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. मंगल एक उत्तेजक और उग्र ग्रह है यह अपनी स्थिति और दृष्टि से व्यक्ति को भावानुसार प्रभावित करता है ,,,जन्म कुंडली में मंगल की १,४,७,८,१२ भावो में उपस्थिति दाम्पत्य जीवन की स्थिरता ,समरसता ,आयु पर गहरा प्रभाव डालती है ,,,माना जाता है की मंगलीक दोष द्वादश भाव में सबसे कम और अष्टम भाव में सबसे अधिक होता है ,,द्वादश से अधिक लग्न में ,लग्न से अधिक चतुर्थ
में ,चतुर्थ से अधिक सप्तम में और सप्तम से अधिक अष्टम में इसके होने पर बुरा प्रभाव उत्पन्न होता है |कुछ मनीषियो के मतानुसार मंगल की उपरोक्त स्थितियों का विचार चन्द्रमा और शुक्र से भी होना चाहिए |उपरोक्त स्थिति
में मंगल के होने पर निम्न ग्रहों की परिहारात्मक स्थिति देखि जानी चाहिए ,यदि परिहार
हो रहा हो तो विवाह या सम्बन्ध करना चाहिए अन्यथा मांगलिक वर या वधु से ही सम्बन्ध करना श्रेयस्कर होता है |विद्वानों /ज्योतिषविदो के मतानुसार मांगलिक दोष निम्न स्थितियों में भंग या शांत हो जाता है ..
[१] यदि पुरुष और स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल एक ही भाव में बैठे हो .
[२] पुरुष की कुंडली
में मंगल जहा बैठा हो ,वहा स्त्री की कुंडली
में शनि /राहू बैठे हो .
[३] गुरु या शुक्र लग्न में हो तो वक्री ,अस्त ,नीच् राशिस्थ मंगल दोष रहित होता है अतः शांत होता है .
[४] मंगल की पूर्ण बलि चन्द्र से युति होने पर मांगलिक दोष कम हो जाता ह
[५] सप्तमेश उच्च राशिस्थ ,स्वराशिस्थ या मित्र राशिस्थ होकर केन्द्र या त्रिकोण में बैठा हो .
[६] मेष ,वृष ,सिंह ,कुम्भ लग्न वाले वर /कन्या का मांगलिक दोष कुछ विद्वानों के अनुसार
नहीं माना जाना चाहिए .
[७] प्रथम भाव में स्वराशिस्थ मेष का मंगल ,चतुर्थ भाव में स्वराशिस्थ वृश्चिक का मंगल ,सप्तम भाव में उच्च राशि मकर का मंगल ,अष्टम में नीच राशि कर्क का मंगल और द्वादश भाव में मित्र राशि मीन का मंगल दोष रहित माना गया है |..............................................................................................हर-हर महादेव
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