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कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की प्रक्रिया में बनने वाले दोषों में से नाड़ी दोष को सबसे अधिक अशुभ दोष माना जाता है तथा अनेक वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष के बनने से बहुत निर्धनता होना, संतान न होना तथा वर अथवा वधू दोनों में से एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाना जैसी भारी मुसीबतें भी आ सकतीं है। इसीलिए अनेक ज्योतिषी कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनने पर ऐसे लड़के तथा लड़की का विवाह करने से मना कर देते हैं। नाड़ी दोष तब आता है, जब एक जैसी नाड़ी वाले लोग शादी कर लेते हैं। दो लोगों के शादी के लिए 8 गुण मिलाने के समय नाड़ी मिलाना भी बेहद आवश्यक होता है। नाड़ी के 8 अंक होते हैं, जो कि सबसे अधिक होते हैं। नाड़ी दोष से ग्रस्त माता-पिता के बच्चे कमजोर होते हैं, इसलिए इसे गंभीरता से लेना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ब्रह्मांड में कुल 27 नक्षत्र माने गए हैं और इन 27 नक्षत्रों को 3 नाड़ियों में बांटा गया है - आदि, मध्य तथा अंत्य। कुंडली मिलान करते हुए अगर वर-वधू दोनों ही आदि-आदि, मध्य-मध्य अथवा अंत्य-अंत्य में आएं, तो उनके
साथ को नाड़ी दोष युक्त माना जाता है।गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्य अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है।
नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :
यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
नाड़ी
दोष कुंडलीं मिलान के समय बनने वाले अनेक दोषों में से केवल एक दोष है तथा कुंडली
मिलान में बनने वाले अन्य कई दोषों जैसे कि भकूट दोष, गण दोष, काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि में से प्रत्येक दोष भी अपनी
प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग 50% कुंडली मिलान के मामलों में तलाक तथा वैध्वय जैसीं समस्याएं पैदा करने में
पूरी तरह से सक्षम है।
नारद पुराण के अनुसार भले ही वर-वधू के अन्य गुण मिल रहे हों, लेकिन अगर नाड़ी दोष उत्पन्न हो रहा है तो इसे किसी भी हाल में नकारा नहीं जा सकता क्योंकि यह वैवाहिक जीवन के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होता है। ऐसे रिश्ते या तो नर्क समान गुजरते हैं या बेहद दुखद हालातों में टूट जाते हैं, यहां तक कि जोड़े में किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।
वाराहमिहिर के अनुसार अगर वर-वधू की कुंडली में ‘आदि दोष’ हो, तो उनका तलाक निश्चित है। इसी प्रकार ‘मध्य दोष’ होने पर दोनों की ही मृत्यु हो सकती है। ‘अन्य दोष’ हो तो वैवाहिक जीवन बेहद कष्टकर गुजरता है या दोनों में किसी एक की मृत्यु हो जाती है और उनका वो एकाकी जीवन भी सामान्य से अधिक कष्टदायक होता है।
‘आदि दोष’ में जहां पति की मृत्यु हो सकती है, ‘मध्य’ पति-पत्नी दोनों के लिए मृत्युकारक होता है और ‘अन्य दोष’ पत्नी की मृत्यु का कारक बनाता है। इस प्रकार वैवाहिक जीवन के लिए नाड़ी दोष का होना हर प्रकार से बस जीवन को दुखी और शोकाकुल बनाता है।
नाड़ी दोष के उपचार
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- ब्राह्मन को सोने की नाड़ी, अनाज, कपड़ा और गाय भेंट करें।
- नाड़ी दोष से ग्रस्त स्त्री की पहले भगवान विष्णु से शादी कराई जाती है और फिर असल शादी होती है। इससे नाड़ी दोष खत्म हो सकता है। इसलिए नाड़ी दोष के बारे में शादी से पहले जानना बेहद जरूरी होता है, ताकि उसे समय पर खत्म किया जा सके।
-नाड़ी दोष को समाप्त करने के लिए संकल्प करके महामृत्युंजय जप द्वारा और ब्राह्मणो को स्वर्ण आदि की दक्षिणा देकर दोष को खतम किया जाता है। इसके अलावा सालगिराह के दिन अपने वज़न के बराबर अन्न दान देने व ब्राह्मण को भोजन के साथ वस्त्र दान करने से भी इस दोष को खतम किया जा सकता है। वर-वधू दोनों मे से जिसके मे भी मारकेश की दशा चल रही हो उसे दशनाथ का उपाय दशाकाल तक करना चाहिए। इतने सारे बताए उपाय को करके कुंडली मे अगर नाड़ी दोष बनता है तो उसे समाप्त किया जा सकता है। जो लोग नाड़ी दोष के बावजूद भी शादी करने की जिद पर अड़े होते है वो लोग इस पूजा को कर सकते है। इसके लिए सोने का सांप बनवाकर, उसकी पूजा करने के बाद महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। जप हो जाने के बाद व्यक्ति को अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार सोना, गाय, वस्त्र अथवा अन्न का दान देना चाहिए।……………………………………………………….हर हर महादेव
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