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आज के समय में ‘पितृ-दोष’ लगातार फैलता जा रहा है। किसी के घर में ‘पितृ-दोष’ है, तो कहीं किसी की ‘जन्म-कुण्ड़ली’ में ‘पितृ-दोष’ पाया जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि ‘कुल-पुरोहित’ का न होना। दो, तीन दशक पहले तक सभी घरों के अपने-अपने ‘कुल-पुरोहित’ होते थे और आम व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त जो भी श्राद्ध या दान करते थे, उसमें ‘कुल-पुरोहित’ प्रधान होता था, किन्तु समय के साथ-साथ जहाँ बहुत कुछ बदला, वहीं ‘कुल-पुरोहित’ परम्परा भी लुप्त सी हो गई है। गिने-चुने घरों में ही ‘कुल-पुरोहित’ बचे हुऐ हैं। अधिकतर व्यक्ति ‘पितृ-पूजा’ छोड़ चुके हैं।
कुछ व्यक्ति पितरों के नाम पर इधर-उधर दान करते है, जिससे कि उन्हे थोड़ा-बहुत फायदा तो होता है, किन्तु सम्पूर्ण रूप से लाभ नहीं मिल पाता। ‘पितर-दोष’ से परेशान व्यक्ति उपाय हेतु जब किसी के भी पास जाता है, तो अधिकतर पंडित-पुरोहित ‘पूरे-परिवार’ (खानदान) को मिलकर ‘पितर-दोष निवारण पूजा’ करने को कहतें हैं, या फिर ‘गया-श्राद्ध’ करने को कहते हैं। आज का समय ऐसा हो गया है कि सम्पूर्ण परिवार पूजा के नाम पर एकत्रित होना मुश्किल है। ‘गया-श्राद्ध’ भी सभी व्यक्ति नहीं करा पाते। कुछ लोग जो ‘गया-श्राद्ध’ करवाते भी हैं, तो सम्पूर्ण नियमों का प्रयोग नहीं करते। जिससे कि उन्हें वो फायदा नहीं मिलता जो कि उन्हें मिलना चाहिये।पित्र कवच अपनी सुरक्षा हेतु पितरों से ही प्रार्थना है ,जिससे उन्हें महसूस होता है की हमारे कुल का व्यक्ति हमारी शरण में है और हमसे सुरक्षा की प्रार्थना कर रहा है ,यह हमें याद कर रहा अतः इसकी मदद करनी चाहिए |मूलतः यह ऋषियों -देवताओं को पित्र मान की गयी शास्त्रीय प्रार्थना है |
पितर कवचः
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कृणुष्व पाजः प्रसितिम्
न
पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन ।
तृष्वीम् अनु प्रसितिम्
द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः ॥
तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु
स्पृश धृषता शोशुचानः ।
तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः ॥
प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः ।
यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने
माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत् ॥
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते ।
यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम् ॥
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने
।
अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून् ।
अग्नेष्ट्वा
तेजसा सादयामि॥..........................................................हर हर महादेव
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