ति को सुख-दुःख प्राप्त होता है |अपने पूर्वकृत कर्मो के अनुसार व्यक्ति ग्रहों की विशिष्ट स्थिति में जन्म लेता है जो अपनी स्थिति के अनुसार व्यक्ति के भाग्य का निर्माण करते है अर्थात अपने पूर्वकृत कर्मो के अनुसार जब व्यक्ति जन्म लेता है तो उस समय जो तात्कालिक ग्रह स्थितिया होती है उनके रश्मियों के प्रभावानुसार उसके भाग्य का निर्माण होता है |जिस ग्रह की जीतनी और जैसी रश्मि उस स्थान विशेष पर पड़ रही होती है ,वैसा ही भाग्यबनता है ,शारीरिक -मानसिक विकास होता है और तदनुसार कर्म होता है और फल मिलता है ,| यही संभवतः भाग्य कहा जाता है ,| इन्ही के स्थिति विशेष वश उसे भाग्यानुसार परिवार और सहयोगी मिलते है |
...........................यहाँ विचारणीय  है की जन्म काल में कोई ग्रह यदि अस्त है तब उसकी रश्मि पृथ्वी तक कम पहुचेगी क्योकि सूर्य किरणों से उसकी रश्मि रोकी या परावर्तित की जाती होती है | उस समय ,अर्थात वह ग्रह कमजोर माना जाता है |इसी आधार पर जन्म काल में जिस ग्रह की जीतनी रश्मि की जीतनी मात्रा स्थान विशेष पर पहुच रही होती है उसी आधार पर मोटे तौर पर भाग्य की गणना कर दी जाती है ,और कमोवेश वैसा प्रभाव पुरे जीवन दीखता भी है यदि कोई उपाय किये जाए | इन्ही रश्मियों की मात्र के अनुसार उस ग्रह की बल गणना होती है अर्थात बल की गणना के नियम यही निश्चित करते हैं की ग्रह की कितनी मात्रा व्यक्ति विशेष को प्राप्त होगी या प्रभावित करेगी |,जन्मकालिक ग्रह रश्मियों की मात्रा और प्रभाव के अनुसार व्यक्ति का मष्तिष्क-शरीर का विकास आदि होता है ,तदनुरूप कर्म होता है और भाग्य प्रभावित रहता है |अब सोचने वाली बात है की जब अस्त ग्रह सूर्य के प्रभाव से बाहर निकल जाता है तो उसकी रश्मियों की मात्रा बढ़ जायेगी ,तो क्या वह अधिक प्रभाव नहीं डालेगा ,,,अथवा वह ग्रह सूर्य के प्रभाव से भी निकला हो और गोचरवश भी प्रभावी अवस्था में आये तो क्या उसका प्रभाव नहीं बढ़ जाएगा और परिणाम में अंतर नहीं आजायेगा |इसी प्रकार उस अस्त ग्रह के लिए रत्न धारण करवा दिया जाए तो क्या उसकी रश्मियों की मात्रा नहीं बढ़ जायेगी ,जबकि कुंडली का भाग्य तो रत्न आदि से बढ़ी मात्रा देखते हुए नहीं बताई गयी होती है
..........................इसी प्रकार यदि कोई ग्रह जन्म समय में वक्री है तो माना की वह शारीरिक -मानसिक संरचना में उसी प्रकार निर्माण करवाएगा ,किन्तु जब वह मार्गी होकरगोचर में सचरण करेगा तो क्या कर्म में परिवर्तन नहीं करेगा ,जबकि उसके फल तो वक्री के अनुसार बताए गए थे |यदि इसी ग्रह का रत्न पहना दिया जाए तो क्या रश्मियों की मात्रा बढ़ाने से यह अधिक प्रभावी होकर कर्म में भारी परिवर्तन नहीं करेगा |जब कर्म बदलेगा तो निश्चित ही परिणाम बदलेगा फलतः भाग्य में भी परिवर्तन होगा |
........................मेरा मानना है की ज्योतिष का विकास व्यक्ति के जन्म कालिक स्थिति से भाग्य का आकलन कर उसमे सुधार और परिवर्तन के लिए हुआ है |भाग्य जानने की तो अनेक विधिय थी जैसे रामल,हस्तरेखा ,कर्ण-पिशाचिनी ,पंचान्गुली साधना आदि-आदि ,किन्तु ज्योतिष जैसी समग्रता और उपाय नहीं होने से इसके जैसी मान्यता और विकास नहीं हो सका |ज्योतिष का प्रभाव अधिक इसीलिए माना गया है की इससे भाग्य में परिवर्तन संभव है |बताने को तो कोई अन्य विधि भी भाग्य बता सकती है |.
.....................जब रत्न या वनस्पति पहनाई जाती है तो इससे सम्बंधित ग्रह की रश्मियों के प्रभाव पर अंतर आता है वे कम या अधिक प्रभाव डालते है|उनका शारीर में अवशोषण कम या अधिक हो जाता है |इन उपायों से व्यक्ति में रासायनिक परिवर्तन होते है और उसके मानसिक-शारीरिक स्थिति में आतंरिक परिवर्तन होने लगता है फलतः सोच और कर्म बदल जाते है |जब सोच और कर्म बदलेगे तो परिणाम बदल जायेगे फलतः भाग्य में भी परिवर्तन दिखेगा |,,,,,,,,इसी प्रकार मन्त्र जप ,पूजा -अनुष्ठान से एक ऊर्जा उत्पान होती है ,जो शारीरिक-मानसिक परिवर्तन करने के साथ ही वातावरण में भी परिवर्तन करती है |इनके परिणाम स्वरुप भी शारीर में रासायनिक परिवर्तन होते है ,शारीर की क्रिया और सोच बदल जाती है ,वातावरणीय घटकों की प्रकृति में भी परिवर्तन होता है ,कर्म व् कार्यक्षेत्र दोनों प्रभावित होता है |नए आभामंडल का निर्माण होता है |कर्म की दिशा बदलने से फल की दशा बदल जाती है ,,वातावरण बदलने से जीवन स्तर और परिवेश बदल जाता है फलतः भाग्य में भी परिवर्तन देखा जाता है |यहाँ मोटे तौर पर भाग्य तो जन्म कालिक ही रहता है किन्तु मात्रा और प्रतिशत में अंतर जाता है |जहा कुछ नहीं होगा वह कुछ अवश्य हो जाएगा ,जहा बहुत अधिक होगा वह कमी भी जायेगी उपाय से |.
..........................यहाँ यह अवश्य है की जन्म कालिक ग्रह स्थितियों वश यदि किसी अंग का विकास ही नहीं हुआ है या कोई कमी रह गयी है या कोई शारीरिक-मानसिक कमी रह गयी है जन्म से ही तो तो यह बाद में ग्रह रश्मियों की मात्रा घटाने-बढाने या शांत करने से भी परिवर्तन नहीं कर सकते क्योकि शारीरिक उत्पत्ति और विकास का एक निश्चित समय होता है और उस समय की स्थितियों के कारण वह विकास या उत्पत्ति हो चुकी होती है |जो मूल स्थिति प्राप्त हो चूका है उसमे सुधार या परिवर्तन की गुंजाइश रहती है ,नया विकास संभव नहीं क्योकि शारीर की ग्राह्यता निश्चित हो चुकी होती है |.

...........................इन विषयो में ज्योतिषी की भविष्यवाणी सत्य ही होती है |ज्योतिषी की भविष्यवाणी उपायों को दृष्टिगत रखते हुए नहीं की हुई होती है |वह इस आधार पर भविष्यवाणी करता है की यदि कोई कृत्रिम या मानव प्रेरित उपाय नहीं किये जाए अर्थात सबकुछ प्राकृतिक ही रहे तो भविष्य में ऐसा होगा |ज्योतिषी सही होता है |उपाय किये जाने पर या अलग वातावरण या प्राकृतिक कारणों से परिवर्तन होता है |इसीलिए तो उपाय बताए जाते है की ऐसा होने वाला है ,उपाय करने पर इसमे ऐसा परिवर्तन हो जाएगा |..........................रश्मियों की मात्रा बढाने-घटाने या शांत करने से व्यक्ति में परिवर्तन होना और फिर कर्म और वातावरण प्रभावित होकर उसी अनुसार आभामंडल और परिणाम प्राप्त होना उपायों के कारण होता है |अतः उपायों से भाग्य में परिवर्तन होता है |आवश्यकता सही पकड, ज्ञान ,गंभीर प्रयास और समझ की होती है ..........................................................[[पूर्णतया व्यक्तिगत विचार अलौकिक शक्तियां वेबसाईट के लिए लिखे गए है , किसी ग्रन्थ या व्यक्ति से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है ]]...............................................................................................................................हर-हर महादेव

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