Monday, 15 January 2018

पितृ-सूक्तम् [ Pitru Sooktam ]

पितृ सूक्तम 
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पितर-दोष निवारण’ की सबसे प्राचीन एवं श्रेष्ठ पद्धति नारायणबलि’ है। नारायणबलि को आज के समय में सही ढ़ंग से करने एवं कराने वाले भी बहुत ही कम पंड़ित’ रह गये है। हमने अपने वर्षो के अनुसन्धान में पितृ-सूक्त’ को पितर-दोष’ का श्रेष्ठ उपाय के रूप में पाया। जो साधक एकादशी’ या अमावस्या’ के दिन, ‘पितृ-पक्ष’ में, या प्रतिदिन पितृ-सूक्त’ का पाठ करता है, उसके घर’ में या जन्म-कुण्ड़ली’ में कैसा भी पितृ-दोष’ क्यों हो, हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है और पितरों’ की असीम-कृपा साधक और उसके परिवार’ पर हो जाती है। स्कंद-पुराण’ के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जाति के अनुसार अपने पितरों के निमित्त दान एवं श्राद्ध करना चाहिये। ब्राह्मणों के पितर ॠषि वसिष्ठ’ के पुत्र माने गये हैं, अतः ब्राह्मणों को उनकी पूजा करनी चाहिये। क्षत्रियों के पितर अंगिरस- ॠषि’ के पुत्र माने गये है, अतः क्षत्रियों को उनकी पूजा करनी चाहिये। वैश्यों को पुलह-ऋषि’ के पुत्रों की पितर रूप में पूजा करनी चाहिये। शुद्रों को हिरण्यगर्भ’ के पुत्रों की पितर रूप में पूजा करनी चाहिये। प्रत्येक व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त जो भी दान या श्राद्ध करें, उस वक्त यदि वह पितृ-सूक्त’ का पाठ करेंगे, तो उनकी सभी मनोकामनायें पूर्ण हों जाऐंगी।
 पितृ-सूक्तम्
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 उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
 असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1
 अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः। 
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम् ॥2
 ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
 तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु ॥3
 त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
 तव प्रणीती पितरो देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः ॥4 
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
 वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः ॥5
 त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ ततन्थ।
 तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥6
 बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
 तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात ॥7
 आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
 बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः ॥8
 उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
 तऽ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान् ॥9
  यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः। 
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान् ॥10
 अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
 अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11
 येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते। 
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12
 अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
 ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13
 आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे। 
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14
 आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
 पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥....................................................................हर-हर महादेव  

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