========================
क्यों आवश्यक
है पितरों का श्राद्ध
----------------------------
हर संतान के
लिए हिन्दू धर्म में यह कर्त्तव्य बनाया गया है की वह अपने पिता और पितरों का
श्राद्ध अवश्य करे |यह अति आवश्यक है |इसका धार्मिक और गूढ़ कारण है |संतानोत्पादन
से दशमद्वार से प्राण त्याग की शक्ति क्षीण हो जाती है अतः पिता की इस हानि का
दायित्व पुत्र पर आ जाता है ,क्योकि उसी को उत्पन्न करने के कारण यह क्षमता क्षीण
होती है |दाहकर्म के समय पुत्र पिता की कपालास्थी को बांस से तीन बार स्पर्श करता
हुआ अंत में तोड़ डालता है |जिसका अर्थ यही है की पुत्र श्मशानस्थ समस्त बांधवों के
सामने संकेत करता है की अगर पिता जी मुझ जैसे पामर जंतु को उत्पन्न करने का प्रयास
न करते तो ब्रह्मचर्य के बल से उनके दशमद्वार से प्राण निकलते और वे मुक्त हो जाते
|परन्तु मेरे कारण अर्थात मुझे उत्पन्न करने के कारण उनकी यह शक्ति नष्ट हो गयी
|में तीन बार प्रतिज्ञा करता हूँ की इस कमी को श्राद्धादी और्ध्वदेहिक वैदिक
क्रियाओं द्वारा पूरी करके पिता जी का अन्वर्थ -"पु "नामक नरक से
"त्र "त्राणकरने वाला पुत्र बनूँगा |वास्तव में शास्त्र में पुत्र की
परिभाषा करते हुए पुत्रत्व का आधार श्राद्ध कर्म को ही प्रकट किया गया है |यथा -
जीवतो
वाक्यकरणान्म्रिताहे भूरिभोजनात | गयायाँ पिंडदानाच्च त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता ||
जीवित माता
पिता आदि गुरुजनों की आज्ञा का पालन करने से और उनके परलोक जाने पर संस्कार पिंड
पत्तल -ब्रह्मभोज आदि कृत्य करने से तथा गया आदि तीर्थ में जाकर पिंडदान करने से
सुपुत्र होना सिद्ध होता है |उक्त तीनो कार्यों का सम्पादन ही योग्य पुत्रत्व का
सूचक है |
एक ही मार्ग
है जिससे दो वस्तुएं उत्पन्न होती हैं ,एक पुत्र और दूसरा मूत्र |अतः जो व्यक्ति
उपरोक्त तीनो कार्य करता है वही पुत्र है ,शेष सब मूत्र है |
इसी तरह
पिता के प्रति श्राद्ध करने के साथ ही उनके पिता और अन्य कुटुम्बियों का पित्र
पक्ष में श्राद्ध आवश्यक होता है ,यदि उन्हें गया आदि पित्र तीर्थों में स्थापित
नहीं किया गया है |सर्वप्रथम तो चाहिए यह की पिता आदि की मृत्यु पर उपरोक्त कर्म
करते हुए उन्हें उअप्युक्त समय पर गया आदि तीर्थ में पिंडदान के साथ स्थान वंशज
दिलाएं |किन्तु यदि यह शीघ्र संभव नहीं हो पाता अथवा बहुत वर्षों से नहीं हुआ है
और पूर्वजों को नहीं बैठाया गया है तो प्रत्येक वर्ष पित्र पक्ष में उनका श्राद्ध
होना चाहिए उनकी मृत्यु तिथियों पर |क्योकि वह इस स्थिति में आपसे जुड़े होते हैं
और उन्हें श्राद्ध की आवश्यकता होती है तृप्ति के लिए |यदि उनका श्राद्ध नहीं होता
तो पित्र दोष की समस्या उत्पन्न होने लगती है और कालान्तर में यह संतति के पतन का
कारण बन सकता है |................................हर-हर महादेव
No comments:
Post a Comment