Monday, 15 January 2018

भारत के मुख्य श्राद्ध तीर्थ [ स्थान ]

भारत के मुख्य श्राद्ध तीर्थ [ स्थान ]
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शास्त्रों में पिंडदान के लिए तीन जगहों को सबसे विशेष माना गया है। इनमें बद्रीनाथ भी है। बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है। हरिद्वार में नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दूर गया में साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है। पितृ-पक्ष मेला। कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। 
पिंडदान की परंपरा सृष्टी के रचनाकाल से ही शुरू है। जिसका वर्णन वायु पुराण, अग्नि पुराण और गरुण पुराण में है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने अपने पूर्वजों का इसी फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया था। और त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ के मरने के बाद यहीं पिंडदान किया था। यहां सीताकुंड नाम से एक मंदिर भी है। 
एक वक्त देश में श्राद्ध के लिए 360 वेदियां थीं जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची हैं। हालांकि देश में श्राद्ध के लिए गया, बद्रीनाथ, हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, पुष्कर सहित 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। इन्हीं स्थानों में एक महत्वपूर्ण जगह है चित्रकूट। 
श्राद्ध तीर्थ के तौर पर चित्रकूट की कथा भगवान राम से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि राम का वनवास न सह पाने से जब राजा दशरथ का निधन हुआ तब राम चित्रकूट में थे। उन्होंने चित्रकूट के ही घाट पर पिता का श्राद्ध किया था। 
राजा दशरथ के श्राद्ध से जुड़ी अलग-अलग कहानियों में एक तीर्थ राज प्रयाग से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि भगवान राम ने त्रिवेणी तट पर ही अपने पूर्वजों का तर्पण किया था। कहा जाता है कि यहां राजाराम के पंडों की वो पीढ़ी आज भी है, जिसे वो अयोध्या से लेकर आए थे। प्रयाग के तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक भगवान विष्णु चरण भी इलाहाबाद में ही विराजमान माने जाते हैं। इसीलिए श्रद्धालु अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना लेकर यहां आते हैं। 
पितरों के मुक्ति के स्थानों का जिक्र काशी के बिना अधूरा ही है। काशी के अति प्राचीन पिशाच मोचन कुंड पर बहुत विशेष माना जाना वाला त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। त्रिपिंडी श्राद्ध पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद होने वाली व्याधियों से मुक्ति दिलाता है। श्राद्ध की इस विधि और पिशाच मोचन तीर्थस्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है। 
मध्यप्रदेश के जबलपुर के ग्वारीघाट में नर्मदा के तट पर लोग पितरों के लिए पिंडदान करते हैं, जो श्राद्ध के लिए तय 55 स्थानों में शामिल है। पिंडदान के लिए हरिद्वार तो शुभ माना ही जाता है, ऋषिकेश की भी महत्ता कम नहीं हैं। 
उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के सोरो में पिंडदान के लिए भारी भीड़ जुटती है। मान्यता है कि सृष्टि की रचना करने वाले भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वारह ने यहीं अवतार लिया था और असुर हिरण्याक्ष का वध किया था। इसके बाद भगवान वारह ने एकादशी के दिन यहीं पर अपना पिंडदान किया था। 
अलग-अलग जगहों में पितरों के पिंडदान को लेकर ऐसी बहुत सी कहानियां हैं। एक कहानी ये भी है कि श्रीराम ने हिमाचल प्रदेश की आध्यात्मिक शक्ति को देखकर वहां भी अपने पूर्वजों का श्राद्ध किया था, इसके अलावा हरियाणा में पिहोवा, महाराष्ट्र में त्रयंबकेश्वर जैसी जगह भी श्राद्ध तीर्थ कहे जाते हैं। ................................................हर हर महादेव



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