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राहू -केतु दोनों पापी ग्रह हैं जिनका स्वतंत्र भौतिक अस्तित्व तो नहीं है
किन्तु यह सभी ग्रहों के प्रभावों को प्रभावित करते हैं |अधिकतर अशुभता व्यक्ति के
जीवन में इनके ही कारण आती है यद्यपि कारण मूल ग्रहों से उत्पन्न होता है |यह छोटे
से कारण को इतना बधा देते हैं की व्यक्ति के लिए वह धातक हो जाता है |इनके
स्वतंत्र गुण न होने पर भी यह क्रूर कर्म और पाप प्रभाव को अधिक बढाते हैं |कभी
कभी यह व्यक्ति को लाभ भी देते हैं किन्तु तरीका उल्टा होता है |धन भी देब्गे तो
सही रास्ते से नहीं |इनके पाप प्रभावों के कारण ही इन्हें अधिकांश भयकारक माना
जाता है |
राहु और केतु ग्रह से पीड़ित व्यक्ति को रोजाना कबूतरों को बाजरा और काले तिल मिलाकर खिलाना चाहिए। कुष्ठ रोगियों को दो रंग वाली वस्तुओं का दान करें। मोर पंख की पूजा करें या हो सके तो उसे हमेशा अपने पास रखें। गिलहरी को दाना डालें। दो रंग के फूलों को घर में लगाएं और गणेशजी को अर्पित भी करें। हर मंगलवार या शनिवार को चीटियों को मीठा खिलाएं।
राहु
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१॰ ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
२॰ हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
३॰ अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है।
४॰ जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
५॰ दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त
के
समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीम करना चाहिए।
६॰ यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
७॰ झुठी कसम नही खानी चाहिए।: जौ या मूली या काली सरसों का दान करें या अपने सिरहाने रख कर अगले दिन बहते हुए पानी में बहाए ,
राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।राहु के अशुभ होने पर हांथ के नाखून अपने आप टूटने लगे, राजक्ष्यमा रोग के लक्षण प्रगट होवे, दिमागी संतुलन ठीक न रहे, शत्रुओं के चाल पे चाल से मुश्किल बढ़ जावे ऐसी स्थिति में जौं या अनाज को दूध में धो कर बहते पानी में बहायें, कोयला को पानी में बहायें, मूली दान में देवें, भंगी को शराब,मांस दान में दें । सिर में चुटैया रखें, भैरव जी की की उपासना करें ।
राहु के लिए : समय रात्रिकाल
भैरव पूजन या शिव पूजन करें। काल भैरव अष्टक का पाठ करें।
राहु मूल मंत्र का जप रात्रि में 18,000 बार 40 दिन में करें।
मंत्र : 'ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:'।
दान-द्रव्य : गोमेद, सोना, सीसा, तिल, सरसों का तेल, नीला कपड़ा, काला फूल, तलवार, कंबल, घोड़ा, सूप।
शनिवार का व्रत करना चाहिए। भैरव, शिव या चंडी की पूजा करें। 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
केतु
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१॰ भिखारी को दो रंग का कम्बल दान देना चाहिए।
२॰ नारियल में मेवा भरकर भूमि में दबाना चाहिए।
३॰ बकरी को हरा चारा खिलाना चाहिए।
४॰ ऊँचाई से गिरते हुए जल में स्नान करना चाहिए।
५॰ घर में दो रंग का पत्थर लगवाना चाहिए।
६॰ चारपाई के नीचे कोई भारी पत्थर रखना चाहिए।
७॰ किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल अपने घर में लाकर रखना चाहिए।
केतु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, केतु के नक्षत्र (अश्विनी, मघा तथा मूल) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं |इसके अशुभ प्रभाव में होने पर मूत्र एवं किडनी संबंधी रोग होवे, जोड़ों का रोग उभरे, संतान को पीड़ा होवे तब अपने खाने में से कुत्ते को हिस्सा देवें, तिल व कपिला गाय दान में दें, कान छिदवायें व श्री विघ्नविनायक की आराधना करें ।: मिट्टी के बने तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ या सवा किलो आटे को भुनकर उसमे गुड का चुरा मिला दे और ४३ दिन तक लगातार चींटियों को डाले, या कला सफ़ेद कम्बल कोढियों को दान करें या आर्थिक नुकासन से बचने के लिए रोज कौओं को रोटी खिलाएं. या काला तिल दान करे,|
केतु के लिए : समय रात्रिकाल
भगवान गणेशजी की पूजा करें। गणेश के द्वादश नाम स्तोत्र का पाठ करें। केतु के मूल मंत्र का रात्रि में 40 दिन में 18,000 बार जप करें।
मंत्र : 'ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:'।
दान-द्रव्य : लहसुनिया, सोना, लोहा, तिल, सप्त धान्य, तेल, धूमिल, कपड़ा, फूल, नारियल, कंबल, बकरा, शस्त्र।
बृहस्पतिवार व्रत एवं गणेशजी की पूजा करें। 9 मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
हमारे केंद्र पर निर्मित सर्वसौख्य प्रदायक ,सर्वदुष्प्रभाव नाशक डिब्बी के पूजन मात्र से राहू -केतु की शान्ति भी होती है ,यह प्रसन्न भी होते हैं ,इनके दुष्प्रभाव भी कम होते हैं जिससे इनके द्वारा उत्पन्न समस्त कष्टों यहाँ तक की कालसर्प योग जैसे दुष्प्रभावों का भी शमन होता है |...................................................हर हर महादेव
हमारे केंद्र पर निर्मित सर्वसौख्य प्रदायक ,सर्वदुष्प्रभाव नाशक डिब्बी के पूजन मात्र से राहू -केतु की शान्ति भी होती है ,यह प्रसन्न भी होते हैं ,इनके दुष्प्रभाव भी कम होते हैं जिससे इनके द्वारा उत्पन्न समस्त कष्टों यहाँ तक की कालसर्प योग जैसे दुष्प्रभावों का भी शमन होता है |...................................................हर हर महादेव
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