Wednesday, 24 January 2018

संतान उत्पत्ति में बाधा ज्योतिष की दृष्टि में

संतान हीनता ::::::ज्योतिष की दृष्टि में
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      संतान न होना या होकर न रहना सदैव से दम्पतियो के लिए कष्ट देने वाला रहा है ,हर दंपत्ति संतान चाहता है जिससे उसकी वंश वृद्धि हो सके ,किन्तु बहुतो को यह सौभाग्य नहीं मिल पाता ,,इसके कई कारण होते है ,ज्योतिषीय कारण  अर्थात ग्रह स्थितिया ,पारिवारिक स्थितिया अर्थात पित्रादी की स्थिति अथवा दोष ,किये -कराये का दोष ,शारिरिक् चक्रों में विशिष्ट चक्र की कम सक्रियता अर्थात दैवीय ऊर्जा की कमी  ,शारीरिक कमी इसके कारण हो सकते है ,,,इनमे शारीरिक कमी को दूर नहीं किया जा सकता किन्तु अन्य को सुधारा जा सकता है ,यद्यपि अन्य कारण एक -दूसरे से बिलकुल  भिन्न होते है ,,ज्योतिषीय रूप से निम्न स्थितिया इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है
पुरुष कुंडली के आधार पर संतानहीनता
[१]तृतीयेश व् चन्द्रमा केंद्र या त्रिकोण में हो और संतान दायक गृह कमजोर हो तो संतान नहीं होती है ,
[२]पंचम भाव में मंगल ,षष्ठ भाव में पंचमेश और सिंह राशिस्थ शनि हो तो संतान नहीं होती है ,
[३]लग्नेश व् बुध दोनों ,,,१० भाव में हो और संततिकारक ग्रह कमजोर हो तो संतान नहीं होती है ,
[४]पंचम भाव में चंद्र तथा अष्टम ,द्वादश भाव मे सभी ग्रह हो तो भी संतान नहीं होती है ,
[५]पंचम भाव में गुरु ,चतुर्थ भाव में पाप ग्रह और सप्तम भाव में बुध-शुक्र युति हो तो भी संतान नहीं होती है .,
[६]सप्तम भाव में शुक्र ,दशम भाव में चंद्र तथा चतुर्थ में कोई तीन पाप ग्रह हो तो संतान हीन योग बनता है ,
[७]पंचम, षष्ठ, अष्टम, एवं द्वादश में पाप ग्रह होना वंश विच्छेद की निशानी होता है ,
[८]लग्न में मंगल ,अष्टम में शनि और पंचम भाव में सूर्य वंश विच्छेद करते है ,
[९]पंचमेश या सप्तमेश नीच् राशिगत या अस्त हो ,पुत्रकारक ग्रहों की दृष्टि हो पाप प्रभावी हो तो भी संतान नहीं होती
[१०]यदि पंचमेश स्त्री ग्रह हो और वह , अथवा १० भाव में चंद्र ,बुध ,शनि अथवा राहू के साथ बैठा हो तो जातक पुत्रहीन होता है
[११]लग्न में पाप ग्रह चतुर्थ में चन्द्रमा तथा पंचम में लग्नेश हो और पंचमेश अल्प बलि हो तो वंश नाश हो जाता है ,,
[१२]यदि पंचम भाव में अकेला चन्द्रमा मृत अवस्था में बैठा हो तो भी संतति की सम्भावना कम हो जाती है ,,
स्त्री कुंडली के आधार पर संतान हीनता
[१] लग्न में सूर्य और सप्तम में शनि हो तो संतानहीनता की सम्भावना होती है ,
[२]षष्ठ भाव में षष्ठेश ,सूर्य और शनि हो ,चंद्र सप्तम में हो तथा बुध उन्हें देखता हो तो संतानहीन योग होता है ,
[३]सप्तम भाव में सूर्य और शनि ,दशम भाव में चंद्र और गुरु की दृष्टि हो तो भी संतान की सम्भावना कम हो जाती है ,,
[४] शनि और मंगल षष्ठ या चतुर्थ भाव में संतान प्रतिबंधक योग बनाते है ,
[५]पंचम भाव में षष्ठेश,अष्टमेश या द्वादशेश की स्थिति अथवा  षष्ठ ,अष्टम या द्वादश में पंचमेश की स्थिति बाधाकारक होती है ,
[६] पंचमेश का नीच राशिगत या अस्त हो ,लग्नेश , सप्तमेश व् गुरु निर्बल हो तो संतान नहीं होती है ,
[७] पंचम भाव में ,,१०,१२ राशि हो और चतुर्थ या पंचम में गुरु हो ,संतान का आभाव हो सकता है ,
                  उपरोक्त ज्योतिषीय योगो के अतिरिक्त भी कई कारण होते है जो दंपत्ति को संतानहीन बनाते है और तदनुसार उनका आकलन कर और पता कर यदि सही समाधान किया जाए तो संतान की सम्भावना बन सकती है ......................................................................हर-हर महादेव


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