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मनुष्य के भौतिक जीवन की शुरुआत ही पितरों की कृपा से होती है |मनुष्यों
के पास जो कुछ भी होता है उनके पूर्वजों अथवा पितरों की कृपा और देन है |पूर्वजों
की कृपा से ही मनुष्यों को जीवन ,मान -सम्मान ,धन -दौलत आदि प्राप्त होता है
|इसलिए धर्म शास्त्रों में पित्र ऋण को जीवन के तीन ऋणों में प्रथम ऋण माना है
|शेष दो ऋण देव ऋण और गुरु ऋण माने गए हैं |पित्र ऋण का निर्वाह हमें भौतिक कर्मों
द्वारा चुकता करना पड़ता है |इसलिए कर्मों के दायित्व संवहन के लिए शास्त्रों में
श्राद्ध कर्मों की व्यवस्था है |शास्त्रों के अनुसार यदि श्राद्ध कर्म न किया जाय
तो हमारे पितरों [पूर्वजों ] को स्वर्ग में भी कष्ट उठाना पड़ता है ,जिसका अपरोक्ष
प्रभाव हमारे जीवन पर भी पड़ता है और हमें भाँती -भाँती के कष्टों से गुजरना पड़ता
है |इनमे मानसिक पीड़ा ,आर्थिक क्षति ,सामाजिक हानि आदि विषम समस्याएं होती हैं |
वैदिक परंपरा में उन पूर्वजों को पितर अर्थात पितृ कहा जाता है जिनकी
स्मृति को हम श्रद्धा से नमन करते हैं |श्रद्धा पूर्वक पूर्वजों ,पिता ,पितामह और
प्रपितामह इन तीन पूर्व पुरुषों के लिए दिया जाने वाला पिंड ,पुष्प ,जल ,दक्षिणा
आदि श्रद्धा का प्रतीक होने के कारण श्राद्ध कहलाता है |शास्त्रीय मान्यता के
अनुसार पितरों का निवास चन्द्रमा के उपरी भाग में होता है |चन्द्रमा का एक दिन रात
एक मॉस में होता है अतः प्रतिमास में किया गया श्राद्ध भी पितरों को तृप्त करता है
|जब सूर्य कन्या राशि में हो तब पृथ्वी के सबसे निकट का उर्ध्वभाग के कारण उस समय
में किया गया श्राद्ध तत्काल पितरों को प्राप्त होता है |सनातन नियम के अनुसार
संतान को अपने पितरों के लिए दो श्राद्ध अवश्य करने चाहिये |उनमे पहला श्राद्ध तो
तब होता है जब पिता के निधन की तिथि हो |दूसरा श्राद्ध कनागत अर्थात कन्यागत सूर्य
में उस तिथि को जब पिता की मृत्यु हुई हो |माता की मृत्यु यदि पिता के रहते हुई हो
तो उनका श्राद्ध नवमी को किया जाता है
जिसे मात्री नवमी कहा जाता है |प्राचीन मान्यता के अनुसार पित्र पक्ष के १५
दिनों में पित्र स्वयं पृथ्वी लोक में आकर अपने वंशजों के द्वारा दिया अन्न -जल
आदि ग्रहण करते हैं |इन दिनों गाय एवं कुत्ते ,कौवे को भी अन्न देने की प्रथा है |
इन पितरों को हमारा दिया अन्न -जल कैसे प्राप्त हो सकता है जबकि इनका शरीर तो होता
नहीं |इसे जानने के लिए हमारे इसी ब्लॉग पर लिखा हमारा अन्य लेख -- कैसे प्राप्त
होता है पितरों को श्राद्ध - देखें |शंकाओं का समाधान होगा |
मकर संक्रांति के पश्चात अर्थात उत्तरायण शुरू होने पर देवताओं का दिन
प्रारम्भ हो जाता है और कर्क संक्रांति के बाद उनकी रात् शुरू होती है |पितरों की
गणना भी देवताओं में ही होती है किन्तु इनका स्थान दक्षिण में माना जाता है अतः जब
देवताओं का दिन होता है तब पितरों की रात होती है |श्राद्ध पक्ष पितरों के दिन का
मध्याह्न काल होता है |मध्याह्न काल ही समस्त प्राणियों के भोजन लेने का समय होता
है इसलिए पितरों को आहार समर्पित करने के लिए भी उसी समय को उपयुक्त माना गया
|पंचांग के अनुसार अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र एक राशि में होते हैं |सूर्य
अमावश्य के दिन चन्द्रमा के ठीक ऊपर की स्थिति में होता है |इसलिए पितरों का इस
दिन मध्याह्न काल होने से पितरों के निमित्त श्राद्ध करने के लिए अमावश्या को
सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है |
देहावसान होने पर स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है ,जबकि जीवात्मा ,सूक्ष्म
शरीर के माध्यम से पूर्वकृत शुभ -अशुभ कर्मों का फल भोगता हुआ अनेक योनियों में
जन्म लेता है |पित्र पक्ष में पित्र गण ब्राह्मणों के द्वारा आह्वान किये जाने पर
उनकी देह में सूक्ष्म रूप से स्थित होकर सूक्ष्मांश को स्वयं ग्रहण करते हैं
|इसलिए श्राद्ध के भोजन में ब्राह्मण संतुष्टि और आशीर्वाद महत्वपूर्ण है
|शास्त्रानुसार पृथ्वी पर सात लोक माने गए हैं |सत्य ,ताप ,महा ,जन ,स्वर्ग ,भुवः
,भूमि |इनमे भुवः पर पितरों का निवास माना जाता है जहाँ जल की कमी होती है अतः
पितरों का तर्पण आवश्याँ होता है |श्राद्ध कर्म में तर्पण एक आवश्यक अंग होता है
|ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जिस प्रकार वर्षा का जल सीप में गिरने से मोती
,कदली में गिरने से कपूर ,खेत में गिरने से अन्न व धुल में गिरने से कीचड बन जाता
है ,उसी प्रकार तर्पण के जल के सूक्ष्म वाष्पकण देव्योनी के पित्र को अमृत ,मनुष्य
योनी के पितर को अन्न ,पशु योनी के पितर को चारे व अन्य योनियों के पितरों को उनके
अनुरूप मिलकर तृप्त करते हैं |पित्र पक्ष में श्राद्ध तो सम्बंधित तिथियों को किये
जाते हैं किन्तु तर्पण प्रतिदिन किये जाते हैं |पित्र पक्ष में किये गए श्राद्ध से
पित्र गण वर्ष भर संतुष्ट रहते हैं |पित्र पक्ष में पित्र कुषा की नोक पर निवास
करते हैं ,इसी कारण तर्पण करते समय कुषा को अँगुलियों में धारण किया जाता है तथा
जो भी हम जल -भोजन तर्पण करते हैं वह इसी कुषा के द्वारा हमारे पितरों को प्राप्त
होता है |...........................................हर हर महादेव
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