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शक्ति पीठ ऐसे स्थल होते हैं जो स्वयं सिद्ध होते हैं और वहाँ पर दैवीय शक्तियों कि प्रचुरता होती है तथा साथ ही वहाँ पर किये जप या साधनात्मक कार्य आश्चर्यजनक रूप से अन्य सामान्य स्थलों कि अपेक्षा शीघ्र फलीभूत होते हैं ... अक्सर देखने में आता है कि कई साधक ऐसे होते हैं कि बार - बार साधना करते हैं लेकिन न उनकी साधनाएं सफल होती हैं और न सिद्धियाँ -- ऐसे साधकों को कम से कम एक बार किसी शक्तिपीठ में जाकर अपनी साधना सम्पन्न करनी चाहिए इसके पश्चात् उन्हें इनका महत्व खुद ही पता चल जायेगा |
पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि जिस समय राजा दक्ष के यज्ञ में सती ने छुभित होकर आत्मदाह कर लिया और इस सम्बन्ध में जो शिवगण माता सती के साथ गए थे जब उन्होंने उपद्रव शुरू किया तो राजा दक्ष के सैनिकों के द्वारा उन्हें बलपूर्वक यज्ञस्थल से बहार निकाल दिया गया --- जब यह समाचार भगवान् शिव को मिला तो उन्होंने क्रोधातिरेक से अपनी जटाओं कि एक लट को पत्थर पर पटक दिया जिससे वीरभद्र नमक एक अति तामसी गण का प्रादुर्भाव हुआ भगवान शिव कि इच्छा समझकर उस गण ने जाकर दक्ष के यज्ञ का भंग कर दिया --! इसके पश्चात् भगवान् शिव सती का पार्थिव शरीर लेकर अखिल ब्रह्माण्ड में चक्कर लगाने लगे उनके वेग और क्रोध से समस्त ब्रह्माण्ड का अस्तित्व खतरे में आ गया तब देवताओं ने भगवान् विष्णु कि प्रार्थना कि जिसके जवाब में भगवान् विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के पार्थिव शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया और वे टुकड़े जहाँ जहाँ पर गिरे वही एक शक्तिपीठ कहलाया - इस तरह से कुल ५१ - इक्यावन शक्तिपीठों का अस्तित्व बना |
शक्तिपीठ , द्वादश ज्योतिर्लिंग और देव स्थान आदि पर गहन चिंतन करें तो हम पाते हैं की समस्त प्रकृति दो प्रकार के गुणों [आवेशो, प्रकृतियों ] के आपसी संयोग से निर्मित होती है ,यहाँ तक की ब्रह्माण्ड के समस्त चराचर |यह है धनात्मक और ऋणात्मक गुण |शक्तिपीठ में ऋणात्मक प्रकृति के गुण की अधिकता होती है |यह ऐसे स्थानों पर निर्मित हैं जहाँ से ऋणात्मक गुणों ,आवेशों ,प्रकृतियों की तरंगें धरती से अधिक मात्र में निकलती है ,प्रकृति से अधिक मात्र में वहां संघनित होती हैं ,जिससे उनकी प्राप्ति वहां से अधिक मात्र में संभव है |चुकी सभी देवियाँ ,स्त्रियाँ ऋणात्मक गुण का प्रतिनिधित्व करती हैं अतः शक्तिपीठ देवी स्थान होते हैं और वहां इनकी शक्ति सिद्धि अधिक आसान होती है |इनके साथ धनात्मक गुण अर्थात देवता अवश्य जुड़े होते हैं अतः इनके वहां भिन्न भैरव निर्धारित हैं |............................................................हर-हर महादेव
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